संस्कार शब्द का अर्थ क्या है ( Meaning of Sanskar)
संस्कार शब्द का अर्थ क्या है ?
- संस्कार शब्द का निर्माण 'सम्' उपसर्ग में 'कृ' धातु के 'धत्र' प्रत्यय लगाने से होता है जिसका अर्थ होता है परिष्कार, शुद्धता अथवा पवित्रता । इस प्रकार हिन्दू व्यवस्था में इन संस्कारों का में विधान व्यक्ति के शरीर को पवित्र बनाने के उद्देश्य से किया गया ताकि वह व्यक्तिगत व सामाजिक विकास के लिए उपयुक्त बन सके।
- संस्कार वह क्रिया है जिसके सम्पन्न होने पर कोई वस्तु किसी उद्देश्य के योग्य बनती है। इसकी प्रमुख विशेषताओं में शुद्धता, पवित्रता, धार्मिकता एवं आस्तिकता की स्थितियां शामिल हैं। समाज में ऐसी धारणा है कि मनुष्य जन्म से असंस्कृत से होता है किन्तु वह इन संस्कारों के माध्यम से सुसंस्कृत हो जाता है अर्थात् इनसे उसमें •अन्तर्निहित शक्तियों का पूर्ण विकास हो जाता है तथा वह अपने लक्ष्य की प्राप्ति कर लेता है। ये व्यक्ति के जीवन में आने वाली बाधाओं का भी निवारण करते तथा उसकी प्रगति के मार्ग को निष्कंटक बनाते हैं। इसके माध्यम मानव अपना आध्यात्मिक विकास भी करता अनुसार, यह शरीर को विशुद्ध करके उसे आत्मा का उपयुक्त स्थल बनाता है। इस प्रकार के व्यक्तित्व की सर्वांगीण उन्नति हेतु भारतीय संस्कृति में इनका विधान प्रस्तुत किया गया है। इस शब्द का उल्लेख वैदिक तथा ब्राह्मण साहित्य में नहीं मिलता।
- मीमांसक इसका प्रयोग यज्ञीय सामग्रियों को शुद्ध करने के अर्थ में करते हैं। वास्तविक रूप से इसका विधान सूत्र-साहित्य तथा गृहयसूत्र में वर्णित हैं। ये जन्म से लेकर मृत्युपर्यन्त तक सम्पन्न किये जाते थ। अधिकांश गृहयसूत्रों में अंत्येष्टि का उल्लेख नहीं मिलता है। स्मृति ग्रन्थों में इनका विवरण प्राप्त होता है। इनकी संख्या 40 है। गौतम धर्मसूत्र में इनकी संख्या 48 बतायी गयी है। मनु ने गर्भाधान से मृत्यु पर्यन्त तक तेरह संस्कारों का जिक्र किया है जबकि बाद की स्मृतियों में सोलह स्वीकार की गई हैं।