यज्ञ का अर्थ |यज्ञ शब्द की व्युत्पत्ति | Yagya Meaning and Origin of Yagya word

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यज्ञ का अर्थ, यज्ञ शब्द की व्युत्पत्ति

 

यज्ञ का अर्थ |यज्ञ शब्द की व्युत्पत्ति | Yagya Meaning and Origin of  Yagya word

यज्ञ का अर्थ, यज्ञ शब्द की व्युत्पत्ति


  • यज्’ धातु से यज्-याच्-यत्-विच्छ-प्रच्छ-रक्षो नड.' (31 31 90) इस पाणिनीय सूत्रसे 'नड्करने पर यज्ञ’ शब्द बनता हैं । 'नड्न्तःइस पाणिनीय लिंगानुशासन से 'यज्ञशब्द पुल्लिंग भी होता हैं। 'नड़ प्रत्यय भाव अर्थ में होता हैंकिन्तु 'कृत्यल्युटो बहुलम्' (3131113) इस सूत्र पर 'बहुलग्रहणं कृन्मात्रस्यार्थ-व्याभिचारार्थम्इस सिद्धान्त से कृदन्त के सभी प्रत्ययों का अर्थ आवश्यकतानुसार परिवर्तित किया जा सकता हैं। यही भाष्यकारादि सम्मत मार्ग हैं। 


  • धातु-पाठ में यज्’ धातु का पाठ किया गया हैं। 'धातवः अनेकार्थाःइस वैयाकरणसिद्धान्त के अनुसार कतिपय आचार्यों ने यज् देवपूजासंगतिकरणदानेषुइस पाणिनीय सूत्र के अनुसार 'यज्’ धातु का देवपूजासंगतिकरण और दान इन तीन अर्थों में प्रयोग किया हैं। अर्थात् यज्ञ में देवपूजा होती हैंदेवतुल्य ऋषि-महर्षियों का संगति करण होता हैं और दान भी होता है।

 

देवपूजा

 

1. यजनं इन्द्रादि-देवानां पूजनं सत्कारभावनं यज्ञः। 

2. इज्यन्ते ( पूज्यन्ते ) देवा अनेनेति यज्ञः । 

3. इज्यन्ते देवा अस्मिन्निति यज्ञः। 

4. इज्यते देवेभ्यः अस्मिन्निति यज्ञः। 

5. इज्यते असौ इति यज्ञः (विष्णुः ) 

6. इज्यन्ते सम्पूजिताः तृप्तिमासाद्यन्ते देवा अत्रेति यज्ञः।

 

इन्द्रादि देवों का पूजन तथा सत्कार यज्ञ कहा जाता हैं। जिससे देवताओं की पूजा की जाय उसे यज्ञ कहते हैं जिसमें देवताओं की पूजा हो उसे यज्ञ कहते हैं। जिस कर्म-विशेष में देवताओं के लिये अनुष्ठान किया जाय उसे यज्ञ कहते हैं। जिस कार्य में देवगण पूजित होकर तृप्त हो उसे यज्ञ कहते हैं।'

 

संगतिकरण

 

1. यजनं धर्म-देश-जाति-मर्यादारक्षायै महापुरुषाणामेकीकरणं यज्ञः । 

2. इज्यन्ते संगतीक्रियन्ते विश्वकल्याणाय परिभ्रमणं कृत्वा महान्तौ विद्वांसः वैदिकषिरामणयः व्याख्यानरत्नाकराः निमन्त्र्यन्ते अस्मिन्निति यज्ञः । 

3. इज्यन्ते स्वकीय बन्धु-बान्धवादयः प्रेमसम्मानभाजः संगतिकरणाय आहूयन्ते प्रार्थ्यन्ते च येन कर्मणेति यज्ञः।

 

  • धर्मदेशजाति (वर्णाश्रम) की मर्यादा की रक्षा के लिये महापुरुषों को एकत्रित करना यज्ञ कहलाता हैं। विश्व-कल्याण के लिए जगभ्रमण करके महापुरुषों द्वारा बड़े-बड़े विद्वान्वैदिक मूर्धन्यव्याख्यानरत्नाकर लोग जहां निमन्त्रित किये जाते हों उसे यज्ञ कहते है। जिस सदनुष्ठान में अपने बन्धु-बान्धव आदि स्नेहियों को परस्पर सम्मिलन के लिये आमन्त्रित किया जाय उसे यज्ञ कहते हैं।

 

दान-

1. यजनं यथाशक्ति देश-काल-पात्रादिविचारपुरस्सरद्रव्यादित्यागः । 

2. इज्यते देवतोद्देशेन श्रद्धापुरस्सरं द्रव्यादि त्यज्यते अस्मिन्निति यज्ञः । 

3. इज्यन्ते सन्तोष्यन्ते याचका येन कर्मणा स यज्ञः । 

4. इज्यन्ते भगवति सर्वस्व निधाप्यते येन वा स यज्ञः 

5. इज्यन्ते चत्वारो वेदाः सांगा सरहस्याः सच्छिश्येभ्यः सम्प्रदीयन्ते (उपदिष्यन्ते) सदाचायैर्यैन वा स यज्ञः ।

 

  • यथाशक्ति देशकालपात्रादि विचारपुरस्सर द्रव्योत्सर्ग करने को यज्ञ कहते हैं । जिसमें श्रद्धापूर्वक देवताओं के उद्देश्य से द्रव्य का त्याग किया जाय उसे यज्ञ कहते हैं। जिस कर्म से याचकों को सन्तुष्ट किया जाय उसे यज्ञ कहते हैं। जिस कर्म से अपना सर्वस्व भगवदर्पण किया जाय उसे यज्ञ कहते हैं। जिस कर्म में चारों वेद सांगोपांग उत्तम शिष्यों के लिये योग्य आचार्यों द्वारा उपदिष्ट किये जाते हों उसे यज्ञ कहते हैं।"

 

यज्ञ शब्द के कतिपय व्युत्पत्तिजन्य अर्थ 

1. येन सदनुष्ठानेन इन्द्रभृतयो देवाः सुप्रसन्नाः सुवृष्टि कुर्युस्तुद् यज्ञपदाभिधेयम् । 

2. येन सदनुष्ठानेन स्वर्गादिप्राप्तिः सुलभा स्यात् तद् यज्ञपदाभिधेयम् । 

3. येन सदनुष्ठानेन सम्पूर्ण विष्वं कल्याणं भजेत् तद् यज्ञपदाभिधेयम् । 

4. येन सदनुष्ठानेन आध्यात्मिक-आधिदैविक-आदि-भौतिकतापत्रयोन्मूलनं सुकरं स्यात् तद्

यज्ञपदाभिधेयम् । 

5. यागांगसमूहस्य एकफलसाधनाय अपूर्ववान् कर्मविशेषो यागः । 

6. मन्त्रैर्देपतामुद्दिश्य द्रव्यस्य दानं यागः।

 

  • जिस सदनुष्ठानद्वारा इन्द्रादि देवगण प्रसन्न होकर सुवृष्टि प्रदान करें यज्ञ कहते हैं। जिस सदनुष्ठानद्वारा स्वर्गादि की प्राप्ति सुलभ हो उसे यज्ञ कहते हैं। जिस सदनुष्ठानद्वारा संसार का कल्याण हो उसे यज्ञ कहते हैं। जिस सदनुष्ठानद्वारा आध्यात्मिकआधिदैविक एवं आधिभौतिक विपत्तियां दूर हों उसे यज्ञ कहते हैं। यागांग समूह के एकफलसाधनार्थ अपूर्वसे युक्त कर्म-विशेष को यज्ञ कहते हैं । वैदिक मन्त्रों द्वारा देवताओं को उद्देश्य करके किये हुए द्रव्य के दान को यज्ञ कहते हैं।' (यह संक्षिप्तार्थ हैं) ।

 

यज्ञ शब्द के कतिपय वेद प्रतिपाद्य अर्थ

 

1. यत्र प्रक्षेपांगको देवतोद्देशपूर्वको द्रव्यत्यागोऽनुष्ठीयते स यागपदार्थः । (भाट्टदीपिका 42। 12) ‘जहां पर देवता को उद्देश्य कर अग्नि में द्रव्य का प्रक्षेप किया जायउसे 'यज्ञकहते हैं।' 

2. यशः कस्मात् प्रख्यातं यजति कर्मेति नैरूक्ताः । याच्यो भवतीति वा यजुर्भिरून्नो भवतीति वाबहुकृष्णाजिन इत्यौपमन्यवः यजूँष्येनं नयन्तीति वा (निरूक्त 314119) 


  • यज्ञ क्यों कहलाता हैं यज् धातु का अर्थ देवपूजा आदि लोक और वेद में प्रसिद्ध ही हैंऐसा निरुक्तके विद्वान् कहते हैं, अथवा जिस कर्म में लोग यजमानसे अन्नादिककी याचना करते हैंअथवा यजमान ही देवताओं से वर्षा आदि की प्रार्थना करता हैंअथवा देवता ही यजमान से हविकी याचना करते हैंउस कर्मको 'यज्ञकहते हैं। अथवा कृष्ण यजुर्वेद के मन्त्रों की जिसमें प्रधानता हो उसे यज्ञ कहते हैं। यज्ञ में यजुर्वेद के मन्त्रों का अधिक उपयोग होता हैं।


3. देवतं प्रति स्व-द्रव्यस्योत्सर्जनं यशः । 

'देवता के प्रति अपने द्रव्य का उत्सर्जन (त्याग) करना यज्ञ कहलाता हैं।'

 

  • 4. पुराणों के अनुसार स्वयंभुव मनु तथा शतरूपा की पुत्री आकूति से उत्पन्न रूचि प्रजापति का पुत्र जो भगवान की ही अवतार है। दक्षिणा इनकी पत्नी थी। इसका हिरण का सिर था। यक्ष प्रजापति के यज्ञ के समय वीरभद्र ने इसका वध किया। इसी यज्ञ ने यज्ञ का प्रवर्तन किया। एक बार मनु तथा शतरूपा जब तपश्चर्या में निरत थे तभी असुरों ने उन्हें खाने का प्रयत्न किया । जिससे तुरन्त ही यज्ञ ने अपने पुत्र याम के साथ उनका निग्रह किया। जिससे प्रसन्न हो देवताओं ने इसे इन्द्रासन दिया। यज्ञ या याग जो किसी शुभ कार्य के सम्पादन के पूर्व देवताओं के प्रसादार्थ किया जाता हैं। यज्ञों के जो शास्त्र बने वे ब्राह्मण तथा श्रौत सूत्र कहलाये। यज्ञों के होताउद्गाताअध्वर्यु तथा ब्रह्मा चार ऋत्विज होते हैं जो क्रमशः देवताओं के आह्वानआहुति के समय सामगानालापयज्ञ के कृत्य तथा यज्ञों की रक्षा करते हैं।

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