आसन की उपयोगिता ,आसनों की सावधानियाँ
आसन की उपयोगिता
- प्रिय विद्यार्थियों आसन योग के अनुष्ठान के लिए बहुत ही उपयोगी है। योगी की साधना के लिए आसन का अभ्यास आवश्यक है। क्योंकि योग साधना में प्रवृत्त होने के लिए महर्षि पतंजलि ने भी वर्णन किया है कि जिसमें स्थिरतापूर्वक सुखपूर्वक बैठा जा सके वह आसन है। अतः स्पष्ट है कि यम नियम के अनुष्ठान के बाद स्थिरतापूर्वक आसन में प्रवृत्त - होना आवश्यक है। जब साधक आसन द्वारा स्थिरता को प्राप्त होगा तभी प्राणायाम का अभ्यास पूर्ण होगा। आसन के सिद्ध होने पर ही प्राणायाम का अभ्यास बताया गया है। आसनों का निरन्तर अभ्यास करने से उसका प्रत्यक्ष प्रभाव शरीर, मन तथा आत्मा पर पड़ता है।
आसनों की शास्त्रीय उपयोगिता महर्षि पतंजलि ने आसन की सिद्धि के फल का वर्णन इस प्रकार किया है-
"ततो द्वन्दानभिघात्ः” (पाo यो० सू० 2 / 48 )
अर्थात
आसन की सिद्धि से सर्दी - गर्मी, भूख प्यास, हर्ष- विषाद आदि द्वन्दों का आघात नहीं लगता। अर्थात आसन के सिद्ध होने पर स्थिरता का भाव आ जाता है। तब साधक को किसी भी प्रकार के द्वन्द नहीं सताते है ।
स्वामी हरिहरानंद के अनुसार -
आसन स्थैर्य के कारण शरीर में शून्यता आ जाती है।
महर्षि व्यास के अनुसार
आसन जय के कारण शीत उष्ण आदि द्वन्दों द्वारा साधक अभिभूत नहीं होता।
- इस प्रकार जब साधक आसन सिद्ध कर लेता है तब उसे शुभ-अशुभ, सुख-दुख, गर्मी-सर्दी आदि के भाव नहीं सतायेंगे। वह हर परिस्थिति में शांत व सुखी रहता है।
- आसनों के अभ्यास से ध्यान में सहायता मिलती है। ध्यान तभी किया जा सकता है जब आसन सिद्ध हो जाए। उच्च स्तरीय साधना में प्रवेश हेतु आसन बहुत उपयोगी है। षट्चक्रों के जागरण में आसन की भूमिका महत्वपूर्ण है।
आसनों का शारीरिक, मानसिक व आध्यात्मिक रूप से उपयोगिता निम्न प्रकार से है
आसन की शारीरिक स्वास्थ्य की दृष्टि से उपयोगिता
- आसन शारीरिक व मानसिक एवं आध्यात्मिक दृष्टि से अत्यन्त उपयोगी महत्वपूर्ण एवं लाभदायक है, क्योंकि आसनों का निरन्तर अभ्यास करने से उसका प्रत्यक्ष प्रभाव शरीर पर तो पड़ता ही है साथ ही साथ मन तथा आत्मा पर भी पड़ता है। आसन शरीर के वाह्य तथा आभ्यन्तरिक अवयवों को प्रभावित करते है। जिससे शरीर के सभी अवयव क्रियाशील हो जाते है, तथा सुचारू रूप से अपना कार्य करना आरम्भ कर देते है। आसनों के प्रभाव से सभी अन्तःस्रावी ग्रन्थियाँ अपना कार्य सुचारू रूप से करने लगती है। फलस्वरूप उनके स्राव नियमित व नियंत्रित हो जाते है और सभी ग्रन्थियाँ नियमित व नियंत्रित रूप से कार्य करने लगती है। जिससे शारीरिक विकास सुचारू रूप से होता है।
- आसनों के नियमित अभ्यास से श्वासोच्छवास की नियंन्त्रित गति व दीर्घ श्वास-प्रश्वास से फेफड़े स्वस्थ एवं क्रियाशील हो जाते है। जिससे शरीर का रक्त शुद्ध होता है तथा रक्त प्रवाह यथोचित रूप से होता है। शुद्ध रक्त जब सभी अंगों में प्रवाहित होता है, तब सभी अंग सुचारू रूप से अपना कार्य करना प्रारम्भ कर देते है।
- शुद्ध रक्त से हृदय को बल मिलता है तथा रक्त से संबंधित रोग नहीं होते व रक्त संचार भी ठीक रहता है तथा रक्तचाप भी नियंत्रित रहता है। रक्त के द्वारा सभी अंगों को शुद्ध रक्त तथा पोषण प्राप्त होता रहता है। जिससे सभी संस्थान जैसे पाचन संस्थान, रक्त संवहन संस्थान आदि प्राकृत रूप से अपना कार्य - करने लगते हैं और शरीर पूर्ण स्वस्थ बना रहता है। जिससे शरीर में रोग प्रतिरोधक क्षमता में वृद्धि होती है तथा शरीर रोगों से दूर रहता है।
- इस प्रकार आसनों के अभ्यास से शरीर के वाह्य और आन्तरिक दोनों संस्थानों जैसे मांसपेशिय संस्थान, अन्तःस्रावी ग्रन्थियां, सन्धियाँ, स्नायुमण्डल, पाचन संस्थान आदि सभी संस्थानों पर प्रभाव पड़ता है तथा ये अंग सुचारू रूप से अपना कार्य करते है ।
आसन की मानसिक स्वास्थ्य की दृष्टि से उपयोगिता
- प्रिय विद्यार्थियों आसनों का उपयोग सिर्फ - शारीरिक स्वास्थ्य की दृष्टि से ही नहीं वरन् मानसिक स्वास्थ्य की प्राप्ति में भी है। आसनों का जितना प्रभाव शारीरिक स्वास्थ्य व सौन्दर्य पर पड़ता है। उतना ही प्रभाव मानसिक स्वास्थ्य पर भी पड़ता है। आसनों के अभ्यास से मन स्थिर होकर एकाग्रता को प्राप्त हो जाता है। मन की चंचलता समाप्त हो जाती है। आसनों के दीर्घकाल तक अभ्यास करने से मानसिक विकार दूर होते हैं, तथा इनका प्रत्यक्ष प्रभाव स्नायुमण्डल पर पड़ता है। जिससे तनाव कम होता है। मन में उपजने वाले द्वन्दों का शयन होता है, आसनों से दुख दर्द सहन करने की शक्ति उत्पन्न होती है तथा दृढ़ता व एकाग्रता की शक्ति व मस्तिष्क शक्तिशाली बनता है। अनेक प्रकार की समस्याओं, चिन्ताओं और कुण्ठा से मुक्ति मिलती है।
- आसनों के अभ्यास से अशुद्धियों का क्षय होता है, तथा सुप्त शक्तियाँ जाग्रत होती है। व्यवहार की शुद्धि होती है। स्मरण शक्ति बढ़ती है। इस प्रकार मानसिक स्वास्थ्य के लिए आसनों का अभ्यास निश्चय ही उपयोगी है।
आसन की आध्यात्मिक स्वास्थ्य की दृष्टि से उपयोगिता -
- आसन के कुछ अभ्यास राजयोग की साधना का मार्ग प्रशस्त करते हैं। ऐसे ध्यानात्मक आसन जिनका कार्य समाधि की ओर अग्रसर करना है। स्थिरतापूर्वक जिनका अभ्यास किया जाये वह आसन है। इन आसनों के द्वारा प्रत्याहार, धारणा व ध्यान का अभ्यास किया जाता है, में उच्च यौगिक अभ्यास साधक की साधना के महत्वपूर्ण बिंदु हैं उच्च यौगिक अभ्यासों से ही कुण्डलिनी शक्ति जाग्रत की जा सकती है। आध्यात्मिक उन्नति में आसनों की महत्वपूर्ण भूमिका है। आसनों से सुप्त चेतना की जाग्रति की जा सकती है। जब शरीर स्थिर व मजबूत हो जाता है, तभी प्राण को नियंत्रित कर मूलाधार में स्थित शक्ति को उर्ध्वगामी बनाया जा सकता है। आसनों द्वारा व्यक्तित्व का सम्पूर्ण विकास हो जाता है। आसनों द्वारा मानवीय गुणों में वृद्धि होती है, ऐसे गुणों का धारण कर उसकी वाणी में मृदुता, व्यवहार में सादगी, आचरण में पवित्रता, स्नेह आदि भाव जाग्रत होते है, जो आध्यात्मिक उन्नति का संकेत चेहरे पर तेज व क्रान्ति उत्पन्न होकर एक अप्रतिम व्यक्तित्व का निर्माण होता है। ये सभी गुण ध्यान में सहायक होते है तथा साधक ध्यान का अभ्यास कर समाधि तथा साक्षात्कार की अवस्था तक पहुँच कर अपने लक्ष्य को प्राप्त कर सकता है। इस प्रकार जीवन के परम लक्ष्य की प्राप्ति में आसनों की उपयोगिता स्वयं सिद्ध है।
इस प्रकार शारीरिक, मानसिक व आध्यात्मिक दृष्टि से आसनों की उपयोगिता निर्विवाद है। प्रिय विद्यार्थियों, यद्यपि आसन अत्यन्त महत्त्वपूर्ण एवं दुष्प्रभाव रहित अभ्यास है। जिसका मनुष्य के शारीरिक, मानसिक, आध्यात्मिक व सामाजिक स्वास्थ्य पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। आसनों का नियमित अभ्यास करने से शरीर में विकार एवं रोगों की सम्भावनाएं कम हो जाती है। नियमित आसनों का अभ्यास करने से मनुष्य का शरीर एवं मन पर नियंत्रण बना रहता है, किन्तु यहाँ पर यह भी ध्यान देना चाहिए कि इन लाभकारी आसनों को सदैव अनुशासित रूप से करना चाहिए। आसनों को अनुशासित रूप से करने का क्या तात्पर्य है, यह जानने के लिए आपके मन में जिज्ञासा अवश्य बढ़ गयी होगी।
आसनों की सावधानियाँ
अतः अब आसनों के संदर्भ में ध्यान रखने वाले कुछ महत्वपूर्ण बिन्दुओं अर्थात सावधानियों पर विचार करते हैं -
आसनों का अभ्यास करते समय साधक को निम्न सावधानियों का पालन अवश्य करना चाहिए -
1. आसनों का अभ्यास सदैव खाली पेट करना चाहिए। इस विषय में एकमात्र आसन वज्रासन है जिसका अभ्यास भोजन करने के उपरान्त करना चाहिए।
2. सदैव साफ स्वच्छ वातावरण में आसन करने चाहिए। गन्दगी, शंकायुक्त एवं प्रदूषित वातावरण में आसन नहीं करने चाहिए।
3. आसन करते समय ढीले एवं सूती वस्त्रों को ही धारण करना चाहिए। कभी भी टाइट वस्त्र जैसे जीन्स, बैल्ट, घड़ी, अंगूठी आदि पहन कर आसन नहीं करने चाहिए।
4. आसन करते समय आगे की ओर झुकते समय श्वास बाहर तथा पीछे की ओर जाते समय श्वास अन्दर की ओर लेनी चाहिए।
5. आसनों का अभ्यास पहले सरल आसनों से अथवा धीरे धीरे कठिन आसनों को करना चाहिए ।
6. आसन के लाभकारी प्रभाव का मनन व चिन्तन करना चाहिए।
7. कमर दर्द रोगी, सर्वाइकल रोगी को आगे को झुकने वाले आसन नहीं करने चाहिए।
8. आसन करते समय शीघ्रता नहीं करनी चाहिए। धीरे धीरे आसन का लंबे समय - तक अभ्यास करना चाहिए। नियमित रूप से लम्बे समय तक आसनों का अभ्यास करने से धीरे धीरे आसन सिद्ध होने लगते है।
9. योगासन का प्रारम्भ योग्य गुरू के निर्देश में ही करना चाहिए।
10. आपरेशन आदि की स्थिति में आसन नहीं करना चाहिए।
11. आसन करते समय प्रयत्न की शिथिलता तथा अनन्त में मन लगा देना चाहिए, ऐसा करने से आसन सिद्ध होते है।