ईश्वर की अवधारणा ,भगवानकी अवधारणा
Concept of God in Hindi
ईश्वर की अवधारणा एवं स्वरुप सामान्य परिचय
- प्रिय पाठकों, मनुष्य की ईश्वर के स्वरूप को जानकर उसे प्राप्त करने की जिज्ञासा प्राचीन काल से ही रही है। इस विषय पर भारतीय साहित्यिक ग्रंथों में गहन मनन चिन्तन किया गया है। भारतीय संस्कृति के आदि मूल ग्रंथों वेद, उपनिषद, दर्शन एवं गीता में ईश्वर के स्वरुप को जानकर, उसके समीप पहुंचकर ईश्वर प्राप्ति का उपदेश मानव को दिया गया है। योग साधना में भी योगी साधक पुरुष का आराध्य देव ईश्वर ही है। इस ईश्वर के स्वरुप को समझकर उसे प्राप्त करना ही साधक का मूल उद्देश्य है अतः योग के मूल योग दर्शन में भी ईश्वर के स्वरुप का सविस्तार वर्णन किया गया है। ग्रंथ वर्तमान समय में मनुष्य ने भौतिक जगत के क्षेत्र में बहुत उन्नति की, अनेक शोध अनुसंधानों में सफलता प्राप्त करते हुए भौतिक सुख सुविधाओं का अर्जन किया किन्तु भौतिकवाद की चकाचौंध में उसका आध्यात्मिक पक्ष क्षीण हो गया, आध्यात्म और ईश्वर से मनुष्य की दूरियां बढती चली गयी तथा ईश्वर की अवधारणा एवं स्वरुप के विषय में अनेक प्रकार की भ्रांतियों ने मनुष्य के मन में जन्म लिया। इन भ्रांतियों के कारण आज मनुष्य को ईश्वर का स्परुप स्पष्ट नही हो पा रहा है। ईश्वर का स्वरुप स्पष्ट नही हो पाने के कारण ईश्वर उपासना बाधित हो रही है। इसी कारण आधुनिक समय में मनुष्य साधना के पथ से विचलित हो रहा है। ईश्वर स्वरुप स्पष्ट नही हो पाने के कारण आधुनिक मानव ईश्वर उपासना के महत्व को भलि भांति समझ नही पा रहा है और अपने जीवन का उद्देश्य अच्छा खान-पान, रहन-सहन तथा अधिकाधिक भौतिक सुख साधनों के संग्रह तक ही सीमित कर रहा है परन्तु इसके परिणाम स्वरुप आधुनिक मानव ईश्वर से दूर होकर अनेक प्रकार के दुख, क्लेश, द्वंद, कष्टों एवं आध्यात्मिक रोगों से ग्रस्त हो रहा है। आधुनिक समाज में अधिकांश मनुष्य दुख और तापों से पीड़ित है.
- इस प्रकार ईश्वर स्वरुप के महत्व को जानने के बाद अब आपके मन में ईश्वर के अर्थ अर्थात अवधारणा एवं ईश्वर स्वरुप के विस्तृत अध्ययन की जिज्ञासा उत्पन होनी स्वाभाविक है अतः अब आप वेद, उपनिषद्, दर्शन एवं गीता के अनुसार ईश्वर की अवधारणा एवं स्वरुप का सविस्तार अध्ययन करेंगे।
ईश्वर की अवधारणा Concept of God in Hindi
- ईश्वर की अवधारणा अत्यन्त विस्तृत एवं व्यापक है। ईश्वर को भगवान, परमात्मा, देवता, ब्रह्मा, विष्णु, महेश, गौड (GOD), शिव आदि नामों से जाना जाता है। वास्तव में ये सभी नाम ईश्वर के कार्य विशेष अथवा विशेषणों को अभिव्यक्त करते हैं।
- ईश्वर के शाब्दिक अर्थ पर विचार करें तो ईश्वर शब्द की उत्पत्ति संस्कृत भाषा की ईश धातु से हुई है। इस ईश धातु पर वच्य् प्रत्यय लगाने से ईश्वर शब्द की उत्पत्ति होती है ईश धातु का अर्थ होता है नियंत्रित करना अर्थात इस ब्राह्माण्ड अथवा संसार को नियंत्रित करने वाली सत्ता अथवा शक्ति के अर्थ के रुप में ईश्वर का वर्णन किया गया है। कुछ स्थानों पर ईश्वर के लिए ईश अर्थात नियंता शब्द प्रयुक्त किया जाता है। प्रिय पाठकों, ईश्वर शब्द के अर्थ को जानने के उपरान्त अब आपके मन में ईश्वर के प्रयार्यवाची शब्दों भगवान, परमात्मा, देवता आदि को जानने की जिज्ञासा भी अवश्य ही उत्पन्न हुई होगी अतः अब हम इन शब्दों पर विचार करते हैं।
- भगवान शब्द भग और वान से मिलकर बना है। भग का अर्थ ऐश्वर्य और वैभव से होता है और वान का अर्थ धारण करने से लिया जाता है अर्थात समस्त ऐश्वर्यों एवं वैभव से युक्त परम सत्ता को भगवान की संज्ञा से सुशोभित किया जाता है। सामान्य लोक व्यवहार में भी समस्त ऐश्वर्यो एवं वैभवशाली विशेष आदरणीय पुरुषों के लिए भगवान शब्द का प्रयोग किया जाता है। सभी आत्माओं में विशेष परम आत्मा परमात्मा कहलाती है। देने वाला देव कहलाता है, चूंकि ईश्वर संसार के सभी प्राणियों को अन्न, जल, धूप एवं वायु आदि प्रदान करता है, ईश्वर के इस गुण विशेष के कारण ईश्वर को देव अथवा देवता की संज्ञा से सुशोभित किया जाता है।
- ब्रह्मा, विष्णु और महेश ईश्वर के तीन प्रमुख वाचक शब्द हैं जो ईश्वर के तीन गुण विशेषों को अभिव्यक्त करते हैं। अत्यन्त विशाल सृष्टि की रचना अर्थात उत्पत्ति करने के कारण ईश्वर को ब्रह्मा की संज्ञा दी जाती है, सृष्टि का पालन अर्थात सृष्टि को चलाने और नियमन करने के कारण ईश्वर की संज्ञा विष्णु (पालनहार) हो जाती है तथा सृष्टि का संहार अर्थात विनाश करने के कारण ईश्वर को महेश की संज्ञा दी जाती है।
- उत्पन्न करने वाले को अंग्रेजी भाषा में जेनेरेटर (Generator) चलाने अर्थात नियमन वाले को आपरेटर (Operator ) तथा मिटाने अर्थात नष्ट करने वाले को डेस्ट्रायर (Destroyer) कहा जाता है, ईश्वर के इन्हीं तीन गुणों एवं क्षमताओं को प्रकट करने वाले तीन शब्दों के प्रथम शब्दों से गौड शब्द की उत्पत्ति होती है और अग्रेंजी भाषा में ईश्वर को गौड (GOD) शब्द से सम्बोधित किया जाता है। तात्पर्य यह है कि गौड शब्द भी ईश्वर के तीन महान गुणों की अभिव्यक्ति कराने वाला शब्द है।
- ईश्वर के लिए शिव शब्द का प्रयोग भी अत्यन्त व्यवहारिक रुप में किया जाता है। शिव का अर्थ कल्याण करने से होता है अर्थात सब जीवों का कल्याण करने के कारण ईश्वर को शिव की संज्ञा दी जाती है। शिव का अर्थ अच्छे अथवा उत्तम से भी होता है चूंकि ईश्वर मानव को अच्छी प्रेरणा, उत्तम संकल्प एवं सन्मार्ग की दिशा प्रदान करता है अतः ईश्वर को शिव के नाम से सम्बोधित किया जाता है। ईश्वर के द्वारा जीवात्मा कल्याणकारी प्रेरणाएं प्राप्त करती हैं एवं वह ईश्वर जीवात्मा का कल्याण करने वाला है, जो जीवात्माएं ईश्वर की प्रेरणाओं को जान समझकर उसके मार्ग का गमन करती है ऐसी जीवात्माएं संसार के जन्म मरण के चक्र से छूटकर मोक्ष सुख को प्राप्त होती हैं।
- इस प्रकार भगवान, परमात्मा, देवता ब्रह्मा, विष्णु, महेश व परमेश्वर आदि शब्द ईश्वर की अवधारणा को स्पष्ट करते हैं। इन शब्दों से एक ओर जहा ईश्वर के गुणों एवं महिमा का ज्ञान होता है तो वहीं दूसरी ओर ईश्वर की सर्वव्यापकता की अनूभूति भी होती है। वास्तव में ईश्वर कोई जातिवाचक अथवा स्थानवाचक शब्द नही है अपितु यह एक गुणवाचक शब्द है जो ईश्वर के विभिन्न गुणों को अभिव्यक्त करता है। इससे यह तथ्य भी स्पष्ट होता है कि ईश्वर जिस गुण से युक्त होता है, उसी संज्ञा को प्राप्त करता है। भगवान, परमात्मा, देवता, ब्रह्मा, विष्णु, महेश व परमेश्वर आदि शब्द ईश्वर के गुणवाचक शब्द हैं जिनके माध्यम से सर्वशक्तिमान एवं सर्वगुण सम्पन्न ईश्वर को सम्बोधित किया जाता है। अब ईश्वर की अवधारणा का ज्ञान प्राप्त करने पर ईश्वर के स्वरूप को जानने की इच्छा निश्चित रूप से उत्पन्न हुई होगी, अतः अब विभिन्न ग्रन्थों के आधार पर ईश्वर के स्वरुप का अध्ययन करेगें