धारणा की उपयोगिता , धारणा से होने वाले लाभ की जानकारी
धारणा की उपयोगिता
प्रत्याहार द्वारा इन्द्रियों को संयमित करने की तथा अन्तर्मुखी करने की प्रक्रिया है। तथा मानसिक शक्तियों का जागरण भी प्रत्याहार द्वारा होता है। धारणा द्वारा उन जाग्रत मानसिक शक्तियों को सही दिशा देना है। धारणा सही दिशा व एकाग्र करने की प्रक्रिया है। धारणा द्वारा चित्त की एकाग्रता तथा स्थिरता में वृद्धि होती है। धारणा द्वारा साधक उच्चस्तरीय संवेदनाओं के ग्रहण योग्य बन जाता हैं।
वेदो, पुराणो, उपनिषदों में धारणा की उपयोगिता का वर्णन इस प्रकार से है। -
यजुर्वेद के अनुसार-
"सीरा युञ्जन्ति कवयो युगा विन्वते पृथक् ।
धीरा देवेशु सुम्नया ।।" यजु० 12 / 67
अर्थात यजुर्वेद में प्रतिपादित है-
ध्यान करने वाले विद्वान लोग यथायोग्य विभाग से नाड़ियों में अपने आत्मा से परमेश्वर की धारणा करते है। जो योगयुक्त कर्मों में तत्पर रहते हुए, ज्ञान एवम आनन्द को फैलाते हुए विद्वानों के मध्य प्रशंसा को पाकर परमानन्द के भागी होते है।
यजुर्वेदीय मन्त्रों में वर्णन मिलता है कि
'उत्साह पूर्वक, हृदय, मन, बुद्धि तथा प्राण व इन्द्रियों के द्वारा परमात्मा को धारण किया जाता है। अर्थात परमेश्वर की धारणा की जाती है, तथा धारणा शक्ति को बड़ा कर साधक प्राचीन ऋषियों के समान मोक्ष पद को प्राप्त करता है।
धारणा से होने वाले लाभ की जानकारी
- इस प्रकार वेदो में धारणा का अनेको उपयोगिता बताई गई है कि इससे साधक उस परम पद को प्राप्त कर लेता है। परन्तु इसके अतिरिक्त धारणा के द्वारा मानसिक एकाग्रता, तथा ध्यान कर पृष्ठभूमि की तैयारी तथा कर्मों में कुशलता आदि प्राप्त किया जा सकता है, जिसके कुछ बिन्दुओं पर वर्णन इस प्रकार से है
मानसिक एकाग्रता की प्राप्ति में सहायक
- धारणा किसी एक देश में चित्त को ठहरा देना है। यदि देखा जाए तो यह एक मानसिक व्यायाम की प्रक्रिया है। धारणा से मन की एकाग्रता व स्थिरता में वृद्धि होती है, तथा व्यक्तित्व का विकास होता है। धारणा द्वारा मानसिक एकाग्रता में वृद्धि होकर ध्यान व समाधि के अभ्यास में सहायक बनाते है।
ध्यान के लिए पृष्ठभूमि तैयार करना -
- धारणा के द्वारा ध्यान में प्रवेश किया जाता है। धारणा के द्वारा मन एकाग्र हो जाता है। मन का भटकाव समाप्त हो जाता है। भटकाव समाप्त होने से स्थिरता प्राप्त होती है। यही स्थिरता पर एक वृत्ति का लगातार चलना ही ध्यान है अतः कहा जा सकता है कि धारणा ही किसी एक देश में चित्त का ठहराव ध्यान की पृष्ठभूमि है।
कर्मों में कुशलता में सहायक धारणा -
- धारणा के अभ्यास से सभी कर्म कुशलता पूर्वक किये जा सकते है। जीवन के किसी भी क्षेत्र में, कला के क्षेत्र में, अध्ययन का क्षेत्र हो, चिन्तन, मनन या लिखने- बोलने के क्षेत्र में सभी में धारणा की ही भूमिका महत्वपूर्ण है। किसी भी कार्य में मन को केन्द्रित कर, उस कार्य में तनमय हो जाना तथा उस समय अन्य किसी विचारों का मन में ना चलने देना धारणा है। इसी धारणा के अभ्यास से कर्म कुशलता पूर्वक हो जाते है क्योकि इससे मन की चंचलता मिट कर एकाग्रता, एक ही बिन्दु पर केन्द्रित हो जाती है। इसका अभ्यास करने से साधक की शक्ति कई गुना बढ़ जाती है तथा वह कार्यों को कुशलता से करने लगता है।