प्राणायाम का स्वरूप ,प्राणायाम का अर्थ| प्राणायाम की परिभाषायें | Pranayam Ka Arth evam Paribhasha

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 प्राणायाम का स्वरूप ,प्राणायाम का अर्थ, प्राणायाम की परिभाषायें  

प्राणायाम का स्वरूप ,प्राणायाम का अर्थ| प्राणायाम की परिभाषायें | Pranayam Ka Arth evam Paribhasha



प्राणायाम का स्वरूपप्रकार एवं उपयोगिता

 

  • प्रिय विद्यार्थियों इससे पूर्व की इकाई में आपने अष्टांग योग के तीसरे अंग आसन का अध्ययन किया होगाअष्टांग योग के बहिरंग योग में आसन के सिद्ध होने पर ही प्राणायाम का अभ्यास बताया गया है। जैसा कि योगदर्शन में वर्णन है कि आसन के सिद्ध होने पर श्वास प्रश्वास की गति का विच्छेद ही प्राणायाम है। महर्षि पतंजलि ने अष्टांग योग के चौथे अंग के रूप में प्राणायाम को स्थान दिया है। हमारे ऋषि मुनियों ने प्राणायाम के महत्व को जानते हुये बहुत ही सहज व सरल रूप में प्राणायाम का वर्णन किया है। प्राणायाम जीवन जीने की एक विधिएक कला है। प्राणायाम स्वयं को उस विचार के साथ एकीकृत करने की कला है। प्राणायामप्राण वायु के शुद्ध सात्विक रूप को पूरे शरीर में विस्तारित करने की कला है। प्राणायाम क्या हैमहर्षि पतंजलि के अनुसार इसके कितने प्रकार हैंइसकी मनुष्य जीवन में क्या उपयोगिता है। प्रस्तुत आर्टिकल में उपरोक्त तथ्यों की विस्तारपूर्वक चर्चा की गई है । 

 

 

प्राणायाम का स्वरूप

 

प्रिय पाठकोंप्राणायाम के स्वरूप को जानने से पूर्व प्राण के विषय में जानना आवश्यक है कि प्राण क्या हैप्राण का स्वरूप क्या हैप्राण शब्द का अभिप्राय उसके अर्थ से है।प्राण शब्द का अर्थ जीवनी शक्ति के रूप में लिया गया है। प्राण शब्द का अर्थ चेतना शक्ति माना गया है। उपनिषदों में प्राण की महिमा का वर्णन करते हुये कहा गया है -

 

प्रश्नोपनिषद के अनुसार 

"प्राण की व्याख्या संकल्प के रूप में की गई है।"

 

प्राण सम्पूर्ण सृष्टि का मूल संरक्षक है। वेदों में प्राण का वर्णन करते हुये कहा गया है 


प्राण प्रज्ञा अनुवस्ते पितापुत्रमिव प्रियम । 

प्राणो हसर्वस्चर्यश्रवरो ।।" अथर्ववेद 11 / 4 / 10 )

 

प्राण पिता है और उसके लिये सारे प्राणी पुत्र की तरह हैंप्राण सम्पूर्ण सृष्टि के ईश्वर हैं।

इस प्रकार प्राण एक ऐसी दिव्य शक्ति हैजिसके कारण इस ब्रह्माण्ड के जड़ व चेतन अपने स्वरूप में दिखाई देती है। प्राण वह ऊर्जा हैजो सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड में व्याप्त है। यह एक ऐसी ऊर्जा है जो जीवनसंरक्षण व विनाश भी करती है । 


प्राणायाम का अर्थ -

 

  • प्राणायाम शब्द संस्कृत व्याकरण के दो शब्दों से मिलकर बना हैप्राण + आयाम । 
  • प्राण शब्द की व्युत्पत्ति प्रउपसर्ग पूर्वक अन् धातु से मानी गयी है। प्राण अर्थात जीवनी शक्तिआयाम से तात्पर्य - विस्तारनियमन या नियंत्रण । अर्थात प्राणायाम वह प्रक्रिया हैजिसके द्वारा प्राण पर नियंत्रण कर उसका विस्तार किया जा सकता है। 

  • इस प्रकार प्राणायाम का अर्थ हुआ जीवनी शक्ति का नियमन जीवनी शक्ति वह है जिसके कारण मनुष्य शरीर में इन्द्रियमन को कार्य करने की प्रेरणा मिलती रहती है। श्वसनरक्त संचरण इसी प्राण शक्ति के कारण चलते हैं। 


प्राणायाम की परिभाषायें 

प्रिय विद्यार्थियोंमहर्षि पतंजलि ने अष्टांग योग का चौथा अंग प्राणायाम बताया हैयोगसूत्र के साधनपाद में प्राणायाम को इस प्रकार परिभाषित किया गया है-

 

"तस्मिन्सति श्वास प्रश्वास योर्गति विच्छेदः प्राणायामः” (पा०यो0सू02/49)

 

अर्थात उस आसन के सिद्ध होने के पश्चात श्वास और प्रश्वास की गति का स्थिर हो जानाविच्छेद हो जाना ही प्राणायाम है।

 

गोरक्षेनाथ के अनुसार - 

प्राणः स्वदेहजीवायुः आयाम तन्तिरोनमिति । 


अर्थात अपनी देह के जीवन की अवस्था का नाम प्राण हैऔर उस अवस्था के अवरोध को आयाम कहते हैं। अर्थात जीवन की अवस्था के अवरोध का नाम प्राणायाम है।

 

बोध सागर में कहा गया है - 

"हठीनधिक स्त्वेकः प्राणायाम परिश्रमः ।"

 

अर्थात हठयोगियों का मुख्य श्रम साध्य प्राणायाम है।

 

स्वामी हरिहरानंद के अनुसार 

"श्वासगति तथा प्रश्वासगति का रोध करना ही प्राणाया


सिद्ध सिद्धान्त पद्धति के अनुसार -

 

"प्राणायाम इति प्राणस्य स्थिरता ।"

 

अर्थात "प्राण की स्थिरता को प्राणायाम कहते हैं।"

 

प्रिय विद्यार्थियों महर्षि पतंजलि के साथ-साथ विभिन्न विद्वानों द्वारा दी गयी परिभाषाओं का अध्ययन कियाअब आप महर्षि पतंजलि द्वारा प्राणायाम के प्रकारों का अध्ययन करेंगे।

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