प्राणायाम की उपयोगिता
प्राणायाम की उपयोगिता सामान्य परिचय
प्रिय विद्यार्थियों, आपने प्राणायाम के विभिन्न प्रकारों का अध्ययन किया, अब यह जानना चाहेंगे कि प्राणायाम की उपयोगिता क्या है, क्यों योगशास्त्र में प्राणायाम की महत्ता बतायी गयी हैं।
योग शास्त्रों में प्राण संचय पर अधिक बल दिया जाता है, तथा आध्यात्म शास्त्र में प्राणायाम की अधिक महत्ता कही गयी है,
महर्षि पतंजलि ने प्राणायाम की उपयोगिता बताते हुये कहा है
"ततः क्षीयते प्रकाषावरणम् ।।" (पाoयो०सू० 2/52
अर्थात प्राणायाम के द्वारा हमारे ज्ञान के ऊपर जो अज्ञान का आवरण है वह क्षीण हो जाता है।
अर्थात जिस प्रकार प्रातः काल उदय हुआ सूर्य अंधकार को नष्ट कर देता है, उसी प्रकार प्राणायाम अशुद्धता को हटाता हुआ साधक को शुद्ध कर देता है।
महर्षि पतंजलि ने शरीर शुद्धि के साथ ही धारणा की योग्यता प्राणायाम द्वारा प्राप्त होती है, इस पर बल दिया है -
अर्थात प्राणायाम के अभ्यास से धारणा की योग्यता आ जाती है।
महर्षि पतंजलि ने कहा है कि प्राणायाम से चित्त निर्मल होता है, जिसका वर्णन इस प्रकार है किया है -
"प्रच्छर्दन विधारणाभ्यां वा प्राणस्य ।" ( 1 / 34 )
अथवा प्राणवायु को बार बार बाहर निकालने तथा बाहर ही रोकने (कुम्भक) के अभ्यास से भी चित्त निर्मल होता है। अर्थात प्राणायाम से चित्त स्थिर होता है।
महर्षि व्यास के अनुसार -
प्राणायाम के अभ्यास से ही योग्यता होती है अथवा प्राण के प्रच्छर्दनद विधारण के द्वारा स्थिति साधित होता है।
स्वामी हरिहरानन्द के अनुसार -
" आध्यात्मिक देश में चित्त का बंधन धारणा कहलाती है। प्राणायाम में निरन्तर आध्यात्मिक देश की भावना करनी पड़ती है।"
हठप्रदीपिका के अनुसार -
"चले वाते चलेचितं निश्चलं भवेत्
योगी स्थणुत्वामाप्नोति ततोवायुं निरोधयेत् ।।" 2/2
वायु के चलायमान होने पर चित्त भी चलायमान होता है तथा वायु के निश्चल हो जाने पर चित्त भी स्थिर हो जाता है, तब योगी को स्थिरता प्राप्त होती है।
हठ प्रदीपिका में कहा गया है
" प्राणायामेन युक्तेन सर्वरोगक्षयो भवेत् ।" (हठप्रदीपिका 2 / 16 )
अर्थात उचित रीति से प्राणायाम करने से सभी रोगों का नाश होता है।
हठप्रदीपिका में ही प्राणायाम की उपयोगिता बताते हुये कहा गया है-
" ब्रह्मादयोऽपि त्रिदशा: पवनाभ्यासतत्पराः ।
अभूवन्नतकभयात् तस्मात् पवनमभ्यसेत् ।।" (हठप्रदीपिका 2/39)
अर्थात
- ब्रह्म आदि देवता भी काल के भय से प्राणायाम के अभ्यास में लगे रहते है। इसलिये प्राणायाम का अभ्यास सभी को करना चाहिये ।
स्वास्थ्य की दृष्टि से प्राणायाम की उपयोगिता -
- प्राणायाम का अभ्यास नियमित करने से शरीर एवं मन पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। प्राणायाम से हमारा जीवन उत्कृष्ट बन जाता है। प्राणायाम का शारीरिक, मानसिक, आध्यात्मिक जीवन पर प्रभाव पड़ता है। प्राणायाम का शारीरिक स्वास्थ्य पर निम्न प्रभाव पड़ता है ।
शारीरिक स्वास्थ्य की दृष्टि से प्राणायाम की उपयोगिता -
- प्राणायाम स्वास्थ्य संवर्द्धन हेतु अति उत्तम अभ्यास माना गया है, जैसा कि अर्थववेद के प्राणसूक्त में प्राणायाम द्वारा शारीरिक रोग विनाश हेतु प्राणायाम की उपयोगिता का वर्णन किया गया है। वेदों के मन्त्रों में प्राण के लिये "औषध" व "भेषजम" शब्द का प्रयोग किया गया है।
"अभिवृष्टा औषधयः प्राणेन समवादिरन्" (अथ011 / 4 / 6)
"अथो यद् भेषजं तवतस्य नो धेहि जीवसे" (अथ011/4/9)
- प्राणायाम द्वारा शारीरिक स्वास्थ्य प्राप्त होता है। स्वस्थ रहने के लिये रक्त की शुद्धि आवश्यक है। अतः शुद्ध रक्त प्राणायाम से ही प्राप्त होता है। प्राणायाम के द्वारा नाड़ियों में प्रवाहित हाने वाले रक्त को अधिक मात्रा में ऑक्सीजन मिलती है। प्राणायाम के द्वारा जितनी अधिक मात्रा में ऑक्सीजन मिलती है, उतनी अन्य किसी अभ्यास के द्वारा नहीं मिल पाती है। प्राणायाम शरीर को शुद्ध व स्वस्थ कर उपासना योग्य बना देता है। आयुर्वेद के अनुसार अनेक शारीरिक रोग जैसे मधुमेह, प्रमेह, कैंसर तथा रक्तविकार के रोगों में प्राणायाम विशेष रूप से लाभकारी है।
मानसिक स्वास्थ्य की दृष्टि से प्राणायाम की उपयोगिता
- प्राणायाम विकृत मनः स्थिति को सुधारता है। प्राणायाम के द्वारा मन शरीर के बंधन से मुक्त होता है। प्राणायाम शरीर के साथ - साथ मस्तिष्क पर सकारात्मक प्रभाव डालता है। प्राणायाम से मस्तिष्क की विभिन्न क्रियाए व्यवस्थित हो जाती है। जिससे मस्तिष्क की कार्यक्षमता व स्मरण शक्ति में वृद्धि होती है। मानसिक तनाव दूर होता है। मानसिक रोगों ओर मनोरोगों में प्राणायाम प्रभावशाली है। इन रोगों से मनुष्य मुक्त हो कर स्मरण शक्ति व बौद्धिक क्षमता में वृद्धि कर सकता है।
आध्यात्मिक स्वास्थ्य की दृष्टि से प्राणायाम की उपयोगिता
प्राणायाम का आध्यात्मिक स्वास्थ्य पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। वेदों में प्राणायाम की उपयोगिता का वर्णन किया गया है जैसा कि सामवेद में कहा गया है-
“धातुर्धुतानात्सवितुश्चविष्णो रथन्तरमा जभारा वसिष्ठः ।।” (साम0 599)
अर्थात प्राण संयमी योगी शरीर रथ द्वारा भव सागर तैरने का ज्ञान प्राप्त करता है।
"न्वे सोम परिस्त्रव स्वादिष्ठो अंड्डिरोभ्य। वारिवोविद् घृतं पयः ।।" (साम0981)
अर्थात
प्राणायाम अभ्यासियों के लिये परमात्मा आनन्दरस रूप में अत्यन्त स्वाद है। प्रतिफल में ऐसे उपासकों को परमात्मा आध्यात्मिक सम्पत्तियाँ प्रदान करता है।
प्राणायाम से प्रभु प्राप्ति का मार्ग प्रशस्त होता है।
आध्यात्मिक लाभ हेतु वेदों में ऋग्वेद ऋचाओं में वर्णन किया गया है, -
- जो परमात्म परायण पुरुष, गुणों में श्रेष्ठ एवं सर्वप्रिय है व अपनी बुद्धि से आध्यात्मिक यज्ञ में ज्ञान की आहुति प्रदान करें, जैसे कर्म रूपी यज्ञ वक्ता - रूपी कर्म को करता है। वैसे ही साधक सर्वरक्षक परमात्मयज्ञ कुण्ड में दश प्राणों को डालते है। पुरुष वाणी (ऋ09 / 91 / 1)
इस प्रकार वैदिक संहिताओं में प्राणायाम का आध्यात्मिक लाभ विशेष रूप से वर्णित है। प्राणविद्या ऋग्वेद तथा अथर्ववेद में विशेष रूप से वर्णित है।
प्राणायाम से राजयोग की प्राप्ति सम्भव है, मनुस्मृति में कहा गया है-
"देहयन्तेध्याय मासांनां धातुना हि यथा मलाः
त्योन्द्रिप्राणा दहन्ते दोषाः प्राणस्थ निग्रहात् ।।"
अर्थात
- जैसे अग्नि से तपाये स्वर्ण, रजत आदि धातुओं के भय जल जाते है, वैसे ही प्राणायाम के अनुष्ठान से इन्द्रियों में आ गये दोष विकार नष्ट हो जाते है, केवल इन्द्रियों के दोष ही दूर नहीं होते प्रयुक्त देह, मन प्राण के विकार दूर होकर इन पर विशित्व प्राप्त हो जाता है।
महर्षि पतंजलि ने प्राणायाम के लाभ का वर्णन करते हुये कहा है
"ततः क्षीयते प्रकाषावरणम्" (योग सूत्र 2 / 52 )
उस (प्राणायाम के अभ्यास) से, प्रकाश (ज्ञान) का आवरण क्षीण हो जाता है।
महर्षि व्यास -
प्राणायाम अभ्यासकारी योगी के विवेकज्ञान का आवरण भूत कर्म क्षीण होता है।
स्वामी विवेकानंद
"चित्त में स्वभावतः समस्त ज्ञान भरा है। वह सत्य पदार्थ द्वारा निर्मित है, परन्तु रज और तम पदार्थो से ढका हुआ है। प्राणायाम के द्वारा चित्त का यह आवरण हट जाता है।
इसी प्रकार महर्षि पतंजलि प्राणायाम के अन्य फल बताते हैं
"धारणासु च योग्यता मनसः" (योग सूत्र 2 / 53 )
अर्थात प्राणायाम से धारणा की योग्यता आ जाती है।
"प्रच्छर्दन विधारणाभ्यां वा प्राणस्य" (योग सूत्र 1 / 34 )
अर्थात प्राणवार्य को बार बार बाहर निकालने और रोकने के अभ्यास से भी निर्मल होता है।
महर्षि व्यास -
- प्राणायाम अभ्यास से ही (योग्यता होती है) अथवा प्राण के प्रच्छर्दनविधारण द्वारा स्थिति साधित होती है।
स्वामी हरिहारनंद
- आध्यात्मिक देश में चित्त का बंधन धारणा कहलाती है। प्राणायाम में निरंतर आध्यात्मिक देश की भावना करनी पड़ती है।"
प्राणायाम की व्यवहारिक जीवन में उपयोगिता -
- प्राणायाम व्यवहारिक जीवन में प्रभाव डालता है, शरीर और मन की उत्तेजनाओं जो मनुष्य के व्यवहार को विकृत करती है, प्राणायाम उन्हें सुधार कर संतुलित करता है।
- प्राणायाम मानसिक अवगुण जैसे चिंता, भय, अशान्ति, असंतोष, ईर्ष्या, उद्वेग को दूर करता है, तथा मानसिक गुणों जैसे धैर्य, साहस, उत्साह, निष्ठा, श्रद्धा, आत्म मनोबल आदि गुणों का विकास करता है, तथा मनुष्य व्यवहार कुशल होने लगता है।
प्राणायाम सारांश
- प्रिय विद्यार्थियों प्राणायाम का अर्थ प्राण शक्ति का नियमन है। प्राण अर्थात जीवनी शक्ति तथा आयाम का अर्थ है विस्तार करना, नियमन करना, विच्छेद करना, इस प्रकार प्राणायाम का अर्थ है प्राण शक्ति का नियमन करना, प्राण शक्ति का नियमन कर मनुष्य शारीरिक, मानसिक, आध्यात्मिक लाभ प्राप्त कर सकता है। हठयोग के ग्रन्थों में प्राणायाम के आठ प्रकार बताये गये है। किन्तु महर्षि पतंजलि ने प्राणायाम के चार प्रकार बताये हैं। बाह्य वृत्ति प्राणायाम, आभ्यन्तर वृत्ति प्राणायाम, स्तम्भ वृत्ति प्राणायाम, बाह्यआभ्यन्तर विषयाक्षेपी चौथा प्राणायाम है। प्राणायाम के लाभों का वर्णन करते हुये महर्षि ने कहा है, कि प्राणायाम से साधक के ज्ञान के ऊपर अज्ञान का जा आवरण है वह हट जाता है। अर्थात प्राणायाम से ज्ञान का प्रकाश हो जाता है, तथा प्राणायाम से धारणा की योग्यता आ जाती है, प्राण वश में हो जाते है । धारणा से ध्यान की स्थिति प्राप्त होती है। साधक को धारणा की योग्यता आ जाती है व ध्यान की परिपक्व अवस्था समाधि की प्राप्ति भी बिना प्राण के नियमन से सम्भव नहीं है। अतः प्राणायाम द्वारा मन पर नियंत्रण कर उच्च साधनाओं के योग्य बनाया जा सकता है।