आसन का नामकरण और प्रकार
आसन के प्रकार -
- प्रिय विद्यार्थियों यद्यपि महर्षि पतंजलि ने आसन के कोई प्रकार नहीं बताए है। परन्तु वर्तमान में विभिन्न योग के ग्रन्थों, शास्त्रों में अनेक आसनों का वर्णन किया गया है। प्राचीन काल में योगियों ने पशु पक्षियों के बैठने के ढंग तथा उनकी विशेषताओं का सूक्ष्मता से अध्ययन किया, उन्होंने देखा कि पशु पक्षियों के बैठने के ढंग अलग प्रकार से है। उन्होंने उनका अनुशरण किया तथा आसन के रूप में उन्हें अपनाकर उनसे उन्हें स्वास्थ्य लाभ मिला।
- इस प्रकार उन पशु- पक्षियों के बैठने के ढंग को आसन के रूप में अपनाकर उस प्रकार विशेष का नामकरण उसी पशु - पक्षी विशेष के नाम के साथ जोड़ दिया। जैसे - मकरासन, मत्स्यासन, मयूरासन, सिंहासन आदि। इसी के साथ - साथ योगियों ने कुछ आसन स्थावर द्रव्यों की स्थितियों के अनुकरण के आधार पर की। जैसे - पर्वत, वृक्ष, धनुष, चक्र, त्रिकोण आदि। इन्हें अपनाकर उनकी लाभ - हानि की विवेचना की तथा जिन स्थितियों से उन्हें लाभ मिला उन स्थितियों को अपनाकर उस स्थिति के आधार पर आसन का नामकरण किया। इस प्रकार आसनों की संख्या अनन्त हो गयी तथा अनेक प्रकार के आसन हो गए।
- परन्तु वर्तमान में विभिन्न योग के ग्रन्थों, हठयोग के ग्रन्थों में जो सर्वसम्मत आसन है, वह चौरासी आसन है। परन्तु हठ योग के ग्रन्थों जैसे घेरण्ड संहिता में 32 आसनों का वर्णन है। तथा हठप्रदीपिका में 15 आसनों का वर्णन है। आसनों की संख्या और प्रकार के विषय में शास्त्रों तथा विद्वानों में अनेक मत हैं। उपनिषदों में भी आसनों के विषय में अनेक मत है अमृतनादो उपनिषद में तीन आसनों है। - पद्मासन, भद्रासन तथा स्वस्तिकआसन का उल्लेख योग चूड़माण्युपनिषद में दो आसन कमलासन व सिद्धासन बताए गये हैं। ध्यानबिन्दु उपनिषद में - पदमासन, भद्रासन, सिंहासन तथा सिद्धासन को मुख्य आसन के रूप में वर्णन किया गया है।
इसी प्रकार दर्शनोपनिषद के तृतीय खण्ड में नौ आसनों का वर्णन मिलता है-
स्वस्तिकआसन, पद्मासन, वीरासन, भद्रासन, गोमुखआसन, सिंहासन, मुक्तासन, सुखासन, मयूरासन।
त्रिषिखिब्रह्मणो उपनिषद में ( 2 / 34 52 ) में सत्रह आसनों का वर्णन किया गया हे।
- जिनमें से ग्यारह आसनों के अतिरिक्त योगासन, बद्धपद्मासन, मयूरासन, उत्तान कूर्मासन, धनुरासन और पश्चिमोतानासन इन छह आसनों का उल्लेख किया गया है। इस प्रकार उपनिषदों में आसन की संख्या भिन्न है तथा उनके प्रकार भी अनेकों हैं। साधारणतया आसनों को तीन वर्गों में विभाजित किया जा सकता है।
साधारणतया आसनों को तीन वर्गों में विभाजित किया जा सकता जिसका वर्णन इस प्रकार है -
1. शरीर संर्वद्धनात्मक आसन
2. ध्यानात्मक आसन
3. विश्रान्तिकारक आसन
1. शरीर संर्वद्धनात्मक आसन -
- शरीर संर्वद्धनात्मक आसन वे होते है जिनसे हमारा शरीर का संर्वद्धन होता है। इनमें निम्न आसन आते है, जैसे हलासन, शीर्षासन आदि।
2. ध्यानात्मक आसन
- ध्यानात्मक आसन वे होते हैं, जिन आसनों में बैठकर ब्रह्म चिन्तन किया जा सके, इनमें निम्न आसन है पद्मासन, सिद्धासन आदि ।
विश्रान्तिकारक आसन -
- विश्रान्तिकारक आसन वे आसन हैं, जिनमें आसनों के बाद विश्राम किया जा सके, जैसे- बालासन, शवासन आदि।
आसन अनेकों प्रकार के हैं, परन्तु अष्टांग योग के अन्तर्गत महर्षि पतंजलि ने अंतरंग योग में प्रवेश हेतु उस आसन की बात कही है कि जिसमें सुख पूर्वक बैठा जा सके अर्थात ध्यानात्मक आसन जिसमें बैठकर ब्रह्म चिन्तन किया जा सके। आसन के द्वारा धारणा का अभ्यास किया जा सके, ध्यान किया जा सके तथा अपने लक्ष्य समाधि की स्थिति में पहुँचा जा सके। तथा आसन के स्वरूप को स्पष्ट करते हुए महर्षि पतंजलि ने 2 / 47 में वर्णन किया है कि -
"प्रयत्नशैथिल्यानन्तसमापत्तिभ्याम् ।। ( 2 / 47 )
अर्थात
प्रयत्न की शिथिलता और अनन्त ( परमेश्वर) में मन लगा देने से वह आसन सिद्ध हो जाता है। अर्थात वह आसन दृढ़ अवस्था वाला कैसे हो यह बताने का प्रयास 2 / 47 में किया गया है।