आदिकालीन साहित्यिक रचनाओं की विशेषताएँ | Aadi Kalin Sahitya Rachna Ki Visheshtaayen

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 आदिकालीन साहित्यिक रचनाओं की विशेषताएँ

आदिकालीन साहित्यिक रचनाओं की विशेषताएँ | Aadi Kalin Sahitya Rachna Ki Visheshtaayen
 

 आदिकालीन साहित्यिक रचनाओं की विशेषताएँ

1. युद्धों का सजीव चित्रणः 

आदिकाल के हिंदी साहित्य में युद्धों का ऐसा सजीवचित्रात्मकएवं ध्वन्यात्मक वर्णन हुआ है कि उन रासो - ग्रंथों को पढ़ते समय ऐसा प्रतीत होता है मानो तलवारें खडक रही हो।

 

2. वीर रस तथा उत्साह की प्रधानताः 

आदिकालीन साहित्य में उत्साह जन्य वीर रस की अभिव्यक्ति हुई है जैसे युद्ध के लिए प्रेरित करते हुए क्षत्रिय वीरों को इस प्रकार उत्साहित किया जाता है कि क्षत्रियों का सार्थक जीवन प्रकट हो उठता है । 


3. प्रकृति चित्रणः 

प्रकृति के विभिन्न उपादानों यथा पर्वतोंनदियोंवक्षोंसरोवरोंपशु-पक्षियोंमेघ एवं बिजली आदि का चित्रण एवं वर्णन बहुत ही मार्मिक ढंग से मिलता है।

 

 आदिकालीन साहित्यिक की अन्य  विशेषताएँ

  • साधारण लोगों के जीवन चित्रण का अभाव भी आदिकालीन साहित्य की विशेषता है। 
  • डिंगल तथा पिंगल भाषा की प्रधानता ही आदिकालीन साहित्य की भाषागत विशेषता है। वैसे देशी भाषा अवहट्ट तथा शौरसेनी अपभ्रंश का भी प्रयोग मिलता है। 
  • आदिकालीन साहित्य में वीर रस की प्रधानता युद्धों के सजीव चित्रणआश्रयदाताओं की प्रशंसाप्रकृति चित्रण ऐतिहासिकता का अभावराष्ट्रीयता का अभावअतिश्योक्तिपूर्ण कथनओजगुण तथा डिंगल भाषा का प्रयोग करने की प्रवत्तियाँ देखी जा सकती हैं। यद्यपि वीरगाथा काल में साधारण लोगों का जीवन संबंधी साहित्य बहुत ही कम मिलता है परन्तु खुसरो की पहेलियाँ तथा मुकरियाँ इस अभाव की पूर्ति करने वाली हैं।

 

  • आदिकालीन साहित्य में प्रबन्धात्मक मुक्तक तथा वीर गीतों संबंधी जो ग्रंथ उपलब्ध हुए हैं उनमें से जो रचनाएँ महत्त्वपूर्ण हैं वे प्रबन्ध काव्यात्मक 'रासोग्रंथ ही है । 'रासोशब्द का संबंध विभिन्न विद्वानों ने रास (आनन्द) रसायनरहस्य तथा रासक शब्द से जोड़ा है। वास्तव में रासो का एक अन्यार्थ (रास्सा झगड़ा) जो राजस्थानी में प्रयुक्त होता हैवह भीग्रहणीय है। क्योंकि वास्तव में रासो ग्रंथ में वीर नायक की प्रशस्ति के अतिरिक्त युद्धों का ही वर्णन सांगोपांग हुआ है। इन ग्रंथों में एक राजा का दूसरे राजा या सामन्त से सकारण युद्धनखशिख वर्णन तथा प्रकृति चित्रण का सुन्दर समावेश हुआ है। 


 आदिकालीन साहित्य की कुछ बातें उल्लेखनीय रही हैं-

 

संदिग्ध रचनाएँ 

आदिकाल के अधिकांश रासो - ग्रंथो की ऐतिहासिक प्रामाणिकता संदिग्ध ही है। जैसे हिंदी के प्रथम महाकाव्य पथ्वीराज रासो की प्रामाणिकता आज तक भी संदिग्ध ही है। इसी प्रकार बीसलदेव रासो', 'खुमान रासोतथा 'परमाल रासोकी प्रामाणिकता भी संदिग्ध है।

 

ऐतिहासिक तथ्यों का अभाव 

आदिकालीन साहित्य में भारतीय ऐतिहासिक घटनाओंतिथियों तथा पात्रों की नामावली प्रामाणिक सिद्ध नहीं होती।

 

संकुचित राष्ट्रीयता 

आदिकालीन साहित्य में सार्वभौम राष्ट्रीयता का अभाव है क्योंकि छोटे-छोटे राजा अपने ही क्षेत्र को राष्ट्र मान बैठे थे। हिंदी के आदिकाल में साहित्यिक रचनाएँ तीन धाराओं के रूप में प्रवाहित हो रही थी। प्रथम धारा संस्कृत साहित्य की थी। दूसरी धारा का साहित्य प्राकृत एवं अपभ्रंश में लिखा जा रहा था। तीसरी धारा हिंदी भाषा मे लिखे जाने वाले साहित्य की थी। ज्योतिष दर्शन और स्मति आदि विषयों पर टीकाएँ और टीकाओं पर भी टीकाएँ लिखी जाती थीं। नवीं से ग्यारहवीं शताब्दी तक कन्नौज एवं कश्मीर संस्कृत साहित्य रचना के केन्द्र रहे और इसी बीच अनेक आचार्यकविनाटयकार तथा गद्यकार उत्पन्न हुए। आनन्दवर्द्धनअभिनव गुप्तकुन्तकक्षेमेन्द्रभोजदेवमम्मटराजशेखर विश्वरनाथ भवभूति व जयदेव इसी युग की देने हैं। इसी समय शंकरभास्कररामानुज आदि आचार्य हुए। संस्कृत के अतिरिक्त प्राकृत एवं अपभ्रंश का श्रेष्ठ साहित्य भी प्रभूत मात्रा में इसी युग में लिखा गया। जैन आचार्यों तथा पूर्वी सीमान्त पर सिद्धों ने अपभ्रंश के साथ लोकभाषा को रचनाओं में प्रयुक्त किया। इस काल में बज्रयानी और सहजयानी सिद्धोंनाथोंजैन धर्म के अनुयायी विरक्त मुनियों एवं गहस्थ उपासकों और वीरता एवं शृंगार का चित्रण करने वाले चारणोंभाटों आदि रचनाएँ विशेष रूप से रची गई।

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