आदिकाल अथवा वीरगाथाकाल के नामकरण
आदिकाल अथवा वीरगाथाकाल के नामकरण
- हिंदी साहित्य में वीरगाथा काल अथवा आदिकाल के नामकरण तथा काल-विभाजन को लेकर विद्वानों में काफी मत-भेद पाया जाता है। शुक्ल जी ने पहले मिश्र बन्धुओं के आदिकाल को आरम्भिक काल के दो उपखण्डों पूर्व तथा उत्तर में विभाजित करते हुए इसकी समय-सीमा संवत् 700 से 1343 तथा सवत् 1344 से 1444 निर्धारित की थी। इसमें संशोधन करके आचार्य शुक्ल ने इस काल को समयावधि के आधार पर आदिकाल तथा प्रवतियों की अधिकता के आधार पर 'वीरगाथाकाल' कहा था तथा इस काल की सीमा रेखा संवत् 1050 वि० से 1375 वि० तक मानी है। शुक्ल ने जिस उपलब्ध साहित्यिक सामग्री के आधार पर प्रवत्तिमूलक नामकरण तथा काल-विभाजन किया, उसमें अधिकांश कृतियाँ दो प्रकार की भाषाओं में लिखी मिलती है। एक तो अपभ्रंश भाषा की तथा दूसरी देशी भाषा की है।
- हिंदी साहित्य काल- विभाजन, सीमा निर्धारण और नामकरण को लेकर विद्वानों में काफी खिंचा-तानी रही है। हिंदी साहित्य के काल-विभाजन तथा नामकरण में किसी ने केवल 'काव्य-प्रवत्तियों को देखा है, तो किसी ने उसके निरन्तर होते रहने वाले 'प्रवाह' को किसी की दष्टि प्रधान रस' और 'युग-६ कार्म पर टिकी है, किसी ने भाषा को अपनाया तो किसी ने युग-प्रभाव को । हिंदी साहित्य के इतिहास के अन्तर्गत मानी जाने वाली वार्ता- रचनाओं और प्रथम इतिहास गार्सा-द-तासी के इतिहास में इस बात का उल्लेख ही नहीं किया। जार्ज ग्रियर्सन जिन्होंने अपने समय के हिंदी साहित्य के इतिहास को 12 अध्यायों में बाँटा है और कुछ की कालावधि भी दी है चारणकाल 700-1400 ई०, ब्रज का कृष्णकाव्य 1500-1600 ई०, रीतिकाल 1580-1692 ई०, तुलसीदास के अन्य परवर्ती काव्य 1600-1700 ई० आदि । निःसन्देह ये सभी शीर्षक निबंधात्मक हैं। दूसरे इनका कोई सुनिश्चित आकार भी नहीं है। ये किसी भी काल-विशेष का प्रतिनिधित्व नहीं करते। कुछ शीर्षक एकदम कालावधि शून्य हैं, काल विशेष का सम्यक् प्रतिनिधित्व नहीं करते। जैसे- मलिक मुहम्मद जायसी का प्रेम काव्य, तुलसीदास तथा विविध अज्ञात कवि, तो कुछ एकदम काल-नाम पर ही हैं।
हिन्दी साहित्य का सम्भवतः सर्वाधिक बड़ा विभाजन और नामकरण करने वाले हैं- मिश्र बंधु । उन्होंने अपने ग्रंथ 'मिश्र बंधु विनोद' में समस्त हिंदी साहित्य के 6 काल बताएं हैं-
- प्रारम्भिक काल संवत् 700-1444 ई०
- माध्यमिक काल संवत् 1445-1680 ई०
- अलंकृत काल संवत् 1681-1889 ई०
- अज्ञातकाल
- परिवर्तनकाल संवत् 1890-1925 ई०
- वर्तमान काल संवत् 1926 ई० से
उपर्युक्त भेदों में से भी उन्होंने प्रत्येक काल के कई उपभेद किए है, वह भी विविध आधारों पर। निःसन्देह निश्चित आधारों का अभाव, असंगत मानदण्डों का असंगत प्रयोग, पुनरावर्ति आदि दोषों से भरपूर उपर्युक्त विभाजन एकदम अधकचरा और अधूरा बनकर रहा गया है। इसी प्रकार के असफल विभाजन और नामकरण 'श्री रामनेरश त्रिपाठी, वियोगीहरि आदि ने किए है।
डा० गणपति चन्द्र गुप्त ने हिन्दी साहित्य का सूक्ष्म एवं गहन अध्ययन कर नवीन तथा वैज्ञानिक ढंग से हिन्दी साहित्य का काल विभाजन किया है-
1. प्रारम्भिक काल - सन् 1184-1350 ई०
2. पूर्व- मध्यकाल - सन् 1350-1600 ई०
3. उत्तर मध्यकाल- सन् 1600-1857 ई०
4. आधुनिक काल - सन् 1857 से अब तक
डा० गणपति चन्द्र गुप्त का काल-विभाजन यद्यपि स्पष्ट और व्यापक है, परन्तु यह भ्रमित करने वाला प्रतीत होता है, क्योंकि उन्होने आदिकाल में दो परंपराएँ प्रतिपादित की हैं- (1) धार्मिक रास-काव्य परंपरा तथा (2) संत काव्य परंपरा और मध्यकाल में 11 परंपराएँ-
1. धर्माश्रय में
(i) संत-काव्य परम्परा
(ii) पौराणिक रीति परम्परा
(iii) पौराणिक प्रबंध काव्य परम्परा
(iv) रसिक भक्ति काव्य परम्परा
2. राज्याश्रय में
(v) मैथिली गीति परम्परा
(vi) ऐतिहासिक रास- काव्य परम्परा
(vii) ऐतिहासिक मुक्तक परम्परा
(viii) ऐतिहासिक- चरित्र काव्य परम्परा
(ix) शास्त्रीय मुक्तक परम्परा
3. लोकाश्रय में
(x) रोमांटिक कथा- काव्य परम्परा
(xi) स्वच्छंद प्रेम काव्य परम्परा
आधुनिक काल को डा० गणपति चन्द्र गुप्त पाँच भागों में विभक्त किया है-
1. भारतेन्दु युग - सन् 1857-1900 ई०
2. द्विवेदी युग - सन् 1900-1920 ई०
3. छायावादी युग - सन् 1920-1937 ई०
4. प्रगतिवाद युग- सन् 1937-1945 ई०
5. प्रयोग युग- सन् 1945-1965 ई०
डा० नगेन्द्र ने समन्वयात्मक दष्टिकोण अपनाते हुए तथा ऐतिहासिक कालक्रम व साहित्यिक विद्या दोनों का आधार ग्रहण करते हुए हिंदी साहित्य का काल विभाजन एवं नामकरण इस प्रकार किया है-
1. आदिकाल - सन् 650 से 1350 ई०
2. भक्तिकाल - सन् 1350 से 1650 ई०
3. रीतिकाल - सन् 1650 से 1850 ई०
4. आधुनिक काल - सन् 1850 ई० से अब तक
1. पुनर्जागरण काल (भारतेन्दु काल ) - सन् 1857-1900 ई०
2. जागरण सुधारकाल (द्विवेदी काल ) - सन् 1900-1918 ई०
3.
4. छायावादोत्तर कालः
- (i) प्रगति - प्रयोगकाल (सन् 1938-1953)
- (ii) नवलेखन - काल (सन् 1953 अब तक)
डा० नगेन्द्र का काल विभाजन आचार्य शुक्ल और डा० हजारीप्रसाद द्विवेदी के अनुसार ही रहा है। अन्तर केवल इतना है कि डा० नगेन्द्र ने आदिकाल का प्रारम्भ सातवीं शती के मध्य से माना है। जबकि शुक्ल ने 1050 ई० से तथा आचार्य द्विवेदी ने 10 वीं शती से विभिन्न विद्वानों के विचारों का मंथन करने के पश्चात् हम इस निष्कर्ष पर पहुँचते हैं कि हिंदी साहित्य के काल विभाजन के विषय में विद्वानों में काफी मतभेद रहा है। अब तक की प्राप्त सामग्री के आधार पर कहा जा सकता है कि आचार्य रामचन्द्र शुक्ल, डा० हजारी प्रसाद द्विवेदी तथा डा० नगेन्द्र का काल-विभाजन अधिक स्पष्ट, वैज्ञानिक और सुव्यवस्थित रहा है। इन तीनों के समन्वयात्मक रूप को ही हमें स्वीकार करना चाहिए।
हिंदी साहित्य के इतिहास को निम्नलिखित चार भागों में विभक्त किया जा सकता है। विद्वानों ने भी इस काल विभाजन को उपयुक्त माना है-
1. आदिकाल - संवत् 1050 से 1375 वि०
2. भक्तिकाल - संवत् 1375 से 1700 वि०
3. रीतिकाल - संवत् 1700 से 1900 वि०
4. आधुनिककाल - सवंत् 1900 से अब तक
अनेक विद्वानों ने हिंदी साहित्येतिहास के अन्तर्गत हिंदी साहित्य का काल विभाजन एवं नामकरण किया है, लेकिन हिंदी साहित्य का वास्तविक काल विभाजन एवं नामकरण करने वालों में आचार्य रामचन्द्र शुक्ल का नाम ही प्रमुख रहा है। आधुनिक काल में साहित्य की नई-नई प्रवृत्तियाँ विकसित-वर्धित हो रही है, साथ ही अनेकानेक प्राचीन ग्रन्थ भी खोजे जा रहे है। इस प्रकार आज भी विद्वानों के बीच इस नामकरण की आवश्यकता बनी हुई है।