गाँधीजी के विचार |Mahatma Gandhi Thought in Hindi

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 गाँधीजी के विचार (Mahatma Gandhi Thought in Hindi)

गाँधीजी के विचार |Mahatma Gandhi Thought in Hindi


गाँधीजी के विचार (Gandhi Thought in Hindi)

 

  • निश्चय ही गाँधी जी का व्यक्तित्व बहुआयामी रहा है। परन्तु प्रमुखतः उन्हें दक्षिण अफ्रीका में भारतीयों के नागरिक अधिकारों की प्राप्ति के लिए संघर्ष तथा भारत के स्वतन्त्रता संग्राम आन्दोलन के कर्णधार के रूप में जाना जाता है। गाँधी जी ने प्रारम्भ से ही इन आन्दोलनों के लिए सत्यअहिंसाऔर सविनय अवज्ञा अथवा असहयोग का मार्ग चुना। ऐसे रण के लिए सैन्य शक्ति की नहींआत्मशक्ति की आवश्यकता होती है। आत्मशक्ति का स्रोत आत्मा में हैऔर उस स्रोत से तादात्म्य का मार्ग अध्यात्म है। गाँधी जी का सारा जीवनउनकी सम्पूर्ण साधनाइसी तादात्म्य को स्थापित करने की रही है इसीलिए कई लोगों की मान्यता है कि वे विशुद्ध धार्मिक व्यक्ति थे।

 

  • गाँधी जी परम्परागत धर्म में विश्वास नहीं करते थे। वह कहते थे कि सत्य के अतिरिक्त अन्य कोई ईश्वर नहीं है और इसकी प्राप्ति के साधन प्रेम एवं अहिंसा है। अहिंसा सिर्फ शारीरिक स्तर पर ही नहीं अपितु मनुष्य के मनवचन और कर्म में भी परिलक्षित होनी चाहिये। इसका मूल अर्थ है- बुरा मत सुनोबुरा मत देखोबुरा मत कहो। सभी धर्मों का मूलतत्व है- प्रेम उनके कहे ये शब्द कौन भूल सकता है कि लाखों करोड़ों गूंगों के हृदय में जो ईश्वर विराजमान हैंवह उसके सिवा किसी ईश्वर को नहीं मानते। उनका प्रिय भजन था - "वैष्णव जन तो तेने कहियेजे पीर पराई जाणे रे" राजनीति में स्वयं के प्रवेश के सन्दर्भ में वह कहते हैं -"सत्य के प्रति प्रेम ही मुझे राजनीति में खींच लाया है। और बिना किसी हिचकिचाहट के पूरी विनम्रता के साथ मैं कह सकता हूँ कि जो यह कहते हैं कि राजनीति में धर्म का कोई काम नहीं हैवह लोग धर्म का अर्थ समझते ही नहीं हैं। उनका ईश्वर की प्रार्थना में अगाध विश्वास था । वह कहते हैं- "मुझे तनिक भी सन्देह नहीं है कि प्रार्थना हृदय को कामनाओं से रहित करके उसको शुद्ध करने का अचूक माध्यम है। लेकिन इसके लिये अत्यधिक विनम्रता की आवश्यकता होती है ।"

 

  • भगवद्गीता का गाँधी जी के जीवन पर अत्यधिक प्रभाव पड़ाविशेषकर इसमें उल्लिखित दो विचारों का - पहला है, 'अपरिग्रह (त्याग) जिसका अभिप्राय है कि व्यक्ति को अपनी आध्यात्मिक उन्नति में बाधक सांसारिक प्रलोभनों जैसे धन आदि के अनावश्यक उपभोग का त्याग करना चाहिये। दूसरा शब्द समभाव (समान भाव ) जिसका अर्थ है कि जीवन की विषम परिस्थितियों में भी सफलता व असफलताआशा और निराशा के भाव से परे भयमुक्त होकर जीवन पथ पर बढ़ते जाना। भौतिकता को सत्य मानने वाला दृष्टिकोण जीवन के उन्यन में कभी सहायक नहीं हो सकता है। मानव मन की असीम कामनाओं को सीमित करने की क्षमता भौतिकतावादी दृष्टि में नहीं है। इस क्षमता के लिये मानव मन में उदारतासहिष्णुता एवं प्रेम की भावना का विकास आवश्यक है।

 

  • गाँधीजी जाति प्रथा के घोर विरोधी थे। भारतीय समाज के पतन का मुख्य कारण उसकी संकीर्ण जातिवाद रहा है। प्राणियों को जन्म के आधार पर जातियोंउपजातियों में बाँट दिया गया तथा उनके बीच ऊँच नीच की दीवारें खड़ी कर दी गयी । गाँधी दर्शन इन सभी दीवारों को तोड़ता है तथा प्रत्येक व्यक्ति को प्राणीमात्र की पीड़ा से द्रवित होने तथा उनकी सेवा करने की प्रेरणा प्रदान करता है। हम 21वीं सदी में प्रवेश कर गये हैं परन्तु छुआछूत जैसी प्रथा आज भी कुछ सीमा तक विद्यमान है। हमने उस वर्ग को 'अछूतकहकर हाशिये पर धकेल दिया जिसके बिना हमारा सामाजिक ढाँचा चरमरा जायेगा। गाँधीजी ने इस वर्ग को गले लगाया और हरिजन अर्थात् भगवान की सन्तान कहकर उनको समाज में सम्मानित स्थान दिलाया।

 

  • गाँधीजी ने शहरों की अपेक्षा गाँवों को अधिक महत्व दिया जो आज पहले की अपेक्षा कहीं अधिक प्रासंगिक है। महानगरों में जनसंख्या का बढ़ता दबावअन्धाधुँध भवनों का निर्माण अनेक आर्थिक और सामाजिक समस्यायें ही नहीं पैदा कर रहा है अपितु पर्यावरण के लिये भी संकट उत्पन्न कर रहा है। महानगरों के जीवन में एकाकीपनअलगावमानसिक दबाव तथा असुरक्षा की भावनायें बढ़ रही है। बहुमंजिली इमारतों के निर्माण के लिये जंगल और कृषि योग्य भूमि का अनावश्यक उपयोग हो रहा है । हमारी विकास की अवधारणा क्या है बड़े-बड़े आलीशान मॉलथियेटरओवर ब्रिजफैक्ट्री का निर्माण और लगातार कम होती जा रही कृषि भूमि । पानी और अनाज उगाने के लिये कृषि भूमि को बचाना वर्तमान समय की महती आवश्यकता है। आज स्माट सिटी यानि शहरों की बात हो रही हैस्माट विलेज यानि गाँव की जरुरत क्यों नहीं महसूस की जा रही है?

 

  • भविष्य में रोजगार के क्षेत्र में एक भयावह तस्वीर उभरकर आ रही है जहाँ मनुष्य की जगह रोबोट लेने जा रहे हैं। आज जब सभी क्षेत्रों में बेरोजगारी बढ़ रही हैतो गाँधी जी की दूर दृष्टि हमें छोटे कुटीर उद्योगों की तरफ प्रेरित करती हैजिनमें लागत भी कम लगती है। आज आर्थिक मंदी झेलते हुये विश्व में रोजगार में भारी गिरावट आ चुकी है। इसलिए एक बार फिर हमें गाँव की ओर लौटना होगा। आज की परिस्थितियों में सरकार भी स्वरोजगार योजनाओं के अन्तर्गत इन उद्योगों को प्रोत्साहित कर रही है। गाँधीजी हमें बार-बार याद दिलाते हैं कि कोई भी काम छोटा या बड़ा नहीं होता है। गाँधीजी स्वयं चरखा चलाते थे तथा सूत कातते थे। गाँधीजी के अनुसार शिक्षा रोजगार परक होहस्तशिल्प एवं उत्पाद कार्य पर केन्द्रित होजो व्यक्ति को उसके स्वभावानुसार किसी प्रकार का कौशल प्रदान कर सके। वह कुटीर उद्योग धन्धों के प्रशिक्षण को शिक्षा प्रणाली का आवश्यक अंग मानते थे. 

 

  • शिक्षा के सम्बन्ध में गाँधीजी का विचार है कि शिक्षा व्यक्ति के शारीरिकमानसिक और आध्यात्मिक विकास में सहायक होनी चाहिये व मातृभाषा उसका माध्यम होना चाहिये। उनका मत था कि सात वर्ष की आयु तक निशुल्क बुनियादी शिक्षा सभी के लिये अनिवार्य हो । आज शिक्षा की आधारभूत गुणवत्ता में दोष है। हम आज भी मैकॉले की पाश्चात्य संस्कृति प्रधान शिक्षा प्राप्त करने के लिए विवश हैं। अंग्रेजी भाषा और संस्कृति के प्रति विशेष अनुराग होने के कारण हम अपनी स्वयं की भाषा और संस्कृति से दूर होते जा रहे हैं। यह अत्यन्त दुर्भाग्यपूर्ण है। केवल अक्षर ज्ञान और विभिन्न स्रोतों से सूचनाएं एकत्रित करने तक शिक्षा का उद्देश्य सीमित नहीं है। बच्चों में और युवाओं को महापुरुषों के द्वारा दिखाये गये सन्मार्ग में आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करनाउनमें राष्ट्र निर्माण एवं लोक सेवा की भावना जाग्रत करना ही शिक्षा का वास्तविक उद्देश्य है।

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