रैल्फ वॉल्डो एमर्सन जीवन परिचय एवं विचार
रैल्फ वॉल्डो एमर्सन जीवन परिचय एवं विचार
- एक सन्त और एक नागरिक अधिकारों के संग्राम सेनानी के बाद हम आपका परिचय उन्नीसवी सदी अमेरिका के एक श्रेष्ठ मनीषी, जिन्हें कॉकॉर्ड का ऋषि भी कहा जाता है, रैल्फ वॉल्डो एमर्सन से कराने जा रहे हैं। एमर्सन एक प्रसिद्ध कवि, निबन्धकार, तथा परमसत्ता के चिन्तक और उपासक थे । उन्होंने अत्यन्त मूर्त रूप में अमेरिकी चिन्तन को एक नयी और गहरी दिशा प्रदान की।
- चूँकि एमर्सन को प्रमुखतः उनकी ट्रान्सेन्डेन्टलिजम के लिए जाना जाता है, इसलिए इस शब्द को हिन्दी में कैसे कहेंगे, इस पर विचार करना आवश्यक है। हिन्दी शब्दकोशों में इसके लिए अनेक शब्द गढ़े गये हैं, जिनमें प्रमुख हैं अतिमावाद, अतीन्द्रियवाद, अन्तर्ज्ञानवाद, अतीतवाद, और सर्वातिशायी सिद्धान्त इनमें कौन सा शब्द कितना उपयुक्त है, इसकी विवेचना फिर कभी की जा सकती है, किन्तु इतना तो साफ है कि इनमें से किसी की अनुगूँज हिन्दीभाषी मन में नहीं सुनायी देती । जिस शब्द को सुन कर मन के स्वर न बजें, वह शब्द मृत है, निष्प्राण है।
- ऐसा क्यों होता है कि हिन्दी से अंग्रेजी और अंग्रेजी से हिन्दी अनुवाद की सम्पूर्ण भाषा ही प्रायः निष्प्राण पायी जाती है? दरअसल, अंग्रेजी के शब्द अंग्रेज मन की भूमि से उपजे हैं, और वे उसी भूमि में पुष्पित और पल्लवित होते हैंय ठीक वैसे ही, हिन्दी के शब्द अपने पूर्ण शैष्ठव में केवल हिन्दीभाषी मन में साकार हो सकते हैं। समस्या तब आती है, जब हम किसी एक जलवायु के पौधे को उसकी विजातीय जलवायु और भूमि में प्रत्यारोपित करते हैं। ठीक यही यहाँ ट्रान्सेन्डेन्टलिजम के साथ हो रहा है। एमर्सन का ट्रान्सेन्डेन्टलिस्ट चिन्तन बहुत सुन्दर और गरिमामयी हैय उसमें बहुत रस है । इतने अतीन्द्रीय सौन्दर्य वाले विचार के लिए 'अतिमावाद' जैसे निष्प्राण शब्द का प्रयोग एमर्सन के साथ सर्वथा अन्याय है। ट्रान्सेन्डेन्टलिजम के बारे में हम आगे बात करेंगेय यहाँ हमारा उद्देश्य केवल दो भिन्न संस्कृतियों के भेद की ओर आपका ध्यान आकर्षित करना था।
रैल्फ वॉल्डो एमर्सन जीवन परिचय
- एमर्सन का जन्म 25 मई 1803 को अमेरिका के बॉस्टन नगर में हुआ था। जब वे केवल आठ वर्ष के थे, उनके पिता का देहान्त हो गया । 1831 में जब एमर्सन केवल 27 वर्ष के थे, उनकी पत्नी एलेन का देहान्त हो गया। कुछ ही वर्षों बाद 1834 में उनके भाई एडवर्ड, और 1836 में एक और भाई चार्ल्स की मृत्यु हो गयी युवावस्था में इतने प्रियजनों के खोने का गहरा प्रभाव एमर्सन के जीवन और चिन्तन में दिखायी देता है । कठोपनिषद में नचिकेता की कथा बताती है कि स्वयं यम ही धर्मशिक्षा के श्रेष्ठतम गुरू हैं। यह देखा गया है कि मृत्यु से सामना होने के पश्चात कई बार व्यक्ति सत्य की तलाश की ओर मुड़ जाता है। कुछ ऐसा ही सम्भवतः एमर्सन के साथ हुआ। 1826 में उन्होंने चर्च में पादरी की नौकरी शुरू की, परन्तु पत्नी की मृत्यु के बाद उनका चर्च एवं धर्म के संस्थागत स्वरूप के साथ पूरा मोहभंग हो गया। उन्होंने चर्च की नौकरी छोड़ दी, और स्वतन्त्र चिन्तक एवं वक्ता के रूप में जीवन-यापन का निर्णय लिया।
- जो दिखता है, केवल उतना ही सत्य नहीं है। उसके परे भी कोई वृहत्तर सत्ता है जो इस प्रत्यक्ष जगत को संचालित करती है। इस पारलौकिक सत्ता से तादात्म्य और उससे अभिप्रेरित जीवन ही मूल रूप से एमर्सन की ट्रान्सेन्डेन्टलिजम है। 1836 में छपे अत्यन्त चर्चित और प्रसिद्ध लेख 'नेचर' (छंजनतम) में एमर्सन ने इस सिद्धान्त की विस्तृत व्याख्या प्रस्तुत की है। अगले वर्ष 1837 में एमर्सन का एक और प्रसिद्ध लेख 'दि अमेरिकन स्कॉलर' प्रकाशित हुआ, जिसे अमेरिका की बौद्धिक स्वतन्त्रता का घोषणापत्र कहा जाता है।
- एमर्सन ने अमेरिका के कोने कोने में कुल पन्द्रह सौ से अधिक व्याख्यान दिए, जिसमें उन्होंने धर्म, जीवन, समाज और व्यक्ति के जीवन-लक्ष्य को अपने तरीके से परिभाषित किया । इन्हीं व्याख्यानों पर आधारित उनके लेखों के दो संग्रह, एसेज: फर्स्ट सीरीज' और 'एसेज: सेकन्ड सीरीज 1841 और 1844 में प्रकाशित हुए। एमर्सन के चिन्तन का निचोड़ हमे इन दोनों पुस्तकों से मिलता है।
- 1833 में एमर्सन ने यूरोप और इंगलैण्ड का व्यापक भ्रमण किया। यहाँ उनकी मुलाकात अपने युग के श्रेष्ठ विचारकों जॉन स्टुअर्ट मिल और टॉमस कारलाइल से हुई। इंगलैण्ड में वे रोमान्टिक परम्परा के सुप्रसिद्ध कवियों विलियम वर्ड्सवर्थ तथा सैमुअल टेलर कॉलरिज से मिले । एमर्सन के चिन्तन पर इन महापुरुषों का प्रभाव स्पष्ट दिखायी देता है। इंगलैण्ड में उन्होंने यह भी देखा कि औद्योगीकरण के फलस्वरूप किस तरह से अमीरों और गरीबों के बीच की खाई लगातार बढ़ती जा रही थी। इससे उन्हें अंग्रेजी संस्कृति को समझने की एक नयी दिशा मिली ।
- अमेरिका वापस आने के बाद एमर्सन ने कॉकॉर्ड, मैसाचुसिट्स में बसने का निर्णय किया और लायसीयम सर्किट में नियमित रूप से अपना व्याख्यान देना प्रारम्भ कर दिया। उन्होंने 'ट्रान्सेन्डेन्टल क्लब' की स्थापना की, जिसके प्रमुख सदस्य थे हेनरी डेविड थोरो, ब्रॉन्सन ऑल्कट, और जॉर्ज रिपली। इन लोगों ने 'द डायल' नाम की पत्रिका का प्रकाशन भी प्रारम्भ किया, जिसे एक नयी चेतना का पत्र की संज्ञा दी गयी।
- एमर्सन के चिन्तन पर जर्मन विचारकों और भारतीय दर्शन, विशेषकर अद्वैत की अमिट छाप दिखायी देती है। उन्होंने श्रीमद्भगवद्गीता, उपनिषद् और पुराणों का गहन अध्ययन किया, जिसका स्पष्ट प्रभाव उनकी कविताओं और लेखों में मिलता है । उदाहरण के लिए हम उनकी दो अतिप्रसिद्ध कविताओं, 'ब्रह्म' और 'हमत्रेय' के कुछ अंशों को देख सकते हैं। ब्रह्म' कविता का प्रथम पद है-
If the red slayer think he slays,
Or if the slain think he is slain,
They know not well the subtle ways
I keep, and pass, and turn again
अब आप देखिए, कि किस तरह से यह पद गीता के इस श्लोक का अक्षरशः अनुवाद है-
य एनं वेत्ति हन्तारं यश्चौनं मन्यते हतम।
उभौ तौ न विजानीतो नायं हन्ति न हन्यते ।। ( २.१६)
अर्थात-
- जो इस आत्मा को मारने वाला या मरने वाला मानते हैं, वे दोनों ही नासमझ हैं, क्योंकि आत्मा न किसी को मारता है और न किसी के द्वारा मारा जा सकता है। इसी तरह से 'हमत्रेय' विष्णुपुराण की एक कथा की काव्यात्मक प्रस्तुति है। विष्णुपुराण की कथा में वर्णन है कि किस तरह से राजाओं को अभिमान हो जाता है कि वे पृथ्वी के वे स्वामी हैं। पृथ्वी को इन अल्पबुद्धि अज्ञानी राजाओं पर दया आती है और वह बताती है कि कैसे वह अनन्तकाल तक प्रतिष्ठित है, और इन राजाओं का अस्तित्व क्षणभंगुर है ।
एमर्सन की परम तत्त्व के ज्ञान की पिपासा का प्रभाव अनेक अमेरिकन कवियों पर पड़ा जिन्हें उनका दिग्दर्शन प्राप्त हुआ था - इनमें प्रमुख थे, थोरो और वॉल्ट विटमन। आज भी विश्व के अनेक साहित्यकारों पर एमर्सन का प्रभाव प्रत्यक्ष दृष्टिगोचर होता है। वृद्धावस्था में एमर्सन का स्वास्थ्य लगातार खराब होता गया, तथा १८८२ में उनका प्राणान्त हो गया
रैल्फ वॉल्डो एमर्सन: प्रमुख सिधान्त
इस भाग में हम एमर्सन के कुछ महत्वपूर्ण सिद्धान्तों को संक्षेप में समझेंगे।
1. पश्चिमी अद्वैतवाद
- पश्चिमी अद्वैतवाद ईसाई धर्म का एक आध्यात्मिक आन्दोलन था जिसका दृढ़ विश्वास था कि ईश्वर एक है। यह आन्दोलन उस परम्पतागत त्रयी को नकारता था जिसके अनुसार ईश्वर को तीन शक्तियों दृ पिता, पुत्र और पवित्र आत्मा दृ को समाहित करने वाली सत्ता माना गया था । पश्चिमी ईसाई सिद्धांतों को अस्वीकार करने वाले अद्वैतवादियों का मानना था कि ईसामसीह ईश्वर द्वारा प्रेरित एक मुक्तिदाता के रूप में एक श्रेष्ठ मानव थे न कि कोई ईश्वर के पुत्र । एमर्सन अद्वैतवादी थे और 1838 में उन्होंने अपना विख्यात "डिविनिटी स्कूल" अभिभाषण दिया था जिसमें उन्होंने व्यक्तिगत ईश्वर के सिद्धांत को नकारते हुए आधिकारिक चर्च को कड़ी फटकार लगाते हुए आरोप लगाया कि उसने खोखले आकारों और निर्जीव उपदेशों के माध्यम से मनुष्य की आत्मा का दम घोंट दिया है। शुरू में एमर्सन को परम्परावादियों की कड़ी आलोचना का शिकार होना पड़ा और लम्बे समय तक उनके विचार विवादित माने गए, लेकिन एक युवा पादरी थियोडोर पार्कर ने एमर्सन के विचारों का बड़े पैमाने पर प्रचार-प्रसार किया और 1880 के दशक के आते-आते एमर्सन को औपचारिक रूप से एक अद्वैतवादी संत मान लिया गया था.
- उल्लेखनीय है कि प्रसिद्ध भारतीय समाज सुधारक राजा राममोहन राय भी पश्चिमी अद्वैतवाद से गहरे प्रभावित रहे थे.
2. ट्रान्सेन्डेन्टलिजम या अतीन्द्रियवाद
- ट्रान्सेन्डेन्टलिजम या अतीन्द्रियवाद एक दार्शनिक आन्दोलन था जो कि अद्वैतवाद की एक तार्किक परिणति के रूप में प्रारम्भ हुआ । उन्नीसवीं शताब्दी के प्रारम्भिक दशकों अमेरिका में उभरा ट्रान्सेन्डेन्टलिजम मनुष्य और प्रकृति के मूलभूत शुभत्व पर विश्वास करता था और व्यक्तिगत अनुभव, अन्तर्चेतना एवं व्यक्ति की सत्ता पर केन्द्रित था । इसे माननेवालों का मत था कि समाज और उसके द्वारा निर्मित संस्थाओं ने व्यक्ति की नैसर्गिक पवित्रता को भ्रष्ट कर दिया है। ट्रान्सेन्डेन्टलिजम का गहरा विश्वास था कि मनुष्य अपना श्रेष्ठतम देने की अवस्था में तब होता है जब वह आत्म-निर्भर और स्वाधीन हो.
- अतीन्द्रियवादियों ने तत्कालीन अमेरिकी समाज में दोहरी भूमिका निभाने का महत्वपूर्ण कार्य किया। उनके लक्ष्य थेरू अमेरिका के स्वतंत्र साहित्य का विकास करना और आध्यात्म और धर्म को नए सिरे से परिभाषित करना राल्फ वाल्डो एमर्सन अतीन्द्रियवादियों में एक थे और उन्होंने कहा था दृ "हम अपने पैरों पर चलेंगेय हम अपने हाथों से काम करेंगेय हम अपने मन से बोलेंगे पहली बार मनुष्यों का राष्ट्र अस्तित्व में आएगा क्योंकि हर किसी को विश्वास है कि उसे उसी पवित्र आत्मा ने प्रेरित किया है जो हरेक मनुष्य को प्रेरित करती है।" अधिकाँश अतीन्द्रियवादियों ने सामाजिक उद्धार के तत्कालीन आन्दोलनों जैसे दास प्रथा उन्मूलन और महिलाधिकार आन्दोलन दृ में भी हिस्सा लिया।
3. परात्पर आत्मा
- एमर्सन ने 1941 में अपने निबन्धों के संकलन "एसेज" के नवें निबन्ध को शीर्षक दिया था "ओवरसोल । इसे एमर्सन की आध्यात्मिक और विचारधारा का सबसे विश्वसनीय स्रोत माना जाता है। इस निबन्ध में उन्होंने एक ऐसे ईश्वर पर अपनी आस्था व्यक्त की है जो हम सभी के भीतर निवास करता है और जिसके साथ हम सम्वाद कर सकते हैं। इस सम्वाद के लिए हमें किसी धर्म की आधिकारिक सदस्यता की या धर्माधिकारी की आवश्यकता नहीं पड़ती। इस निबन्ध में मनुष्य और उसकी आत्मा के विषय के कुछ मूलभूत आयामों पर चर्चा की गयी है। एमर्सन का मानना है कि मनुष्य की आत्मा अमर, विराट और अतीव सुन्दर होती है, और हमारा सचेतन अस्तित्व उसकी तुलना में बहुत सीमित होता है, जबकि हम आदतन अपने अहम् को अपना वास्तविक अस्तित्व समझ बैठने की गलती करते हैं। वे बताते हैं कि सभी लोगों की आत्माएं एक दूसरे से सम्बद्ध होती हैं।
- एमर्सन एक ऐसी पवित्र आत्मा की परिकल्पना करते हैं जो समूचे ब्रह्माण्ड में व्याप्त है और सभी मानवीय आत्माओं को अपने भीतर समाहित किये हुए है। इसी को एमर्सन परात्पर आत्मा (ओवरसोल) का नाम देते हैं। दूसरे शब्दों में कहा जाय तो यह परात्पर आत्मा मानव अस्तित्व की सर्वश्रेष्ठ भूमि है और सभी जीवों की आध्यात्मिक एकता भी । परात्पर आत्मा का यह सिद्धान्त अतीन्द्रियवाद के प्रमुख सैद्धान्तिक आधारों में गिना जाता है, जिसका सार है कि ईश्वर एक है और वह सभी मनुष्यों को एक सूत्र में जोड़ने का काम करता है। इसे भारतीय दर्शन के ब्रह्म के समीप भी देखा जा सकता है, जो ब्रह्माण्ड की सर्वोच्च शक्तिरूपी आत्मा के रूप में प्रतिष्ठित है।
4. आत्म-निर्भरता
- एमर्सन ने अपने निबंध "आत्म-निर्भरता" में बताया है कि भद्र समाज मनुष्य के व्यक्तिगत विकास में बाधक बनता है। उनका कथन है कि आत्म-निर्भरता मनुष्य को अपने वास्तविक अस्तित्व की खोज करने की स्वतन्त्रता प्रदान करती है और उसके माध्यम से वास्तविक स्वतन्त्रता प्राप्त करने का अवसर भी देती है । एमर्सन अपने पाठकों से आग्रह करते हैं कि उन्हें सामाजिक अपेक्षाओं के बजाय अपनी व्यक्तिगत इच्छाशक्ति का अनुसरण करना चाहिए। वे जोर देकर कहते हैं कि मनुष्य को चर्च या ऐसे ही किसी अन्य माध्यम के स्थान पर स्वयं अपनी आवाज का अनुसरण करना चाहिए। वे दूसरों के साथ बनाए गए अपने सम्बन्धों के प्रति ईमानदार बने रहने पर भी बल देते हैं ।
- एमर्सन मानते हैं कि आत्म निर्भरता को हासिल करने के लिए मनुष्य को अपने धार्मिक आचरण में बदलाव लाने की आवश्यकता है। अपने अमेरिकी समाज से उनका आग्रह है कि वे अपने घरों में रहकर अपनी संस्कृति को विकसित करने का प्रयास करें और सामाजिक उन्नति के स्थान पर व्यक्तिगत उन्नति पर अधिक ध्यान केन्द्रित करें।
5. लायसीयम आन्दोलन
- उन्नीसवीं शताब्दी के मध्य में अमेरिकी शिक्षा व्यवस्था के पुनर्निर्माण का समय था। इस पुनर्निर्माण में लायसीयम आन्दोलन ने एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इस आन्दोलन का नामकरण प्राचीन यूनान के एथेंस के सार्वजनिक विद्यालय लायसीयम के नाम पर किया गया था जहां दार्शनिक अरस्तू खुले में विचारों के परिसम्वाद आयोजित किया करते थे। लायसीयम आन्दोलन वयस्क शिक्षा के क्षेत्र में किया गया एक अभिनव प्रयोग था जिसने 1830 से लेकर अमेरिकी गृहयुद्ध के अन्तराल में महत्वपूर्ण सामाजिक प्रभाव डाला । संसार के बारे में और अधिक जानने की अमेरिकी नागरिकों की उत्कट इच्छा ने इस आन्दोलन के लिए ईंधन का कार्य किया और इस समय में अमेरिका में गम्भीर सामाजिक बदलाव आये । अमेरिका भर में जगह-जगह लायसीयम सोसाइटियों का गठन किया गया जहाँ जा कर इस आन्दोलन से सम्बद्ध वक्ता व्याख्यान दिया करते थे। इस शैक्षणिक आन्दोलन से जुड़ने वाले महत्वपूर्ण लोगों में राल्फ वाल्डो एमर्सन, फ्रेडरिक डगलस, हेनरी डेविड थोरो और सूजन बी. एंथनी प्रमुख थे । 1861 में हुए गृहयुद्ध के पश्चात इस आन्दोलन की गति धीमी पड़ गयी लेकिन तब तक यह अपना कार्य कर चुका था। नए विचारों और नई सूचनाओं के प्रसार-प्रचार को समर्पित यह आन्दोलन लोगों को एक महत्तर उद्देश्य के लिए साथ लाने का एक बेहतरीन माध्यम था।