स्वामी विवेकानन्द के विचार (Swami Vivekananda Vichar Details in Hindi)
स्वामी विवेकानन्द के विचार (Swami Vivekananda Vichar Details in Hindi)
- जितना प्रिय गाँधी जी को भगवद्गीता थी, उतना ही प्रिय स्वामी विवेकानन्द को कठोपनिषद् था, विशेषकर यह मन्त्र - "उतिष्ठत जाग्रत प्राप्य वरान्निबोधत । इसी मन्त्र को आधार बना कर स्वामी जी ने भारत राष्ट्र को जागने का आह्वान दिया । मन्त्र का अर्थ है उठो, जागो और श्रेष्ठ महापुरुषों का सानिध्य प्राप्त कर उनसे आत्मा तक - पहुँचने का मार्ग समझो।
- विवेकानन्द ने वेदान्त दर्शन को व्याख्यायित करते हुए समझाया कि इस पूरे ब्रह्माण्ड में जो शक्ति है वह हम सब में, सृष्टि के कण कण में विद्यमान है। हम केवल अज्ञानवश, अँधकार में अपनी आँखे बन्द किये हुए, अपनी शक्तियों को नहीं पहचान पा रहे हैं। आत्मा के लिये कोई कार्य असम्भव नहीं है। स्वामी जी कहते थे कि आप तब तक ईश्वर में विश्वास नहीं कर सकते जब तक आप स्वयं पर विश्वास करना न सीख लें। संसार में यदि कोई पाप है, तो वह है स्वयं को कमजोर समझना । मानव के भीतर जब स्वयं ईश्वर का वास है तब वह कमजोर कैसे हो सकता है ? वह कहते हैं- "जब तक डर का थोड़ा भी अंश तुम्हारे भीतर होगा, ईश्वर प्रेम नहीं हो सकता है। भय और प्रेम एक साथ नहीं रह सकते हैं। ईश्वर से सच्चा प्रेम करनेवालों में भय हो ही नहीं सकता है" ।
- वह युवाओं से आग्रह करते हुये कहते हैं कि "दूसरों के सहारे की प्रतीक्षा मत करिये, जो करना है स्वयं कीजिए । कभी निराश नहीं होना चाहिये, क्योंकि निराश होने से जीत का रास्ता कठिन हो जाता है।" एक और महत्वपूर्ण सत्य की ओर स्वामीजी इंगित करते हैं कि यदि जीजस और बुद्ध उस परम सत्य को जान सकते हैं, तो हर व्यक्ति भी उस अवस्था को प्राप्त कर सकता है। हम अज्ञानवश स्वयं को हीन मानते हुये इसे असम्भव मानते हैं, जो सच नहीं है। कई जन्मों के प्रयास के उपरान्त एक आत्मा जीजस या बुद्ध बनकर हमारे सामने आती है। हमें बस पूरे मन से, इमानदारी से प्रयास करते रहना है।
- स्वामी जी मन की एकाग्रता पर बहुत जोर देते थे वह स्वयं विलक्षण स्मृति के धनी थे। एक बार किसी ने स्वामी जी को एनसाइक्लोपीडिया पढ़ने को दिया। स्वामी जी ने 300 पृष्ठ पढ़े थे कि तभी उनका एक शिष्य आया। उसने एनसाइक्लोपीडिया देखकर कहा - "इसको पढ़कर याद रखना बहुत मुश्किल है" । इस पर स्वामीजी ने उत्तर दिया - "कुछ मुश्किल नहीं है, मुझसे तुम इन तीन सौ पृष्ठ में से कहीं से भी कुछ भी पूछ लो " । और उन्होंने पूरे 300 पृष्ठ जैसे के तैसे बता दिये है न आश्चर्यजनक और अविश्वसनीय! परन्तु यह कोई चमत्कार नहीं है ।
- स्वामी जी बारम्बार हमें याद दिलाते हैं कि मानव अन्नत सम्भावनाओं एवं असीमित शक्तियों का भण्डार है, बस उसमें आत्मविश्वास होना चाहिये और इनको विकसित करने के लिये सतत प्रयासरत होना चाहिये। यह विलक्षण एकाग्रता एवं स्मृति प्रत्येक प्राणी प्राप्त कर सकता है। वह कहते है-"जीवन में हम बच्चे को सिखाते हैं कि झूठ नहीं बोलना चाहिये, चोरी नहीं करनी चाहिये, परन्तु किस प्रकार उसमें इतनी दृढ़ इच्छा शक्ति विकसित हो सकती है? इसका एकमात्र उपाय है ध्यान ।" आप सभी जानते हैं कि छात्र जीवन में सुव्यवस्थित तरीके से अध्ययन हेतु मन का एकाग्र होना पहली अनिवार्यता है। अतः प्रतिदिन ध्यान करने से हम अपने चंचल मन पर नियन्त्रण कर सकते हैं।
- शिक्षा के बारे में स्वामीजी का कहना है कि शिक्षा मनुष्य की अन्तर्निहित पूर्णता की अभिव्यक्ति है। केवल परीक्षायें उत्तीण करने से कोई व्यक्ति शिक्षित नहीं हो जाता है। जो शिक्षा जनसाधारण को जीवन संघर्ष के लिये तैयार नहीं करती है, चरित्र निर्माण नहीं करती है, जो समाज सेवा की भावना विकसित नहीं करती है, और शेर जैसा साहस नहीं पैदा करती है, ऐसी शिक्षा से क्या लाभ? लॉर्ड मैकॉले द्वारा दी गयी शिक्षा पद्धति में भारतीय चिन्तन हाशिये पर डाल दिया गया है। स्वामीजी का कहना था कि आत्मविद्या और भारतीय दर्शन के बिना विश्व अनाथ और दिशाहीन हो जायेगा। स्त्रियों की शिक्षा के विषय में वह कहते हैं कि वेदान्त यह सिखाता है कि सबमें एक ही आत्मा का वास है, फिर इस देश में स्त्री- पुरूष में भेद क्यों किया जाता है। शिक्षा पर दोनों का समान अधिकार होना चाहिये। संसार की समस्त जातियाँ नारियों का सम्मान करके ही उन्नत हुई है। स्वामीजी का कहा गया हर वाक्य अमृत तुल्य है, एक संजीवनी की भाँति है, जो कभी भी जीवन में नैराश्य और अवसाद नहीं आने देगा।
- युवाओं के लिए स्वामी विवेकानन्द का संदेश है कि "अपना जीवन बनाओ, उसी के बारे में सोचो, उसी के सपने देखो और उसी लक्ष्य के लिये जियो, अपना तन मन दिमाग उसी में लगाओ और सारी चिन्ताओं को भूल जाओ। यही सफलता का रास्ता है। हम जैसा सोचते हैं, वैसे ही बन जाते हैं, तो कोशिश करें, आप जैसा बनना चाहते हैं वैसा ही सोचें और महसूस करें।