हिंदी, हिंदुई, हिंदुस्तानी, उर्दू |'हिंदी' नाम और उसके विभिन्न रूप | Hindi Hindui Hindustani Urdu

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हिंदीहिंदुईहिंदुस्तानीउर्दू  - 'हिंदी' नाम और उसके विभिन्न रूप

हिंदी, हिंदुई, हिंदुस्तानी, उर्दू |'हिंदी' नाम और उसके विभिन्न रूप | Hindi Hindui HIndustani Urdu

हिंदीहिंदुईहिंदुस्तानीउर्दू 

'खड़ी बोलीनाम का एक प्रयोग साहित्यिक हिंदीउर्दूहिंदुस्तानी आदि की आधार भाषा या आज की साहित्यिक हिंदी के लिए भी होता है। वस्तुतः आज हिंदीउर्दूहिंदुस्तानी नामों का प्रयोग जिन भाषा रूपों के लिए होता हैव्याकरणिक स्तर पर वे प्रायः एक ही हैं और उनकी आधार - भाषा वह मिश्रित बोली है जो मूलतः कौरवीपंजाबीब्रज आदि के योग से बनी होगी। आज इस खड़ी बोली में जब बोलचाल के शब्दों (आधारभूत शब्दावलीबहुप्रचलित तद्भव शब्दसरल बहुप्रचलित संस्कृत शब्द तथा सरल बहुप्रचलित अरबीफारसीतुर्की शब्द) का ही प्रयोग होता है तो उसे बोलचाल की हिंदी या हिंदुस्तानी कहते हैंउन शब्दों के साथ ही जब संस्कृत के अल्प प्रचलित अतः कठिन तत्सम शब्दों का भी काफी प्रयोग होता है तो उसे हिंदी या साहित्यिक हिंदी कहते हैंऔर जब उन शब्दों के साथ अरबीफारसीतुर्की के अल्पप्रचलित अतः कठिन शब्दों का बहुत प्रयोग होने लगता है तो उसे उर्दू कहते हैं। इस तरह खड़ी बोली की या सामान्य हिंदी की ये तीन शैलियाँ हैं।

 'हिंदुईशब्द 

'हिंदुईशब्द 'हिंदु + ईसे बना है। हिन्दवीहिंदुई या हिंदवी का प्रयोग प्राचीन हिंदी के लिए काफी पहले से मिलता है। तेरहवीं सदी में औफी और अमीर खुसरो ने इसका प्रयोग किया है। 'खालिक बारीमें 'हिंदीऔर 'हिंदवीदोनों का प्रयोग एक ही भाषा के लिए हुआ है किंतु हिंदी का प्रयोग केवल पांच बार हैजबकि हिंदवी का तीस बार । इसका अर्थ यह हुआ कि पहले 'हिंदीकी तुलना में 'हिंदवीनाम ज्यादा प्रचलित थाधीरे-धीरे 'हिंदवीनाम उस भाषा के लिए सीमित हो गया जिसमें संस्कृत के शब्द अपेक्षाकृत अधिक थेऔर 'हिंदुस्तानीउस भाषा को कहने लगे जिसमें अरबी-फारसी के शब्द ज्यादा थे। 'गासां द तासीके इतिहास में 'हिंदुईतथा 'हिंदुस्तानीनाम ठीक इसी अर्थ में आये हैं। अब प्रायः लोग केवल 'दक्खिनीया दक्खिनी तथा उसके पहले के उत्तर भारत के मसऊँदखुसरो तथा शकरगंजी आदि के साहित्य की भाषा के लिए ही हिंदुई या हिंदवी नाम का प्रयोग करते हैं।

 

'हिंदुस्तानीशब्द 'हिंदुस्तान ईसे बना है। ग्रियर्सनधीरेंद्र वर्मा आदि कई लोगों का मत है कि यह नाम + अंग्रेजों का दिया हुआ हैकिंतु वास्तविकता यह है कि 'तुजके बाबरीमें भाषा के अर्थ में 'हिंदुस्तानीशब्द का प्रयोग हुआ है। प्रारंभ में यह शब्द 'हिंदीया 'हिंदवीका समानार्थी था किंतु आगे चलकर इसका वह अर्थ हो गया जो आज उर्दू का हैअर्थात् हिंदी का वह रूप जिसमें अरबीफारसीतुर्की शब्दों का प्रयोग अधिक होता है। जैसा कि ऊपर संकेत है तासी के प्रसिद्ध इतिहास 'इस्तवार दल लित्रेत्यूर ऐंदुई ऐ ऐंदुस्तानीमें ऐंदुस्तानी (हिंदुस्तानी) का प्रयोग इसी अर्थ में हुआ है। और आगे चलकर जब हिंदी और उर्दू नामों का प्रयोग एक ही भाषा की ऐसी शैलियों के लिए होने लगा जिनमें क्रमश: संस्कृत और अरबीफारसी के शब्दों का बाहुल्य था तो 'हिंदुस्तानीहिंदी-उर्दू के बीच की उस भाषा को कहने लगे जिसमें न तो संस्कृत के कठीन शब्द होते हैं और न अरबी-फारसी के। इसमें तद्भव तथा बहुप्रचलित संस्कृत तत्सम और अरबी-फारसी के वे शब्द होते हैंजो बोलचाल में भी प्रयुक्त होते हैं। गाँधी जी ने 'हिंदुस्तानीशब्द का प्रयोग इसी अर्थ में किया है।

'उर्दूशब्द  का अर्थ  

'उर्दूशब्द मूलतः तुर्की भाषा का है तथा इसका अर्थ है 'शाही शिविरया 'खेमा'तुर्कों के साथ ही यह शब्द भारत में आया और इसका यहाँ प्रारंभिक अर्थ 'खेमाया 'फौजी पड़ाव था। इस अर्थ में उत्तरी भारत के अनेक नगरों में 'उर्दू बाजार' (फौजी पड़ाव का बाजार ) नाम आज भी मिलता है। मुगल बादशाह के इन फौजी पड़ावों में धीरे-धीरे पूर्वी पंजाबीहरियाणीकौरवीब्रज मिश्रित एक बोली विकसित हुई जिसमें अरबीफारसीतुर्की के शब्द काफी थे। बोलियों का मिश्रण स्थानीय प्रभाव तथा इन खेमों के सिपाहियों के कारण थातो तुर्की शब्द मुगलों की अपनी भाषा तुर्की और उनकी दरबारी भाषा फारसी के कारण थे। शाहजहाँ ने दिल्ली में लालकिला बनवाया। यह भी एक प्रकार से 'उर्दू' (शाही और फौजी पड़ाव थाकिंतु बहुत बड़ा था। अतः इसे उर्दू न कहकर 'उर्दू-ए-मुअल्लाकहा गया तथा यहाँ बोली जानेवाली भाषा 'जवान-ए-उर्दू-ए-मुअल्ला' (श्रेष्ठ शाही पड़ाव की भाषा) कहलायी । भाषा - विशेष के अर्थ में 'उर्दूशब्द इस 'जबान-ए-उर्दू- मुअल्लाका संक्षेप है। भाषा के अर्थ में 'उर्दूशब्द का प्रयोग सबसे पहले कब हुआयह कहना कठिन हैकिंतु मोटे रूप में अठारहवीं सदी के मध्य में यह चल पड़ा थायद्यपि इसे ज्यादातर 'हिंदीया 'रेख्ता' (मिश्रित भाषा ) कहते थे। इसके साथ ही इसे 'हिंदुस्तानीनाम से भी अभिहित किया गया है। 1850 ई. तक आते-आते इस भाषा के लिए अन्य नामों का प्रचलन बंद हो गया और केवल 'उर्दूनाम चलने लगा।


हिंदवी  भाषा 

हिंदवी के मुख्यतः दो रूप प्राचीन काल से आ रहे थे। एक तो बोली रूप जो ब्रजअवधी आदि का था और दूसरा उसका एक प्रकार से मिश्रित रूप था जो किसी क्षेत्र से संबद्ध न होकर पूरे हिंदी- प्रदेश में उभर रहा था। गोरखनाथखुसरोकबीर आदि में इसके प्रारंभिक रूप मिलते हैं। लगभग ऐसी ही मिश्रित भाषा (अरबीफारसीतुर्की शब्दों से युक्त) उर्दू भी थी। आगे चलकर दोनों के मूलाधार एक हो गये तथा फारसीअरबीतुर्की शब्दों से युक्त भाषा उर्दू कहलायी तो संस्कृत से युक्त हिंदी ।

 

'हिंदीनाम और उसके विभिन्न रूप 

'हिंदीशब्द का संबंध संस्कृत शब्द 'सिंधुसे माना जाता है। 'सिंधुसिंध नदी को कहते थे और उसी आधार पर उसके आसपास की भूमि को 'सिन्धुकहने लगे। यह 'सिंधुशब्द ईरानी में जाकर 'हिंदूऔर फिर 'हिंदहो गया और इसका अर्थ हुआ 'सिंध प्रदेश'बाद में ईरानी धीरे-धीरे भारत के अधिक भागों से परिचित होते गये और इस शब्द के अर्थ में विस्तार होता गया तथा 'हिंदशब्द धीरे-धीरे पूरे भारत का वाचक हो गया। इसी में ईरानी का 'ईकप्रत्यय लगने से 'हिंन्दीकबनाजिसका अर्थ 'हिन्द कायूनानी शब्द 'इन्दिकाया अंग्रेजी। शब्द 'इंडियाआदि इस 'हिंदीकके ही विकसित रूप हैं। 'हिन्दीभी 'हिन्दीकका ही परिवर्तित रूप है और इसका मूल अर्थ है 'हिंद का इस प्रकार यह विशेषण हैकिंतु भाषा के अर्थ में संज्ञा हो गया है। हिंदी भाषा के लिए इस शब्द का प्राचीनतम प्रयोग शरफुद्दीन यज्दी के 'जफरनामा' (1424 ) में मिलता है।

 

वस्तुत: शब्दों में अरबी-फारसी तथा संस्कृत के आधिक्य की बात छोड़ दें तो हिंदी-उर्दू में कोई खास अंतर नहीं है। दोनों ही एक ही भाषा की दो शैलियाँ हैं। इसलिए प्रारंभ में 'हिंदीशब्द का प्रयोग हिंदी और उर्दू दोनों के लिए होता था । 'तजकिरा मखजन-उल-गरायबमें आता है: 'दर जबाने हिंदी कि मुराद उर्दू अस्त'। यहाँ 'हिंदीशब्द उर्दू का समानार्थी हैतो दूसरी तरफ हिंदी के सूफी कवि नूर मुहम्मद ने कहा है “हिंदू मग पर पांव न राख्यौका बहुतै जो हिंदी भाख्यौ ।" यहाँ इस शब्द का प्रयोग हिंदी के लिए है। मुल्ला वजही सौदामीर आदि ने अपने शेरों को हिंदी शेर कहा है। गालिब ने भी अपने पत्रों में कई स्थानों पर हिंदी-उर्दू को समानार्थी रूप में प्रयुक्त किया है। अनुमान है कि उन्नीसवीं सदी के प्रथम चरण में अंग्रेजों की विशेष भाषा नीति के कारण ही इन दोनों को अलग-अलग भाषाएँ माना जाने लगा। उर्दू को मुसलमानों से जोड़ दिया गयातो हिंदी को हिंदुओं से यदि अंग्रेज बीच में न पड़े होते तो आज ये दोनों भाषाएँ एक होतीं।

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