मीराबाई जन्म प्रमुख रचनाएँ काव्यगत विशेषताएँ , मीराबाई का जीवन परिचय
मीराबाई का जीवन परिचय
मीराबाई का जन्म सम्वत् 1555 में राव दादू के चौथे पुत्र रत्नसिंह के घर हुआ बताते हैं। बाल्यकाल में ही इनकी माता चल बसी। इसलिए इनके पितामह ने इनका लालन-पालन किया। इनके पितामह अत्यन्त धार्मिक प्रवृति के थे जिसका प्रभाव मीराबाई पर भी पड़ा। बचपन से ही साधु-सन्तों की संगति और दर्शनों के कारण इनके हृदय में भगवद् भक्ति के अंकुर फूट पड़े थे। बारह वर्ष की अल्पआयु में ही मीरा का विवाह मेवाड़ के महाराणा साँगा के ज्येष्ठ पुत्र भोजराज से हो गया, किन्तु मीरा अधि क देर तक दाम्पत्य जीवन का सुख न भोग सकी और जल्द की विधवा हो गई। अब मीरा का अत्यधि क समय साधु-संतों की संगति में बीतने लगा। राजकुल पहले ही इनके आचार-व्यवहार से रूष्ट था। पति भोजराज व महाराणा साँगा (ससुर) की मत्यु के पश्चात् तो मीरा पर अत्याचार और भी बढ़ते चले गए। परिणामस्वरूप मीरा ने राजमहल त्याग दिया।
मीराबाई प्रमुख रचनाएं
'नरसी जी का माहरो', 'गीत गोविन्द की टीका', 'मीरानी गरबी', 'मीरा के पद', 'राग सोरठ के पद, 'रास गोविन्द' तथा 'मीराबाई की मलार' और कुछ फुटकर पद आदि उल्लेखनीय रचनाएं है। मीराबाई के फुटकर पद लगभग 200 के करीब हैं।
मीराबाई की काव्यगत विशेषताएं
1 भक्ति भावनाः
भारतीय भक्त कवियों में मीराबाई का स्थान सर्वोपरि है। सूर की भक्ति की भाँति मीराबाई की भक्ति भी माधुर्य-भाव की भक्ति है। कहीं-कहीं पर तो मीरा ने सूर और तुलसी को भी पीछे छोड़ दिया है। तुलसी की भक्ति दास्य-भाव की भक्ति सूर की भक्ति माधुर्य-भाव की भक्ति है, लेकिन मीराबाई तो स्वयं राधा बन गई और भगवान् श्रीकृष्ण को ही अपना पति मानने लगी।
2. विरह भावनाः
मीरा के काव्य में श्रंगार वर्णन हुआ है। मीरा के काव्य में संयोग की अपेक्षा वियोग पक्ष को अधिक स्थान प्राप्त हुआ हैं। मीरा के विरह की अनुभूति विस्तत एवं गहन है । विरह-वर्णन की दष्टि से मीरा का स्थान सम्पूर्ण हिंदी साहित्य में श्रेष्ठ है । इनका विरह वर्णन जायसी एवं सूरदास से बढ़कर है।
3. रहस्यानुभूतिः
सगुण ईश्वर की पुजारिन होते हुए भी मीरा के काव्य में विभिन्न स्थलों पर रहस्यमयी भावनाओं का वर्णन हुआ है। इसलिए उनको रहस्यवादी कवयित्री भी कहा जा सकता है।
4. गीति-तत्त्व की प्रधानताः
मीरा के काव्य की प्रमुख विशेषता 'गेयता' है। निश्चित रूप से मीरा का काव्य गीति-काव्य है । गीति काव्य की सभी विशेषताएं आत्माभिव्यक्ति, संक्षिप्तता, तीव्रता, संगीतात्मकता, भावात्मकता आदि उनके काव्य में देखी जा सकती है।
5. भाषा शैली:
मीरा के काव्य में भाषा शैली अत्यन्त मार्मिक एवं सरस व सरल है । उनकी भाषा में सर्वत्र एकरूपता नही है। उन्होंने कही राजस्थानी का प्रयोग किया है तो कही ब्रज और गुजराती का .
अंत में यही कहा जा सकता है कि मीराबाई भक्तिकालीन शिरोमणि कवियों में से एक थीं। उनका काव्य चरमोत्कर्ष की सीमा है।