पाहुड़ दोहा : आदिकाल में अपभ्रंश की प्रमुख रचनाएँ | Pahun Doha in Hindi

Admin
0

 आदिकाल में अपभ्रंश की प्रमुख रचनाएँ:  पाहुड़ दोहा

पाहुड़ दोहा : आदिकाल में अपभ्रंश की प्रमुख रचनाएँ | Pahun Doha in Hindi


पाहुड़ दोहा - 

➽ रामसिंह राजस्थान के रहने वाले थे। उनकी दो सौ बाईस दोहों की छोटी-सी रचना है। पाहुड़ दोहा। इस ग्रन्थ के संपादक श्री हीरालाल जैन के अनुसार जैनियों ने पाहुड़ शब्द का प्रयोग किसी विषय के प्रतिपादन के लिए किया है। कुन्द कुंदाचार्य के सभी ग्रन्थ पाहुड़ कहलाते हैं। पाहुड़ शब्द का अर्थ अधिकार भी लिया गया है। कहीं-कहीं समस्त श्रुत ज्ञान को पाहुड़ कहा गया है। इससे विदित होता है कि धार्मिक सिद्धांत संग्रह को पाहुड़ कहते थे। पाहुड़ शब्द का संस्कृत रूपान्तर प्राभुत किया जाता है जिसका अर्थ है उपहार। इसके अनुसार हम वर्तमान ग्रन्थ के नाम का अर्थ 'दोहा का उपहारऐसा ले सकते हैं।

 

➽ पाहुड़ दोहा के रहस्यवाद पर विचार करते हुए श्री हीरालाल जैन ने लिखा है-"इन दोहों में जोगियों के आगम-अचित-चितदेह- देवलीशिव-शक्तिसंकल्प-विकल्पसगुण-निर्गुणअक्षर-बोध-विबोधवाम दक्षिण मध्यदो पथरविशशिपवनकाल आदि ऐसे शब्द हैं और उनका ऐसे गहन अर्थ में प्रयोग हुआ है कि उनमें हमें योग और तांत्रिक ग्रन्थों का स्मरण आये बिना नहीं रहता है। इनकी भाषा सांकेतिक है और सांकेतिकता में इनकी समानता बौद्ध सिद्धों के चर्यापदों और दोहा कोशों में दिखाई पड़ती है।" वस्तुतः वह युग ऐसा था जिसमें प्रत्येक धर्म के भीतर इसके उदारमना चिंतक कवि पैदा हुए थे जो अपने मत और समाज की रूढ़ियों का विरोध करते हुए मानवता की सामान्य भाव-भूमि पर एक साथ खड़े थे। इसका अन्य मतों से कोई विरोध नहीं था। ये सबके प्रति सहिष्णु थे और उनका विश्वास था कि सभी मत एक दिशा की ओर ले जाते हैं और एक ही परमतत्त्व को विविध नामों से पुकारते हैं।

 

➽ पाहुड़ दोहाकार का कहना है कि देह-मन उपेक्षणीय वस्तु नहीं है। जब देह मंदिर ही उस परमात्मा का निवास स्थान हो तो अन्यत्र जाने की क्या आवश्यकताआवश्यकता तो इस बात की है कि परमात्मा के आवास इस देह मंदिर को स्वच्छ और पवित्र रखा जाए

 

देहा देवलि जो वसईसत्तिहि सहियउ देउ । 

को तहिं जोइय सत्तसिडसिंधु गवेसहिं भेउ ॥ (पा. दो. 53)

 

समरसता का वर्णन करते हुए जिनमें आत्मा और परमात्मा में भेद नहीं रह जाताआत्मा परमात्मा में लीन हो जाती हैऔर आत्मा तथा परमात्मा एक हो जाते हैंरामसिंह लिखते हैं-

 

मणु मिलयिउ परमेसर होपरमेसर जि मणस्य । 

विरिण वि समरसि हुइ रहियपुंज चढ़ावऊँ कस्स ॥

 

पाहुड़ दोहा आदि ग्रन्थों के रचयिता रामसिंह आदि जैन कवियों का परवर्ती हिंदी साहित्य पर पर्याप्त प्रभाव पड़ा। संतों में धार्मिक एकता और रहस्यवाद की प्रवृत्तियाँ जैनों तथा नाथों का प्रभाव समझी जानी चाहिए। सूफियों की व्यापक समन्वयात्मकता के बीजांकुर भी जैन साहित्य में बो दिये गए थे। कबीर आदि में मिलने वाली रूढ़ियों के प्रति प्रखरता भी पाहुड़ दोहा आदि ग्रन्थों में देखी जा सकती है।

Post a Comment

0 Comments
Post a Comment (0)

#buttons=(Accept !) #days=(20)

Our website uses cookies to enhance your experience. Learn More
Accept !
To Top