प्राकृत पैंगलम् : आदिकाल में अपभ्रंश की प्रमुख रचनाएँ
प्राकृत पैंगलम् -
➽ यह ग्रन्थ हिंदी साहित्य के आदिकाल की रूढ़ियों, परम्पराओं और प्रवृत्तियों को समझने के लिए अत्यंत उपयोगी है। भाषाशास्त्रीय दृष्टि से भी यह ग्रन्थ उपादेय है। इस ग्रन्थ में प्राकृत तथा अपभ्रंश के छंदों का संग्रह है।
➽ प्राकृत पैंगलम् में विद्याधर शारंग, जज्जल, बब्बर आदि कवियों की रचनाओं में कई प्रकार के विषय हैं - वीर, श्रृंगार, नीति, शिव स्तुति, विष्णु स्तुति, ऋतु वर्णन आदि। डॉ. हजारीप्रसाद इन कवियों के संबंध में लिखते हैं- परन्तु ये सभी रचनाएँ और संदेश रासक, पृथ्वीराज रासो, कीर्तिलता आदि के कवि उस श्रेणी के कवि नहीं थे जिन्हें आदिम मनोवृत्ति के कवि कहते हैं। वस्तुतः इन रचनाओं में एक दीर्घकालीन परंपरा का स्पष्ट परिचय मिलता है। ये कवि काव्य-लक्षणों के जानकार थे, प्राचीनतम कवियों की रचनाओं के अभ्यासी थे और अपने काव्य के गुण-दोष की तरफ सचेत थे।
➽ विद्याधर काशी कान्यकुब्ज दरबार के एक कुशल विद्वान् मंत्री थे तथा जयचन्द के अत्यंत विश्वासपात्र थे। कविता करने के साथ-साथ ये कविता के परम पारखी भी थे। शुक्ल जी का कहना है कि, “यदि विद्याधर को समसामयिक कवि माना जाये तो उसका समय विक्रम की 13वीं शताब्दी समझा जा सकता है।" प्राकृत पैंगलम् में इनके पद्यों को देखकर यह सहज में अनुमान लगाया जा सकता है कि जयचन्द के दरबार में जहाँ संस्कृत का मान था वहाँ देशी भाषा का भी काफी आदर था।
➽ शारंगधर शाकंभरीश्वर रणथंभौर के प्रसिद्ध शासक हम्मीर देव के सभासद थे। हम्मीर देव का निधन संवत् 1357 है। अतः इनका रचना काल विक्रम की चौदहवीं शताब्दी का अंतिम चरण माना जा सकता है। इनका आयुर्वेद संबंधी शारंगधर संहिता नामक संस्कृत ग्रन्थ अत्यंत प्रसिद्ध है। इसके अतिरिक्त इनकी दो रचनाएँ और भी हैं- ( 1 ) शारंगधर पद्धति, इसमें सुभाषितों का संग्रह है तथा बहुत से शावर मंत्र (2) हम्मीर रासो - यह ग्रन्थ देशी भाषा का वीरगाथात्मक महाकाव्य बताया जाता है। यह रचना आज तक उपलब्ध नहीं हुई है। आचार्य शुक्ल का अनुमान है कि “प्राकृत पिंगल सूत्र में कुछ पद्य असली हम्मीर रासो के हैं।"
➽ विद्याधर तथा शारंगधर के अतिरिक्त प्राकृत पैंगलम् में कुछ अन्य कवियों के पद्यों का भी संग्रह है। इस ग्रन्थ के संग्रहकर्ता लक्ष्मीधर बब्बर 11वीं सदी के कवि हैं और उज्ज्वल 13वीं सदी के कवि हैं। इन कवियों की रचनाओं का संग्रह भी उक्त ग्रन्थ में उपलब्ध होता है। राहुल जी ने इन कवियों की भाषा को पुरानी हिंदी कहा है, जो कि हमारे विचारानुसार ठीक नहीं है। बब्बर राजा कर्ण कलचुरी के दरबारी कवि थे। इनका निवासस्थान त्रिपुरी (आधुनिक जबलपुर, मध्य प्रदेश) था। इनका कोई विशिष्ट ग्रन्थ नहीं मिलता, स्फुट रचनाएँ ही प्राप्त होती हैं। आचार्य शुक्ल उज्ज्वल को एक पात्र मानते हैं जबकि राहुल जी ने उन्हें एक कवि स्वीकार किया है।