पृथ्वीराज रासो के विभिन्न संस्करण और उसका उद्धरण
पृथ्वीराज रासो के विभिन्न संस्करण और उसका उद्धरण
पृथ्वीराज रासो के कई संस्करण मिलते हैं जिनमें मुख्य निम्न हैं
(क) वृहत् रूपांतर -
इसकी कई प्रतियाँ उदयपुर राज्य के पुस्तकालय में सुरक्षित हैं तथा इसके आधार पर काशी नागरी प्रचारिणी सभा द्वारा प्रकाशित संस्करण तैयार किया गया था। इसकी सभी उपलब्ध प्रतियाँ सं. 1750 के पश्चात् की हैं। वैसे नागरी प्रचारिणी सभा वाले संस्करण का आधार सं. 1642 की प्रति को बताया जाता है। इसमें 69 समय (सर्ग) हैं तथा 16306 छंद हैं।
(ख) मध्यम रूपांतर -
इसकी कुछ प्रतियाँ अबोहर के साहित्य सदन, बीकानेर के जैन ज्ञान भंडार और श्रीयुत अगरचंद नाहटा के पास सुरक्षित हैं। पं. मथुराप्रसाद दीक्षित ने इसी संस्करण को प्रामाणिक माना है। इसकी छंद संख्या सात हजार है तथा इसकी सब उपलब्ध प्रतियाँ सं. 1700 के पश्चात् की हैं।
(ग) लघु रूपांतर -
इसकी तीन प्रतियाँ बीकानेर राज्य के अनूप संस्कृत पुस्तकालय में सुरक्षित हैं। यह 19 सर्गों में विभाजित है तथा श्लोक संख्या 3500 हैं। इनमें से कुछ प्रतियों के अंत में ऐसी पंक्तियाँ हैं जिनसे पता चलता है कि इस संस्करण का संकलन किसी चंद्रसिंह नामक व्यक्ति द्वारा हुआ था।
(घ) लघुतम रूपांतर -
यह संस्करण श्री अगरचंद नाहटा द्वारा खोजा गया था। इसमें अध्यायों का विभाजन नहीं है तथा श्लोक संख्या 1300 हैं। डॉ. दशरथ शर्मा ने इसी संस्करण को प्रामाणिक माना है।
उद्धरण कार्य
रासो के उद्धरण कार्य में तीन व्यक्तियों का नाम लिया जाता है- (क) झल्लर ( जल्हन), - (ख) चंद्रसिंह (ग) अमरसिंह |
(क) झल्लर या जल्हन कवि चंदबरदायी का पुत्र था। गजनी जाते समय चंद अपने पुत्र जल्हन को रासो को पूरा करने का आदेश दे गये थे
पुस्तक जल्हन हत्थ वै चलि गज्जन नृप काज |
भारतीय साहित्य में यह कोई नई बात नहीं। कवि बाण की मृत्यु के पश्चात् उसके पुत्र ने कादम्बरी का उत्तरार्द्ध भाग लिखकर उसे पूर्ण किया था। जल्हन की उद्धर्त्ता न समझकर कर्ता ही समझना चाहिए।
(ख) चंदसिंह -
रासो के लघुरूपांतर में 'चंदसिंह उद्धरिय इम यह पाठ उपलब्ध होता है। यह चंद्रसिंह कौन है इसका उत्तर डॉ. उदयनारायण तिवारी अपनी पुस्तक 'वीर' काव्य संग्रह में देते हुए लिखते हैं- "चाँदसिंह अथवा चंद्रसिंह महाराजा मानसिंह के छोटे भाई तथा अकबर के सेनापति सूरजसिंह के पुत्र थे। इस प्रकार चंद्रसिंह मानसिंह का भतीजा था। "
(ग) अमरसिंह-
अमरसिंह द्वितीय भी रासों के उद्धर्त्ता माने जाते हैं। इनका शासनकाल सं. 1775 से 1808 है। इसके उद्धार कार्य को प्रमाणित करने के लिए निम्न दोहा उपस्थित किया जाता है-
छन्द प्रबन्ध कवित्त यति, साटक शाह दुहत्थ ।
लघु गुरु मंडित खंडि यह पिंगल अमर भरत्थ ॥