रीतिकालीन लक्षण ग्रंथ | प्रमुख रीतिकालीन कवि | Ritikalin Lakshan Granth

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 रीतिकालीन लक्षण ग्रंथ, प्रमुख रीतिकालीन कवि

रीतिकालीन लक्षण ग्रंथ | प्रमुख रीतिकालीन कवि | Ritikalin Lakshan Granth

रीतिकालीन लक्षण ग्रंथ- 

रीतिकाल के रीति-ग्रंथों की रचना के आधार रूप में संस्कृत ग्रंथ है और उनमें तीन प्रकार की मुख्य प्रवतियां सामने आती हैं।

 

1. अलंकारवादी आचार्य 

जिसने अलंकार विवेचना को अपना लक्ष्य बनाया हैयथा-केशवजसंवत सिंहभूषणग्वाल आदि । 

2. रस और नायिका चिंतन वादि 

आचार्य चिन्तामणि मतिराम भिखारी आदि । 

3. रसवादी आचार्य- 

कुलपति भिखारी सोमनाथ आदि ।

 

रीति काल के आचार्य की चर्चा के पूर्व इस काल के विभिन्न रीति कवियों की चर्चा भी अपेक्षित है। इनमें कुछ इस प्रकार है

 

1. केशव - 

रीतिकाल के कवियों में रीति के तत्त्वों को सर्वाधिक रूप में अपनाने वाले कवि केशव है। इनके दो लक्षण ग्रंथ रीति ग्रंथ को अनुपम धरोहर है। वे ग्रंथ हैं 'रसिक प्रियाऔर 'कविप्रिया'। केशव ने रसिक में रसराज श्रंगार को गंभीरता से अपनाया है।

 

नवहू रस के भाव बहु तिनके भिन्न विचार । 

सबको केशवराम हुरि नायक है भंगार ।। 

'कविप्रियाअन्य प्रवत्तियों का प्रस्तुत करने वाली रचना है। इस कृति में विविधा का भी आभास होता है- 

 

समझे बाला बालकवि वनतं पंथ अगाध । 

कवि प्रिया केशव करीछमिहै बुध अपराध ।।

 

कविप्रिया में अलंकार और काव्य दोषों को विस्तार से अपनाकर काव्यसम्मत प्रस्तुति की गई है।

 

चिन्तामणि- 

रीतिकाल के प्रमुख रीति कवि है। इनकी लेखनी से काव्य-विवेक कविकुल कल्पतरु', 'काव्य - प्रकाशरसमंजरी और पिंगल रचनाओं का सजन हुआ है। इनमें सभी उपलब्ध नहीं है। सर्वाधिक चर्चित और महत्वपूर्ण ग्रंथ है- 'कविकुलकल्पतर । इसमें काव्य - गुणकाव्यदोषअंलकार आदि को अपनाया गया है।

 

3. जसवंत सिहं- 

इन्होंने 'भाषाभूषणनाम रीति ग्रंथ की रचना की है। इस ग्रंथ पर संस्कृत के ग्रंथ चन्द्रालोक और कुवलयानन्द का प्रभाव दिखाई देता है। इसमें अलंकार रस और नायिका भेदों को अपनाया गया है।

 

4. मतिराम - 

रीतिकालीन रीति कवियों में मतिराम का नाम गौरव से लिया जाता है। इन्होंने कई ग्रंथों का प्रणयन किया है। इनके प्रमुख ग्रंथों में 'रसराजकाव्यशास्त्र के रस की चर्चा के लिए प्रसिद्ध है तो 'ललित ललाम में अंलकार की विवेचना है इनके ग्रंथ हैं

 

1. रसराज 

2. ललित ललाम 

3. साहित्यसार 

4. लक्षण श्रंगार 

 

5. भूषण 

भूषण ओज के कवि है साथ ही इनके काव्य में अंलकारो की अनूठी विवेचना की गई हैं। शिवराज भूषण इनके द्वारा रचित श्रेष्ठ शास्त्रीय ग्रंथ है।

 

6, कुलपति मिश्र 

संस्कृत के विद्वान होने के कारण इनके काव्य पर संस्कृत आचार्यो का प्रभाव होना स्वाभाविक है। कृत काव्य प्रकाश और विश्वास कृत साहित्य दर्पण का स्पष्ट प्रभाव देख सकते हैं। इनकी दो कृतियाँ इस रहस्य और गुण इस रहस्य सामने आती है ।

 

7. सुखदेव मिश्र -

 इनके छः ग्रंथ- कृतविचाररसाविछंदविचारश्रंगार लतापिंगलफाजिल अलि प्रकाश आदि है।

 

8.देव 

इन्होंने कई रीति ग्रंथों की रचना की है जिनमें प्रमुख हैं- भावविलास रसविलासकुशल विलासभवानी विलासकाव्य-रसायन आदि। इनमें रसअंलकार और नायिका-भेद आदि पर गंभीर विवेचना है।

 

9. श्रीपति- 

रीतिग्रंथ लिखने वालों में चर्चित कवि हैं। इन्होंने अनेक रीति ग्रंथों की रचना की है। जिनमें प्रमुख हैं- कविकुल कल्प द्रुमरससागरविक्रम विलासअलंकार गंगाअनुप्रास विनोदसरोजकलिकाकाव्य-सरोज आदि।

 

10. रसलीन- 

इनका पूरा नाम "सैयदगुलाबनबी रसलीन" है। इन्होंने अंग-दर्पण और रसप्रबोध की रचना की हैं। अंग दर्पण के एक सौ अस्सी दोहों में नखशिख वर्णन है। 'रस-प्रबोध में सभी नौ रसों की विशद चर्चा है।

 

11. भिखारी दास- 

इनकी लेखनी से भंगार निर्णयऔर काव्य-निर्णय लक्षण ग्रंथों की रचना हुई है। इनमें रस और नायक-नायिका भेदों को अपनाया गया है।


इस प्रकार रीति काल में संस्कृत ग्रंथों को अपना कर रीति ग्रंथों के रचना की अनूठी परंपरा रही है। इस विस्तत परंपरा को देख कर मन में यह प्रश्न उठना स्वाभाविक है कि क्या रीति ग्रंथों के प्रवर्तक कवि केशव है या अन्य कोई कवि

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