सूरदास जन्म प्रमुख रचनाएँ काव्यगत विशेषताएँ
सूरदास जन्म प्रमुख रचनाएँ काव्यगत विशेषताएँ
सूरदास के जन्म स्थान के विषय में विद्वानों में अनेक मत रहे हैं। इस सन्दर्भ में चार स्थानों का उल्लेख हुआ है। डा० पीताम्बर दत्त बड़थ्वाल गोपांथल (ग्वालियर) को, कवि मियाँ सिंह मथुरा में बल्लभगढ़ के पास को सूरदास का जन्म स्थान मानते हैं फिर भी अधिकांश विद्वान हरिदास के मत से सहमत है। उन्होंने इनका जन्म सीही ग्राम (हरियाणा) में इनका जन्म माना हैं जहाँ तक सूरदास की जन्म तिथि का प्रश्न है, पुष्टि सम्प्रदाय के अनुसार सूरदास स्वामी बल्लभाचार्य से आयु में दस दिन छोटे थे। इस आधार पर सूरदास की जन्म तिथि संमवत् 1535 सुदी 5 मंगलवार ठहरती है। कुछ विद्वानों ने उनका जन्म 1540 में माना है।
सूरदास की प्रमुख रचनाएँ
नागरी प्रचारिणी सभा की खोज के अनुसार सूरदास रचित ग्रन्थों की संख्या पच्चीस बताई जाती है, किन्तु इन रचनाओं में से कुछ अप्रामाणिक है और कुछ सूरसागर की ही अंश है। सूर कृत तीन रचनाएं ही प्रामाणिक मानी जाती है (1) सूरसागर, (2) सूरसारावली (3) साहित्य लहरी ।
सूरदास की काव्यगत विशेषताएं
सूरदास कृष्ण भक्ति शाखा के अन्तर्गत सर्वश्रेष्ठ कवि माने जाते हैं। उनकी इस महान् कीर्ति का मुख्य कारण है उनकी प्रगाढ़ भक्ति भावना ।
भक्ति भावना
सूरदास सगुण ईश्वर के उपासक थे। इसीलिए उनकी भक्ति को सगुण भक्ति कहते हैं। भक्ति उनके लिए साधन नहीं साध्य थी। उनकी भक्ति माधुर्य भाव की भक्ति थी, जिसमें आत्म-समर्पण की भावना अति आवश्यक है।
बाल लीला वर्णन
सूरदास ने बालक श्रीकृष्ण की विभिन्न लीलाओं का अत्यन्त मनोहारी ढंग से चित्रण प्रस्तुत किया है। उन्होंने श्रीकृष्ण की चेष्टाओं, क्रीड़ाओं और विभिन्न संस्कारों का वर्णन विस्तत रूप से किया है। बाल मनोविज्ञान के क्षेत्र में सूरदास का कोई जोड़ नहीं है।
वात्सल्य भाव
सूरदास ने पुरूष होते हुए भी माता का हृदय पाया था। उन्होंने माता यशोदा के हृदय के वात्सल्य भावों की सूक्ष्म अभिव्यक्ति की है। मातहृदय के चित्रण में सूरदास को अद्भुत सफलता प्राप्त हुई है।
श्रंगार वर्णन
सूरदास भक्त कवि होते हुए भी श्रंगार वर्णन के सम्राट कवि माने जाते हैं। श्रंगार प्रेम भी उनकी भक्ति का प्रमुख साधन है। सूरदास के श्रंगार का वियोग पक्ष अधिक उज्जवल एवं हृदयस्पर्शी है। संयोग में प्रिय की समीपता निरन्तर बनी रहती है।
सूरदास का सम्पूर्ण काव्य गीति काव्य है । अतः उन्होंने गेय पदों की रचना की है। छन्दों के स्थान पर उन्होंने विभिन्न राग-रागिनियों का प्रयोग किया है। फिर भी कवि ने कहीं-कहीं पर दोहा चौपाई छन्दों का भी प्रयोग किया है। सूरदास के काव्य में अलंकारों का भी अत्यन्त सहज एवं स्वाभाविक प्रयोग किया गया हैं।