भक्तिकालीन प्रमुख संतकवि | Bhakti Kalin Pramukh Sant Kavi

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भक्तिकालीन प्रमुख कवि

भक्तिकालीन प्रमुख संतकवि | Bhakti Kalin Pramukh Sant Kavi


 

 भक्तिकालीन प्रमुख कवि

(1) कबीरदास- 

कबीर निर्गुण पंथ के प्रवर्तक हैअपने सरोकार एवं तेवर के कारण वह मध्यकाल के सबसे विद्रोहीप्रगतिशील और आधुनिक कवि है। उनके जन्म और जीवन के सम्बन्ध में अनेक जनश्रुतियाँ प्रचलित हैं। उन्हें एक विधवा ब्राह्मणी के गर्भ से उत्पन्न माना जिसे नीरु नामक जुलाहे ने पाला-पोसा। उन्हें रामानंद का शिष्य बतलाया जाता हैमुस्लिमों के अनुसार सूफी फकीर शेख तकी उनके गुरु थे। विद्वानों ने कबीर के जीवन को 1398-1518 ई. तक माना है। कबीर मुख्यतः संत हैतत्वज्ञानी हैंउन्होंने निर्गुण ब्रह्म की भक्ति की । उनकी भक्ति पर वैष्णवों की अहिंसा व प्रपत्ति-भावनाशंकर के अद्वैतवादसूफियों के प्रेमतत्व एवं सिद्धों नाथों का प्रभाव है। कबीर की भक्ति बाह्याचार मूलक न होकर आभ्यंतरिक है। उत्कट रागअनन्यतानिष्कामता इस भक्ति के अनिवार्य अंग है। कबीर शास्त्रज्ञान की जगह स्वानुभूत ज्ञान महत्व देते हैवह प्रेम को पोथी ज्ञान से श्रेयस्कर कहते है- पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुआ पंडित भयान को / ढाई आखर प्रेम का पढ़े सो पंडित होय । "

 

कबीर ने बाह्याचारोंकर्मकाण्डों-मंदिरमस्जिदव्रत-तपरोजा-नमाजमूर्तिपूजातीर्थयज्ञ का विरोध किया है। यही नहीं वह जातिगत भेदभाव और सांप्रदायिक वैमनस्यता का भी विरोध करते हुए मानव मात्र की एकता-समता का प्रतिपादन करते है । यही कबीर की कविता का विद्रोही और प्रगतिशील पक्ष है। वह चाहते है समाज में धर्म के नाम पर जो कुरीतियाँबाह्याडम्बर व्याप्त है वह समाप्त हो। सांसारिक प्रलोभनों में फंसा हुआ व्यक्ति सन्मार्ग पर अग्रसर होवह नैतिक व उदार बने। इसीलिए वह घर फूँकने की बात करते है। सत्य- शील-सदाचार युक्त जीवन पर बल देते है। कबीर एक साहसी कवि हैबहुत कुछ को नकार देने का साहस है उनके पास। निर्भय होकर उन्होंने अपने समय और समाज के अन्तर्विरोधों का सामने रखा। उनके रचनाकार व्यक्तित्व के कई आयाम हैजो उनकी रचनाओं में प्रकट होता है। डॉ0 रामचंद्र तिवारी लिखते हैं- 'गुरु के चरणों में प्रणत कबीरआराध्य के प्रति दास्यसख्यवात्सल्य और माधुर्य भाव की व्यंजना करने वाले भक्त और रहस्यसाधक कबीरसारे भेद-प्रभेदों से ऊपर उठकर समरस भाव में लीन सिद्ध कबीरअखण्ड आत्म-विश्वास के साथ पंडित और 'शेखपर चोट करने वाले व्यंग्यकार कबीरअवधूत योगी की शक्ति और दुर्बलता दोनों से परिचित उसके समर्थ और सर्तक आलोचक कबीरसाधारण हिन्दू गृहस्थ के अंधविश्वासों पर निर्मम प्रहार करने वाले मस्त मौला कबीर और कथनी-करनी की एकतानिर्वैरतानिष्कामताअनासक्ततासंतोषनिग्रहदयाप्रेमअहिंसा का उपदेश देने वाले सुधारक कबीर तथा अनुभव के सत्य को पाथेय बनाकर जीवन-पथ पर आगे बढ़ते हुए किसी से समझौता न करने वाले अक्खड़ कबीर के दर्शन हमें उनकी वाणियों में एक साथ हैं।'

 

कबीर की भाषा सधुक्कड़ी है। भाषा पर उनका जबरदस्त अधिकार हैइसीलिए हजारी प्रसाद द्विवेदी उन्हें भाषा का डिक्टेटर कहते है । 'बीजकउनकी वाणियों का संग्रह हैजिसे उनके शिष्य धर्मदास ने संग्रहीत किया है। बीजक में 'साखी', 'सबदऔर रमैनी है। कबीर मूलतः कवि नहीं है, ‘मसि कागद छुयो नहींकलम गहयों नहीं हाथकहने वाले कबीर कहते हैं, 'तुम जानो गीत हैंवे निज ब्रह्म- विचारअपनी इस स्वीकारोक्ति के बावजूद कबीर हमारे सामने एक समर्थ कवि के रूप में आते हैं। उनकी कविता के कुछ नमूने नीचे दिए जा रहे है. 

 

1. इस तन का दीवा करौंबाती मेल्यूँ जीव

 लोही सींचो  तेल ज्यूँकब मुख देखौंपीव ॥

 

2. बिरह भुवंगम तव बसैमंत्र न लागै कोइ ।

नाम वियोगी ना जिवैजिवै न बौरा होइ ।।

 

3. संतों भाई आई ग्यान की आंधी रे 

भ्रम  की टाटी सबै उड़ानी माया रहै न बाँधी रे || 

दुचिते की दोई भूँनि गिरानी बलेंडा टूटा।

त्रिसना छांनि परी धर ऊपरि दुरमति भाँडा फूटा।।

 

4. कह हिन्दु मोहि राम पियारातुरुक कहैं रहिमाना । 

आपस में दोउ लरि मुयेमरम न काहु जाना।।

 

(2) रैदास- 

मध्यकालीन संतों में रैदास का स्थान महत्वपूर्ण है। वह कबीर की परम्परा में आते हैं। किंतु वह कबीर की तरह विद्रोहीआक्रामकनहीं है। वह शांतसंयत और विनम्र हैकबीर की तरह उनकी वाणियों में डाँट फटकारहास-उपहासव्यंग्य प्रहार नहीं मिलता। उनके जीवन काल के विषय में विद्वानों में मतभेद हैं। संभवतः उनका समय 14वीं- 15वीं सदी रहा है। उनका जन्म काशी में माना जाता है। वह चमार जाति के थे और जूता बनाने का काम करते थे। जिस साक्ष्य उनकी रचनाओं से मिलता है। वह रामानंद के शिष्य और मीरा के गुरु कहे जाते हैं। अनुभूति की तरलता और अभिव्यक्ति की सरलता रैदास की वाणियों की विशेषता है। सिक्खों के धर्म ग्रंथ 'गुरु ग्रंथ साहिबमें उनकी रचनाएँ मिलती हैं। उनकी कवता का एक नमूना है

 

अब कैसे छूटै राम नाम रट लागी । 

प्रभु जी तुम चंदन हम पानीजाकी अंग अंग बास समानी।

प्रभुजी तुम घन बन हम मोराजैसे चितवत चंद चकोरा । 

प्रभुजी तुम दीपक हम बातीजाकी जोति बरै दिन राती। 

प्रभुजी तुम मोती हम धागाजैसे सोने मिलत सुहागा। 

प्रभुजी तुम स्वामी हम दासाजैसी भक्ति करै रैदासा ।

 

(3) नानक-

नानक (1469-1538 ) नानक पंथ के प्रवर्तक हैं। उनका जन्म लाहौर के निकट तलवंडी नामक स्थान पर हुआ थाजो ननकाना साहब के नाम से प्रख्यात है। उनके दो पुत्र हुए श्रीचंद ओर लक्ष्मीचंद। आगे चलकर श्रीचंद ने 'उदासी संप्रदायका प्रवर्तन किया। नानक घुमूंत प्रवृत्ति के थेचारों ओर खूब भ्रमण किया। उनकी रचनाएं गुरु ग्रंथ साहिब में संकलित है। उनकी कविता का एक नमूना नीचे दिया जा रहा हैं- 

 

दुख में दुख नहिं मानै। 

सुख सनेह अरू मय नहिं जाकेकंचन माटी जानै ।। 

निंदा नहिं अस्तुति जाकेलोभमोह अभिमाना। 

हरष सोक ते रहै नियारोनाहि मान अपमाना।। 

आसा मनसा सकल त्यागि कै जग तें रहै निरासा । 

कामक्रोध जेहि परसे नाहि न तेहिं घट ब्रह्म निवासा ।। 

गुरु किरपा जेहि नर पै कीन्हींतिम्ह यह जुगुति पिछानी । 

नानक लीन भयो गोविंद सोंज्यों पानी संग पानी।।'

 

(4) दादू दयाल- 

दादू पर कबीर का गहरा प्रभाव हैउन्होंने 'दादू पंथनाम से अपना एक अलग पंथ चलाया। उनके जन्म और जाति के सम्बन्ध में विद्वानों में मतभेद है। उनका जन्म गुजरात के अहमदाबाद में हुआकुछ लोग उन्हें धुनिया जाति का मानते हैंतो लोग ब्राह्मण। उनका समय 16वीं सदी है। उनके अनुयायियों में रज्जबसुंदरदासप्रागदासजनगोपालजगजीवन जैसे प्रसिद्ध संत हैं। 'हरडे वाणीनाम से उनकी रचनाओं का संकलन संतदास एवं जगन्नाथदास ने किया। 'अंगवधूभी उनकी रचना है। वह प्रतिभाशाली कवि थेनिर्गुण उपासक होते हुए भी उन्होंने ईश्वर के सगुण रूप को भी स्वीकारा है। उनकी भाषा ब्रज हैं जिसमें राजस्थानी एवं खड़ी बोली का मिश्रण है। शैली सरल एवं सरस है। उनकी कविता का एक नमूना द्रष्टव्य हैं

 

भाई रे ! ऐसा पंथ हमारा। 

द्वै पख रहित पंथ गह पूरा अबरन एक आधारा। 

बाद विवाद काहु सो नाहीं मैं हूँ जग थें न्यारा । 

समदृष्टि सँ भाई सहज में आपहिं आप विचारा 

मैंतैमेरी यह मति नाहीं निरबैरी निरबिकारा ।। 

काम कल्पना कदे न कीजै पूरन ब्रह्म पियारा । 

एहि पथि पहुँचि पार गहि दादू सो तब सहज संभारा।।

 

(5) मलूकदास- 

मलूकदास (1574-1682) का जन्म इलाहाबाद (उ0प्र0) में हुआ था। रतन खान और ज्ञानबोध इनकी प्रसिद्ध रचनाएँ हैं। आत्मबोधनिर्गुण ब्रह्म की भक्तिवैराग्य आदि इनकी रचनाओं के मूल विषय है। इनकी भाषा अवधी एवं ब्रज हैजिसमें अन्य बोलियों भाषाओं का भी मिश्रण है।

 

(6) सुंदरदास- 

सुंदरदास (1596-1689) दादू के शिष्य थेइनका जन्म जयपुर में धौंसा में हुआ। संत कवियों में सुंदरदास सर्वाधिक शिक्षित थे। इसी कारण उनकी रचनाओं में एक कलात्मक परिपक्वता दिखलाई पड़ती है। ज्ञान समुद्र और सुंदरविलास उनकी प्रसिद्ध रचनाएँ हैं। तत्वज्ञाननिगुर्णोपासनाविरक्ति आदि इनकी रचनाओं के प्रधान विषय हैं।

 

(7) रज्जब- 

संत रज्जब (1567-1689) दाद के शिष्य हैंइनका पूरा नाम रज्जब अली खाँ था। 'अंगवधूनाम से उन्होंने दादू की रचनाओं को संकलित किया।

 

संत कवियों  की  उपलब्धियाँ -

 

संत कवियों का सबसे बड़ा महत्व भक्ति को सरज-सरल बनाने में है। वे निचली जातियों से आए थेंउनकी जाति-पांति विरोधी और मानवतावादी विचारों से सदियों से अस्पृश्यउपेक्षित वर्ग में एक स्फूर्ति और आत्मविश्वास का संचार हुआ। जातिभेद का विरोध करने वालेराम-रहीम की एकता की बात करने वाले संतों की वाणियों सं समाज में मानववाद का प्रसार हुआ। संत कवियों ने सत्य - शील-सदाचार से युक्तसांसांरिक प्रपंचों से उदासीन एंव कर्मण्य जीवन का संदेश दियाइससे समाज को एक नैतिक जीवन जीने की प्रेरणा मिली। यही नहीं उन्होंने साहित्य को लोक से जोड़ाउनके साहित्य से जहाँ लोक को एक प्रेरणा व शक्ति मिलीवहीं लोक से जुड़कर साहित्य भी समृद्ध हुआ। संत काव्य की एक बहुत की क्रांतिकारी और प्रगतिशील भूमिका रही है।

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