भक्तिकाव्य का महत्व
भक्तिकाव्य का महत्व
भक्ति काव्य हिन्दी साहित्य का स्वर्ण युग है। यह सिर्फ आध्यात्मिक परितोष ही नहीं प्रदान करता, सन्मार्ग पर चलने की, एक उदार - मानवीय समाज निर्मित करने की प्रेरणा भी प्रदान करता है। भक्त कवियों ने भक्ति को सहज-सरल बनाकर उसे शास्त्र-पुरोहित-कर्मकाण्ड - बाह्याचार की जकड़बंदी से मुक्त किया, इससे सामान्य मनुष्य भी भक्ति का अधिकारी बन सका । भक्ति काव्य वर्गगत-वर्णगत-संप्रदायगत भेदभाव के ऊपर मानुष सत्य को महत्व देता है । जिस सत्य शील-सदाचार युक्त जीवन पद्धति की इन कवियों ने वकालत की है वह मनुष्य के जीवन को नैतिक बनाता है। इस काव्य, विशेषकर संत कवियों ने जिस तरह जातिगत भेद भाव को अर्थहीन साबित करते हुए मानव मात्र की एकता-समता का प्रतिपादन किया हैं उससे सदियों से वंचित उपेक्षित वर्ग को एक नया बल मिलता है। सूफी कवियों ने हिन्दू-मुस्लिम की भावात्मक एकता को प्रोत्साहित किया। रामकाव्य से समाज को जीवन-मानवीय सम्बन्धों का आदर्श मिलता है। तुलसी ने विविध प्रवृत्तियों में समन्वय की जो चेष्टा की है, वह अंततः लोक मंगलकारी सिद्ध होता है। कृष्णभक्ति काव्य से समाज में राग-रस का संचार होता हैं।
भक्तिकाव्य ने कला, संगीत को गहरे स्तर पर प्रभावित किया। कृष्ण भक्ति काव्य ने संगीत, विविध राग-रागनियों के विकास में बड़ा भारी योग दिया। भक्त कवियों ने संस्कृत, फारसी को न अपनाकर लोकभाषा को अपनाया, इससे लोक भाषाओं का साहित्यिक विकास होता है। साहित्यिक भाषा के रूप में अवधी और व्रज भक्तिकाव्य की ही देन है। उच्चादर्शों से परिचालित होने के कारण ही भक्ति काव्य इतना प्रेरक और प्रभावी सिद्ध हुआ । भक्तिकाव्य के महत्व को रेखांकित करते हुए प्रेमशंकर लिखते हैं- 'भक्तिकाव्य की लंबी यात्रा का कारण देवत्व नहीं है, इसके विपरीत उसकी मानवीय चिंता है, जो उसे आज भी किसी बिंदु पर प्रासंगिकता देती है, उसे और उसे खारिज कर पाना उनके लिए भी कठिन, जो स्वयं को भक्तिमार्गी कहने से बचना चाहते हैं। भक्तिकाव्य का , समाजशास्त्र है, समय-समाज से उसकी टकराहट जो कभी कबीर की तरह जुझारू दिखाई दे है, और अन्यत्र संयत, पर असंतोष सबमें है। समाजदर्शन है- नए विकल्प की खोज, नए मूल्य संसार की तलाश। रामकृष्ण तो माध्यम हैं, वास्तविक लक्ष्य है, रचना स्तर पर उच्चतर भावलोक की प्राप्ति।
समाजशास्त्र और समाज दर्शन के लिए भक्तिकाव्य ने जिस अभिव्यक्ति कौशल का आश्रय लिया, वह स्वतंत्र चर्चा का विषय है । पर रचना की प्रमाणिकता के लए इन सजग कवियों ने पूरा मुहावरा लोकजीवन से ही प्राप्त किया- भाषा, छंद आदि। भक्तिकवियों में मध्यकालीन लोकजीवन की उपस्थिति और एक वैकल्पिक मूल्य-संसार की तलाश उसकी सामर्थ्य का प्रमाण है। भक्तिकाव्य में समाजदर्शन मिलकर अपने रचना - संसार को ऐसी दीप्ति देते हैं कि उसे कालजयी काव्य कहा जाता है। उसका वैशिष्ट्य यह है कि वह अपने समय से संघर्ष करता हुआ?, उसे पार करने की क्षमता का प्रमाण देता है और लोक को सीधे ही संबोधित करता है, पूरे आत्मविश्वास के साथ। उसका वैकल्पिक भाव - विचार - लोक उसका 'काव्य-सत्य' है, जिसे व्यापक स्वीकृति मिली।'