हिन्दी साहित्येतिहास की परम्परा ( एक )
1 गार्सा द तासी कृत 'इतिहास'
(इस्त्वार द ल लितेरेत्यूर ऐंदुइ ए ऐंदुस्तानी, 1839 )- हिंदी साहित्य के इतिहास लेखन का प्रथम प्रयास एक फ्रांसीसी विद्वान गास द तासी (1794-1878) द्वारा किया गया। फ्रांस के प्रसिद्ध बन्दरगाह मारसेल में जन्में इस अध्येता को फ्रेंच, अंग्रेजी, लैटिन के अलावा फारसी, अरबी, तुर्की, उर्दू और संस्कृत भाषा की भी खासा ज्ञान था। पारसी विश्वविद्यालय में उर्दू के प्रोफेसर गार्सा द तासी ने ‘इस्त्वार द ल लितेरेत्यूर ऐंदुइ ए ऐंदुस्तानी' के नाम से हिंदुई और हिन्दुस्तानी का इतिहास फ्रेंच भाषा में लिखा था। इसके प्रथम संस्करण का प्रथम भाग 1839 ई. में, जिसमें मात्र कवि परिचय था, प्रकाशित हुआ दूसरा भाग कुछ समय पश्चात् 1847 ई. में प्रकाशित हुआ । इस दूसरे भाग में फ्रेंच भाषा में कवियों की रचनाओं के उदाहरण संकलित थे। यह प्रथम संस्करण ग्रेट ब्रिटेन और आयरलैण्ड की ओरिएंटल ट्रांसलेशन कमेटी द्वारा प्रकाशित किया गया था। उर्दू से लगाव होने के नाते इस ग्रंथ में उल्लिखित 738 कवि और लेखकों में से मात्र 72 हिंदी और उसकी बोलियों के कवि माने जा सकते हैं। "इस पुस्तक का द्वितीय संस्करण तीन भागों में प्रकाशित हुआ। प्रथम एवं द्वितीय भाग सन् 1870 तथा तृतीय भाग 1871 में पेरिस से प्रकाशित हुआ। तीनों भागों में क्रमशः एक हजार दो सौ तेइस, एक हजार दो सौ और आठ सौ एक कवियों और लेखकों का उल्लेख है।"
खोज के पश्चात् भी इस ग्रंथ की मूल प्रति उपलब्ध नहीं हो पाई परन्तु सौभाग्य से हिंदी जगत के प्रख्यात विद्वान, डॉ. लक्ष्मीसागर वार्ष्णेय द्वारा तासी के इस ऐतिहासिक ग्रंथ के सभी भागों की मूल भूमिकाओं एवं 358 कवि और लेखकों का परिचय ‘हिन्दुई साहित्य का इतिहास' हिन्दुस्तानी एकेडेमी, उत्तरप्रदेश इलाहाबाद से सन् 1953 में किया गया है।
2 मौलवी करीमुद्दीन एवं एफ. फैलन कृत 'इतिहास'
(तबकातुश्शुअरा 1848)- इस ग्रंथ को मौलवी करीमुद्दीन नामक व्यक्ति ने 1848 में देहली कॉलेज द्वारा प्रकाशित करवाया। इसे ' तबकातुश्शुअरा' अथवा 'तजकिरा - ई-शुअरा - ई-हिंदी' के नाम से जाना जाता है। दुर्भाग्यवश इस ग्रंथ का मूल, अनुवाद अथवा 'इसका कोई संक्षिप्त भाग खोजने पर भी न मिल सका। विभिन्न विद्वानों द्वारा छिटपुट लेखों के आधार पर इस ग्रंथ के विषय में लिखा गया है। इन लेख-निबंधों द्वारा इतना ही ज्ञात हुआ है कि अन्तत: यह पुस्तक तजकिरा-ई-शुअरा -ई-हिंदी' ‘तजकिरा’ अर्थात् जिक्र (चर्चा) मात्र ही है। इस पुस्तक के मुखपृष्ठ पर इंग्लिश में जो विवरण मुद्रित है वो इसके इतिहास (हिस्ट्री) होने की बात कहता है" 'ए हिस्ट्री ऑफ उर्दू पोएटस चीफली ट्रांसलेटेड फ्राम इस्त्वार द ल लितरेत्यूर ऐंदुई ऐ ऐंदुस्तानी', वाई. एफ. फैलन ऐन्ड मौलवी करीमुद्दीन विथ ऐडिशन्स| देहदी कॉलेज, 1848”। हालांकि मूलत: यह ग्रंथ तासी की इतिहास पुस्तक का अनुवाद है परन्तु बिहार शिक्षा विभाग के इंस्पैक्टर वाई. एफ. फैलन ने इसका अनुवाद उर्दू में किया जिसमें मौलवी करीमुद्दीन ने अपनी ओर से बहुत कुछ तोड़ा और जोड़ा है। यह जोड़-तोड़ इतनी है कि स्वयं ता ने अपनी पुस्तक के द्वितीय संस्करण में इसका उपयोग किया है और इसे एक स्वतंत्र ग्रंथ के रूप में मान्यता भी दी है।
3 शिव सिंह सेंगर कृत 'इतिहास'
(शिवसिंह सरोज, 1878) - शिवसिंह सेंगर द्वारा लिखा यह ग्रंथ अपने वृहद कवि संकलन के बतौर अपना महान ऐतिहासिक महत्व रखता है। डॉ. किशोरीलाल गुप्त हालाँकि इसे भी इतिहास ग्रंथ नहीं मानते परन्तु फिर भी वे इसे हिंदी साहित्येतिहास का प्रस्थान बिंदु मानते है।
'शिवसिंह पुलिस के सरकिल इंस्पेक्टर थे और प्राचीन काव्य में इनकी अभिरूचि थी। 'सरोज' में 838 कवियों की कविताओं के प्राय: दो हजार नमूने दिए गए हैं। काव्य संग्रह के उपरांत ग्रंथ के उत्तरार्द्ध में, प्राय: 125 पृष्ठों में सेंगर जी ने 1003 कवियों का जीवन चरित्र भी अकारादि क्रम से दिया है। इन 1003 कवियों में से 687 की तिथियाँ भी दी गई हैं, 53 कवि 'विद्यमान' कहे गए हैं, 263 कवि तिथिहीन हैं। "
अपनी विशाल सामग्री के कारण बाद के इतिहासकारों (जॉर्ज अब्राहम ग्रिर्यसन, मिश्रबंधु) के साथ अब तक भी ‘शिवसिंह सरोज' का महत्व बना हुआ है, लेकिन ठेठ ऐतिहासिक दृष्टि आभाव के कारण अन्ततः शिवसिंह सरोज भी इतिहास ग्रंथ नहीं है। वे ग्रंथ की भूमिका में "भाषा काव्य निर्णय’” शीर्षक से हिंदी भाषा का मूल खोजने का प्रयत्न करते हैं। इसी स्मृति सम्पन्न प्रयत्न चलते वे हिंदी की अपनी चेतना को लेकर विक्रम सवंत् 770 में विद्यमान पुंड कवि तक पहुँच हैं।
4 सर जान अब्राहम ग्रियर्सन कृत 'इतिहास'
(द माडर्न वर्नाक्युलर लिटरेचर ऑफ हिन्दुस्तान, 1889 ) - भाषा – वैज्ञानिक, इतिहासज्ञ और प्राच्य विद्याविशारद के रूप 'सर जॉर्ज अब्राहम ग्रियर्सन (1851-1941) का नाम सर्वप्रसिद्ध है। बिहारी भाषाओं के सात व्यकरण (1883-1887) लिंग्विस्टिक सर्वे ऑफ इण्डिया ( 11 जिल्दों में) जैसे महान और वृहदकाय ग्रंथ के अलावा इन्होंने 'द मॉर्डन वर्नाक्यूलर लिटरेचर ऑफ हिन्दुस्तान' (1889) जैसे ग्रंथ का भी प्रणयन किया। सन् 1886 में डॉ. ग्रियर्सन ने सप्तम अन्तर- राष्ट्रीय प्राच्य विद् सम्मेलन, वियना में हिन्दुस्तान (हिंदी भाषा-भाषी प्रदेश) के मध्यकालीन भाषा साहित्य और तुलसी पर एक लेख पढ़ा था, (मूल लेख- द मिडीवल वर्नाक्यूलर लिट्रेचर ऑफ हिन्दुस्तान विद स्पेशल रेफ्रंस टु तुलसीदास) बहाने समूने हिंदी परिदृश्य पर लिखे गई इस लेख को सम्मेलन एवं उसके पश्चात् भी विद्वानों ने खूब सराहा और उसे अधिक स्थिर रूप देने को कहा। इसी का परिणाम यह हुआ कि ग्रियर्सन ने ‘द मार्डन वर्नाक्यूलर लिटरेचर ऑफ हिन्दुस्तान' लिखा। जिसका प्रथम प्रकाशन 1888 में 'रायल एशियाटिक सोसायटी ऑफ बंगाल' की संख्या एक पश्चात् यह वृहद निबंध पुस्तकाकार रूप में प्रकाशित हुआ। ग्रियर्सन के ग्रंथ का अपना ऐतिहासिक महत्व है।
ग्रियर्सन के ग्रंथ में पहली बार इतिहास बोध को रेखांकित किया जा सकता है। डाँ) लक्ष्मीसागर वार्ष्णेय लिखते हैं "यद्यपि ग्रियर्सन का यह दावा है कि उन्होंने लगभग सभी 952 कवियों और लेखकों की रचनाओं को पूर्ण या आशिंक रूप में, या नमूनों के रूप में देखा था, तो भी, तासी और सेंगर के ग्रंथों की भाँति उनके ग्रंथ में बहुत से कवियों और लेखकों के नाम, जन्म तिथि, निवासस्थान, आदि के साथ अध्यायों के अंत में पूरक अंश के रूप में अथवा विविध शीर्षक के अन्तर्गत दिए गए हैं। इसीलिए उन्होंने अपने ग्रंथ को विधिवत् लिखा गया साहित्येतिहास कहने में संकोच किया है। उसकी सबसे बड़ी विशेषता काल विभाजन है।"
ग्रियर्सन के इतिहास लेखन में कुछ ठोस विशेतषताएं भी हैं जिन्हें स्वीकार करके ही हिंदी साहित्येतिहास की ऐतिहासिकता पूर्ण होती है। दरअसल सर जॉर्ज अब्राहम ग्रियर्सन के पास अपनी व्यक्तिगत खोज और गहन अध्ययनशील प्रवृत्ति के चलते हिन्दुस्तान की भाषा एवं इसके साहित्य को समझने, इसके भीतर बहने वाली विभिन्न धाराओं को जाँचने की प्रखर संभावनाएं मौजूद थीं।
5 मिश्रबन्धु कृत 'इतिहास'
(मिश्रबंधु विनोद, 1913) - इटौंजा, जिला लखनऊ निवासी पं.गणेश बिहारी मिश्र, रावराजा डॉक्टर श्याम बिहारी मिश्र (1873-19 फरवरी 1947) डी.लिट्., साहित्य वाचस्पति पं. शुकदेव बिहारी मिश्र तीनों सगे भाई थे एवं "मिश्र बंधु” नाम से संयुक्त रूप से पुस्तकें लिखा करते थे। दिसंबर 1901 में इन्होंने 'सरस्वती' नामक प्रसिद्ध पत्रिका के एक अंक में 'हिंदी साहित्य का इतिहास' लिखने की बात कही थी। सन् 1900 में काशी नागरी प्रचारिणी सभा ने हस्तलिखित हिंदी ग्रंथों की खोज का कार्य प्रारम्भ किया। 1900 से 1908 तक खोज कार्य के निरीक्षक बाबू श्यामसुंदर दास थे। 1909 से 1916 तक इसके निरीक्षक श्याम बिहारी मिश्र एवं शुकदेव बिहारी मिश्र हुए। इस खोज कार्य से मिश्र बंधुओं को इतिहास लिखने में बहुत सहायता हुई। इस ग्रंथ का प्रथम संस्करण संवत् 1970 (सन् 1913) में प्रकाशित हुआ। उस समय इसमें तीन भाग, 1593 पृष्ठ तथा 3,757 कवियों एवं लेखकों के विवरण थे। कुल मिलाकर 4591 कवियों एवं लेखकों के विवरण समालोचनाओं एवं चक्रों में दिए गए थे। जब तक चतुर्थ भाग निकले, उसके पूर्व ही प्रथम भाग का तृतीय संस्करण, सं. 1986 (सन् 1929) में निकल गया।
इस प्रकार कई स्तरों से कवियों एवं लेखकों के विषय में सूचनाएं संग्रहित करने के पश्चात् ‘मिश्रबंधुओं' ने एक बृहद्वाय ग्रंथ का निर्माण किया जिसे स्वयं उन्होंने 'मिश्रबंधु विनोद' अथव "हिंदी साहित्य का इतिहास तथा कवि-कीर्तन' कहना उचित समझा।
मिश्रबंधुओं के अनुसार हिंदी साहित्य का काल विभाजन
मिश्रबंधुओं ने हिंदी साहित्य के इतिहास को निम्नांकित कालों में विभाजित किया है। विषय-वस्तु के आधार पर यह काल विभाजन 'मिश्र बंधु विनोद' के विभिन्न भागों में व्याप्त है।
पूर्व प्रारंभिक हिंदी सं. 700 से 1347 तक
- चंद पूर्व हिंदी-सं. 700-1200
- रासो काल - सं. 1201-1347
- उत्तर प्रारंभिक हिंदी - सं. 1348 1444
उत्तर प्रारंभिक हिंदी - सं. 1348 1444
- माध्यमिक हिंदी
- पूर्व माध्यमिक- हिंदी - सं. 1444-1560
प्रौढ़ माध्यमिक हिंदी-सं. 1561-1680
- अष्टछाप - 1561-1630
- सौरकाल -1561-1630
गोस्वामी तुलसीदास तथा तुलसीदास की हिंदी -सं. 1631-1680
पूर्व तुलसीकाल- 1631-1645
- माध्यमिक तुलसीकाल - 1646-1670
- अंतिम तुलसीकाल 1671-1680
(मिश्रबंधु विनोद-द्वितीय भाग सं.-1681-1889)
अलंकृत हिंदी
- पूर्वालकृंत प्रकरण- 1681-1790
- पूर्वाकृत हिंदी
महाकवि सेनापति
- सेनापति काल 1681-1706
- बिहारी काल 1707-1720
- भूषण काल 1721-1750
- आदिम देवकाल 1751-1771
- माध्यमिक देवकाल 1772-1790
- उत्तरालंकृत प्रकरण 1791-1889
उत्तरालंकृत हिंदी
- दास काल 1791-1810
- सूदन काल 1811-1830
- रामचंद्रकाल 1839-1855
- बेनी प्रवीन काल 1856-1875
- पद्माकर काल 1876-1889
(मिश्रबंधु विनोद - तृतीय भाग 1890-1955)
अज्ञात काल- उन प्राचीन कवियों का अकारादि क्रम से वर्णन, जिनका काल निर्धारण नहीं हो सका।
परिवर्तन प्रकरण 1890-1925
- परिवर्तन कालिक हिंदी
- द्विजदेव काल 1890-1915
- दयानंद काल 1916-1926
वर्तमान काल- 1926
- वर्तमान हिंदी एवं पत्रपत्रिकाएं 1926- 1945
- पूर्व हरिश्चंद्र काल- 1926-1935
- उत्तर हरिश्चंद्र काल- 1936-1945
- (मिश्रबंधु विनोद - चतुर्थ भाग- सं. 1946-1990)
- पूर्व नूतन परिपट 1945-1960
- उत्तर नूतन परिपाटी 1961-1994
- प्रथम भाग - 1960-1975
- द्वितीय भाग आजकल 1976-1994 तक (सभी तिथियाँ विक्रम संवत् हैं।)
इस प्रकार हम देखते हैं कि अपनी निर्धारित सीमा के भीतर रहते हुए मिश्रबंधुओं ने सम्पूर्ण हिंदी साहित्य का एक पूर्ण चित्र प्रस्तुत करने का प्रयत्न अवश्य किया था। हालाँकि मिश्रबंधुओं से पूर्व जिस तरह ग्रियर्सन ने अपनी मानसिकता के अनुसार एक काल-विभाजन किया था उसी प्रकार मिश्रबंधुओं ने भी हिंदी की क्रमश: विकसित होती हुई स्वाभाविक चेतना को कालानुसार विभाजित किया। काल-विभाजन की यही चेतना आगे चलकर आचार्य शुक्ल के इतिहास में सर्वमान्य रूप ग्रहण करती है।
6 एडविन ग्रीव्ज कृत 'इतिहास'
(ए स्केच ऑफ हिंदी लिटरेचर - एड्विन ग्रीव्स, 1918 ) - इसके पश्चात् एक अंग्रेज विद्वान एड्विन ग्रीव्ज ने 1918 में ‘ए स्केच ऑफ हिंदी लिटरेचर' प्रकाशित किया। अपनी इस पुस्तक में उन्होंने यथासंभव पिछली सारी साहित्यिक सामग्री से सहायता ली। मूल रूप से यह पुस्तक 112 पृष्ठों की एक छोटी-सी रचना है। सम्पूर्ण पुस्तक आठ भागों में विभाजित है (मूल रूप से यह पुस्तक नहीं देखी गई है डॉ. किशोरीलाल द्वारा 'हिंदी साहित्य का रेखांकन' नाम से इसका अनुवाद 1995 में हिन्दुस्तानी एकेडेमी, इलाहाबाद से प्रकाशित हुआ है। ) श्री ग्रीव्ज ने बेहद संक्षिप्तता के साथ इस पुस्तक में हिंदी साहित्य का सामान्य परिचय प्रस्तुत किया है। श्री ग्रीव्ज ने हिंदी साहित्य के इतिहास को पाँच भागों में विभाजित किया है।
1. आदिकाल - सन् 1400 तक
2. रचनात्मक काल - 1400-1580
3. विस्तार काल - 1580-1700
4. स्थिर काल- 1700-1800
5. पुनर्जागरण और परिवर्तनकाल- 1800 से वर्तमान
श्री ग्रीव्ज न केवल भाषा के विषय में बेहद साधारण विचार प्रस्तुत करते हैं अपितु हिंदी साहित्य के जनमान्य महान कवियों विद्यापति, खुसरों, कबीर, सूर और अन्य बड़े कवियों पर बहुत चलते ढंग से विचार करते हैं।
7 एफ.ई. के कृत 'इतिहास'
(ए हिस्ट्री ऑफ हिंदी लिट्रेचर, 1920) - 116 पृष्ठों की यह पुस्तक भूमिका, मानचित्र, संदर्भ ग्रंथ और नामानुक्रमिका के अतिरिक्त हिंदी साहित्य के इतिहास को कुल बारह अध्यायों में प्रस्तुत करती है।
1. हिंदी भाषा और उसकी पड़ोसी भाषाएं
2. हिंदी साहित्य का सामान्य सर्वेक्षण
3. आरम्भिक चारण युग के इतिवृत्त (1150-1400 ई.)
4. आरम्भिक भक्त कवि ( 1400-1550 ई.)
5. मुगल दरबार और उसका हिंदी साहित्य पर कलात्मक प्रभाव (1550-1800 ई.)
6. तुलसीदास और रामसम्प्रदाय (1550-1800 ई.)
7. कबीर के उत्तराधिकारी (1550-1800 ई.)
8. कृष्ण सम्प्रदाय (1550-1800 ई.)
9. चारण और फुटकल साहित्य (1550-1800 ई.)
10. आधुनिक काल (1800 ई.)
11. हिंदी साहित्य की सामान्य विशेषताएँ
12. वर्तमान स्थिति और हिंदी साहित्य का भविष्य