हिन्दी साहित्येतिहास की परम्परा (दो)
1 आचार्य रामचंद्र शुक्ल कृत 'इतिहास'
(हिन्दी साहित्य का इतिहास, 1929)- आचार्य रामचंद्र शुक्ल ( 1884-1941) की इतिहास दृष्टिको अधिकतर मध्ययुग, विशेषकर भक्तिकाल के परिप्रेक्ष्य में ही महत्वपूर्ण माना जाता है। यह अपनी ऐतिहासिकता के साथ सत्य भी है। भक्तिकाल के उदय और उसकी पृष्ठभूमि से लेकर उसकी साहित्यिक आलोचना में आचार्य शुक्ल वस्तुत: अपनी प्रतिभा का समग्र देते प्रतीत होते हैं।
काशी हिंदू विश्वविद्यालय में 1921 ई. से स्नातक और स्नातकोत्तर स्तर पर हिंदी के अध्ययन-अध्यापन का शुभारंभ हुआ। छात्रों के लिए हिंदी साहित्य के एक इतिहास की आवश्य महसूस हुई। आचार्य शुक्ल ने स्वयं स्वीकार किया है कि उस समय उन्होंने छात्रों के उपयोग के लिए कुछ संक्षिप्त नोट तैयार किये थे जिनमें परिस्थिति के अनुसार शिक्षित जन समूह की बदलती हुई प्रवृत्तियों को लक्ष्य करके हिंदी साहित्य के इतिहास के काल विभाग और रचना की भिन्न-भिन्न शाखाओं के निरूपण का एक कच्चा ढांचा खड़ा किया गया था। कार्य में गति आई 'हिंदी शब्द सागर' के समापन से। स्वयं आचर्य शुक्ल के अनुसार "हिंदी शब्द-सागर” समाप्त हो जाने पर उसकी भूमिका के रूप में भाषा और साहित्य का विकास देना भी स्थिर किया गया। अतः एक नियत समय के भीतर ही यह इतिहास लिखकर पूरा करना पड़ा। चन्द्रशेखर के शुक्ल अनुसार आचार्य शुक्ल को ‘हिंदी शब्द सागर की भूमिका के लिए 'हिंदी साहित्य का विकास, लिखकर पूरा करने में पूरे आठ महीने लगे। अन्तत: यह 'विकास' शब्दसागर के साथ जनवरी 1929 ई. में प्राकाशित हुआ "किन्तु इस 'विकास' के कुछ अंशों का प्रकाशन 'नागरी प्रचारिणी पत्रिका' में पहले ही 1928 ई. में ही धारावाहिक रूप से हो चुका था।"
अपने 'हिंदी साहित्य का इतिहास' के बिलकुल आरंभ में वे घोषित तौर पर बता देते हैं कि उनके लिए इतिहास क्या आचार्य शुक्ल लिखते हैं: "जबकि प्रत्येक देश का साहित्य वहाँ की जनता की चित्तवृत्ति का संचित प्रतिबिम्ब होता है, तब यह निश्चित कि जनता की चित्तवृत्ति के परिवर्तन के साथ-साथ साहित्य के स्वरूप में भी परिवर्तन होता चला जाता है। आदि से अंत तक इन्हीं चित्त्वृत्तियों की परम्परा को परखते हुए साहित्य परम्परा उनका सामंजस्य दिखाना ही 'साहित्य का इतिहास' कहलाता है। जनता की चित्तवृत्ति बहुत कुछ राजनीतिक, सामाजिक, सांप्रदायिक तथा धार्मिक परिस्थति के अनुसार होती है। अत: कारण स्वरूप इन परिस्थितियों का किंचित दिग्दर्शन भी साथ ही साथ आवश्यक होता है।' आचार्य शुक्ल मानते हैं कि साहित्य जनता की चित्त्वृत्तियों का संचित प्रतिबिंब होता है, जैसे-जैसे चित्तवृत्ति बदलती है वैसे-वैसे साहित्य के स्वरूप में भी परिवर्तन होता जाता है। साहित्य एवं समाज के इन सामान्तर परिवर्तनों का सामंजस्यपूर्ण आकलन ही 'साहित्य का इतिहास' कहलाता है। साहित्य के इतिहास की उपेक्षा करने का मतलब है, इन संबंधों को जड़ बना देना,
साहित्यिक यथार्थ के वास्तविक स्वरूप की अनदेखी करना। आचार्य रामचन्द्र शुक्ल द्वारा प्रतिपादित हिन्दी साहित्य का काल विभाजन निम्न प्रकार है-
आदिकाल -(वीरगाथाकाल, सं. 1050-1375)
पूर्व मध्यकाल - (भक्तिकाल,सं. 1375-1700)
उत्तर मध्यकाल (रीतिकाल, सं. 1700-1900)
आधुनिक काल -(गद्यकाल, सं. 1900-1984)
2 हिन्दी साहित्येतिहास के अन्य महत्वपूर्ण ग्रन्थ
1. हिंदी साहित्य का इतिहास (1931) - रमाशंकर शुक्ल 'रसाल'
2. हिंदी साहित्य का विवेचनात्मक इतिहास (1932)- सूर्यकान्त शास्त्री ।
3. हिंदी भाषा और साहित्य का विकास (1934)- अयोध्यासिंह उपाध्याय 'हरिऔध'। वर्मा।
4. हिंदी साहित्य का आलोचनात्मक इतिहास (1938)- डा. रामकुमार
5. हिंदी साहित्य की भूमिका (1940)- आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी ।
6. खड़ी बोली : हिंदी साहित्य का इतिहास (1941) ब्रजरत्न दास ।
7. हिंदी साहित्य (1948) - डा. रामरतन भटनागर ।
8. हिंदी साहित्य का सुबोध इतिहास (1952)-गुलाबराय ।
9. हिंदी साहित्य (1952) - आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी
10. हिंदी साहित्य का वृहद् इतिहास (16 भागों में)- सं. सुधाकर पाण्डेय (1960 से)।
11. हिंदी साहित्य का परिचय (1961)-चतुर सेन शास्त्री।
12. हिंदी साहित्य का प्रमाणिक इतिहास (1962) गंगाधर मिश्रा
13. हिंदी साहित्य का सरल इतिहास (1964)- डा. लक्ष्मीसागर वार्ष्णेय ।
14. हिंदी साहित्य का आर्दश इतिहास (1965) - डॉ. रामगोपाल शर्मा 'दिनेश' ।
15. हिंदी साहित्य के अस्सी वर्ष (1954) - शिवदानसिंह चौहान
16. हिंदी साहित्य का प्रवृत्यात्मक इतिहास (1967) - डा. प्रताप नारायण टण्डन ।
17. हिंदी साहित्य का वैज्ञानिक इतिहास (1968)- डा. गणपतिचन्द्र गुप्ता
18. हिंदी साहित्य एक परिचय (1968) - डा. त्रिभुवन सिंह।
19. हिंदी भाषा और साहित्य का इतिहास (1969) डा. भगवतशरण चतुर्वेदी ।
20. हिंदी भाषा का नया इतिहास (1969) डा. रामखेलावन पाण्डेय ।
21. हिंदी साहित्य एक ऐतिहासिक अध्ययन (1969) - डा. रतिभानु सिंह नाहर |
22. हिंदी साहित्य का इतिहास (1970) - डा. लक्ष्मीसागर वार्ष्णेय
23. हिंदी साहित्य का समीक्षात्मक इतिहास (1971)- डा. रामचन्द्र आनंद।
24. हिंदी साहित्य का अद्यतन इतिहास (1971)- डा. मोहन अवस्थी ।
25. हिंदी साहित्य का विकास (1971)-वासुदेव शर्मा।
26. हिंदी साहित्य का मानक इतिहास (1973)- डा. 0 लक्ष्मी सागर वार्ष्णेय ।
27. हिंदी साहित्य का इतिहास (1973) सं. डा. नगेन्द्र ।
28. हिंदी साहित्य का अतीत (1960)- विश्वानाथप्रसाद मिश्र
29. हिंदी साहित्य का इतिहास (1973) प्रताप नारायण टण्डन ।
30. हिंदी साहित्य का इतिहास (1973) डा. राममूर्ति त्रिपाठी ।
31. हिंदी साहित्य का सर्वेक्षण (1977) विश्वंभर नाथ मानव ।
32. हिंदी साहित्य का समीक्षात्मक इतिहास (1982)- डा. वासुदेव सिंह |
33. हिंदी साहित्य का प्रवृत्तिपरक इतिहास (1985)- डा. रामप्रसाद मिश्र ।
34. हिंदी साहित्य का विवेकात्मक इतिहास (1986)- डा. तिलक राज शर्मा।
35. हिंदी साहित्य और संवेदना का विकास (1986)-रामस्वरूप चतुर्वेदी ।
36. हिंदी साहित्य का दूसरा इतिहास (1996)- बच्चन सिंह।
इन सभी इतिहास-ग्रंथों ने युगीन परिस्थितियों के अनुसार हिंदी साहित्य के इतिहास को जाँचने का प्रयास किया। इन साहित्येतिहासों के अलावा अन्य कई-कई ऐसी साहित्यिक कृतियाँ प्रकाश में आई जिन्होंने साहित्य का समग्र इतिहास तो प्रस्तुत नहीं किया परन्तु अपनी ऐतिहासिक चेतना के बल पर हिंदी समाज को गहन इतिहास -बोध अवश्य प्रदान किया। समय-समय पर लिखे ऐसे ग्रंथ एक तरफ जहाँ हिंदी साहित्य की ऐतिहासकता को प्रस्तुत कर रहे थे वहीं अपने नए निष्कर्षों के आधार पर परम्परागत इतिहास बोध को बदल भी रहे थे। नंददुलारे वाजपेयी, राहुल सांकृत्यायन, डा. नगेन्द्र, अज्ञेय, मुक्तिबोध, रामविलास शर्मा, नामवर सिंह, विजयदेवनारायण साही, विद्यानिवास मिश्र, विश्वनाथ प्रसाद तिवारी, रमेशचन्द्र शाह आदि कुछ प्रमुख नाम इस संबंध में लिए जा सकते हैं।