डॉ. रामकुमार वर्मा द्वारा प्रस्तावित काल - विभाजन
डॉ. रामकुमार वर्मा द्वारा प्रस्तावित काल - विभाजन
" आचार्य रामचंद्र शुक्ल के पश्चात् डॉ. रामकुमार वर्मा ने 'हिंदी साहितय का आलोचनातम्क इतिहास' में काल विभाजन को एक नयी दिशा प्रदान करने की चेष्टा की । उनके द्वारा किया गया काल विभाजन निम्नांकित है -
- संधिकाल (संवत् 700 से 1000 वि0 तक),
- चारण काल (संवत् 1000 से 1375 वि0 तक),
- भक्तिकाल (संवत् 1375 से 1700 वि0 तक),
- रीतिकाल (संवत् 1700 से 1700 वि0 तक),
- आधुनिक काल संवत् (1900 से अब वि0 तक),
डॉ. गणपितचंद्र गुप्त ने लिखा है कि ‘’डॉ. रामकुमार वर्मा के काल विभाजन के अंतिम चार कालखण्ड तो आचार्य शुक्ल के ही विभाजन के अनुरूप हैं, केवल वीरगाथाकाल के स्थान पर चारणकाल नाम अवश्य दे दिया गया है, किन्तु इसमें एक विशेषता संधिकाल की है, जो वस्तुतः गुण वृद्धि का सूचक कम एवं दोष वृद्धि का द्योतक अधिक है। " कुछ विद्वानों ने चारणकाल नामकरण को भी असंगत बतलाया है। उनके 'अनुसार उस युग के काव्य रचयिता चारण नहीं, वरन् भाट, भट्ट अथवा ब्रह्मभट्ट थे। इस प्रकार संधिकाल नामकरण के द्वारा रूढि त्याग एवं नवीनता ग्रहण का साहस अवश्य दिखाया गया है, किन्तु उसमें भ्रामकता अधिक है, निश्चयात्मकता कम ।”
डॉ. गणपतिचंद्र गुप्त द्वारा प्रस्तावित काल - - विभाजन
‘’डॉ. गणपतिचंद्र गुप्त ने हिंदी साहित्य का सैद्धान्तिक इतिहास लिखा है। डॉ.गुप्त ने अपने इतिह में काल विभाजन का एक नवीन प्रयास किया है। उनके द्वारा किए गए विभाजन का संक्षिप्त विवरण इस प्रकार है
प्रारम्भिक काल (सन् 1184 से 1350 तक)
मध्यकाल (सन् 1350 से 1857 तक)
- क. पूर्व मध्यकाल (उत्कर्षकाल सन् 1350 से 1500 तक)
- ख. मध्यकाल (चरमोत्कर्षकाल सन् 1500 से 1600 तक)
- ग. उत्तरमध्यकाल (अपकर्षकाल सन् 1600-1857 तक)
आधुनिक काल (सन् 1857 से 1965 तक)
- क. भारतेन्दु युग (सन् 1857 से 1965 तक)
- ख. द्विवेदी युग (सन् 1857 से 1965 तक)
- ग. छायावाद युग (सन् 1920 से 1937 तक)
- घ. प्रगतिवादी युग (सन् 1937 से 1945 तक)
- . प्रयोगवादी युग (सन् 1945 से 1965 तक)
यद्यपि डॉ. गुप्त ने काल-विभाजन की वैज्ञानिक बनाने का भरपूर प्रयास किया, तथापि स्वयं उन्होंने अपने ‘आधुनिक काल' को अनेक दृष्टियों से त्रुटिपूर्ण स्वीकार किया है, यथा- "भारतेन्दु युग एवं द्विवेदी युग में विकसित होने वाली काव्य परम्परा एक ही है, दो नहीं, जैसाकि इस युग विभाजन से भ्रम होता है। सन् 1920, 1937, 1945 में नयी परम्पराएं भी उनके साथ अग्रसर रहती हैं। आदर्शवादी उनके साथ अग्रसर रहती हैं। आदर्शवादी, छायावादी, प्रगतिवादी, पयोगवादी परम्पराएं अन्ततः समानान्तर बहने वाली परम्पराएं हैं, यह दूसरी बात है कि उनका उदय क्रमश: होता है।‘”
अन्य विद्वानों द्वारा प्रस्तावित काल विभाजन
काल विभाजन के जितने प्रयास किए गए हैं, उनमें प्रमुख का उल्लेख किया जा चुका है। अब कुछ ऐसे काल विभाजन भी हैं जो सम्पादित ग्रंथों में दिए गए हैं। हम चाहें तो इन्हें सामूहिक प्रयास भी सकते हैं। ऐसे काल विभाजन भी हैं जो सम्पादित ग्रंथों में दिए गए हैं। हम चाहें तो इन्हें सामूहिक प्रयास भी कह सकते हैं। ऐसे प्रयासों में डॉ. धीरेन्द्र वर्मा द्वारा सम्पादित हिंदी साहित्य विशेष उल्लेखनीय है। इस ग्रंथ में सम्पूर्ण हिंदी साहित्य को तीन कालों में विभाजित किया गया है आदिकाल, मध्यकाल और आधुनिक काल । ऐसा करके इस ग्रंथ में प्रत्येक काल की काव्य परम्पराओं का विवरण प्रस्तुत कर दिया गया है। नागरी प्रचारिणी सभी द्वारा 'हिंदी साहित्य का वृहत् इतिहास' भी इसी प्रकार की विशाल योजना का परिणाम है जो सोलह खण्डों में प्रस्तुत हुआ है। डॉ. नगेन्द्र द्वारा सम्पादित हिंदी साहित्य का इतिहास' भी सामूहिक लेखन का ही परिणाम है, जो इतिहास सामूहिक लेखन के रूप में सामने आए हैं, उनकी अपनी दुर्बलताएं हैं। सबसे बड़ी दुर्बलता इन ग्रंथो में यह देखने को मिलती है कि प्रत्येक काल खण्ड के विवेचन में संतुलन से काम नहीं लिया गया है। लेखकों ने अपनी रूचि के अनुकूल कहीं अधिक विस्तार दे दिया है तो कहीं सामग्री को संक्षेप में समेट कर चलता कर दिया है। दूसरी दुर्बलता यह मिलती है कि अलग-अलग लेखकों ने अपनी मान्यताओं को महत्व दिया है, इसलिए अन्तर्विरोध भी साफ झलकते हैं। अब प्रश्न है कि ऐसी स्थिति में क्या किया जाए ? हमारी दृष्टि में काल-विभाजन न केवल सुविधाजनक होना चाहिए, अपितु वह स्पष्ट और व्यवहारिक भी होना चाहिए। यह सत्य है कि कोई भी काल विभाजन अपने आप में सम्पूर्णता का दावा नहीं कर सकता है, फिर भी ऐसा प्रयास तो किया ही जा सकता है जो सुविधाजनक हो और कम से कम आपत्तिजनक हो।”
सुविधाजनक और उपयोगी काल विभाजन
‘’आचार्य शुक्ल ने जो काल विभाजन प्रस्तुत किया है, वह बावजूद कतिपय असंगतियों के आज भी अपना औचित्य बनाए हुए है। सुविधाजनक काल विभाजन इस प्रकार किया जा सकता है.
1. आदिकाल (सन् 650 से 1350 तक)
2. भक्तिकाल (सन् 1350 से 1650 तक)
3. रीतिकाल (सन् 1650 से 1857 तक)
4. आधुनिक काल (सन् 1857 से आज तक)”