साहित्येतिहासः अर्थ एवं स्वरूप |साहित्येतिहास: अवधारणा एवं परिभाषा | Sahitya Iihaas Ka Arth

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 साहित्येतिहासः अर्थ एवं स्वरूप

साहित्येतिहासः अर्थ एवं स्वरूप |साहित्येतिहास: अवधारणा एवं परिभाषा | Sahitya Iihaas Ka Arth
 

 साहित्येतिहासः अर्थ एवं स्वरूप

सर्वप्रथम यह प्रश्न महत्वपूर्ण है कि साहित्येतिहास क्या है। वे कौन-कौन से तत्व है जो किसी संगठन संरचना को साहित्येतिहास के रूप में परिभाषित करती है। इस संबंध में प्रख्यात साहित्येतिहासकार वार्ष्णेय का मत उद्धृत किया जा सकता है, “साहित्येतिहास व केवल साहित्य का पुरावृत्त अथवा उसके अतीत का इतिवृन्तात्मक विश्लेषण हैन केवल जीवनियों या कविवृत्त का संग्रह हैन केवल स्त्रोतों की खोज हैन केवल भाषा वैज्ञानिक अध्ययन हैन केवल कला पाठालोचना हैन केवल विधाओं और आंदोलनों का विकास क्रम या धारा निरूपण है और न केवल आलोचना है। साहित्येतिहास का उद्देश्य न केवल कलाकारों को जन्म देना हैन संस्कृति का प्रचार करना है और न अध्यापक बनाना है। उस लम्बे उदाहरण के पश्चात् यह तथ्य निश्चित हो जाते हैं कि अन्ततः साहित्येतिहास क्या नहीं है जब एक बार यह तथ्य निश्चित हो जाए कि साहित्येतिहास क्या नहीं है तो वास्तविक अर्थों में साहित्येतिहास क्या है यह जानना कंचित सरल जान पड़ेगा।

 

साहित्येतिहास: अवधारणा एवं परिभाषा

 

इकाई के पूर्व भाग में हमने देखा कि साहित्येतिहास का स्वरूप निर्धारित करते समय हमें किन-किन तथ्यों को मूलवश साहित्येतिहास नहीं समझ रखना चाहिए। उपरोक्त विश्लेषण के किया जा सकता है कि साहित्येतिहास की मूल अवधारणा क्या है। पश्चात् निश्चित

 

(क) साहित्येतिहास की अवधारणा - 

अपने विश्लेषण को आगे बढ़ाते हुए श्री वार्ष्णेय लिखते हैं'साहित्येतिहास मानव जीवन की ऊर्जाउसके सूक्ष्म स्फुलिंगउसके चेतना के व्यपक ज्ञान की एक विशिष्ट होने के कारण उसका अपना स्वतंत्र अस्तित्व सर्वोच्च साधन है। वह एक ऐसी खोज का माध्यम है जिससे मानव मन का वह पक्ष ढूंढा जाता है जो हमारे अस्तिचर्ममय अस्तित्व से उपर हैं। मैं साहित्येतिहास को ज्ञान की ऐसी विधा मानता हूँ जो कृतियों के अध्ययन द्वारा निरंतर परिवर्तनशील जीवधारियों का सार्वभौम के भीतर विकास (जैविक विकास नहीं) स्थिर करती है।” इस प्रकार हम देखते हैं कि साहित्येतिहास ने ज्ञान की एक ऐसी शाखा के रूप में अपना विकास किया है जिसके अन्तर्गत साहित्य के माध्यम से मानव की समग्र वैचारिक एवं मनोगत चेतना के विकास का अध्ययन संभव है। प्रख्यात विद्वान श्री नलिन विलोचन शर्मा ने लिखा हैसाहित्येतिहास ‘”नामों की तालिका मात्र नहीं है। वह केवल घटनाओं और तिथियों की भी सूची नहीं है औरसाहित्यिक इतिहास लेखकों की ऐसी तिथिमूलक तालिका भी नहीं हैजिसमें उनकी कृतियों का विवण और सारांश मात्र है। साहित्यिक इतिहासकार के लिए यह तो आवश्यक है ही कि उसे प्राग्भावी साहित्य का पाठ सुलभ होक्योंकि साहित्यिक इतिहास तब तक लिखा ही नहीं सकता जब तक समृद्ध पुस्तकालय और सुव्यवस्थित सूचीपत्र न हो किन्तु यदि साहित्यिक इतिहासकार चाहता है कि स्वयं उसकी तिथिमूलक सूचीपत्र से कुछ अधिक भिन्न होतो उसे कार्य कारण संबंध और सातत्य का ज्ञानसांस्कृतिक परिवेश का कुछ बोध और उस व्यवस्था में यत्किंचत् प्रवेश होना ही चाहिएजिसमें अंशीभूत प्रवेश होना ही चाहिएजिसमें अंशीभूत कलाएँ अशीभूत सभ्यता से संबद्ध रहती है।

 

(ख) साहित्येतिहास की परिभाषा - 

साहित्येतिहास की अवधारणा को निश्चित करने के पश्चात् अध्ययन की उपयोगिता के लिए आवश्यक है कि साहित्यिक इतिहास के स्वरूप का निर्धारण भी आवश्यक। इस संबंध में यह भी महत्वपूर्ण है कि साहित्येितिहास की एक निश्चित परिभाषा का निर्धारण एवं विशलेषण किया जाए। इसी आधार पर साहित्येतिहास का स्वरूप स्पष्ट किया जा सकता है। विद्यार्थियों के अध्ययन को ध्यान मे रखकर हम कुछ सर्वमान्य परिभाषाओं को उद्धृत कर रहे हैं। इन्हीं परिभाषाओं के विश्लेषण से हम साहित्येतिहास का स्वरूप निश्चित कर सकेंगे। आचार्य रामचंद्र शुक्ल – “जबकि प्रत्येक देश का साहित्य वहाँ की जनता की चित्तवृत्ति का संचि प्रतिबिम्ब होता हैतब यह निश्चित है कि जनता की चित्तवृत्ति के परिवर्तन के साथ-साथ साहित्य के स्वरूप में भी परिवर्तन होता चला जाता है। आदि से अंत तक इन्हीं चित्तवृत्तियों की परंपरा को परखते हुए साहित्य परंपरा के साथ उनका सामंजस्य दिखाना ही 'साहित्य का इतिहासकहलाता है। "

 

"किसी भी भाषा के साहित्य का इतिहास-लेखक उस भाषा के साहित्य के विषय में भाषा वैज्ञानिक गवेषणा पाठालोचनसम्पादनसांस्कृतिक चिंतन की व्याख्याओंसमीक्षाओंसमाज की परिवेशगत प्रवृत्ति आदि सभी अध्ययन प्रणालियों का उपयोग करता है और उसके प्रसाद का निर्माण इसकी नींव के बिना संभव नहीं है। परिभाषाओं के आलोक में साहित्येतिहास की जो तस्वीर सामने आती है उसे अतीत और वर्तमानरूप और वस्तु के परम्परागत निष्कर्षों की कसौटी पर चर्चा का केन्द्र नहीं बनाया जा सकता। साहित्येतिहास में रचनाओं का मूल्यांकन रचनाकार की रचनाशीलता के संबंध में जीवन की वास्तविकता की मींमासापरम्परा का विवेचन और सांस्कृतिक खोज का काम होता है। " युग की सामाजिक

 

इस प्रकार हम देखते हैं कि विभिन्न विद्वानों ने साहित्येतिहास की अलग-अलग परिभाषाएँ निश्चित की है जिससे अध्येता को साहित्येतिहास के स्वरूप का ज्ञान प्राप्त होता है।

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