वैज्ञानिक -तकनीकी अनुवाद की समस्यायें
वैज्ञानिक -तकनीकी अनुवाद की समस्यायें
शब्दों में तो विशेष संकल्पना भरी होती है। वे ही उसके बीज होते हैं परंतु लक्ष्य भाषा में तनुरूप अनुषंगिक व्याकरणिक इकाइयाँ भी होती हैं । संप्रेषण लाने हेतु वाक्य गठन पर भी ध्यान देना जरूरी है जैसे कि हम परिचित हैं, अंग्रेजी में वाक्य बहुत लंबे रखने की परंपरा है । हिंदी में ऐसा नहीं अत: एक अंग्रेजी वाक्य को हिंदी में वैज्ञानिक तथ्य व्यक्त करने के लिए प्रस्तुत करते समय सर्वनाम, विशेषण एवं असमापिका समापिका क्रियाओं का प्रयोग एकाधिक बार करना होता है । हिंदी में लिंग निर्धारण एक ओर समस्या है। तकनीकी वैज्ञानिक विषय तो क्लीव होते हैं या अप्राणिवाचक उनको हिंदी की बाइनरी लिंग प्रणाली में ढालना होता है हाल ही में उद्भावित स्पुटनिक, कंप्यूटर, माउस, इंटरनेट, फेसबुक, इन शब्दों का यादृच्छिक लिंग निर्धारण करना बड़ी समस्या है । वह लोक प्रचलन से भिन्न नहीं हो सकती मूल का भी वचन/लिंग अनुकरण अनुवाद में संभव नहीं अतः अनुवादक को स्वविवेक से मार्ग निकालना होता है उसी प्रकार अनुवाद में शैली का चुनाव करते समय समान शैली लें या रुढ़ शब्द व्यवहार करे । संस्कृत के अनुसार चलें या उर्दू या देशज प्रयोग करें । इस तरह की व्याकरणिक समस्याओं को लांघ कर चलना पड़ता है ।
अनुवाद बड़ी चुनौती प्रस्तुत करता है , यह ललित साहित्य के अनुवाद से भी बढ़ कर कलात्मक भाषा में किया गया कार्य है । अनुवाद में वह स्तर बनाना बहुत बड़ी चुनौती है यहाँ अनुवादक विषय की गहनता के साथ-साथ भाषा के लावण्य से भी रू-ब-रू होता है यहाँ बोधगम्यता से आगे बढ़कर साहित्यिक स्तर तक पहुँचना पड़ता है यह अनुवाद की सीमा नहीं, शक्ति निर्धारित करता है .
विज्ञान सामग्री प्रकाशन की सुविधा होती जा रही है। एक ओर भारतीय भाषाओं में अपने अनुसंधान लब्ध परिणामों अथवा कार्यक्रम संबंधी सूचनाओं या सेमिनार पेपर को हिंदी में लिखने का प्रोत्साहन नहीं पाते अभी भी यथेष्ट प्रयोगजनित अभ्यास न के कारण वे लोग हिंदी व्यवहार नहीं करते संकोचवश वे अंग्रेजी में लिखते हैं अनुवाद में विज्ञान के जानकार कहाँ हैं जो दक्ष अनुवाद कर सकें । अतः अनुवाद में श्रेष्ठ वैज्ञानिक साहित्य नहीं आ पाता है । बहुत औसत दर्जे का काम हिंदी पाठकों को मिल पाता है । जो होता भी है उसे वृहत्तर पाठक वर्ग नहीं मिलता सीमित रहने को वैज्ञानिक आज भी मन नहीं बना पाता । वह विश्व की प्रसिद्ध पत्र-पत्रिकाओं, प्रकाशन हाउसों तक अपना काम भेज देता है कहीं रोड़ा, कहीं कांटा, कहीं ऊंचा नीचा (ऊबड़-खाबड़ ) हर तरह की जमीन मिलती हैं । सर जे. सी बोस जैसी राष्ट्रीय स्वाभिमानी मेधा ही भाषा में काम करने का मन बना पाती हैं । वहाँ पर पीढ़ी दर पीढ़ी वह परंपरा भी मजबूत हो रही है ।
मशीनी अनुवाद
कंप्यूटर आने के बाद आदमी उससे बहुत आशा और आकांक्षा करने लगा है । उसकी क्षमता तो सीमित लगती है, परंतु संभावनाएँ असीम हैं । टंकण का कार्य आदमी बोल कर करने लगा है। आवाज पकड़ता है तो उससे आगे भाषा भी पकड़ेगा । इसी सिद्धांत पर कंप्यूटर का उपयोग अनुवाद में करने की बात आयी । यह सच है कि वैज्ञानिक नियम कंप्यूटर में डाल कर शब्दावली के नियमानुरूप अनुवाद स्वत: कंप्यूटर कर सकता है । मनुष्य कुछ डेटा उसमें डालता है । अर्थ के लिए कुछ प्रोग्रामिंग किया जाता है । ज्यों-ज्यों सामग्री आ जाती है यह स्वचालिग कंप्यूटर रूपांतरण कर देता है । यहाँ मनुष्य डेटा भरने का काम करता है । बाकी प्रक्रिया स्वतः होने लगती है । मनुष्य को अनुवाद कार्य में कुछ नहीं करना ।
मानव नियंत्रित मशीनी अनुवाद में तीन सोपान हैं :
ए) पाठ का विश्लेषण (Analysis of text )
बी) अंतरवर्ती प्रक्रिया (Intermittent process)
सी) प्रजनन (Generation)
इस प्रकार अनुवादक मशीन में पाठ को फीड किया जाता है । विविध व्यापक स्तरों पर उसे विभाजित करते हैं इसके बाद प्रक्रिया में इकाइयों में विभक्त करते हैं लक्ष्य भाषा को बराबर उत्पन्न कर पाठ निर्माण करते हैं । यह (Output ) कहलाता है । यह काम पहले जर्मन, फ्रेंच, रूसी आदि भाषाओं में शुरू हुआ है।
मशीनी अनुवाद के सोपान हैं :
स्रोत भाषा पाठ, स्रोत भाषा पाठ विश्लेषण, लक्ष्य भाषा पाठ प्रजनन संश्लेषण, लक्ष्य भाषा पाठ भारत में मशीनी अनुवाद के लिए भारतीय प्रौद्योगिक संस्थान, कानपुर में 'अक्षरा भारती' के अंतर्गत काम शुरू हुआ । भारतीय भाषाओं में पार्सर (पद व्याख्या) और प्रजनन ( Generator) का विकास कर विभिन्न भाषाओं के बीच अनुवाद करने का प्रयास हुआ ।' पाणिनीय के कारण पार्सर' का विकास हुआ । इस प्रकार भारतीय भाषाओं में परस्पर मशीनी अनुवाद के संदर्भ में सैद्धांतिक पृष्ठभूमि तैयार हुई | 1995 ई. में हैदराबाद युनिवर्सिटी के सहयोग से तेलुगु - हिंदी, कन्नड - हिंदी, पंजाबी हिंदी, बंग्ला - हिंदी, मराठी - हिंदी का विकास हुआ । ये अनुसारक LINUX प्लेटफार्म पर तैयार किये गए ।
भारत में अनुवाद का क्षेत्र अधिक है । सक्रिय राजभाषा में जरूरत महसूस हो रही है । अत: मशीनी अनुवाद का विशेष विकास CDAC, पुणे में चल रहा है । कार्यालयी कामकाज को विशेष ध्यान में रखकर मंत्रा(Machine Assisted Translation) का विकास हुआ है । इसी प्रकार 'आंग्लभारती' के अंतर्गत भारतीय भाषाओं में साफ्टवेयरों पर सीडक, पुणे एवं अन्य अनेक प्रौद्योगिक संस्थानों में तेजी से विकास कार्य चल रहा है ! इसमें यूएनएल (Universal Networking Language) के माध्यम से हिंदी राष्ट्रसंघ की भाषाओं से जोड़ने का काम चल रहा है। हिंदी से (UNL) में परिवर्तन के लिए और (UNI) से हिंदी में परिवर्तन के लिए (Enconverter) तैयार हो रहे हैं
जापान ने इस क्षेत्र में प्रगति कर मशीन पर मौखिक अनुवाद की ओर कदम बढ़ाये हैं । जापानी से हिंदी, अंग्रेजी, चीनी आदि सात भाषाओं में बोलते बोलते अनुवाद की पद्धति पर्यटन क्षेत्र में विकसित हो रही है । इसका फिलहाल प्रयोग पर्यटन कार्यक्षेत्र में होगा इसमें वाक् अभिज्ञान (Sheeeh recognition) प्रमुख है । यह कार्य सीडाक पुणे में भी प्रगति पर है। उच्चारित पाठ को मशीन लेकर टाइप कर लेती है । हिंदी में यह 80-85% तक सफलता प्राप्त कर चुका है यह साफ्टवेयर बजार में उतारने का प्रयास हो रहा है। कंप्यूटर टाइपिंग में इस सफलता के बाद 'युनिकोड' की तरह फॉट खोलने की समस्या का समाधान होने की दिशा में बढ़ रहे हैं ।
इस प्रकार देख रहे हैं कि कंप्यूटर के आगमन से अनुवाद के क्षेत्र में काफी गति की संभावना बढ़ रही है । इससे ज्ञान-विज्ञान के साथ ललित साहित्य के अनुवाद को अगली पीढ़ी के संधान में सफलता पायी जा सकेगी । सांस्कृतिक जटिल पाठ की समस्या सुलझा लेने की संभावना है । पहले लगा कि हम पिछड़ रहे हैं परंतु विश्व के साफ्टवेयर बजार में महत्वपूर्ण उपस्थिति दर्ज कराने के बाद हमें विश्वास हो गया कि इस आधुनिकतम प्रणाली के जरिये अनुवाद के विविध क्षेत्रों में सफलता पाना कठिन नहीं होगा । समस्या समाधान और सुविधा प्रदान तो अनुसंधान के प्रमुख कार्य हैं । मशीनी क्षेत्र का तकनोक्रेट नित नये आविष्कार करने में जुटा है। आशा है वह दिन दूर नहीं होगा जब विश्व में भारतीय मशीनी अनुवाद अपनी धाक जमा सकेगा ।
वैश्वीकरण के दौर में ये मशीनी कार्य हमें सागर लांघने में मदद करेगा अब सागर यात्रा से माल ही जाता है । बुद्धि और चेतना की यात्रा तो कंप्यूटर इंटरनेट ट्विटर पर हो रही हैं । अतः व्यावसायिक वैश्वीकरण से बढ़ कर मानव का सांस्कृतिक एवं चेतना के स्तर पर सौहार्द पूर्ण बंधुताभावापन्न मेलजोल संभव हो सकेगा। मशीनी अनुवाद की महत्वपूर्ण भूमिका दिन पर दिन बढ़ती जा रही है ।
कार्यालयीन अनुवाद :
आजादी के बाद हमने अपने कामकाज (Office Business) के लिए हिंदी को राजभाषा और (अब) 22 भाषाओं को आठवीं सूची बना कर राज्यभाषा के रूप में स्वीकारा है । जब तक सब स्वीकार न कर लें तब तक अंग्रेजी भी कामकाजी भाषा के रूप में चलती रहेगी। मगर शुरू में तो हिंदी में कामकाज का किसी को कोई अनुभव न था । अतः अंग्रेजी ही चलती रही। पर हिंदी को अंग्रेजी का सहारा देकर कार्यालयी कामकाज की भाषा बनाने का प्रयास चला । अत: अनुवाद पर बल दिया गया । एक ओर अनुवाद प्रशिक्षण चला दूसरी ओर शब्दावली आयोग बना । इन दोनों के सहयोग, तालमेल एवं उद्यम से देश भर में अनूदित सामग्री तथा प्रशिक्षित अनुवादकों का प्रयोग होने लगा । हिंदी भाषी प्रदेशों तक में यह कार्य पूरे एक आंदोलनात्मक ढंग से करना पड़ा है। तब जाकर स्थिति सुधरी । अहिंदी भाषी क्षेत्रों में तमिलनाडु में कार्यालयीन हिंदी को कदम-कदम पर कठिनाई का सामना करना पड़ा। जम्मू-कश्मीर में तो संविधान तक का हवाला देकर बचा जा रहा है ।
यहाँ स्मरण रखना होगा कि भाषागत यह संशोधन केंद्रीय सरकार के कार्यालयों, संघ के मंत्रालयों, रेल, रक्षा, वित्तीय संस्थान (बैंक) आयोग, विभागों आदि में सर्वत्र अपेक्षित है । इसके अलावा न्यायपालिका, संसद, हर प्रकार के प्रशासनिक विधिक एवं अन्य सरकारी कामकाज के लिए हिंदी में कार्य जरूरी हो गया है । अतः क्रमशः इसे लागू करने हेतु अधिक से अधिक अनुवाद करने जाने लगा । पिछले दिनों संसदीय राजभाषा समिति के संयोजक सांसद डा. प्रसन्न पाटशाणी ने कहा है - हमारे देश में राजभाषा के रूप में हिंदी और राज्यों में राजभाषा दोनों की प्रगति और उपयोग जरूरी है । पिछले आधी सदी में बारह लाख शब्दों का अनुवाद बड़ी उपलब्धि है। सरकारी स्तर पर अनुवाद कर हर क्षेत्र में द्विभाषिक स्थिति संभव हो गई है ।
सरकारी कार्यालयों में तकनीकी एवं गैर तकनीकी दोनों तरह का अनुवाद होता है । कुछ में तकनीकी काम अधिक होता है - रक्षा, पेट्रोलियम, रसायन, कृषि, विधि, ऊर्जा आदि के कार्यालय दो तरह का कार्य करते हैं ।
1) प्रशासनिक - इनमें ज्यादातर फाइल बनाना, प्रशासन संबंधी कागजी काम करना आदि प्रमुख होता है इसमें अधिकारी और कर्मचारी एक दूसरे हेतु पत्र प्रस्तुत करते हैं, इनमें मुख्यतः पत्र,अर्धसरकारी पत्र, पृष्ठांकन, ज्ञापन या कार्यालय ज्ञापन, अधिसूचना, संकल्प, आदेश, कार्यालय आदेश, अंतर्विभागीय टिप्पणी, (तार भेजना अब बंद हो गया है) निविदा, करार, विज्ञापन आदि आते हैं प्रशासनिक भाषा में पर्याय नहीं होते । प्रत्येक शब्द का प्रयोग विशेष प्रयोजन से होता है । जैसे -Order, Instruction, Direction तीनों भिन्न भाव रखते हैं । अतः इनके अनुवाद में -
'आदेश' (किसी अधिकार या शक्तिवश देते हैं 'आदेश, निर्देश' (यह औपचारिक स्थिति में कार्य पूरा करने के लिए देते हैं)
'मार्ग दर्शन' - काम पूरा करने हेतु दिशा संकेत इनमें भिन्न भिन्न लक्ष्य स्पष्ट है उसी प्रकार हम देखते हैं-
A) Sanction
B) Approval
C) Pearmisson
तीनों का भिन्न आशय होता है इनके लिए क्रमश: ए) मंजूरी बी) अनुमोदन सी) अनुमति अनुवाद में प्रयोग करते हैं । सूक्ष्म अंतर अनुवाद में परिलक्षित हो रहा है । उसी प्रकार -(Dismissal, Removal, Termination, Discharge) के अनुवाद में सूक्ष्म अंतर है । वह क्रमश: बरखास्तगी, निष्कासन, समाप्ति और सेवा - मुक्ति में देख सकते हैं । इन चारों को एक दूसरे में अदल बदल नहीं कर सकते ये अपना विशेष अर्थ व्यक्त करते हैं और उचित संदर्भ में इनका व्यवहार किया जाता है ।
अंग्रेजी के शब्दों का अनुवाद संदर्भ ले कर किये बिना उलट फेर हो जाता है। मंत्रालय के एक भाग को Section कहते समय हिंदी में 'अनुभाग' लिखते हैं। जब कि रेलवे में 'सेक्शन' शब्द का प्रयोग उपखंड होगा । (Division) शब्द प्रभाग / अनुभाग इस प्रकार अनुवाद में विशेष कर कार्यालयी अनुवाद में तीन-चार विशेष ध्यान देने की बातें होती हैं ।
1) सबसे प्रमुख तो यह है कि सर्जनात्मक साहित्य भिन्न होता है । यह भावना प्रधान नहीं होता ।
2) यह औपचारिक होता है । इसमें व्यक्तिगत अभिरुचि या अभियोग अथवा अनुयोग को स्थान नहीं रहता । अनुवाद में यह दृष्टि जरूरी होती हैं ।
3) बकरी के बच्चे का क्लोन बना कर हम दूसरे पदार्थ से बकरी का बच्चा पैदा करते हैं । इसमें बकरी के सारे गुण होते हैं । कार्यालयीन सामग्री के अनुवाद में वही पूर्णता होती है । स्वतंत्रता नहीं मिलती गुण-विभाग सब मूल के अनुसार है ।
4) कार्यालयीन भाषा के अंग्रेजी रूपों का हिंदी अनुवाद करते समय हिंदी की सांस्कृतिक विशेषताओं पर ध्यान रखा जाना जरूरी है (उदाहरणार्थ - You- आप । कार्यालय में कभी तुम का प्रयोग नहीं किया जाता ) उसी तरह He आदरार्थ में 'वे' अनुवाद कर वाक्य बहुवचन में होगा
5) भावुकता रहित भाषा मिलेगी । अनुवाद में इसका ध्यान रहे । अपनत्व या आत्मीय भाववाली भाषा न ले कर निरपेक्ष और निष्पक्ष भाषा में अनुवाद करना जरूरी है ।
6) कार्यालय में प्रशासनिक काम-काज होता है इसके लिए भारत सरकार के तकनीकी एवं वैज्ञानिक आयोग ने निश्चित शब्दावली प्रस्तुत कर उस शब्दावली का प्रयोग करना बाध्यतामूलक हो गया है । इस प्रकार अनुवाद कार्य सारे देश में एक स्तर पर होगा। संप्रेषण में कोई संदेह या भिन्नता नहीं रहेगी
आज देश भर में गृहमंत्रालय द्वारा सरकारी कर्मचारियों के लिए कार्यालयी अनुवाद सिखाने की व्यापक व्यवस्था हो चुकी है । देश भर के विश्वद्यिालयों, कालेजों में विभाग खुले हैं, हिंदी विभाग के अंतर्गत कार्यालयीन हिंदी पढ़ाने की सुविधा हुई है । पत्राचार पाठ्यक्रम हैं इस प्रकार कार्यालयीन अनुवाद आज समस्या प्रधान नहीं रह गया । अब तो बस मानसिकता की कमी है। सरकारी प्रोत्साहन भी भरपूर है। वैश्वीकरण के दौर में हमें हिंदी के वैश्विक रूप की चिंता करते समय इस आंतरिक दुर्बलता को शीघ्र दूर कर लेना होगा । बहुत देर करने पर विश्व हमें पीछे छोड़ आगे निकल जायेगा और हम या तो एक किनारे हो जायेंगे या अन्य लोगों की जेब में चले जायेंगे । अतः कार्यालयीन कामकाज की हिंदी अनुवाद के माध्यम से हो या जैसे हो तरह अपना लेना देश हित में है ।
चाहे इस कार्यालयीन अनुवाद को कृत्रिम सेतु कहें, पर इसने हमारी बहुत बड़ी सांवैधानिक जरूरत को पूरा किया है भाषाई असमंजस की घड़ी में हमें कामकाज को आगे बढ़ाने में पूरी मदद की है । इन पचास वर्षों में हम हाथ से और साठी कलम से लेखन कार्य के दौर से आज 'स्पीच रीडर' के दौर तक गुजर चुके हैं। कार्यालयों को तेजी से बदलते दौर में काफी कुछ तनाव झेलना पड़ा है । आजादी के बाद हिंदी का कोई कार्यालयीन ताना-बाना न होने से यह नया रास्ता निर्माण करना पड़ा । उसमें फिर आधारभूमि हमेशा परिवर्तित होती रही । उसमें पुनः संशोधित करते रहे । इस प्रकार के बदलावों को सहते हुए कार्यालयों की क्षमता पर प्रभाव न पड़े। हाँ, कभी-कभी झुंझलाहट होती है. - "क्या ये स्टील मील बंद कर राजभाषा का शिक्षण-प्रशिक्षण किया जाय ?" फिर धीरज से काम लेकर अंग्रेजी से हिंदी की पटरी पर आने का काम आगे बढ़ने लगा । कुछ लोग समझते हैं आज भी यह अनुवाद ढीला है । पर हमारी गणतांत्रिक परंपरा, हिंदी की समावेशी प्रकृति एवं 'लाठी से नहीं प्रेम से' नियम के बल पर यह अनुवाद कार्य देश की एकता संहति दृढ़ करते हुए चलता रहेगा