प्रेममार्गी सूफी काव्य प्रमुख प्रवृत्तियाँ, प्रेममार्गी प्रमुख कवि
प्रेममार्गी सूफी काव्य
निर्गुण भक्ति काव्य की दूसरी धारा जिसे प्रेमाश्रयी शाखा कहा जाता है: मुस्लिम सूफी कवियों द्वारा निर्मित है। इसमें प्रेम मुख्य तत्व है। इसमें लौकिक प्रेम कथाओं को आधार बनाकर अलौकिक प्रेम की व्यंजना की गयी है। संत काव्य जहाँ मुक्तक के रूप में है, वहीं प्रेममार्गी सूफी काव्य प्रबंधात्मक है। आइए इस काव्य की प्रवृत्तियों की चर्चा करें।
प्रेममार्गी सूफी काव्य- प्रमुख प्रवृत्तियाँ
(क) कथा वस्तु-
इन काव्यों में प्रेमकथा का चित्रण मिलता है। इन प्रेम कथाओं का आधार, पौराणिक, कथा, लोक कथा या ऐतिहासिक कुछ भी हो सकता है। प्रायः कवियों ने लोक प्रचलित कथाओं को लिया है। लोकप्रचलित कथानक रूढ़ियों द्वारा कथा को बुना गया है जैसे नायिका का 'वती' नाम का होना जैसे- पद्मावती, नायिका का सम्बन्ध किसी द्वीप जैसे मलयद्वीप, सिंहलद्वीप का होना, चित्रदर्शन, गुणश्रवण, स्वप्नदर्शन द्वारा नायक के हृदय में प्रेमोत्पत्ति, नायिका की खोज में नायक का साधु-संयासी के रूप में घर से निकलना एवं विभिन्न विघ्न बाधाओं का सामना करना, किसी मंदिर या फुलवारी में नायक-नायिका का मिलन, नायिका के पिता, भाई या प्रेमी से नायक का द्वन्द, देवताओं या किसी सिद्ध की सहायता से नायक को सफलता मिलना इत्यादि। इन काव्यों में इतिहास और कल्पना का मेल दिखलाई पड़ता है। रहस्य, रोमांच, संघर्ष, घटना बहुलता आदि इन कथाओं की विशेषता है।
(ख) भाव व्यंजना-
इन कथाओं का आधार प्रेम होने के कारण श्रृंगार रस की प्रधानता है। संयोग, वियोग दोनों पक्ष यहाँ देखे जा सकते हैं। वियोग वर्णन अधिक है। बारहमासा में हम वियोग की अत्यंत मार्मिक व्यंजना पाते हैं। नायक को कई तरह के कष्टों चुनौतियों से जूझना पड़ता है, जहाँ उसके शौर्य साहस का पता चलता है।
(ग) चरित्र प्रधानता -
प्रेमाख्यानक काव्य चरित्र प्रधान हैं। नायक और नायिका दोनों प्रायः उच्चकुल के और विशेष गुणों से युक्त होते है। नायक-नायिका के मार्ग में विघ्न-बाधा उत्पन्न करने वाले चरित्र भी हैं। इसके अतिरिक्त कई मानवेतर चरित्र भी यहाँ दिखलाई पड़ते हैं, जिनकी पूरी कथा में बड़ी महत्वपूर्ण भूमिका होती हैं, जैसे-पक्षी, अप्सरा, राक्षस, देवता इत्यादि ।
(घ) अलौकिक प्रेम का संकेत-
इन कथाओं का आधार लौकिक हैं, नायक-नायिका का प्रेम लौकिक धरातल पर विकसित होता हैं, किन्तु इन कथाओं में जब-तब ईश्वरीय सत्ता की ओर संकेत, अलौकिक प्रेम की व्यंजना भी दिखलाई पड़ती है। नायक आत्मा का और नायिका परमात्मा का प्रतीक रहती है। इसी कारण इन कथाओं में प्रतीकात्मक आ गई है और भावात्मक रहस्यवाद की सृष्टि हुई है।
(ङ) वस्तु वर्णन शैली-
इन काव्यों में नायिका के सौन्दर्य, बारह मासा, प्रकृति के विभिन्न दृश्यों, सरोवर, पनघट, युद्ध, बारात, ज्योनार इत्यादि का ब्यौरेवार वर्णन मिलता है। वर्णन प्रायः अतिश्योक्ति पूर्ण रहता है, इन वर्णनों में कवि की कल्पनाशीलता भी प्रकट हुई है।
(च) अभिव्यंजना पक्ष-
इन प्रबंध काव्यों पर फारसी की मसनवी शैली का प्रभाव है। प्रायः दोहा - चौपाई शैली का प्रयोग किया गया है। रचनाकारों ने प्रायः अवधी भाषा को अपनाया है, किंतु कुछ प्रेमाख्यानक ब्रज-राजस्थानी भाषा में भी रचे गए है। समासोक्ति, उपमा, उत्प्रेक्षा, रूपक इत्यादि इस काव्य में बहुप्रयुक्त अलंकार है।
प्रेममार्गी प्रमुख कवि
(1) मुल्ला दाऊद-
मुल्ला दाऊद ने 'चंदायन' नानम प्रेमाख्यानक काव्य की रचना की है इसमें लोरिक तथा चंदा की प्रेमकथा है। चंदायन से एक दोहा उद्धृत है -
पियर पात जस बन जर, रहेउँ काँप कुंभलाई।
विरह पवन जो डोलेउ, टूट परेउँ घहराई ।'
(2) कुतुबन -
कुतुबन ने 'मृगावती' की रचना की है, जिसमें चंद्रनगर के राजा गणपति देव के राजकुमार और कंचनपुर के राजा रूपमुरारि की कन्या मृगावती की प्रेमकथा का वर्णन है। ग्रंथ का समापन मृगावती और रूक्मिनी के सती होने से होता है
रुकमिनि पुनि वैसहि मरि गई। कुलवंती सत सों सति भई ।
बाहर वह भीतर वह होई । घर बाहर की रहै न जोई।।
विधि कर चरित न जानै आनू। जो सिरजा सो जाहि निआनू ।।
(3) मंझन -
मंझन कृत प्रेमाख्यानक है 'मधुमालती'। इसमें कनेसर नगर के राजा सूरजभान के पुत्र मनोहर और महारस नगर की राजकुमारी मधुलालती के प्रेम का वर्णन है। कल्पना का सुंदर प्रयोग, विस्तृत एवं हृदयग्राही वर्णन, अलौकिक प्रेम की व्यंजना इस कृति की विशेषता है। पद्मावत के पहले मधुलालती की बहुत अधिक प्रसिद्धि थी। जैन कवि बनारसीदास ने अपनी आत्मकथा में इसका उल्लेख किया है।
(4) मलिक मुहम्मद जायसी -
जायसी सूफी कवियों में सर्वाधिक प्रसिद्ध हैं। वह शेरशाह सूरी के समकालीन थे। उनकी तीन पुस्तकें हैं- पद्मावत, अखरावट और आखिरी कलाम । 'अखरावट’ में वर्णमाला के एक-एक अक्षर को लेकर तत्वज्ञान सम्बन्धी चौपाईयां हैं। 'आखिरी कलाम' में कयामत का वर्णन है। 'पद्मावत' जायसी की सर्वाधिक लोकप्रिय रचना है। शुक्लजी के शब्दों में "जायसी की अक्षय कीर्ति का आधार है 'पद्मावत', जिसके पढ़ने से यह प्रकट हो जाता है कि जायसी का हृदय कैसा कोमल और 'प्रेम की पीर' से भरा हुआ था। क्या लोकपक्ष में, क्या अध्यात्म पक्ष में, दोनों ओर उसकी गूढ़ता, गंभीरता और सरसता विलक्षण दिखाई देती है। ' (हिन्दी साहित्य का इतिहास, पृ0 65)। पद्मावत में चित्तौड़ के राजा रत्नसेन और सिंहल द्वीप के राजा गंधर्व सेन की कन्या पद्मावती के प्रेम का निरूपण है। कथा के उत्तरार्द्ध का एक ऐतिहासिक आधार भी है। पद्मावत की कथा प्रतीकात्मक है एक साथ यह लौकिक एवं अलौकिक दोनों धरातलों पर चलती है। पात्रों की प्रतीकात्मकता को स्पष्ट करते हुए जायसी लिखते हैं
तन चितउर मन राजा कीन्हा । हिय सिंघल, बुधि पदमिनि चीन्हा ।।
गुरु सुआ जेइ पंथ देखावा । बिनु गुर जगत को निरगुन पावा ।।
नागमती यह दुनिया धंधा । बाँचा सोइ न एहि चित बंधा ।।
राघव दूत सोई सैतानू। माया अलाउदी सुलतानू ।।
कथा का अंत दुखांत है। रत्नसेन के शव के साथ उसकी दोनों रानियां नागमती और पद्मावती सती हो जाती है। पद्मावती के सौन्दर्य, नागमती के विरह, रत्नसेन के साहस, शौर्य और अवध की लोक संस्कृति की सर्जनात्मक प्रस्तुति में जायसी को अद्भुत सफलता मिली है। उत्कृष्ट कवितत्व एवं भावव्यंजना के कारण ही जायसी हिंदी के श्रेष्ठ महाकाव्यकार माने जाते हैं।
(5) उसमान-
उसमान ने 'चित्रावली' की रचना की है। वह जहाँगीर के समकालीन और गाजीपुर (उ0प्र0) के रहने वाले थे। 'चित्रावली' में नेपाल के राजकुमार सुजान और रूपनगर की राजकुमारी चित्रावली के प्रेम का वर्णन है। चित्रावली के रचनाविधान पर जायसी का गहरा असर है।
प्रेममार्गी सूफी कवियों की उपलब्धियाँ
सूफी कवियों ने हिंदू घरों में प्रचलित लोक कथाओं को आधार बनाकर काव्य प्रणयन किया जिसमें हिंदू देवी-देवताओं, रीति-रिवाजों, विश्वासों का भी उदारतापूर्वक निरूपण हैं। इससे हिंदू-मुस्लिम के बीच सांस्कृतिक सामंजस्य को बल मिला। इन कवियों की दृष्टि सेक्युलर रही है। त्याग, साहस-शौर्य, संघर्ष से भरे जिस प्रेम को इन कवियों ने सिरजा है उससे आम जनता का सिर्फ मनोरंजन ही नहीं होता, अलौकिक आशयों से युक्त होने के कारण उसे रुहानी सुकून भी मिलता है। ये कवि ईश्वर प्रेम के साथ मानववाद का भी प्रचार करते है। लोकतत्त्व की दृष्टि से यह काव्य महत्वपूर्ण है, तत्कालीन परिवेश के सांस्कृतिक अध्ययन की दृष्टि से ये रचनाएँ उपादेय हैं। साहित्यिक भाषा के रूप में अवधी के निरंतर विकास में इन कवियों का योगदान अविस्मरणीय है। साहित्यिक भाषा के रूप में अवधी का जो चरमोत्कर्ष तुलसीदास के यहाँ दिखलाई पड़ता है उसकी भूमिका इन्हीं सूफी कवियों ने निर्मित की थी।