रामभक्ति काव्य प्रमुख प्रवृत्तियाँ, रामभक्ति के प्रमुख कवि
रामभक्ति काव्य
राम कथा आदिकाल से ही रचनाकारों को आकर्षित करती रही है। हिंदी में रामभक्ति काव्य की शुरुआत रामानंद से होती है, जिसे आगे चलकर तुलसीदास अपने चरमोत्कर्ष पर पहुँचाते हैं।
रामभक्ति काव्य प्रमुख प्रवृत्तियाँ
(1) भक्ति का स्वरूप-
राम भक्त कवियों ने विष्णु के अवतार दशरथनंदन राम को अपना उपास्य माना है। उनके अनुसार दुष्टों के दलन और साधुओं की रक्षा के लिए ही प्रभु का अवतार होता है। लोमंगल ही अवतार का कारण है। रामभक्तों की भक्ति दास्य भाव की है। प्रभु के चरणों भक्त अपना सर्वस्व अर्पित कर भक्ति करता है। कालांतर में रामभक्ति में रसिक भावना का समावेश होता है। रामभक्ति में वैधी भक्ति अर्थात् शास्त्र सम्मत विधि निषेधके पालन को भी स्वीकार किया गया है। भक्ति के क्षेत्र में उदार होते हुए भी तुलसी के यहाँ शास्त्र और वर्णाश्रम व्यवस्था के प्रति एक आदर का भाव है।
(2) समन्वय भावना-
रामभक्ति काव्य में समन्वय की चेष्टा निहित है। सगुण-निर्गुण, शैव-शाक्त, वैष्णव, लोक-परलोक, शास्त्र - लोक, गार्हस्थ्य और वैराग्य इत्यादि का तुलसी समन्वय करते हैं। यह समन्वय लोक मंगल के निमित्त है।
(3) लोकपक्ष-
रामभक्ति काव्य में लोकमंगल, लोक धर्म, लोकरक्षा, लोकचिंता, लोक मानस की प्रधानता है। नारायण को यहाँ एक ऐसे नर के रूप में प्रस्तुत किया गया है, जो शक्ति-शील सौन्दर्य का प्रतिमान है, जो कालिकाल के दुखों को हरने वाला है। राम कथा के माध्यम से तुलसी राजा, पति, पत्नी, भाई, सेवक, शिष्य का आदर्श प्रस्तुत करते है, जनता के अंदर दैहिक, दैविक, भौतिक तापों से मुक्त, सर्वसुखद रामराज्य का स्वप्न पैदा करते हैं। यही नहीं तुलसी ने अपने समय के दुख-दारिद्रय और अकाल का भी मार्मिक अंकन किया है। 'कलि बारहि बार अकाल परै', 'खेती न किसान को भिखारी को भीख बलि', 'नहिं दारिद्रय सम दुख जग माहीं' जैसी पंक्तियाँ इसकी प्रमाण हैं। दुख-दारिद्र्य का जितना वर्णन अकेले तुलसी ने किया है, उतनी अन्य किसी मध्यकालीन कवि ने नहीं किया है।
(4) नारी एवं शूद्र के प्रति दृष्टिकोण -
रामभक्ति काव्य में शूद्र एवं नारी विषय दृष्टि अन्तर्विरोध युक्त है। एक तरफ तुलसी राम का निषाद राज और शवरी के प्रति प्रेम दिखलाते है, रामचरित मानस में शम्बूक-प्रसंग को स्थान नहीं देते हैं तो दूसरी तरफ उनके यहाँ 'पूजहिं विप्र कल गुणहीना', 'ढोल गंवार शूद्र पशु नारी सकल ताड़ना के अधिकारी' जैसी उक्तियाँ भी हैं। तुलसी राम के समकक्ष सीता को स्थान देते है- "सिया राम भय सब जग जानी', वही दुसरी ओर गुलामी को नारी की दुर्दशा का कारण मानते है, इतना ही नहीं तुलसी नारी को सकल अवगुणों की खान कहते है, स्वतंत्रता से भ्रष्ट हो जाने के कारण उसकी स्वतंत्रता का निषेध भी करते हैं।
(5) अभिव्यंजना पक्ष-
राम भक्ति काव्य प्रबंध और मुक्तक दोनों रूपों में मिलता है । प्रायः अवधी और ब्रज दोनों में रामकथा का प्रणयन किया गया। अवधी में 'रामचरित मानस' और ब्रज में ‘रामचंद्रिका' प्रसिद्ध है। काव्यत्व की दृष्टि से रामभक्ति काव्य समृद्ध है। गेय शैली में भी रामकाव्य को रचा गया । दोहा, चौपाई, छप्पय, कुण्डलियाँ, सोरठा-सवैया, घनाक्षरी, तोमर आदि रामभक्ति काव्य में बहु प्रयुक्त छंद हैं।
रामभक्ति के प्रमुख कवि
(1) स्वामी रामानंद-
रामानंद का जन्म काशी में हुआ था। इनका समय 15वीं सदी है। रामानंद के शिष्यों में सगुण मार्गी एवं निर्गुणमार्गी दोनों शामिल है। उन्होंने राम की उपासना को सर्वाधिक महत्व दिया। ‘आरती कीजै हनुमान लला की, दुष्ट दलन रघुनाथ कला की' प्रसिद्ध प्रार्थना उन्हीं की रचना है। गोस्वामी तुलसीदास रामानंद की ही शिष्य परम्परा में आते हैं।
(2) अग्रदास-
अग्रदास कृष्णदास पयहारी के शिष्य हैं। इन्होंने सखी भावना से राम की भक्ति की है। रामभक्ति परम्परा में रसिक-भावना का समावेश इन्हीं की देन है। ध्यानमंजरी, अष्टयाम, रामभजन मंजरी, इत्यादि इनकी रचनाएं हैं।
(3) नाभादास-
नाभादास अग्रदास के शिष्य हैं। 'भक्तिमाल' और अष्टयाम इनकी रचनाएं हैं। इनकी भी भाषा अग्रदास की तरह ब्रज है।
(4) ईश्वरदास -
रामकथा विषयक ईश्वरदास की दो रचनाएँ हैं- 'भरतमिलाप' और 'अंगद पैज'
(5) गोस्वामी तुलसीदास -
गोस्वामी तुलसीदास राम भक्ति धारा के सबसे लोकप्रिय रचनाकार हैं। इनके जन्म और जीवन के सम्बन्ध में कई जनश्रुतियाँ है। आचार्य शुक्ल ने तुलसी विरचित बारह ग्रंथों का उल्लेख किया है-दोहावली, कवित्त रामायण, गीतावली, रामचरित मानस, रामाज्ञा प्रश्नावली, विनय पत्रिका, रामललानहछू, पार्वती मंगल, जानकी मंगल, बरवै रामायण, वैराग्य संदीपनी, कृष्ण गीतावली। रामचरित मानस उनकी कीर्ति का आधार है । 'लोकमंगल' तुलसी के काव्य का केन्द्र बिंदु है। उनकी रचनाओं से भक्त हृदयों की तृप्ति ही नहीं मिलती, समाज को अपना आदर्श भी मिलता है। तुलसी के राम चरित मानस के महत्व का उद्घाटन कर हुए हजारी प्रसाद द्विवेदी ने लिखा है- 'भारत वर्ष का लोकनायक वही हो सकता है जो समन्वय करने का अपार धैर्य ले कर आया हो। भारतीय जनता में नाना प्रकार की परस्पर विरोधिनी संस्कृतियां, साधनाएँ, जातियाँ, आचार, विचार और पद्धतियाँ प्रचलित हैं। तुसलीदास स्वयं नाना प्रकार के सामाजिक स्तरों में रह चुके थे। उनका सारा काव्य समन्वय की विराट चेष्टा है। उसमें केवल लोक और शास्त्र का ही समन्वय नहीं है अपितु गार्हस्थ्य और वैराग्य का भक्ति और ज्ञान का भाषा और संस्कृति का, निर्गुण और सगुण का, पुराण और काव्य का, भावावेग और अनासक्त चिंता का समन्वय हुआ है। 'रामचरित मानस' के आदि से अंत तक दो छोरों पर जाने वाली पराकोटियों को मिलाने का प्रयत्न है। तुलसी ने अवधी और ब्रज दोनों भाषाओं में साधिकार लिखा है। प्रबंध कला, चरित्र-चित्रण, अलंकार विधान, समर्थ भाषा, लोक की गहरी समझ, भक्ति की तन्मयता, उच्च मूल्यों की प्रतिष्ठा, शैलीगत वैविध्य, सभी दृष्टियों तुलसी में अद्वितीय हैं। शुक्ल जी कवि तुलसी का महत्व बतलाते हुए कहते है कि "हम निःसंकोच कह सकते हैं कि यह एक कवि ही हिंदी को प्रौढ़ साहित्यिक भाषा सिद्ध करने के लिए काफी है। "
(6) केशवदास-
केशवदास (1555-1617) की रामभक्ति विषयक रचना 'रामचंद्रिका' है। प्रकाशों में विभक्त इस महाकाव्य पर प्रसन्नराघव, हनुमन्नाटक, अनर्घराघव, कादंबरी और नैषध का प्रभाव है। कहा जाता है कि उन्होंने रामचंद्रिका की रचना तुलसी की प्रतिस्पर्धा में की। केशव दरबारी कवि हैं, चमत्कारप्रियता, पांडित्य प्रदर्शन उनकी विशेषता है। रामचंद्रिका में वह छंदों, अलंकारों के नियोजन में ही उलझकर रह जाते हैं, रामकथा के मर्म का उद्घाटन नहीं कर पाते हैं।
रामभक्ति काव्य की उपलब्धियाँ
राम भक्ति काव्य ने निराशा, अवसाद, कुंठा से भरी जनता के सामने राम जैसे सर्वसमर्थ, त्राणकर्त्ता को प्रस्तुत कर उसे शक्ति और सांत्वना प्रदान किया। जीवन को धर्म भाव से जीने की प्रेरणा प्रदान की । तुलसी ने रामचरित मानस द्वारा जो आदर्श प्रस्तुत किया, उसी के आधार पर उत्तर भारत की रीति-नीति निर्मित होती है। उनके द्वारा समन्वय के प्रयत्न से बिखराव एवं वैमनस्य की क्षीण स्थितियों को एक संतुलित मार्ग का पथ प्रशस्त हुआ । साहित्य की दृष्टि से राम भक्ति काव्य ने भाव और भाषा का मानक प्रस्तुत किया, साहित्य को लोकमंगल से जोड़ा । अवधी और ब्रज दोनों को साहित्यिक परिपूर्णता प्रदान करने में रामभक्त कवियों ने अविस्मरणीय योगदान दिया।