ऐतिहासिक अनुसन्धान का क्षेत्र सीमायें और समस्यायें
ऐतिहासिक अनुसन्धान का क्षेत्र
वैसे तो ऐतिहासिक अनुसन्धान का क्षेत्र बहुत व्यापक है किन्तु संक्षेप में इसके क्षेत्र में निम्नलिखित को सम्मिलित कर सकते हैं-
1. बड़े शिक्षा शास्त्रियों एवं मनोवैज्ञानिकों के विचार ।
2. संस्थाओं द्वारा किये गये कार्य ।
3. विभिन्न कालों में शैक्षिक एवं मनोवैज्ञानिक विचारों के विकास की स्थिति ।
4. एक विशेष प्रकार की विचारधारा का प्रभाव एव उसके स्रोत का अध्ययन ।
5. शिक्षा के लिये संवैधानिक व्यवस्था का अध्ययन ।
5.6 ऐतिहासिक अनुसन्धान का महत्व
जब कोई अनुसन्धानकर्ता अपनी अनुसन्धान समस्या का अध्ययन अतीत की घटनाओं के आधार पर करके यह जानना चाहता है कि समस्या का विकास किस प्रकार और क्यों हुआ है ? तब ऐतिहासिक अनुसन्धान विधि का प्रयोग किया जाता है। इसके अतिरिक्त ऐतिहासिक अनुसन्धान के महत्व को निम्नलिखित बिन्दुओं द्वारा स्पष्ट कर सकते हैं।
1 अतीत के आधार पर वर्तमान का ज्ञान -
ऐतिहासिक अनुसन्धान के आधार पर सामाजिक मूल्यों, अभिवृत्तियों और व्यवहार प्रतिमानों का अध्ययन करके यह ज्ञात किया जा सकता है कि इनसे सम्बन्धित समस्यों अतीत से किस प्रकार जुड़ी है तथा यह भी ज्ञात किया जा सकता है कि इनसे सम्बन्धित समस्याओं का विकास कैसे-कैसे और क्यों हुआ था ?
2 परिवर्तन की प्रकृति के समझने में सहायक
समाजशास्त्र और समाज मनोविज्ञान में अनेक ऐसी समस्यायें हैं जिनमें परिवर्तन की प्रकृति को समझना आवश्यक होता है। जैसे सामाजिक परिवर्तन, सांस्कृतिक परिवर्तन, औद्योगीकरण, नगरीकरण से सम्बन्धित समस्याओं की प्रकृति की विशेष रूप से परिवर्तन की प्रकृति को ऐतिहासिक अनुसन्धान के प्रयोग द्वारा ही समझा जा सकता है।
3 अतीत के प्रभाव का मूल्यांकन
व्यवहारपरक विज्ञानों में व्यवहार से सम्बन्धित अनेक ऐसी समस्यायें हैं जिनका क्रमिक विकास हुआ है। इन समस्याओं के वर्तमान स्वरूप पर अतीत का क्या प्रभाव पड़ा है ? इसका अध्ययन ऐतिहासिक अनुसन्धान विधि द्वारा ही किया जा सकता है।
4 व्यवहारिक उपयोगिता
यदि कोई अनुसन्धानकर्ता सामाजिक जीवन में सुधार से सम्बन्धित कोई कार्यक्रम या योजना लागू करना चाहता है तो वह ऐसी समस्याओं का ऐतिहासिक अनुसन्धान के आधार पर अध्ययन कर अतीत में की गयी गलतियों को सुधारा जा सकता है और वर्तमान में सुधार कार्यक्रमों को अधिक प्रभावी ढंग से लागू करने का प्रयास कर सकता है।
ऐतिहासिक अनुसन्धान की सीमायें और समस्यायें
वर्तमान वैज्ञानिक युग में ऐतिहासिक अनसुन्धान का महत्व सीमित ही है। आधुनिक युग में किसी समस्या के अध्ययन में कार्यकारण सम्बन्ध पर अधिक जोर दिया जाता है जिसका अध्ययन ऐतिहासिक अनुसन्धान विधि द्वारा अधिक सशक्त ढंग से नहीं किया जा सकता है केवल इसके द्वारा समस्या के संदर्भ में तथ्य एकत्रित करके कुछ विवेचना ही की जा सकती है। इसके अतिरिक्त ऐतिहासिक अनुसन्धान की सीमाओं को निम्न बिन्दुओं द्वारा स्पष्ट कर सकते हैं-
1. बिखरे तथ्य -
यह ऐतिहासिक अनुसन्धान की एक बड़ी समस्या है कि समस्या से सम्बन्धित साक्ष्य या तथ्य एक स्थान पर प्राप्त नहीं होते हैं इसके लिये अनुसन्धानकर्ता को दर्जनों संस्थाओं और पुस्तकालयों में जाना पड़ता है। कभी - कभी समस्या से सम्बन्धित पुस्तकें, लेख, शोधपत्र-पत्रिकायें, बहुत पुरानी होने पर इसके कुछ भाग नष्ट हो जाने के कारण ये सभी आंशिक रूप से ही उपलब्ध हो पाते हैं ।
2. प्रलेखों का त्रुटिपूर्ण रखरखाव
पुस्तकालयों तथा अनेक संस्थाओं में - कभी प्रलेख क्रम में नही होते है तो कभी प्रलेख दीमक व चूहो के कारण कटे-फटे मिलते हैं ऐसे में ऐतिहासिक अनुसन्धानकर्ता को बहुत कठिनाई होती है।
3. वस्तुनिष्ठता की समस्या
ऐतिहासिक अनुसन्धान में तथ्यों और साक्ष्यों, का संग्रह अध्ययनकर्ता के पक्षपातों, अभिवृत्तियों, मतों और व्यक्तिगत विचारधाराओं से प्रभावित हो जाता है जिससे परिणामों की विश्वसनीयता और वैधता संदेह के घेरे में रहती है।
4 सीमित उपयोग
ऐतिहासिक अनुसन्धान का प्रयोग उन्हीं समस्याओं - के अध्ययन में हो सकता है जिनके ऐतिहासिक पृष्ठभूमि से सम्बन्धित प्रलेख, पाण्डुलिपियाँ अथवा ऑकड़ो, या तथ्यों से सम्बन्धित सामग्री उपलब्ध हो। अन्यथा की स्थिति में ऐतिहासिक अनुसन्धान विधि का प्रयोग सम्भव नहीं हो पाता है।