शोध का अर्थ प्रकार एवं आवश्यकता ,वैज्ञानिक शोध का अर्थ एव विशेषतायें
शोध का अर्थ प्रकार एवं आवश्यकता
शिक्षा, मनोविज्ञान तथा समाजशास्त्र ऐसे व्यवहारपरक विज्ञान (Behavioural (Science) है जिनमें
वैज्ञानिक विधियों द्वारा ही अनेकों प्रकार के शोधकार्य किये जाते हैं । ऐसी
विधियों द्वारा लिये गये शोध कार्यो को वैज्ञानिक शोध कहते हैं। वैज्ञानिक शोध
क्या है ? इस पर चर्चा करने
से पूर्व ये जान लेना आवश्यक है कि विज्ञान किसे कहते हैं एवं वैज्ञानिक विधि क्या
है ?
विज्ञान सामान्यतः दो दर्षष्टकोणों से मिलकर बना है -
(i) स्थिर दृष्टिकोण (Static View)
(ii) गतिमान दृष्टिकोण
(Dynamic View)
स्थिर दृष्टिकोण में वैज्ञानिक वर्तमान सिद्धान्तों, नियमों, परिकल्पनाओं (Hypothesis) आदि के ज्ञान
भण्डार में नये-नये तथ्यों की खोज कर उस ज्ञान भण्डार का विस्तार करता है जबकि
गतिमान दर्षष्टकोण में समस्या समाधान के नये-नये तरीकों पर जोर दिया जाता है
अर्थात किसी भी समस्या के समाधान में नई-नई विधियों को प्रयोग किया जाता है। यह
विज्ञान का क्रियाशील पक्ष है, इसे स्वानुभाविक दृष्टिकोण (Heuristic view ) भी कहते हैं। कुल
मिलाकर विज्ञान का मूल उद्देश्य प्राकतिक घटनाओं की वैज्ञानिक व्याख्या करना है।
इस वैज्ञानिक व्याख्या को ही वैज्ञानिक सिद्धान्त कहते हैं।
विज्ञान क्या है ? ये जानने के बाद अब हम वैज्ञानिक विधि के बारे में चर्चा करेंगे । वैज्ञानिक विधि उस विधि को कहते हैं जिसमें किसी भी विषयवस्तु का अध्ययन नियंत्रित परिस्थिति में किया जाता है तथा उससे प्राप्त परिणामों का वैध एवम् विस्तप्त सामान्यीकरण किया जाता है।
"A
scientific Medthod is one in which the scientist studies his subject matter in
controlled situation and looks for a broader valid generalization.*
उपरोक्त परिभाषा से स्पष्ट है कि किसी भी वैज्ञानिक विधि
में दो बातें प्रमुख होती है, पहली यह कि अध्ययन नियंत्रित परिस्थति में हो और दूसरी यह
कि अध्ययन से प्राप्त परिणाम का सामान्यीकरण वैध (Valid) एवं विस्तृत हो.
यहाँ नियन्त्रित परिस्थिति से तात्पर्य ऐसी परिस्थिति से है
जिसके अन्तर्गत हम सिर्फ उसी घर के प्रभाव का अध्ययन करेंगे जिसका प्रभाव हम देखना
चाहते हैं तथा अन्य चरों के प्रभाव को नियंत्रित कर देगे ताकि उनका कोई भी प्रभाव
उस अध्ययन पर न पड़ सके। इसके अलावा अध्ययन से प्राप्त परिणाम का विस्तृत एवं वैध
सामान्यीकरण से तात्पर्य है कि उन परिणामों को उन सभी लोगों पर लागू किया जा सके
जो उस अध्ययन में सम्मिलित तो नहीं किये गये परन्तु जिनकी विशेषताएं उन व्यक्तियों
से मिलती-जुलती हैं जिन्हें अध्ययन में शामिल किया गया था।
वैज्ञानिक विधि के सोपान :
कोई भी विधि वैज्ञानिक विधि तभी हो सकती है जब उसमें निम्न
निश्चित एवं उपयोगी चरणों का समावेश आवश्यक रूप से किया जाय
1 समस्या की पहचान -
किसी भी वैज्ञानिक विधि में सर्वप्रथम समस्या की निश्चित
पहचान कर ली जाती है। अर्थात् वास्तव में हम जिस समस्या या उससे सम्बन्धित चरों का
अध् ययन करना चाहते हैं वो वही है या नहीं। तत्पश्चात् अपने अध्ययन के अनुरूप
समस्या में सम्मिलि शब्दों का परिभाषीकरण किया जाता है। ऐसा करने के लिए शोधकर्ता
समस्या से सम्बन्धित ज्ञान एवं सूचनाओं की आलोचनात्मक व्याख्या करता है।
2 परिकल्पना का निर्माण -
समस्या पहचान के बाद परिकल्पना का निर्माण किया जाता है।
किसी भी समस्या की परिकल्पना उसका सम्भावित समाधान होती है।
3 निगमनात्मक चिंतन (Deductive reasoning) द्वारा परिकल्पना से एक आशय तक पहुँचना-
वैज्ञानिक विधि के इस तीसरे चरण में निगमनात्मक चिंतन द्वारा प्रस्तावित परिकल्पना के रूप में समस्या के सुझावात्मक समाधान (Suggested solution of the problem) पर पहुँचने की कोशिश की जाती है। यहाँ यह तय किया जाता है कि यदि परिकल्पना सच हुई, तो किन तथ्यों का प्रेक्षण किया जायेगा तथा किन-किन तथ्यों का प्रेक्षण नहीं किया जायेगा।
4 सम्बन्धित प्रमाणों एवं कारणों का संग्रह एवं विश्लेषण
इस चरण में प्रस्तावित परिकल्पना से सम्बन्धित संग्रहीत
कारणों एवं प्रमाणों का निगमन विधि (Deductive Method) द्वारा विश्लेषण किया जाता है।
5 परिकल्पना की जाँच -
वैज्ञानिक विधि के इस चरण में चतुर्थ सोपान से प्राप्त
आँकड़ों के आधार में पर परिकल्पना की जाँच की जाती है। यदि परिकल्पना जाँच के आधार
पर सही सिद्ध होती है तो उसे स्वीकार कर लेते हैं और यदि परिकल्पन जाँच के आधार पर
सत्य सिद्ध नहीं होता है या उसमे कुछ कमी होती है तो उस कमी को दूर कर सही
परिकल्पना का निर्माण करने के लिए उसका परिमार्जन किया जाता है।
अतः उपरोक्त चरणों के आधार पर यह समझा जा सकता है कि कोई भी वैज्ञानिक विधि उपरोक्त चरणों पर ही आधारित होगी।
वैज्ञानिक शोध का अर्थ एव विशेषतायें :
जब किसी समस्या या प्रश्न को क्रमबद्ध एवं वस्तुनिष्ठ (Objective) ढंग से सुलझाने का प्रयास किया जाता है तो इस क्रिया को ही वैज्ञानिक शोध कहते हैं। करलिंगर ने शोध के अर्थ को स्पष्ट करते हुये कहा कि -
"स्वभाविक घटनाओं
का क्रमबद्ध नियंत्रित आनुभाविक एवं आलोचनात्मक अनुसन्धान जो घटनाओं के बीच कल्पिन
संबंधों के सिद्धान्तों एवं परिकल्पनाओं द्वारा निर्देशित होता है, को वैज्ञानिक शोध
कहा जाता है।"
इसी प्रकार बेस्ट एवं काहन ने वैज्ञानिक शोध को निम्न
प्रकार से परिभाषित किया है-
"वैज्ञानिक शोध
किसी नियंत्रित प्रेक्षण का क्रमबद्ध एवं वस्तुनिष्ठ अभिलेख एवं विश्लेषण है जिनके
आधार पर सामान्यीकरण, नियम या
सिद्धान्त विकसित किया जाता है तथा जिससे बहुत सारी घटनाओं, जो किसी खास
क्रिया का परिणाम या कारण हो सकती है, को नियंत्रित कर उनके बारे में पूर्वकथन किया जाता
है।"
अतः कहा जा सकता है कि (वैज्ञानिक) शोध से तात्पर्य उस
क्रिया या क्रियाओं से है जिनके माध्यम से व्यवस्थित रूप से किसी समस्या का
निराकरण करने का प्रयास किया जाता है तथा प्राप्त निराकरण किसी नये सिद्धान्त का
प्रतिपादन या पुष्टि करता है।
वैज्ञानिक अनुसंधान की उपरोक्त परिभाषाओं के अतिरिक्त इसकी विशेषतायें निम्नवत है-
1. अनुसन्धान का उद्देश्य किसी समस्या का समाधान ढूँढना अथवा दो या दो से अधिक चरों के आपसी सम्बन्धों को ज्ञात करना है।
2. अनुसन्धान केवल सूचनाओं की पुनः प्राप्ति या संग्रहण नहीं है अपितु अनुसन्धान में व्यापीकरण, नियमों या सिद्धान्तों के विकास पर बल दिया जाता है।
3. अनुसन्धान किसी दैव वाणी या मत को ज्ञान प्राप्ति की विधि नहीं मानता है बल्कि ये उन बातों को स्वीकार करता है जिन्हें प्रेक्षण द्वारा परखा जा सके।
4. अनुसन्धान में आँकड़ो के संग्रहण के लिए वैध उपकरणों एवं विधियों का प्रयोग किया जाता है तत्पश्चात् इन आँकड़ों का शोधन, संलेखन, अभिकलन व विश्लेषण किया जाता है।
5. अनुसंधान, प्राथमिक सूत्रों से प्राप्त नई सूचनायें प्राप्त करना या विद्यमान सूचनाओं से नया प्रयोजन प्रस्तुत करता है।
6. अनुसंधान में निपुणता की आवश्यकता होती है। अनुसंधानकर्ता को यह ज्ञान होना चाहिये कि समस्या के बारे में पहले से कौन-कौन सा ज्ञान या सूचनायें मौजूद है। वह संबंधित साहित्य का अध्ययन करता है। उसे सभी पारिभाषिक शब्दों, धारणाओं और तकनीकी कुशलता का पूर्णज्ञान होता है ताकि वह संकलित सूचनाओं एवं आँकड़ों का विश्लेषण कर सके।
7. वैज्ञानिक अनुसंधान वस्तुनिष्ठ एवं तर्कसंगत होता है। परिकल्पना को सिद्ध करने के स्थान पर उसके परीक्षण पर बल दिया जाता है।
8. इससे पुनरावृत्ति की संभावना होती है।
उपरोक्त विशेषताओं के अवलोकन से यह स्पष्ट है कि वैज्ञानिक अनुसंधान द्वारा प्राप्त ज्ञान अति उच्च स्तर का होता है। यह कल्पनाओं, विश्वास एवं अप्रमाणित बातों पर आधारित नहीं होता है। ऐसे ज्ञान अर्जन के लिये अनुसंधानकर्ता को अपनी विद्वता का विकास करना व सही प्रेक्षण व कर्मठता का परिचय देना चाहिये। साक्ष्यों को एकत्रित कर उनका अध्ययन करने, तार्किक विश्लेषण कर सम्बन्धों को पहचानने, विचारों में मौलिकता और स्पष्ट उद्देश्य के साथ अपने लक्ष्य को निर्धारित कर उसे प्राप्त करने का प्रयास करना चाहिये