शिक्षा अनुसंधान की आवश्यकता, शैक्षिक अनुसंधान के प्रकार
शिक्षा अनुसंधान की आवश्यकता :
आज प्रत्येक क्षेत्र में इस बात का अनुभव किया जा रहा है कि यदि ज्ञान के विस्फोट को समझना है, प्रगति की होड़ में आगे बढ़ना है तो उसका एकमात्र साधन वैज्ञानिक अनुसंधान ही हो सकता है क्योंकि विश्व में हुयी सारी प्रगति विभिन्न क्षेत्रों में किये गये अनुसंधानों के कारण ही है।
शिक्षा और मनोविज्ञान में हमारा प्रयास, मानव के व्यवहार को समझने, उसकी भविष्यवाणी करने तथा उस पर नियंत्रण के लिए है। इसके लिये अनुसंधान कार्य एक प्रमुख साधन है। अतः इन क्षेत्रों में अनुसंधान को निम्नलिखित कारणों से अधिक महत्व दिया गया है।
1 ज्ञान के विकास में सहायक
अनुसंधान ज्ञान के किसी एक सूक्ष्म अंग का विस्तप्त, सम्पूर्ण एवं नवीन चित्र प्रस्तुत करता है। इसके द्वारा ज्ञानकोष में वर्षद्ध एवं विकास होता है। गुड तथा स्केट का कहना है कि विज्ञान का कार्य बुद्धि का विकास करना है तथा अनुसंधान का कार्य विज्ञान का विकास करना है। अतः बुद्धिमत्ता के विकास के लिए अनुसंधान अति आवश्यक है।
2 उद्देश्य प्राप्ति के लिए सर्वोत्तम क्रिया
अनुसंधान एक उद्देश्यपूर्ण क्रिया है, इसकी समस्त गतिविधियाँ उस उद्देश्य की ओर ही अग्रसर रहती है जिसकी प्राप्ति के लिये अनुसंधान किया जा रहा है।
3 मानव समाज को नवीन ज्ञान एवं गति प्रदान करना
अनुसंधान मानव जीवन को गति देने एवं दिशा निर्देशित करने में अत्यन्त आवश्यक है आज अनुसंधान के माध्यम से ही नयी-नयी तकनीकों का जन्म हो रहा है।
4 अनुसंधान जीवन के उद्देश्य की प्राप्ति का सरल उपाय देना
उद्देश्यों की पूर्ति हेतु सरल साधनों को प्राप्त करना मानव स्वभाव है। अनुसंधान शिक्षा, मनोविज्ञान एवं समाज विज्ञान इन सभी क्षेत्रों में इस दृष्टि से उपयोगी है।
5 सुधार में सहायक
अनुसंधान वैज्ञानिक होता है इसमें किसी भ्रानित या अपुष्ट धारणा के लिये स्थान नहीं होता है अतः ये रूढिगत विचारों एवं व्यवहारों में सुधार का मार्ग प्रस्तुत करता है।
6 सत्य ज्ञान की खोज करना -
अनुसंधान, अनुसंधानकर्ता की उत्सुकता को शांत करता है और उसकी सत्य ज्ञान की पिपासा को शांत करता है ।
7 प्रशासनिक क्षेत्र में सफलता प्रदान करना
अनुसंधान अनेक प्रशासनिक गुत्थियों को सुलझाकर स्वस्थ प्रशासनिक व्यवस्था के सफल संचालन में सहायक होता है।
8 अध्यापक के लिये अति उपयोगी
अध्यापक के लिये यह प्राण के समान ही होता है। अध्यापक इसके माध्यम से सैद्धान्तिक एवं व्यवहारिक समस्याओं को समाधान कर प्रगति का पथ प्रशस्त करता है।
अतः यह कहा जा सकता है कि अनुसंधान शिक्षकों, छात्रों, अभिभावकों तथा प्रशासकों एवं पर्यवेक्षकों को स्वयम् के ज्ञान, परस्पर एव दूसरे के ज्ञान एवं मनोवैज्ञानिक एवं शैक्षिक समस्याओं का सुनियोजित समाधान प्रस्तुत करने के कारण अत्यन्त महत्वपूर्ण है ।
शैक्षिक अनुसंधान के प्रकार :
यद्यपि शैक्षिक शोध को वर्गीकृत करना एक कठिन कार्य है क्योंकि भिन्न-भिन्न पाठ्य-पुस्तकों में कई वर्गीकरण अलग-अलग ढंग से प्रस्तावित किये गये हैं। फिर भी बेस्ट वएं काहन (Best & Kahn, 1992) द्वारा प्रस्तावित वर्गीकरण को सबसे उत्तम माना जा सकता है और इसे वर्गीकरण की एक कसौटी मानते हुए शैक्षिक शोध को निम्नांकित तीन प्रमुख भागों में बाँटा जा सकता है-
1 ऐतिहासिक शोध (Historical Research) -
ऐतिहासिक शोध से तात्पर्य उस शोध से होता है जिसमें बीती घटनाओं का अभिलेखन किया जाता है, उनका विश्लेषण किया जाता है तथा उनकी व्याख्या की जाती है ताकि समुचित सामन्यीकरण किया जा सके। ऐसे सामान्यीकरण से विगत एवं वर्तमान की क्रियाओं को समझने में मदद मिलती ही है साथ ही साथ इनसे प्रत्याशित भविष्य (anticipated future) को भी समझने में मदद मिलती है। अतः यह कहा जा सकता है कि ऐतिहासिक शोध मूलतः 'क्या था का वर्णन करता है।
2 विवरणात्मक शोध (Descriptive Research) -
विवरणात्मक शोध उस शोध को कहा जाता है जिसमें वर्तमान हालातों का अभिलेखन किया जाता है, विश्लेषण किया जाता है तथा उनकी व्याख्या की जाती है। ऐसे शोध में अपरिचालित चरों (Non-manipulated variables) के बीच मौजूद संबंधों का विश्लेषण किया जाता है। इसे अप्रयोगात्मक या सहसंबंधात्मक शोध (Non-experimental or correlational research) भी कहते हैं। ऐसे शोध में मूल रूप से क्या है (what is ) का वर्णन किया जाता है।
3 प्रयोगात्मक शोध (Experimental Research) -
प्रयोगात्मक शोध उस शोध को कहा जाता है जिसमें कुछ चरों को नियंत्रित किया जाता है, कुछ चरों को परिचालित (manipulate) किया जाता है। एवं किसी अन्य चर पर उसके पड़ने वाले प्रभावों का अध्ययन किया जाता है। अतः ऐसे शोधों में मूलतः इस बात का अध्ययन किया जाता है कि चरों को नियंत्रित करने एवं उनका परिचालन करने का प्रभाव क्या होगा।