संभावविता एवं असंभावविता प्रतिदर्शन
संभावविता प्रतिदर्शन (Probability Sampling)
(i) साधारण यादृच्छिक प्रतिदर्शन ( Simple random sampling)
साधारण यादर्षच्छक प्रतिदर्शन संभाविता प्रतिदर्शन का एक प्रमुख प्रकार है। इसमें जीवसंख्या के प्रत्येक सदस्य के प्रतिदर्श (Sample) में सम्मिलित किये जाने की संभावना बराबर होती है तथा किसी एक सदस्य का चयन दूसरे सदस्य के चयन को बाधित या प्रभावित नहीं करता है।
साधारण यादृच्छिक प्रतिदर्शन चूँकि सम्भाव्यता या संभाविता प्रतिदर्शन है । अतः इसमें न्यादर्श के चयन में मानव विवेक का स्थान नही होता है। अतः इस विधि में इकाइयों का चयन कुछ यांत्रिक या संयोगिक क्रिया द्वारा किया जाता है । साधारण यादषच्छक प्रतिदर्शन की मुख्यतः दो विधियां है
(1) लॉटरी विधि -
इस विधि में एक ही आकार की उतनी ही गोलियाँ या पर्चियाँ होती है जितनी जीवसंख्या में इकाइयाँ है और प्रत्येक गोली या पर्ची पर ढाँचे (frame) के अनुसार क्रमांक लिखे होते हैं। इन गोलियों या पर्चियों को फिर एक अर्ध-गोलाकार बर्तन (bowl) में रखकर उसे अच्छी तरह हिला दिया जाता है अब इसमे से यादष्च्छया किसी भी एक गोली / पर्ची का चयन किया जाता है और फिर उस गोली पर ढ़ाँचे की सहायता से लिखे गये क्रमांक की इकाई को न्यादर्श में सम्मिलित कर लिया जाता है और फिर बर्तन को हिला दिया जाता है। इसी प्रकार से न्यादर्श के अनुसार, वांछित इकाइयों का चयन कर लिया जाता है।
(2) यादृच्छिकी संख्या सारिणी विधि -
इस समसंभाविका संख्या तालिका भी कहते हैं इस विधि का प्रयोग वहाँ अधिक होता है जहाँ समष्टि का विस्तार अधि कहो तथा चयनित न्यादर्श का आकार भी बड़ा हो। इसके लिये एक तालिका का प्रयोग करते हैं जो प्रायः सांख्यिकी की सभी पुस्तकों में उपलब्ध होती है। इस तालिका में जो संख्याएँ लिखी होती है उन्हें समसभाविक विधि द्वारा तैयार किया जाता है। वे अभिनतिमुक्त (free from bias) होती है । ये संख्याएँ स्तम्भों में लिखी रहती है परंतु इन्हें पंक्तिवार, स्तम्भवार किसी प्रकार से भी प्रयोग में लाया जा सकता है।
(ii) स्तरित यादृच्छिक प्रतिदर्शन (Simple random sampling)
किसी भी न्यादर्श को जीवसंख्या का प्रतिनिधित्व पर्याप्त रूप से करना चाहिए। पर्याप्तता के लिये यह आवश्यक है कि न्यादर्श का मानक विचलन या अन्य विचलन कम हो। इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए तथा अन्य कई कारणों से जीवसंख्या को कभी कभी कमवायी स्तरों में विभाजित कर दिया जाता है। इसके लिये प्रत्येक स्तर में पड़ने वाली इकाइयों का ढाँचा तैयार करते हैं और उन भिन्न स्तरों के ढाँचे में से इकाइयों को यादषच्छिकी न्यादर्शन विधि से चुन लेते हैं। इस विधि को स्तरीकष्त यादषच्छक प्रतिदर्शन कहते है।
अब इस प्रतिदर्शन में स्तरीकरण करने की आवश्यकता क्यों और क्या यह जानना भी आवश्यक है जीवसंख्या को स्तरीकष्त करने के चार मुख्य कारण है :
(1) कभी कभी भिन्न-भिन्न स्तर की जीवसंख्याओं के लिये समष्टियों के ज्ञान की आवश्यकता होती है। उदाहरण के लिये, बुद्धि मापन में हम पुरूषों एवं स्त्रियों या शहरी/ग्रामीण क्षेत्र के लिये अलग-अलग माध्य बुद्धि-लब्धि ज्ञात करना चाहते हैं।
(2) प्रशासनिक सुविधा के लिए भी स्तरीकरण किया जाता है। जब स्तर समवायी होते हैं तो उनका सर्वेक्षण करने के लिये उचित व्यक्तियों को ढूँढ़ा जा सकता है। उदाहरण के लिये, एक ही व्यक्ति नगर के धनी वर्ग और गाँव की सामान्य जनता का साक्षात्कार नहीं कर सकता है। भाषा, संस्कृति, पष्ठभूमि एवं अनुभव विचार विनमय में बाधक होते हैं।
(3) न्यादर्श में प्रतिनिधित्व होने की सम्भावना अधिक प्रतीत होती है ।
(4) न्यादर्श अथवा प्रतिदर्श की इकाइयों के मान का प्रसार ( dispersion) कम हो जाता है जिससे मानक त्रुटि कम हो जाती है और छोटे न्यादर्श से अनुमान में वही दक्षता प्राप्त होती है जो सरल यादषच्छकी प्रतिदर्शन में बड़े न्यादर्श से । यह स्तरीकरण का सबसे बड़ा उपयोग है। क्योंकि यदि स्तरीकरण से जनसंख्या समवायी उपसमूहों में विभक्त नहीं होता है तो स्तरीकरण करना निरर्थक होता है।
स्तरीकरण का आधार
स्तरीकरण का मुख्य उद्देश्य जनसंख्या को ऐसे उपसमूहों में विभाजित करना है कि प्रत्येक उपसमूह में चर का प्रसार कम हो अथात इकाइयाँ समवायी हों। अब हमें चर के मान का वितरण पहले से ज्ञात नहीं होता है। ऐसी अवस्था में स्तरीकरण हमे किसी दूसरे ऐसे चर के आधार पर करना चाहिए जो अभीष्ट चर से सम्बन्धित हो। उदाहरण के लिये बालकों की उपलब्धि का परीक्षण उनकी बुद्धिलब्धि के स्तरीकरण के आधार पर किया जा सकता है क्योंकि उपलब्धि एवं बुद्धि लब्धि में उच्च सहसम्बन्ध होता है। कभी कभी दो चरों जैसे- ग्रामीण / शहरी, स्त्री / पुरूष आदि के आधार पर भी किया जा सकता है।
स्तरीकृत यादषच्छकी प्रतिदर्शन के निम्न तीन प्रकार है
(अ) समानुपाती (Proportionate ) -
इसमें किसी स्तर से लिये गये प्रतिदर्श में इकाइयों की संख्या उसी अनुपात में होती है जिसमें उस स्तर में जीवसंख्या की कुल इकाइयाँ जैसे यदि किसी जीवसंख्या के स्तर क, ख, ग में क्रमश: 400, 500, 600 इकाइयाँ है तो न्यादर्श में तीन स्तरों से इकाइयाँ क्रमश: 4:5:6 के अनुपात में होगी।
(ब) असमानुपाती (Disproportionate) –
इसमें इकाइयाँ निश्चित अनुपात में नहीं होती है किंतु उचित सांख्यिकीय सूत्रों की सहायता से शुद्ध परिणाम निकालने का प्रयास किया जाता है।
( स ) महत्तम विभाजन (Maximum Allocation)
इसमें प्रत्येक स्तर से - चुनी गयी इकाइयों की संख्या उस स्तर में जनसंख्या की संख्या और उस स्तर के मानक विचलन पर निर्भर होती है। यही सबसे उपयुक्त विधि है ।
(iii) क्षेत्र या गुच्छ प्रतिदर्शन ( Area or Cluster Sampling)
कभी-कभी प्रतिदर्श की इकाइयाँ चर की प्राकतिक इकाइयाँ न होकर उनके स्वभाविक समूह या गुच्छे (Cluster) होते हैं। प्रतिदर्शन की इस विधि में गुच्छों का ही ढाँचा बनाया जाता है और इस ढाँचे में से यादर्षच्छकी प्रतिदर्श चुना जाता है। तत्पश्चात गुच्छों में पड़ने वाली प्रत्येक इकाई का अध्ययन किया जाता है यदि इकाइयाँ आवश्यकता से अधिक हैं तो आवश्यक इकाइयों का चयन यादच्छिकी विधि द्वारा कर लिया जाता है। इसे उपप्रतिदर्शन (Sub-sampling) कहते है ।
प्रतिदर्शन की यह विधि तब अधिक लाभदायक है जब इकाई तक पहुँचने का व्यय अधिक एवं इकाई के अध्ययन का व्यय कम होता है।
(ब) असंभावविता प्रतिदर्शन ( Non Probability Sampling)
(i) कोटा प्रतिदर्शन / प्रतिचयन (Quota Sampling)
कोटा प्रतिदर्शन जिसे अंश न्यादर्शन भी कहते हैं, में जीवसंख्या का स्तरीकरण उसी प्रकार किया जाता है, जैसे कि स्तरीकृत यादृच्छिकी प्रतिदर्शन (Straitified Random Sampling) में, किन्तु इस विधि में शोधकर्ता प्रत्येक स्तर से कोटा अथवा अंश में इकाइयों का चयन अपने विवेक से करता है ।
(ii) आकस्मिक प्रतिदर्शन / प्रतिचयन- ( Accidental or Incidental Sampling)
आकस्मिक प्रतिदर्शन में जीवसंख्या से सम्बन्धित जो कोई भी इकाई सुविधापूर्वक उपलब्ध होती है, उसका प्रतिचयन कर लिया जाता है। यहाँ शोधकर्ता की सुविधा को ध्यान में रखा जाता है।
(iii) उद्देश्यपूर्ण प्रतिदर्शन / प्रतिचयन - (Purposive Sampling)
उद्देश्यपूर्ण अथवा सोद्देश्य प्रतिदर्शन में शोधकर्ता जीवसंख्या के उस समूह की इकाइयों का चयन करता है जिसे वह पूर्वज्ञान के आधार पर उस जीवसंख्या का प्रतिनिधि समझता है।
(iv) क्रमबद्ध प्रतिदर्शन / प्रतिचयन (Systematic Sampling)
क्रमबद्ध प्रतिदर्शन ( Systematic Sampling ) एक ऐसी प्रतिदर्शन परियोजना है जिसमें यादषच्छकीकरण (Ramdomness) का कुछ गुण होता है। और साथ ही साथ इसमें असंभाविता गुण (Non-probability trait) भी होते हैं ब्लैक तथा चैम्पियन (Black and Champion 1977) के अनुसार- "एक ऐसी प्रतिदर्शन परियोजना जिसमें यादच्च्छीकरण के गुण हो तथा साथ ही साथ असंभाविता शीलगुण भी उनमें मौजूद हो, उसे क्रमबद्ध प्रतिदर्शन परियोजना कहा जाता है। क्रमबद्ध प्रतिदर्शन व्यक्तियों की पूर्वनिर्धारित सूची से प्रत्येक (nth) nवाँ व्यक्ति को चयन करते हुए उनका एक समूह तैयार करने की प्रक्रिया को कहा जाता है।"
उदाहरण के लिये यदि किसी फैक्ट्री में कार्यरत 1000 कर्मचारियों पर कोई सर्वेक्षण करना है तो इन कर्मचारियों की एक सूची प्राप्त कर ली जायेगी और इसमें किसी भी एक कर्मचारी का यदष्च्छया चयन कर लिया जायेगा माना ये कर्मचारी सूची क्रम में 7वाँ है तो प्रतिदर्श में इसका चयन करने बाद हर 5वाँ या 10वाँ व्यक्ति शामिल कर वांछित न्यादर्श प्राप्त कर लिया जायेगा ।
(v) हिमकंदुक प्रतिदर्शन / प्रतिचयन (Snowball Sampling)
हिमकंदुक प्रतिदर्शन एक ऐसा असंभाविता प्रतिदर्शन है जिसका प्रयोग शोधकर्ता उस परिस्थिति में करता है जब वह व्यक्तियों के बीच अनौपचारिक सामाजिक सम्बन्धों का अध्ययन करना चाहता है। हिमकंदुक प्रतिदर्शन को परिभाषित करते हुए यह कहा जा सकता है कि यह प्रतिदर्शन की एक ऐसी विधि हे जिसमें किसी सीमित समूह या संगठन में सभी सदस्यों को अपने अपने दोस्तों एवं साथियों (associates) की पहचान करने को कहा जाता है और इस प्रकार से शोधककर्ता के समक्ष परिचितों का एक समूह उभर कर सामने आता है जिससे उसे उस समूह के पूर्व सामाजिक पैटर्न (तरीकों / प्रारूप ) का पता चल जाता है। इस तरह के प्रतिदर्शन में कुछ खास खास व्यवहार को जैसे दोस्ताना सम्बन्ध को आधार बनाया जाता है। मूलतः हिमकंदुक प्रतिदर्शन का स्वरूप समाजमितीय पर आधारित होता है। इसमें प्रत्येक व्यक्ति को यह बताना अनिवार्य होता है कि वो सम्बन्धित जानकारी / सूचना को कहाँ से प्राप्त करते हैं ? इससे शोधकर्ता को एक परस्पर अन्तः क्रिया का पैटर्न पता चल जाता है।