शोध प्रतिचयन एवं आँकड़ो का प्रतिचयन
शोध प्रतिचयन एवं आँकड़ो का प्रतिचयन
व्यवहार विज्ञानों के क्षेत्र में अनेक ऐसे महत्वपूर्ण अनुसन्धान सम्पन्न होते हैं जो इकाइयों के एक छोटे समूह पर किये जाते हैं, परन्तु उस पर आधारित निष्कर्ष इकाइयों की वृहद समष्टि पर भी लागू माने जाते हैं। अनेक कारणों से वृहद् समष्टि की सभी इकाइयों का अध्ययन करना प्रायः सम्भव नहीं होता। उस स्थिति में इकाइयों के एक छोटे समूह का ही अध्ययन करना पड़ता है। यदि समूची वृहद् समष्टि का अध्ययन करना सम्भव भी हो, तो भी ऐसा करना बुद्धिमानी नहीं होगी क्योंकि इसमें बहुत अधिक समय, धन एवं शक्ति का व्यय होगा। ऐसी स्थिति में थोड़ी सी त्रुटि के साथ समष्टि के एक छोटे समूह पर प्राप्त परिणामों को यदि पूरी समष्टि पर लागू किया जाय तो यह बेहतर होगा क्योंकि इससे समय, धन एवं श्रम के अधिक व्यय को बचाया जा सकेगा। उपरोक्त बात को इस प्रकार से भी समझा जा सकता है कि एक बोरा दाल खरीदने के लिये उसमें एक एक मुटठी दाल का निरीक्षण करके पूरी दाल का बोरा खरीदना अधिक श्रेयकर होगा अपेक्षाकृत पूरे दाल के बोरे के एक एक दाने को जाँच करके खरीदने के क्योंकि इसमें समय और श्रम अधिक लगेगा जबकि परिणाम लगभग समान होगें। वास्तविक जीवन की अनेक परिस्थितियों में हम ऐसा ही करते हैं।
अनुसन्धान के क्षेत्र की भी अनेक परिस्थितियों में ऐसा ही किया जाता है। एवं व्यवहार विज्ञान, विशेषकर, मनोविज्ञान, समाजशास्त्र एवं शिक्षा के क्षेत्र में, इस प्रकार के अनुसन्धान बहुत अधिक प्रचलित हैं। इसमें इकाइयों की किसी वृहद समष्टि में से कुछ इकाइयों के समूह को लेकर उनका अध्ययन किया जाता है। तथा उनके आधार पर जो निष्कर्ष निकलता है उसे सम्पूर्ण समष्टि के विषय में सही समझा जाता है। उसे समूची समष्टि की विशेषता समझा जाता है। सम्पूर्ण समष्टि की व्याख्या उसके आधार पर की जाती है। इस छोटे समूह को ही समष्टि का न्यादर्श अथवा प्रतिदर्श (Sample) कहते हैं।
न्यादर्श के अध्ययन के आधार पर सम्पूर्ण समष्टि की
विशेषताओं के विषय में ज्ञान प्राप्त करना, समष्टि की व्याख्या करना, उसके विभिन्न पक्षों का अध्ययन करना, उसके विभिन्न
पक्षों का अध्ययन करना, अनुसंधान की
सर्वमान्य वैज्ञानिक प्रक्रिया है । परन्तु यह बात उसी सीमा तक सही है जहाँ तक
न्यादर्श का चयन वैज्ञानिक विधियों द्वारा किया गया हो क्योंकि न्यादर्श के आधार
पर समष्टि के विषयमें सही-सही निष्कर्ष निकाल पाना तभी सम्भव है जब न्यादर्श
समष्टि का सही सही अध्ययन करता हो । अतः इस सन्दर्भ में न्यादर्श एवं उसके
प्रतिचयन की विधियों के विषय में विस्तार से जानना आवश्यक है।
समष्टि की संकल्पना
समष्टि शब्द अंग्रेजी के Universe का हिन्दी रूपान्तरण है जिसका बहुत व्यापक अर्थ
है। समष्टि का तात्पर्य समस्त ब्रह्माण्ड में उपस्थित समस्त व्यक्तियों, वस्तुओं, जीवों, पेड़-पौधों, धातुओं अर्थात
सजीव एवं निर्जीव समस्त भौतिक वस्तुओं आदि की इकाइयों की समस्त जहवसंख्या से है।
इसे निम्न चित्र द्वारा स्पष्ट रूप से समझा जा सकता है।
अतः चित्र से स्पष्ट रूप से समझ सकते हैं कि ब्रह्माण्ड में
उपस्थित वे समस्त भौतिक तत्व जिनके अस्तित्व को हम अनुभव कर सकते हैं समष्टि है और
इस समष्टि में उपस्थित हर विशेष प्रकार के तत्व की समस्त संख्या को उस तत्व की
जीवसंख्या कहेंगे अर्थात् जिस भौतिक तत्व का अध्ययन हम करना चाहते हैं उसकी समस्त
इकाइयों की कुल संख्या उस विशेष भौतिक तत्व की जीवसंख्या कहलायेगी । उदाहरण के
लिये बिल्लियों पर किये गये किसी भी अध्ययन में बिल्लियों की समस्त संख्या उस
अध्ययन की जीवसंख्या (Population)
होगी।
स्पष्ट है कि समष्टि एवं जनसंख्या में बड़ा अन्तर है परन्त व्यवहारिक रूप में अधिक समष्टि एवं जनसंख्या को एक दूसरे के पर्यायवाची के रूप में प्रयोग किया जाता है जहाँ पर समष्टि का तात्पर्य जनसंख्या अथवा जीवसंख्या से होता है। एक अन्य उदाहरण में यदि कानपुर शहर के माध्यमिक विद्यालयों की शिक्षा में भूमिका का अध्ययन करना है तो इस स्थिति में कानपुर शहर के समस्त माध्यमिक विद्यालय उपरोक्त अध्ययन की जनसंख्या या जीवसंख्या ( Population) होगें ।
जीवसंख्या के प्रकार
सामान्यता जीवसंख्या के दो प्रकार प्रचलित है
1. परिमित जीवसंख्या (Finite Population)
2. अपरिमित
जीवसंख्या ( Infinite
Population)
परिमित जनसंख्या या जीवसंख्या से तात्पर्य ऐसी जीवसंख्या से
है जिसके सदस्यों की गिनती की जा सकती है जबकि अपरिमित जीवसंख्या के सदस्यों की
गिनती नहीं की जा सकती है। उदाहरण स्वरूप सभी विश्वविद्यालय शिक्षकों को समूह
परमित जीव संख्या है जबकि समस्त पक्षियों की संख्या अपरिमित जीवसंख्या है ।
कुछ विद्वानों को जनसंख्या के दो अन्य प्रकार सम एवं विषम
जीवसंख्या भी बताये हैं । सम जीवसंख्या (Homogeneous Population) उसे कहते हैं
जिसकी सभी इकाइयो के बीच उनकी विशेषताओं के दृष्टिकोण से पर्याप्त समानता होती है।
परंतु जब इकाइयों के समूह विभिन्न दृष्टिकोणों से पर्याप्त भिन्नता रखते हुये
जीवसंख्या में समाये रहते हैं तो उसे विषम जीवसंख्या (Heterogeneous Population) कहते हैं।
इसके अतिरिक्त कभी कभी लक्ष्यगत समष्टि की सभी इकाइयाँ अनुसन्धान
हेतु उपलब्ध नहीं हो पाती तथा उनके विषय शोध-ऑकड़े (data) एकत्र करना सम्भव
नहीं हो पाता ऐसी स्थिति में उन इकाइयों को अध्ययन में सम्मिलित किया जाता है जो
शोध हेतु उपलब्ध हो जाती है। इसे अभिगम्य अथवा प्राप्य समष्टि (Accessible Population) कहते हैं। इस प्रकार
लक्ष्यगत समष्टि एवं अभिगम्य समष्टि के बीच अन्तर किया गया है। परंतु यदि किसी शोध
में लक्ष्यगत समष्टि की सभी इकाइयों के बारे में जानकारी प्राप्त करना सम्भव हो तो
वही लक्ष्यगत एवं वही अभिगम्य समष्टि होगी, दोनों मे कोई अन्तर नहीं होगा।
समष्टि अथवा जनसंख्या अथवा जीवसंख्या के सबसे छोटे भाग अथवा
अंग को इकाई (Unit) कहते हैं। अतः
जीवसंख्या इन इकाइयों अथवा व्यक्तियों का सामूहिक रूप होता है।
न्यादर्श अथवा प्रतिदर्श (Sample) :
जीवसंख्या की समस्त इकाइयों में से अध्ययन हेतु कुछ इकाइयों को एक निश्चित विधि द्वारा चुन लिया जाता है। उन संकलित इकाइयों के समूह को कन्यादर्श कहते है । इस न्यादर्श के आधार पर ही अध्ययनगत निष्कर्ष घटित होते हैं तथा इन्हीं न्यादर्श आधारित निष्कर्षो के आधार पर जीवसंख्या अथवा समष्टि के विषय में उददेश्यों के अनुरूप सामान्यीकरण किया जाता है। इसके पीछे अवधारणा यह रहती है कि जो कुछ न्यादर्श के विषय में पाया गया है वो उस जीवसंख्या पर भी समान रूप से लागू होगा। परन्तु यह बात सदैव सही नहीं होती यह तभी सम्भव है जब न्यादर्श का चयन वैज्ञानिक विधि से किया गया हो क्योंकि तभी चयनित न्यादर्श पूर्णरूप से प्रतिनिधि न्यादर्श ( Representative Sample) होंगे। यदि इस विधि से न्यादर्श का चयन नहीं किया गया है तो वह जीवसंख्या का प्रतिनिधित्व नहीं करेगा और उस स्थिति में जो अध्ययनगत निष्कर्ष निकलेगा वह जीवसंख्या के विषय में सही नहीं होगा और ऐसा न्यादर्श अभिनत्यात्मक न्यादर्श (Biased Sample) कहा जाता है।
अभिनत्यात्मक न्यादर्श की स्थिति में जो सांख्यिकीय
न्यादर्श प्राप्त होता है वह उस सांख्यिकीय मान से बहुत भिन्न होता है, जो सम्पूर्ण
जीवसंख्या के अध्ययन पर उपलब्ध होता है। उदाहरण के लिये यदि कोई अध्ययन उत्तर
प्रदेश के माध्यमिक स्तर में पढ़ने वाले छात्रों पर किया जाय और न्यादर्श के रूप
में सिर्फ उन्हीं विद्यालयों को लिया जाय जो सिर्फ शहरों में स्थित है अर्थात गॉव
एवं कस्बे के विद्यालयों को न लिया जाय, तो ऐसा न्यादर्श अभिनत्यात्मक न्यादर्श (biased sample) कहलायेगा और ऐसे
प्रतिदर्श से प्राप्त निष्कर्ष को उत्तर प्रदेश के सभी माध्यमिक स्तर के
विद्यालयों पर समान रूप से लागू नहीं किया जा सकेगा क्योंकि इन पर आधारित मापांकों
में स्थायी (fixed) अथवा स्थिर (Constant) त्रुटि ( error) का समावेश रहता
है।
प्रतिनिधि - न्यादर्श वह न्यादर्श होता है जिसमें समष्टि का
प्रतिरूप अथवा उसकी प्रतिकर्षत से सम्बन्धित सभी लक्षणों, गुणों एवं
विशेषताओं आदि का न्यूनाधिक मात्रा में समावेश हो । यदि न्यादर्श का चयन
समसम्भाविक विध (Random
Method) से किया जाता है तो उससे प्राप्त न्यादर्श प्रतिनिधि
न्यादर्श होता है और ऐसे न्यादर्श पर आधारित जीवसंख्या से सम्बन्धित सांख्यिकीय
मान का पूर्वानुमान (Prediction)
अधिक सही सही
किया जा सकता है । उसमें यदि त्रुटि की सम्भावना होती भी है तो उसका अनुमान लगाया
जा सकता है।
प्रतिदर्श के प्रकार (Types of Sampling) :
व्यवहारपरक शोधों में प्रयुक्त होने वाले प्रतिदर्शन या
न्यादर्शन ( Sampling) को मूलतः दो
विस्तृत भागों में बाँटा जाता है-
(अ) संभाविता प्रतिदर्शन (Probability Sampling)
(ब) असंभाविता
प्रतिदर्शन ( Non
Probability Sampling) इन दोनों तरह के प्रतिदर्शन परियोजनाओं (Sampling Plans) का वर्णन
निम्नांकित है-
1 संभावविता प्रतिदर्शन (Probability Sampling)
जैसा कि इसके नाम से ही स्पष्ट है संभावित प्रतिदर्शन वैसे प्रतिदर्शन परियोजना (Sampling Plan) को कहा जाता है जिसमें जीवसंख्या (Population के सदस्यों का प्रतिदर्शन ( Sampling) में सम्मिलित किये जाने की संभावना (Probability) ज्ञात होती है। आदर्शतः ( ideally) संभाविता प्रतिदर्शन में शोधकर्ता (researcher) निम्नांकित शर्तों से संतुष्ट होना आवश्यक है।
(i) जीवसंख्या जिससे
प्रतिदर्श का चयन किया जाने वाला है, उसका आकार अवश्य ही ज्ञात होना चाहिये।
(ii) प्रतिदर्श की
वांछित संख्या निर्दिष्ट हो तथा (iii) जीवसंख्य के प्रत्येक सदस्य का प्रतिदर्श में सम्मिलित किये
जाने की संभावना (Probability)
हो ।
उपरोक्त तीन शर्तो में से पहली और तीसरी शर्त कुछ ऐसी है कि
कभी कभी शोधकर्ता उसे ठीक ढंग से पूर्ण नही कर पाता है। फिर भी संभाविता
प्रतिदर्शन का एक धनात्मक गुण यह है कि इससे प्राप्त होने वाले प्रतिदर्श
प्रतिनिधि तत्व (representative)
होते हैं।
फलस्वरूप इने मिलने वाले निष्कर्ष (Conclusion) को काफी विश्वास के साथ उस जीवसंख्या ( Population) जिससे प्रतिदर्श
का चयन किया गया है तथा उस तरह की समान जीवसंख्या (Similar Population ) पर लागू किया जा
सकता है।
संभाविता प्रतिदर्श के निम्नाकित तीन प्रमुख प्रकार है-
(i) साधारण यादृच्छिक प्रतिदर्शन ( Simple random sampling)
(ii) स्तरित यादृच्छिक प्रतिदर्शन (Stratified random sampling)
(iii) क्षेत्र या गुच्छ प्रतिदर्शन ( Area or cluster sampling)
2 असंभावविता
प्रतिदर्शन ( Non
Probability Sampling)
असंभावित प्रतिदर्शन वैसी प्रतिदर्शन परियोजना है जिसमें
जीवसंख्या के सदस्यों को प्रतिदर्श (Sample) में सम्मिलित किये जाने की संभावना ज्ञात नही
होती है। इसके अलावा इस तरह के प्रतिदर्शन में शोधकर्ता जीवसंख्या को स्पष्ट पहचान
करने की चिन्ता नहीं करता है और उसे अपनी आवश्यकतानुसार एवं इच्छानुसार कुछ
सदस्यों को चयन कर प्रतिदर्शन में शामिल कर लेता है।
असंभाविता प्रतिदर्शन का सबसे प्रमुख लाभ यह है कि इसे कम समय, धन एवं श्रम के साथ सरलतापूर्वक तैयार किया जा सकता है। इसकी सबसे प्रमुख परिसीमा यह है कि इस प्रकार प्राप्त प्रतिदर्श अपनी जीवसंख्या का सही सही प्रतिनिधित्व नहीं कर पाते हैं। फलस्वरूप, इससे प्राप्त निष्कर्ष का सामान्यीकरण उस सम्पूर्ण जीवसंख्या या उससे मिलती जुलती जीवसंख्या की इकाइयों के लिये सही-सही ढंग से नहीं किया जा सकता है।
असंभाविता प्रतिदर्शन के मुख्य रूप से निम्नांकित प्रकार हैं
(i) कोटा प्रतिदर्शन (Quota sampling)
(ii) आकस्मिक प्रतिदर्शन ( Accidental or incidental sampling)
(iii) उद्देश्यपूर्ण प्रतिदर्शन ( Purposive sampling)
(iv) क्रमबढ़ प्रतिदर्शन ( Systematic sampling)
(v) हिमकंदुक प्रतिदर्शन ( Snowball sampling)