वर्णनात्मक अनुसन्धान के प्रकार
वर्णनात्मक अनुसन्धान के प्रकार
विभिन्न लेखकों ने वर्णनात्मक अनुसन्धान को कई प्रकार से वर्गीकृत करने का प्रयास किया है जिसमें वान डैलेन द्वारा दिया गया वर्गीकरण अधिक मान्य है उनके अनुसार वर्णनात्मक अनुसन्धान को निम्नलिखित 3 मुख्य भागों में बाँटा गया है :-
1. सर्वेक्षण अध्ययन
2. अन्तर सम्बन्धों का अध्ययन
3. विकासात्मक अध्ययन
1. सर्वेक्षण अध्ययन -
शब्द सर्वेक्षण (Servey) की उत्पत्ति शब्दों 'Sur' या 'Sor' तथा Veeir या 'Veior' से हुई है जिसका अर्थ क्रमश: ऊपर से और 'देखना होता है। सामान्यतः सर्वेक्षण 'वर्तमान में क्या रूप है?' इससे सम्बन्धित है। वर्तमान में क्या स्वरूप है ? इसकी व्याख्या एवं विवेचना करता है इसका सम्बन्ध परिस्थितियां या सम्बन्ध जो वास्तव में वर्तमान है, कार्य जो रहा है प्रक्रिया जो चल रही है, से होता है।
सर्वेक्षण अध्ययन के द्वारा हम तीन प्रकार की सूचनाएं प्राप्त करने का प्रयास करते हैं।
1. वर्तमान स्थिति क्या है ? अथवा वर्तमान स्तर का निर्धारण,
2. हम क्या चाहते हैं? अथवा वर्तमान स्तर और मान्य स्तर में तुलना,
3. हम उन्हें कैसे प्राप्त कर सकते हैं ? अथवा वर्तमान स्तर का विकास करना ।
सर्वेक्षण अध्ययन के प्रकार
सर्वेक्षण अध्ययन अनेक प्रकार का हो सकता है जिनके मुख्य प्रकार निम्नलिखित है :-
1. विद्यालय सर्वेक्षण
2. कार्य विश्लेषण
3. प्रलेखी विश्लेषण
4. जनमत सर्वेक्षण
5. समुदाय सर्वेक्षण
1. विद्यालय सर्वेक्षण
इसके अन्तर्गत प्राप्त सूचना के आधार पर विद्यालयों - की क्षमता और प्रभावशीलता का विकास करने का प्रयास किया जाता है। इस प्रकार के सर्वेक्षण में निम्नलिखित प्रमुख उपकरणों का प्रयोग किया जाता है-
1. निरीक्षण
2. प्रश्नावली
3. साक्षात्कार
4. मानक परीक्षण
5. प्राप्तांक पत्र
6. मूल्यांकन मापदण्ड इनसे प्राप्त ऑकड़ो के आधार पर अनेक प्रशासकीय, आर्थिक तथा पाठ्यक्रम सम्बन्धी सुधार किये जाते हैं ।
2. कार्य विश्लेषण :-
1 कार्य विश्लेषण द्वारा कार्यकर्ताओं की कार्य-पद्धति, कमजोरियों व अक्षमताओं को पहचाना जाता है।
2 मानवशक्ति के सर्वोत्तम सदुपयोग की दृष्टि से कार्य - वितरण समुचित ढंग से किया जाता है।
3. विभिन्न प्रकार के उत्तरदायित्व तथा कौशल हेतु वेतन तथा भत्ते को निर्धारण किया जाता है।
4. सेवाकालीन एवं भावी कार्यकर्ताओं के लिये प्रशिक्षण कार्यक्रम व शैक्षिक सामग्री का निर्माण किया जाता है।
5. प्रशासनिक संगठन व क्रिया के बेहतर संचालन के लिये आवश्यक रूप रेखा का निर्माण किया जाता है।
अतः कार्य-विश्लेषण द्वारा कार्यकर्ताओं की सेवाओ में उनकी वर्तमान स्थिति को तथा उनकी कमजोरियों को जानकर उसे सुधारने का प्रयास किया जाता है।
3. प्रलेखी विश्लेषण -
प्रलेखी विश्लेषण अनुसन्धानकर्ता के लिये ऑकड़े प्राप्त करने की दृष्टि से महत्वपूर्ण है। इसे कभी-कभी विषय वस्तु विश्लेषण, क्रिया अथवा सूचनात्मक विश्लेषण भी कहा जाता है।
प्रलेखी विश्लेषण के अंतर्गत भूतकालीन व वर्तमान अभिलेखों का विश्लेषण किया जाता है। यह प्रलेख लेख, कहानी, उपन्यास, कविता, टी०वी०कथानक आदि कुछ भी हो सकता है।
प्रलेखी विश्लेषण के द्वारा व्यक्तियों की मनोवैज्ञानिक दशाओं, मूल्यों, रूचियों, अभिवृत्तियों, तथा पक्षपातों आदि का ज्ञान प्राप्त कर सकते हैं। इसके अलावा प्रलेखी विश्लेषण द्वारा विद्यालय, व्यक्ति व समाज की कमजोरियों का ज्ञान प्राप्त कर सकते हैं। इसके अतिरिक्त यह विद्यालय तथा समाज की विशिष्ट अवस्थाओं तथा क्रियाओं का ज्ञान प्राप्त करने में सहायक होता है।
4. जनमत सर्वेक्षण -
औद्योगिक, राजनीतिक, शैक्षिक तथा अन्य क्षेत्र में सफल होने के लिये नेताओं को अनेक निर्णय लेने होते हैं ये नेता किसी अनुमान अथवा | दबाव में आकर निर्णय लेने की जगह जनमत को ध्यान में रखकर निर्णय लेना पसन्द करते हैं। जनमत संग्रह के द्वारा राजनैतिक नेता यह जानने का प्रयास करते हैं कि किसी कार्यक्रम विशेष के प्रति जनता का रूख क्या है? इसी प्रकार शिक्षा के क्षेत्र में जनमत संग्रह के द्वारा विद्यालय की क्रियाओं के प्रति जनता के रूख में जानने का प्रयास किया जाता है। जनमत सर्वेक्षण में उपकरण के रूप में प्रायः प्रश्नावली तथा साक्षात्कार का प्रयोग बहुतायत से किया जाता है। जनमत सर्वेक्षण के परिणाम विश्वसनीय व वैध होने के लिये न्यायदर्श का चुनाव बड़ी सावधानी से करना चाहिये। यह जनसंख्या का प्रतिनिधित्व करने वाला होना चाहिये। साथ ही संख्या में पर्याप्त व इसे व्यापक रूप से चुना होना चाहिये तथा इसका चुनाव पक्षपता रहित ढंग से होना चाहिये। तभी विभिन्न क्षेत्रों में चल रहे कार्यक्रमों की कमियों को पहचान कर उसे प्रभावी ढंग से लागू किया जा सकता है।
5. समुदाय सर्वेक्षण
इसे सामाजिक सर्वेक्षण या क्षेत्रीय सर्वेक्षण भी कहा जाता है। यह किसी विशेष अवस्था का सर्वेक्षण हो सकता है जैसे स्वास्थ सेवाओं का सर्वेक्षण, काल- अपराध का सर्वेक्षण आदि इसके अलावा यह समाज के किसी विशेष अंग से सम्बन्धित हो सकता है जैसे हरिजनों पिछड़ी जातियों की समस्याओं से सम्बन्धित सर्वेक्षण / समुदाय सर्वेक्षण के द्वारा समुदाय के सामाजिक जीवन को प्रभावित करने वाले निम्नलिखित तथ्यों का अध्ययन किया जाता है । जैसे-
(1) इतिहास किसी समुदाय विशेष के उदय व विकास की कहानी क्या है - ? तथा किन परिस्थितियों में, किसके नेतृत्व में किसी प्रकार व किन कारणों से क्या-क्या परिवर्तन आये हैं यह जानने का प्रयास किया जाता है।
(2) भौगोलिक तथा आर्थिक परिस्थितियाँ - इसके अन्तर्गत हम यह जानने का प्रयास करते हैं कि किस प्रकार विभिन्न भौगोलिक व आर्थिक परिस्थितयां समाज को प्रभावित कर रही हैं।
(3) सरकार व कानून — इसके द्वारा हम देखते है कि किस प्रकार राजकीय व्यवस्था व कानून किस रूप में समाज को प्रभावित कर रहे हैं ?
(4) जनसंख्या आयु, लिंग, जाति, रंग, शिक्षा, पेशा, भाषा आदि की दृष्टि से - जनसंख्या कैसी है, कितनी है, जन्म व मृत्यु दर क्या है तथा यह किस प्रकार समाज को तथा किन रूपों में प्रभावित कर रही है ?
समुदाय - सर्वेक्षण में उपकरण के रूप में प्रश्नावली, साक्षात्कार तथा प्रत्यक्ष निरीक्षण एवं सांख्यिकी विधियों का प्रयोग कर विभिन्न अधिकारियों, सामाजिक संस्थाओं, बालकों, शिक्षकों तथा विभिन्न अभिलेखों से आंकड़े प्राप्त किये जाते हैं।
इसमें अनुसन्धानकर्ता केवल वर्तमान स्थिति का सर्वेक्षण ही नहीं करता है बल्कि उन तत्वों को ढूँढने का प्रयास भी करता है जो घटनाओं के सम्बन्ध के विषय में सूझ प्रदान कर सके।
अन्तर-सम्बन्धों के अध्ययन मुख्यतः तीन प्रकार के होते हैं।
1. व्यक्ति अध्ययन (Case Study )
2. कार्य-कारण तुलनात्मक अध्ययन (Causal Comparative Study )
3. सह- सम्बन्धात्मक अध्ययन (Correlational Study)
1. व्यक्ति अध्ययन (Case Study) -
इसके अन्तर्गत किसी सामाजिक इकाई एक व्यक्ति, परिवार समूह, सामाजिक संस्था अथवा समुदाय का गहन अध्ययन किया जाता है। इसमें किसी सामाजिक इकाई को प्रभावित करने वाली भूतकालीन घटनाओं अथवा अनुभूतियों, वर्तमान स्थिति एवं वातावरण के सम्बन्ध में आंकड़े एकत्र किये जाते हैं। व्यक्ति अध्ययन सामाजिक कार्यकर्ता या अनुसन्धानकर्ता किसी विशेष परिस्थिति का निदान करने व उसके उपचार का सुझाव देने की दृष्टि से किया जाता है। इसके अन्तर्गत सामान्य की अपेक्षा असामान्य व्यक्ति अथवा इकाई के अध्ययन पर जोर दिया जाता है। व्यक्ति अध्ययन में प्रायः निम्नलिखित स्रोतों का प्रयोग किया जाता है-
क. व्यक्तिगत आलेख आत्मकथायें डायरी व पत्र व स्वीकारोक्तियाँ आदि ।
ख. सम्बन्धित व्यक्ति आदि। - माता-पिता, पड़ोसी, मित्र, अध्यापक, रिश्ते-नातेदार
ग. जीवनवृत्त आलेख ( Life History ) - यह व्यक्ति के जीवन की उन घटनाओं का आलेख होता है जो उससे सीधे सम्बन्धित होते हैं।
घ. राजकीय आलेख
विद्यालय प्रमाण, पुलिस व न्यायालय रिकार्ड आदि । व्यक्ति अध्ययन में प्रयुक्त कुछ प्रमुख उपकरण निम्नलिखित है-
1. निरीक्षण विधि
2. साक्षात्कार विधि
3. साक्षात्कार अनुसूची
4. प्रश्नावली विधि
5. मनोवैज्ञानिक परीक्षण
6. मुक्त साहचर्य
7. वैयक्तिक अध्ययन तथ्य प्रपत्र आदि ।
2. कार्य-कारण तुलनात्मक अध्ययन (Causal Comparative Study )
इसे कार्योत्तर या घटनोत्तर अनुसन्धान के नाम से भी जाना जाता है। इसके अन्तर्गत किसी समस्या के समाधान को उसके कार्यकारण सम्बन्ध के आधार पर ढूँढते है तथा यह जानने का प्रयास करते हैं कि विशेष व्यवहार, परिस्थिति अथवा घटना के घटित होने से सम्बन्धित कारक कौन-कौन से हैं ? कार्य-कारण तुलनात्मक अध्ययन विधि का प्रयोग उन शोध कार्यों के होता है जहाँ पर परीक्षण नहीं हो सकता है या नहीं किया जाना चाहिये जैसे किशोरों के अपराधवृत्ति का अध्ययन, मोटर दुर्घटना का अध्ययन आदि।
यह विधि मुख्य रूप से इस धारणा पर आधारित है कि किसी घटना अथवा परिस्थिति के उत्पन्न होने का कोई न कोई कारण अवश्य होता है । यदि कारण उपस्थित है तो घटना अवश्य घटित होगी तथा यदि वह कारण अनुपस्थित है तो वह घटना नहीं घटेगी। इस धारणा को आधार बनाकर घटित घटना के निष्कर्ष को आधार बनाकर विश्लेषणात्मक एंव तुलनात्मक विधि से पीछे की ओर चलते हैं और कारणों को ज्ञात करते हैं।
3. सह-सम्बन्धात्मक अध्ययन (Correlational Study ) -
मोले के अनुसार - "सहसम्बन्ध दो चरों में सम्बन्ध स्पष्ट करते हुए उनके विषय में भविष्य कथन भी करता है।" अतः यह दो या दो से अधिक चरों, घटनाओं या वस्तुओं के पारस्परिक सम्बन्ध के अध्ययन से सम्बन्धित है। कार्यकारण सम्बन्ध को समझने की दृष्टि से इस विधि का प्रयोग किया जाता है जैसे यदि | अनुसन्धानकर्ता शारीरिक और मानसिक विकास के सम्बन्ध का अध्ययन करना चाहता है। तो वह सहसम्बन्ध शोध का प्रयोग करेगा। जब दो चरों में एक चर के बढ़ने से दूसरे चर में वृद्धि या घटाव हो तथा एक चर के घटाव से दूसरे चर में वृद्धि या घटाव हो, हम कहते है कि दोनो चरों में सह सम्बन्ध है सह सम्बन्ध मुख्यतः तीन प्रकार के होते हैं.
1. धनात्मक सहसम्बन्ध
जब एक चर के बढ़ने से दूसरे चर में भी वृद्धि हो अथवा एक चर के घटने से दूसरे चर में भी घटाव हो तो इस प्रकार का सहसम्बन्ध धनात्मक सहसम्बन्ध कहलाता है।
2. ऋणात्मक सहसम्बन्ध
जब एक चर में वृद्धि होने पर दूसरे चर में घटाव - हो या एक चर में घटाव होने पर दूसरे चर में वृद्धि हो, तो इस प्रकार का सहसम्बन्ध ऋणात्मक सहसम्बन्ध कहलाता है।
3. शून्य सहसम्बन्ध
जब एक चर के घटाव या वृद्धि का दूसरे चर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है, तो इसे शून्य सहसम्बन्ध कहा जाता है। सह सम्बन्ध की मात्रा सह सम्बन्ध का मान +1के मध्य ही होता है। शैक्षिक, - मनोवैज्ञानिक एवं सामाजिक परिस्थितियों में इसका मान पूर्ण धनात्मक (+1) या पूर्ण ऋणात्मक (- 1) सामान्यतः प्राप्त नही होता है।
सह सम्बन्ध का प्रयोग अनुसन्धान में उपकरणों को तैयार करने, उसकी विश्वसनीयता तथा वैधता ज्ञान करने के लिये किया जाता है। इसके अलावा यह उपलब्ध ऑकड़ों के आधार पर यह शैक्षणिक सफलता की भविष्यवाणी किसी समूह के लिये करने में सक्षम है।
विकासात्मक अध्ययन
विकासात्मक अध्ययन केवल वर्तमान स्थिति एंव पारिस्परिक सम्बन्ध को ही स्पष्ट नहीं करता है बल्कि यह भी स्पष्ट करता है कि समय व्यतीत होने के साथ इनमें क्या परिवर्तन आये हैं? इसके अन्तर्गत अनुसन्धानकर्ता महीनों एवं वर्षो तक चरों के विकास का अध्ययन करता है। इसके अन्तर्गत दो प्रकार के अध्ययन शामिल हैं-
(1) विकासात्मक अध्ययन
(2) उपनति अध्ययन
(1) विकासात्मक अध्ययन-
यह अध्ययन मुख्यतः दो प्रकार से किया जा सकता है।
क. अनुदैर्ध्य अध्ययन
ख. प्रतिनिध्यात्मक अध्ययन
क. अनुदैर्घ्य अध्ययन (Longitudinal Study)
इस प्रकार के अध्ययन में बालकों के विकास की स्थिति का अध्ययन थोड़े-थोड़े समय के अन्तर पर करते हैं। जैसे- एक समूह के बालकों का अनेक चरों से सहसम्बन्ध का अध्ययन 12. 13, 14, 15 और 16 वर्ष की आयु में करके रेखाचित प्रस्तुत करना ।
ख. प्रतिनिध्यात्मक अध्ययन (Cross-Sectional Study)
इसमें एक ही - बालक अथवा समूह का वर्षों तक अध्ययन करने की जगह एक ही समय में विभिन्न आयु के बालकों का अध्ययन एक साथ करते हैं। जैसे किसी चर के सम्बन्ध में अध्ययन करने के लिये एक ही समय एक साथ 12, 13, 14 और 15 वर्ष की आयु के बालकों को लेना ।
वास्तव में अनुदैर्ध्य अध्ययन ही विकासात्मक अध्ययन की सर्वोत्तम विधि है किन्तु समय और श्रम की बचत के कारण प्रतिनिध्यिात्मक अध्ययन का प्रयोग बहुतायत से होता है। इससे अनुसन्धानकर्ता अल्प समय में ही आवश्यक ऑकड़े जुटा सकने में सक्षम होता है ।
(2) उपनति अध्ययन ( Trend Study ) -
यह वास्तव में ऐतिहासिक अध्ययन अभिलेखी अध्ययन और सवेक्षण अनुसन्धान का मिश्रण है। इसके द्वारा
क. सामाजिक, राजनैतिक और आर्थिक ऑकड़ो की प्राप्ति की जाती है ।
ख. इन ऑकड़ों के विश्लेषण द्वारा वर्तमान उपनति की व्याख्या और वर्णन किया जाता है।
ग. इसके आधार पर भविष्य में क्या होने वाला है। इसकी भविष्यवाणी की जाती है ।
किसी भी नई नीति का निर्धारण करने व उसके नियोजन से पूर्व उपनति अध्ययन अवश्य करनी चाहिये। इसके अभाव में नीति की प्रभावशीलता घट सकती है। व्यक्तियों का रूझान किस ओर है? वर्तमान परिस्थितियाँ समाज को किधर ले जायेगी ? अगले 10 वर्ष में विधालयों में छात्रों की संख्या कितनी हो जायेगी ? इस प्रकार के अध्ययन उपनति अध्ययन कहे जाते हैं.
अतः वर्णनात्मक अनुसन्धान में वर्तमान हालातों को रिकार्ड किया जाता है। साथ ही उनका वर्णन व विश्लेषण भी किया जाता है तथा समुचित व्याख्या भी की जाती है। इस प्रकार के शोध अपरिचलित चरों (non-manipulation variable ) के बीच के सम्बन्धों का साधारण का सामान्य परिस्थिति में विश्लेषण किया जाता है। इस प्रकार का शोध मुख्यतः 'क्या है' से सम्बन्धित है। यह इसी 'क्या है' का वर्णन और व्याख्या करता है।