प्रायोगिक अभिकल्प के प्रकार |Types of experimental design

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प्रायोगिक अभिकल्प के प्रकार (Types of experimental design)

प्रायोगिक अभिकल्प के प्रकार |Types of experimental design


प्रायोगिक अभिकल्प के प्रकार : 

प्रायोगिक अभिकल्प विभिन्न प्रकार के होते हैं। इनमें अन्तर उनकी जटिलता तथा नियन्त्रण की पर्याप्तता का होता है। किसी भी प्रायोगिक अभिकल्प का चुनाव कुछ कारकों पर निर्भर करता है जैसे- प्रयोग के उद्देश्य तथा प्रकृति मेंचरों के प्रकार पर जिन्हें संचालित ( Monipulates ) करना हैप्रयोग की सुविधा तथा प्रयोग की परिस्थितियों पर तथा शोधकर्ता की कार्यकुशलता पर । अभिकल्प रचना में सामान्यतः समूह के अक्षर से, RG यादृच्छिक चयनित समूह, MG समेल समूह, T उपचार, C नियन्त्रण तथा प्रेक्षण या निरीक्षण के लिये उपुयक्त किये जाते हैं।

 


प्रायोगिक अभिकल्प को मुख्य रूप से तीन भागों में वर्गीकृत किया जाता है-

 

(1) पूर्व - प्रायोगिक अभिकल्प (Pre-experimental design) 

(2) अर्ध प्रयोगिक अभिकल्प (Quasi experimental design) 

(3) वास्तविक प्रायोगिक अभिकल्प (True-experimental design)

 

1 पूर्व-प्रायोगिक अभिकल्प (Pre-experimental design) 

पूर्व प्रायोगिक अभिकल्प में वाहय चरों पर नियन्त्रण बहुत कम या बिल्कुल नहीं होता है। इसमें या तो नियन्त्रित समूह होता ही नही है और यदि होता भी तो नियन्त्रित तथा प्रायोगिक समूह को समतुल्य नहीं बनाया जाता है । इस प्रकार के अभिकल्प सबसे कम प्रभावशाली होते हैं। यह तीन प्रकार के अभिकल्प होते हैं।

 

(i) एकल प्रयास अध्ययन (One shot case study ) :- 

इस प्रकार के अभिकल्प में शोधकर्ता द्वारा एक समूह का चयन किया जाता है तथा उसको उपचार दिया जाता है तथा उस समूह पर पश्च- परीक्षण किया जाता है तथा परिणाम को उपचार का कारण माना जाता है । इस अभिकल्प से प्राप्त परिणामों को सामान्यीकृत नहीं किया जा सकता है तथा इसमें आन्तरिक वैधता की कमी पायी जाती है।  G: TO

 

(ii) एकल समूह पूर्व परीक्षण पश्च परीक्षण अभिकल्प (The Single group Pre-test treatment Post-test design) :- 

इस प्रकार के अभिकल्प में एक समूह का चयन किया जाता है उस पर पूर्व परीक्षण किया जाता है तथा आश्रित चर का मापन किया जाता है। इसके बाद उस समूह को उपचार (Treatment) दिया जाता है। उपचार के बाद पश्च-परीक्षण किया जाता है तथा फिर से आश्रित चर का मापन किया जाता है। पूर्व परीक्षण के बाद तथा पश्च- परीक्षण के बाद आश्रित चर के मानों के अन्तर को उपचार का प्रभाव माना जाता है।

 

इस अभिकल्प में वाहय चरों पर कोई नियन्त्रण नहीं किया जाता तथा इनमें कोई नियन्त्रित समूह नही होता है इसलिए प्रयोगात्मक अनुसन्धान की दूसरी शर्त कि यदि "कारण नही है तो प्रभाव भी नहीं" को सत्यापित नहीं किया जा सकता ।

 

G: पूर्व परीक्षण 

G: T पश्च परीक्षण O

 

(iii) स्थिर समूह अभिकल्प (Static group comparision) :- 

इस प्रकार के अभिकल्प में दो समूहों का चयन किया जाता है तथा एक समूह को उपचार दिया जाता है तथा दूसरे समूह को किसी भी प्रकार का उपचार नहीं दिया जाता है। पश्च- परीक्षण दोनो समूहों का किया जाता है। दोनो समूहों के पश्च- परीक्षण के परिणामों में अन्तर उपचार का प्रभाव होता हैऐसा माना जाता है। 

यद्यपि इस अभिकल्प में एक नियन्त्रित समूह होता है लेकिन नियन्त्रित तथा प्रयोगात्मक समूह को समतुल्य नहीं बनाया जाता। यदि दोनों समूह में शुरू से ही आश्रित चर पर अन्तर होता है तो पश्च- परीक्षण के परिणामों में अन्तर को पूरी तरह से उपचार का प्रभाव नहीं माना जा सकता। इस प्रकार के अभिकल्प में आन्तरिक वैधता की कमी पायी जाती है।

 

2 प्रयोगिक कल्प अभिकल्प (Quasi experimental design) 

प्रायोगिक कल्प अभिकल्प में जहां तक सम्भव होता है वाहय चरों को नियन्त्रित किया जाता है। प्रयोग में दो समूह होते हैं प्रयोगात्मक समूह तथा नियन्त्रित समूहलेकिन प्रयोगात्मक समूह तथा नियन्त्रित समूहों में प्रयोज्यों का आबंटन यादृच्छिक तरीके से न हो पाने के कारण दोनों समूहों को समतुल्य नहीं बनाया जा पाता। बहुत सी ऐसी परिस्थितियां होती है जब यादृच्छिकीकरण से न्यादर्श का चयन नहीं हो सकता तथा यादृच्छिक आबंटन की अनुमति भी नहीं मिल पाती। इन परिस्थितियों में केवल प्रयोगिक कल्प अभिकल्प का ही प्रयोग किया जा सकता है।

 

(i) असमतुल्य पूर्व परीक्षण पश्च परीक्षण अभिकल्प (Non Equivalent Pretest -Posttest design) :- 

कभी कभी व्यवहारिक रूप से यह सम्भव नहीं होता है कि स्कूलों में या किसी स्कूल के दो वर्गो में यादृच्छिक आबंटन द्वारा दो समूह का निर्माण किया जा सके। इन परिस्थितियों में स्कूलों को या किसी एक स्कूल के दो वर्गों को यादृच्छिक रूप से एक स्कूल या एक वर्ग को प्रयोगात्मक समूह या दूसरे स्कूल या दूसरे वर्ग को नियन्त्रित समूह मान लिया जाता है। 

पूर्व - परीक्षण दोनों समूहों का किया जाता है जबकि उपचार केवल प्रायोगिक समूह को दिया जाता है । पश्च- परीक्षण दोनों समूहों का किया जाता है। प्रयोगात्मक समूह के पूर्व परीक्षण तथा पश्च- परीक्षण के बीच अन्तर ज्ञात किया जाता है तथा इसी प्रकार नियन्त्रित समूह के पूर्व परीक्षण तथा पश्च- परीक्षण के अन्तर को ज्ञात किया जाता है। यदि इन दोनों के बीच का अन्तर सार्थक होता है तो यह निष्कर्ष निकलता है कि उपचार प्रभावी है। 

जब यादृच्छिक आबंटन सम्भव नहीं होता है तब इस अभिकल्प का प्रयोग किया जाता है। इस अभिकल्प की सबसे बड़ी सीमा यह है कि यदि दोनो समूहों में पूर्व - परीक्षण में आश्रित चर के मान में कोई अन्तर नहीं आता है तब तो ठीक है लेकिन यदि प्रारम्भिक अवस्था में दोनों समूहों में अन्तर आता है तो हम इस अन्तर को सांख्यिकीय रूप से सह प्रसरण विश्लेषण प्रविधि के द्वारा नियन्त्रित करने का प्रयास करते हैं।

 

(ii) प्रति सन्तुलित अभिकल्प (Counter Balanced Design) :- 

जब हम समूहों को यादृच्छिक रूप से आबंटित नही कर सकते हैं तथा हमें दो या तीन प्रकार के उपचार देने होते हैं तो इस प्रकार के अभिकल्प का प्रयोग किया जाता है इस अभिकल्प में सभी समूहों को सभी तरह के उपचार यादृच्छिक रूप से दिये जाते है। प्रत्येक समूह को प्रत्येक तरह का उपचार क्रम बदल-बदल कर दिया जाता है। प्रयोग के शुरूआत में सभी समूहों पर पूर्व-परीक्षण किया जाता है तथा प्रत्येक समय अन्तराल के बाद पश्च- परीक्षण किया जाता है तथा अन्त में एक पश्च - परीक्षण सभी समूहों का किया जाता है। 

यदि चार प्रकार के उपचार है तो हमें चार समूह लेगे। इस अभिकल्प में उपचारों की संख्या तथा समूहों की संख्या को संतुलित किया जाता है इसलिये इसे प्रतिसंतुलित अभिकल्प कहा जाता है। इस अभिकल्प में उच्च कोटि की आन्तरिक वैधता होती है।

 

3 वास्तविक प्रायोगिक अभिकल्प (True experimental design) 

वास्तविक प्रायोगिक अभिकल्प में प्रायोगिक समूह तथा नियन्त्रित समूह को यादृच्छिक आबंटन के द्वारा समतुल्य बनाया जाता है। इसी कारण इस अभिकल्प में आन्तरिक वैधता के सभी कारकों को नियन्त्रित किया जाता है। वास्तविक जीवन की परिस्थितियों में वास्तविक प्रायोगिक अभिकल्प का प्रयोग एक कठिन कार्य है क्योंकि इन परिस्थितियों में सभी चरों का नियन्त्रण सम्भव नहीं होता तथा यादृच्छिक आबंटन भी सम्भव नहीं हो पाता। इस अभिकल्प का प्रयोग एक कठिन कार्य है लेकिन जहाँ तक सम्भव हो इसी प्रकार के अभिकल्प का प्रयोग किया जाना चाहिए क्योंकि इसमें प्रयोगात्मक अनुसन्धान के सभी सिद्धान्तों का पालन किया जाता है।

 

वास्तविक प्रयोगिक अभिकल्प कई प्रकार के होते हैं :- 

(i) केवल पश्च समतुल्य समूह अभिकल्प (The Post test only, Equivalent Groups Design) :-

 इस अभिकल्प में यादृच्छिक आबंटन के द्वारा दो समतुल्य समूह बनाए जाते हैं। किसी एक समूह को यादृच्छिक रूप से उपचार दिया जाता है तथा उसे प्रायोगिक समूह मान लिया जाता है तथा दूसरे समूह को नियन्त्रित समूह मान लिया जाता है। उपचार केवल प्रायोगिक समूह को दिया जाता है लेकिन आश्रित चर का मापान दोनों समूहों के लिये किया जाता है। दोनों समूहों में आने वाला अन्तर उपचार का प्रभाव माना जाता है। इस अभिकल्प में समूहों का निर्माण यादृच्छिक आबंटन के द्वारा होता है इसलिये इन दोनों समूहों में समतुल्यता होती है। इस कारण आश्रित चर में आने वाला अन्तर उपचार का प्रभाव ही माना जाता है।

 

(ii) पूर्व परीक्षण पश्च समतुल्य समूह अभिकल्प ( The Pre-test-Post Test Equivalent Groups Design) :- 

यह अभिकल्प पहले वाले अभिकल्प से केवल इसमें अन्तर रखता है कि इसमें पूर्व परीक्षण भी किया जाता है। इस अभिकल्प में यादृच्छिक आबंटन के द्वारा प्रायोगिक समूह तथा नियन्त्रित समूह में प्रयोज्यों को रखा जाता है तथा दोनों समूहों का पूर्व परीक्षण किया जाता है इसके बाद शोधकर्ता केवल प्रायोगिक समूह को उपचार देता है। प्रयोग के अन्त में दोनों समूहों पर पश्च- परीक्षण किया जाता है । आश्रित चर का मापन किया जाता है। पूर्व परीक्षण तथा पश्च- परीक्षण के बीच आने वाले अन्तर को उपयुक्त सांख्यिकीय प्रविधियों के द्वारा ज्ञात किया जाता है। यदि दोनों के बीच सार्थक अन्तर आता है तो इसे उपचार का प्रभाव माना जाता |

 

(iii) सोलोमन चार समूह अभिकल्प (Soloman Four Groups Design) :- 

कभी-कभी पूर्व परीक्षण का प्रभाव उपचार के प्रभाव को प्रभावित करता है। पूर्व-परीक्षण के प्रभाव को ज्ञात करने के लिये इस अभिकल्प का प्रयोग किया जाता है। इस अभिकल्प में चार समूह होते हैं। दो प्रायोगिक समूह होते हैं जिसमें एक पर पूर्व - परीक्षण किया जाता है तथा दूसरे समूह पर कोई पूर्व परीक्षण नहीं किया जाता है। इसी प्रकार दो नियन्त्रित समूह होते हैं एक में पूर्व परीक्षण किया जाता है तथा दूसरे में कोई पूर्व परीक्षण नहीं किया जाता है। इन सभी समूहों में प्रयोज्यों की आबंटन यादृच्छिक विधि से किया जाता है। पश्च परीक्षण चारों समूहों पर किया जाता है । 

प्रायोगिक अभिकल्प के प्रकार :


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