साक्षात्कार एवं मापनी विधियाँ (Interview and Measurement Methods)
साक्षात्कार एवं मापनी विधियाँ -प्रस्तावना
शैक्षिक क्षेत्र में अनुसन्धान के साथ-साथ विभिन्न उद्देश्यों को पूर्ण करने के लिये आवश्यक सूचनाओं को साक्षात्कार तथा मापनी विधियों द्वारा एकत्रित किया जाता है। इन उपकरणें से मात्रात्मक एवं गुणात्मक दोनों प्रकार आंकड़े एकत्र किये जा सकते हैं। साक्षात्कार के लिए साक्षात्कारकर्ता को उद्देश्य को ध्यान में रखकर कार्य करना पड़ता है। इसमें साक्षात्कारकर्ता की मुख्य भूमिका होती है, इसलिये यह एक आत्मनिष्ठ उपकरण माना जाता है। जबकि मापनियाँ एक जाँच सूची होती है, जो विशेषताओं एवं गुणों की उपस्थिति या अनुपस्थिति को बताती है। साक्षात्कार एंव मापनी विधियाँ दोनो की अपनी-अपनी विशेषतायें तथा सीमायें हैं। इसलिये इनके निर्माण एवं प्रयोग में उद्देश्यों के साथ-साथ सीमाओं का भी ध्यान रखना आवश्यक है।
साक्षात्कार एक परिचय (Interview : An Introduction)
सामान्यतः दो या दो से अधिक व्यक्तियों द्वारा किसी विशेष उद्देश्य से आमने-सामने की गयी बातचीत को साक्षात्कार कहा जाता है। साक्षात्कार एक प्रकार की मौखिक प्रश्नावली है जिसमें हम किसी भी व्यक्ति के विचारों और प्रतिक्रियाओं को लिखने के बजाय उसके सम्मुख रहकर बातचीत करके प्राप्त करते हैं। साक्षात्कार एक आत्मनिष्ठ विधि है इसके माध्यम से प्राप्त सूचनाओं की सार्थकता एवं वैधता साक्षात्कारकर्ता पर निर्भर करती है। सूचना संकलन की इस विधि के प्रयोग में साक्षात्कारकर्ता के लिए दक्षता अत्यन्त महत्वपूर्ण है क्योंकि साक्षात्कार से प्राप्त आंकड़े सरलता से पक्षपातपूर्ण बन सकते हैं। साक्षात्कार में साक्षात्कारकर्ता वार्तालाप के साथ-साथ शाब्दिक के अर्थपूर्ण तथा अशाब्दिक प्रतिक्रयाओं ( इशारा करना तथा मुखमुद्रा) का भी प्रयोग करता है। साक्षात्कार को विद्वानों ने निम्नानुसार परिभाषित किया है-
गुड़ एवं हैट के अनुसार " किसी उद्देश्य से किया गया
गम्भीर वार्तालाप ही साक्षात्कार है।"
डेजिन ने साक्षात्कार को इस प्रकार परिभाषित किया है
"साक्षात्कार - आमने-सामने किया गया एक संवादोचित आदान-प्रदान है जहां एक व्यक्ति दूसरे व्यक्ति से कुछ सूचनाएं प्राप्त करता है।"
उपरोक्त परिभाषाओं से स्पष्ट है कि सभी प्रकार के
साक्षात्कारों में निम्नलिखित तीन विशेषताएं पायी जाती हैं।
1. दो व्यक्तियों के मध्य सम्बन्ध ।
2. एक दूसरे से सम्पर्क स्थापित करने का साधन ।
3. साक्षात्कार से सम्बन्धित दोनों व्यक्तियों में से एक व्यक्ति को साक्षात्कार के उद्देश्य के विषय में संज्ञान ।
साक्षात्कार के तीन प्रमुख अवयव होते हैं -
1. साक्षात्कारकर्त्ता
2. साक्षात्कार हेतु प्रश्न
3. साक्षात्कार देने वाला
दो व्यक्तियों के बीच यदि बातचीत निरूद्देश्य है तो उसे साक्षात्कार तो उसे नहीं कहा जा सकता ।
साक्षात्कार के प्रकार (Types of Interview in Hindi)
शोध वैज्ञानिकों ने साक्षात्कार के विभिन्न प्रकारों का
वर्णन किया है। साक्षात्कार को मूलतः कार्य या उद्देश्य के आधार पर तथा रचना के
आधार पर विभिन्न भागों में वर्गीकृत किया जा सकता है।
कार्य या उद्देश्य के आधार पर साक्षात्कार के मुख्य
निम्नाकित प्रकार बताए गये हैं -
1. चयनात्मक साक्षात्कार
जब साक्षात्कार का प्रयोग किसी भी जीविका में नवीन नियुक्ति
हेतु चयन के लिए किया जाता है तो इस प्रकार के साक्षात्कार को चयनात्मक
साक्षात्कार कहा जाता है। इस प्रकार के साक्षात्कार में साक्षात्कार प्रदाता से उस
जीविका में उपयुक्तता से सम्बन्धित प्रश्न पूछे जाते हैं। साक्षात्कारकर्ता कुछ
ऐसे प्रश्न पूछता है जिसके आधार पर साक्षात्कार प्रदाता की अभिवृत्ति, अभिक्षमता, योग्यताओं, आचरण आदि के बारे
में आसानी से जाना जा सकता है। इस तरह के साक्षात्कार का मूल उद्देश्य यह पता
लगाना होता है कि साक्षात्कार प्रदाता कहां तक अपनी अभिवृत्ति, अभिक्षमता, योग्यताओं के
आधार पर अमुक नौकरी के लिये योग्य होगा ।
2. शोध साक्षात्कार
इस प्रकार के साक्षात्कार में किसी विषय पर विभिन्न
व्यक्तियों के विचारों को जानने का प्रयास किया जाता है। इस प्रकार साक्षात्कार
लेने वाले व्यक्ति की रूचि उन तथ्यों में होती है जो कि साक्षात्कार लेने वाले
व्यक्ति की रूचि उन तथ्यों में होती है जो कि साक्षात्कार देने वाले के विचारों
में सम्मिलित है। इसके लिए कुछ ही प्रतिनिधि व्यक्तियों को छांटकर केवल उन्हीं का
साक्षात्कार किया जाता है। इन प्रतिनिधि व्यक्तियों से प्राप्त सूचनाओं के आधार पर
पूर्ण जनसंख्या के विचारों के बारे में अनुमान लगाया जाता है। इसलिए इसे न्यादर्श
साक्षात्कार भी कहा जाता है। इस प्रकार के साक्षात्कार का मुख्य उद्देश्य शोध
समस्याओं के प्रस्तावित समाधान के बारे में एक विस्तृत ब्यौरा तैयार करना होता है।
इस तरह का शोध अधिकतर उन वैज्ञानिकों द्वारा किया जाता है जो किसी विशेष समस्या का
उत्तर तुरन्त पा लेना चाहते है।
3. निदानात्मक साक्षात्कार
इस प्रकार के साक्षात्कार के माध्यम से साक्षात्कारकर्ता
बालक या किसी व्यक्ति की समस्या के विषय में आवश्यक जानकारी प्राप्त करने का
प्रयास करता है किसी विद्यालय में शिक्षक द्वारा छात्रों के किसी विशेष समस्या के
विषय में सूचनाएं एकत्र करने के लिये प्रयुक्त साक्षात्कार इस प्रकार के
साक्षात्कार का उदाहरण है।
4. उपचारात्मक साक्षात्कार -
निदानात्मक साक्षात्कार के बाद जब किसी छात्र की समस्या तथा
उसके विषय में सूचनाएं एकत्र कर ली जाती हैं तो उपचारात्मक साक्षात्कार में व्यक्ति
से इस प्रकार का वार्तालाप किया जाता है कि उसको अपनी चिन्ताओं तथा समस्याओं से
मुक्त किया जा सके तथा समायोजन सही तरीके से हो सके।
5. तथ्य संकलन साक्षात्कार
इस साक्षात्कार में व्यक्ति या व्यक्तियों के समुदाय से
मिलकर तथ्य संकलित किए जाते हैं। शिक्षक इसी साक्षात्कार द्वारा छात्रों के
सम्बन्ध में तथ्य एकत्रित करते हैं। इसके तीन प्रमुख उद्देश्य हैं-
(क) अन्य विधियों द्वारा संग्रहीत किये गये तथ्यों में
अपूर्णताओं न्यूनताओं या कमियों को पूर्ति करना कुछ तथ्य अन्य विधियों द्वारा
प्राप्त नहीं हो पाते हैं। साक्षात्कार में उन सूचनाओं को एकत्रित करने का प्रयत्न
किया जाता है जो मनोवैज्ञानिक जांचों द्वारा प्राप्त नहीं हो पाती है।
(ख) पहले से संकलित की गयी सूचनाओं की पुष्टि करने के लिए
तथ्य संकलन साक्षात्कार किया जाता है।
(ग) तथ्य संकलन साक्षात्कार का तीसरा उद्देश्य शारीरिक रूप
से अवलोकन करना है। बहुत से छात्रों में अनेक शारीरिक दोष पाये जाते हैं जिनका
ज्ञान मनोवैज्ञानिक जांचों से नहीं हो सकता है। इसके साथ ही साक्षात्कार देने वाले
व्यक्ति का बातचीत करने तथा आचरण करने के ढंग का ज्ञान होता है।
रचना के आधार पर साक्षात्कार दो प्रकार का होता है
1. संरचित साक्षात्कार-
संरचित साक्षात्कार में साक्षात्कारकर्ता साक्षात्कार
प्रदाता से पूर्व निर्धारित प्रश्नों को एक निश्चित क्रम में पूछता है तथा विषयी
द्वारा दिए गये उत्तरों को एक मानवीकृत फार्म में रिकार्ड किया जाता है। इस तरह से
इस साक्षात्कार में साक्षात्कार देने वाले सभी व्यक्तियों से एक ही तरह के प्रश्न
एक निश्चित क्रम में पूछकर साक्षात्कारकर्ता एक खास निष्कर्ष पर पहुँचने की कोशिश
करते हैं।
2. असंरचित साक्षात्कार -
असंरचित साक्षात्कार में साक्षात्कारकर्ता, साक्षात्कार देने
वाले व्यक्तियों से जो प्रश्न पूछता है, पूर्व निर्धारित
नहीं होता है और न तो वह किसी निश्चित क्रम में ही पूछे जाते हैं। इसमें
साक्षात्कार प्रदाता को अपनी प्रतिक्रिया को व्यक्त करने के लिए स्वतन्त्र छोड़
दिया जाता है। साक्षात्कार में जितना लचीलापन होना है, उसके ऑकड़ों को
विश्लेषित करना उतना ही कठिन कार्य है।
अच्छे साक्षात्कारकर्ता के गुण
साक्षात्कार एक आत्मनिष्ठ विधि है जिसके कारण इसके परिणाम
पक्षपातपूर्ण हो जाते हैं। साक्षात्कार में सफलता प्राप्त करने के लिए यह आवश्यक
है कि साक्षात्कारकर्ता में अच्छे गुण हों। एक अच्छे साक्षात्कारकर्त्ता में
निम्नलिखित गुण पाये जाने चाहिए।
1. साक्षात्कारकर्त्ता को अपनी बात सीधी एवं स्पष्ट शब्दों
में करनी चाहिए । साक्षात्कार देने वाले पर यह प्रभाव डाले कि वह उसमें अधिक रूचि
रखता है।
2. साक्षात्कारकर्ता को छात्र की अच्छी या बुरी बातों पर
आश्चर्य प्रकट नहीं करना चाहिए। छात्र की सभी त्रुटियों, कमियों को शान्तिपूर्ण
सुनना चाहिए।
3. तनावपूर्ण स्थिति को समाप्त करने के लिए साक्षात्कारकर्त्ता को हंसमुख होना चाहिए।
4. साक्षात्कारकर्त्ता को वार्तालाप पर एकमात्र अधिकारी
नहीं करना चाहिए। वार्तालाप के समय अगर साक्षात्कार देने वाला बोल रहा है तो यह
प्रयास करना चाहिए कि उसे बीच में न रोका जाए या अपनी बात न कही जाए।
5. साक्षात्कारकर्त्ता को धैर्यवान होना चाहिए साक्षात्कार प्रदाता को ऐसा लगना चाहिए कि साक्षात्कारकर्त्ता उसकी बातों में रूचि ले रहा है और सद्भावना पूर्ण व्यवहार कर रहा है।
6. साक्षात्कार प्रदाता कि भावनाओं का सम्मान किया जाना
चाहिए। साक्षात्कारकर्त्ता यदि ऐसा करेगा तो साक्षात्कार प्रदाता अपने संदेहों को
निर्विकार रूप से व्यक्त कर सकेगा।
7. साक्षात्कारकर्त्ता को यह प्रयास करना चाहिए कि साक्षात्कार प्रदाता का उस पर विश्वास बना रहे। साक्षात्कार प्रदाता से बिना पूछे साक्षात्कार के विषय में किसी और से बात नहीं करनी चाहिए।
साक्षात्कार के लाभ एवं परिसीमायें
साक्षात्कार के लाभ निम्नलिखित हैं-
1. साक्षात्कार विधि को प्रयोग में लाना सरल है।
2. छात्रों की अन्तर्दृष्टि को विकसित करने में सहायक होती है।
3. सम्पूर्ण व्यक्ति को समझाने में यह विधि उत्तम है व्यक्ति की अभिवृत्ति, संवेग विचार आदि सभी का अध्ययन होता है।
4. साक्षात्कार देने वाले को अपनी समस्याएं प्रकट करने का साक्षात्कार अच्छा अवसर प्रदान करता है।
5. निषेधात्मक भावनाओं को स्वीकार करने तथा उनको स्पष्ट करने का अवसर साक्षात्कार में प्राप्त होता है।
6. विभिन्न दशाओं और परिस्थितियों में साक्षात्कार का प्रयोग करने के लिए उसे लचकदार बनाया जा सकता है।
7. साक्षात्कार की प्रकृति लचीली होती है। किसी महत्वपूर्ण बात को ध्यान में रखकर आगे बढ़ा जा सकता है। इस प्रकार व्यक्तित्व के किसी विशिष्ट पक्ष के बारे में जानकारी प्राप्त की जा सकती है।
8. इस विधि के दौरान ऐसे प्रश्नों को स्पष्ट किया जा सकता है जो व्यक्ति के समझ में न आ रहे हों।
9. इसी प्रकार ऐसे उत्तरों के विषय में स्पष्टीकरण प्राप्त किया जा सकता है जो साक्षात्कारकर्ता के समझ में न आ रहा हो।
10. इसके द्वारा व्यक्तियों से ऐसी सूचनाएं प्राप्त की जा सकती है जो लिखित रूप से प्राप्त करना सम्भव न हो ।
11. बातचीत के दौरान साक्षात्कारकर्ता व्यक्ति की अनिच्छा, असहयोग, इत्यादि मनोभावों
का भी अवलोकन कर सकता है, जिनके आधार पर उत्तरों की वैधता जान सकता है।
साक्षात्कार की परिसीमाएं
साक्षात्कार की कुछ कमियां भी पायी जाती है, जो निम्नलिखित है-
1. यह एक आत्मनिष्ठ विधि है जिससे परिणामों में संगतता होने की सम्भावना में कमी आती है।
2. आवश्यक प्रशिक्षण के अभाव में साक्षात्कारकर्ता को सही तरीके से व्यक्तित्व मूल्यांकन के लिए तथ्य एकत्रित करने में कठिनाई का अनुभव करता है।
3. साक्षात्कार प्रदाता अपने उत्तरों को देते समय साक्षात्कारकर्ता की जाति, पद, लिंग, आदि का ध्यान रखता है, इस कारण उसके उत्तर स्वाभाविक न रहकर कृत्रिम एवं साक्षात्कारकर्ता को प्रसन्न करने वाले बन जाते हैं।
4. जब अनेक व्यक्तियों से सूचनाएं एकत्रित करनी हो या एक ही व्यक्ति के व्यक्तित्व के अनेक पक्षों का मूल्यांकन करना हो तो इस प्रविधि को अपनाने में बहुत अधिक समय खर्च होता है ।
5. विभिन्न माध्यम व अन्तक्रियाएं भी साक्षात्कारकर्ता को प्रभावित करती हैं। सभी व्यक्तियों पर अपने समाज के मान्यताओं, धारणाओं एवं विश्वासों का प्रभाव रहता है और यदि साक्षात्कारकर्ता तथा साक्षात्कार प्रदाता की सामाजिक पृष्ठभूमि में अन्तर हो तो इसके परिणामों की वैधता में कमी आती है।
6. साक्षात्कारकर्ता द्वारा वार्तालाप को लिपिबद्ध करने के कारण व्यक्ति उत्तर देते समय अपने कथनों के द्वारा प्रत्यक्ष समर्थन प्रकट नहीं करता। वह गोल-गोल उत्तरों के माध्यम से स्वयं को एक सुरक्षित स्थिति में रखने की कोशिश करता है।
साक्षात्कार की वैधता तथा विश्वसनीयता
किसी भी साक्षात्कार की सफलता के लिए आवश्यक है कि वह वैध तथा विश्वसनीय हो । किसी साक्षात्कार की वैधता तब बढ़ जाती है जब साक्षात्कार एक अच्छे एवं पूर्व निर्धारित संरचना में निर्मित किया गया हो ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि वास्तव में सार्थक सूचनाओं का संकलन किया गया हो। इसे हम विषय वस्तु वैधता कहते हैं। सम्बन्धित क्षेत्र के विशेषज्ञों द्वारा प्रश्नों के चयन में सहायता लेने से भी वैधता बढ़ती है।
किसी साक्षात्कार की विश्वसनीयता का मूल्यांकन किसी अन्य समय के साक्षात्कार में प्रश्नों के थोड़े से भिन्न प्रारूप में पूंछकर किया जा सकता है। किसी अन्य समय में साक्षात्कार तो पुनः आयोजित करने पर भी प्रतिक्रियाओं में संगतता का मापन किया जा सकता है। यदि एक से अधिक साक्षात्कारकर्ताओं का प्रयोग हुआ है तो विभिन्न साक्षात्कारकर्ताओं के माध्यम से प्राप्त सूचनाओं के मध्य विश्वसनीयता स्थापित करना आवश्यक है।