गुणात्मक अनुसन्धान में प्रदत्त संग्रह के उपकरण
गुणात्मक अनुसन्धान में प्रदत्त संग्रह के उपकरण
गुणात्मक अनुसन्धानों में सूचनाओं या प्रदत्तों के संकलन के लिए मुख्यतः निम्न उपकरणों का उपयोग किया जाता है -
(i) साक्षात्कार
शिक्षाशास्त्र जैसे व्यावहारिक तथा सामाजिक शोधों में साक्षात्कार तकनीक एक महत्वपूर्ण तकनीक है । साक्षात्कार को मौखिक प्रश्नावली के भी रूप जाना जाता है। साक्षात्कार मुख्यतः दो प्रकार का होता है- संरचित या मानकीकृत साक्षात्कार तथा असंरचित या अमानकीकृत साक्षात्कार गुणात्मक अनुसन्धानों में प्रदत्त संकलन के उपकरण में इसका प्रयोग बहुतायत किया जाता है। परन्तु गुणात्मक अनुसन्धान में असंरचित साक्षात्कार का प्रयोग ज्यादा होता है।
(ii) प्रेक्षण
प्रेक्षण मुख्यतः दो प्रकार से किया जाता है- सहभागिक तथा असहभागिक अर्थात अध्ययन के सदस्य बनकर किया जाने वाला प्रेक्षण तथा समूह से बाहर रहकर किया जाने वाला प्रेक्षण। गुणात्मक अनुसन्धानों में दोनों प्रकार के प्रेक्षणों का प्रयोग किया जा सकता है परन्तु अनुसन्धान को विश्वसनीय बनाने के किए सहभागिक प्रेक्षण ज्यादा उपयुक्त माना जाता है।
(iii) अभिलेखीय विश्लेषण
इसमें अभिलेखों के प्रदत्त के रूप में लेकर उनका विश्लेषण कर समान एवं विपरीत कथन या शब्दों को लेकर संश्लेषण कर निष्कर्ष प्राप्त किये जाते हैं। इस सम्पूर्ण प्रक्रिया को ही गुणात्मक अनुसन्धान के एक उपकरण के रूप में व्यक्त किया जाता है। अभिलेख के अन्तर्गत व्यक्ति या घटना से सम्बन्धित लिखित साक्ष्य अर्थात संवाद, लेख, भाषण, या दस्तावेजों को लिया जाता है।
(iv) दृश्य - श्रव्य प्रदत्त विश्लेषण
इस प्रकार के उपकरण में सूचनाओं को निम्न के द्वारा प्रदत्त के रूप में संकलित कर उनका विश्लेषण किया जाता है- श्रव्य टेप, दृश्य टेप, फोटोग्राफ, कलाकृतियाँ, चित्र, पेन्टिंग, संज्ञानात्मक मानचित्र आदि ।
(v) केन्द्रित समूह
इसमें विभिन्न समूहों से किसी घटना के बारे में असंरचचित साक्षात्कार के द्वारा प्रतिक्रियायें एकत्रित कर उनका विश्लेषण किया जाता है ।
उपरोक्त अतिरिक्त समीपस्थ अध्ययन, अंग गतिक अध्ययन तथा स्ट्रीट नृ-शास्त्रीय अध्ययन भी गुणात्मक अनुसन्धान के उपकरण के रूप में जाने जाते हैं।
गुणात्मक अनुसन्धानों में प्रदत्त विश्लेषण की तकनीकें
गुणात्मक अनुसन्धानों में असम्भाविता प्रतिदर्शन विधियों जैसे - कोटा प्रतिदर्शन, प्रासंगिक प्रतिदर्शन, उद्देश्यपूर्ण प्रतिदर्शन, क्रमबद्ध प्रतिदर्शन, हिमकंदुक प्रतिदर्शन, संतृप्त प्रतिदर्शन, तथा घनीभूत प्रतिदर्शन विधियों का प्रयोग कर शोध की इकाइयों का चयन उद्देश्यानुरूप में कर पूर्व वर्णित उपकरणों का प्रयोग करके प्रदत्त संकलित किये जाते हैं। परन्तु प्रदत्तों की प्रकृति प्रयुक्त उपकरण या तकनीक पर निर्भर करती है। फिर भी ज्यादातर गुणात्मक अनुसन्धानों में प्रदत्तों की प्रकृति गुणात्मक रूप में होती है ।
इस प्रकार से प्राप्त प्रदत्तों के विश्लेषण के तीन स्तर होते हैं -
(a) प्रदत्तों का संगठन
(b) प्रदत्तों का विवरण एवं
(c) प्रदत्तों का निर्वचन
प्राप्त प्रदत्तों को विभिन्न आधारों, वर्गों, तथा विशेषताओं के आधार पर संगठित कर उनका विवरण प्रस्तुत किया जाता है तथा प्रदत्तों के निर्वचन के लिये गुणात्मक अनुसन्धानों में तीन प्रकार की विश्लेषण तकनीकों को प्रयोग किया जा सकता है-
(i) विषय-वस्तु विश्लेषण तकनीक
(ii) निगमनात्मक विश्लेषण तथा
(iii) तार्किक विश्लेषण
इन तीनों तकनीकों में विषयवस्तु विश्लेषण तकनीक का प्रयोग व्यवहारिक विज्ञानों में इस तकनीक की विशेषताओं के आधार पर बहुतायत से किया जाता है । निगमनात्मक विश्लेषण मानवशास्त्र में ज्यादा प्रयुक्त की जाती है जबकि तार्किक विश्लेषण का प्रयोग क्रास अध्ययनों में उपयोगी है। इसलिये महत्ता की दृष्टि से विषय वस्तु विश्लेषण को समझना ज्यादा आवश्यक है।
विषयवस्तु विश्लेषण तकनीक (Content Analysis Technique)
विषयवस्तु विश्लेषण को दस्तावेज विश्लेषण के नाम से भी पुकारा जाता है। इसमें शोधकर्ता अध्ययन किये जाने वाली घटना या व्यक्ति के सम्बन्ध में साक्षात्कार, प्रेक्षण या प्रश्नावली से प्राप्त विचारों को एकत्रित नहीं करता बल्कि ऐसी घटनाओं या व्यक्तियों द्वारा किये गये संचारों (communication) या उनके व्यवहारों के बारे में एकत्रित किये गये दस्तावेजों का विश्लेषण कर निष्कर्ष पर पहुँचता है। विषयवस्तु विश्लेषण को परिभाषित करते हुए करलिंगर (Kerlinger) कहा है "विषयवस्तु विश्लेषण चरों को मापने के लिये संचारों का एक क्रमबद्ध, वस्तुनिष्ठ तथा परिभाषात्मक ढंग से विश्लेषण एवं अध्ययन करने की एक विधि हैं।"
हालस्टी (Holsti) के अनुसार "विषयवस्तु विश्लेषण सूचनाओं के विशिष्ट गुणों को क्रमबद्ध एवं वस्तुनिष्ठ ढंग से पहचान करते हुये अनुमान लगाने की एक विधि है।"
बेरेलसन (Berelson) ने भी विषयवस्तु विश्लेषण को निम्न प्रकार से परिभाषित किया है- "विषयवस्तु विश्लेषण संचारों की विषयवस्तु में सन्निहित वस्तुनिष्ठ, व्यवस्थित तथा परिमाणात्मक विवरण देने की एक शोध प्रविधि है ।"
उपरोक्त से स्पष्ट है कि विषयवस्तु विश्लेषण -
(i) एक ऐसी प्रविधि है जिसमें संचार में निहित तथ्यों या विशेषताओं को है । पृथककर उसे अनुसन्धान प्रदत्त के रूप में तैयार किया जाता
(ii) यह एक वैज्ञानिक प्रविधि है ।
(iii) इसमें व्यक्त एवं अव्यक्त दोनों तरह के विषयवस्तु का विश्लेषण किया जाता है।
विषयवस्तु विश्लेषण के उद्देश्य -
विषयवस्तु विश्लेषण में प्रदत्तों के प्राथमिक स्रोतों में पत्र पत्रिकायें, जनरल, आत्मकथा, डायरी, किताब, पाठयक्रम न्यायालय के निर्णय, तस्वीर, फिल्म, कार्टून, आदि प्रमुख है। शोधार्थी इन स्रोतों से प्राप्त प्रदत्तों की विश्वसनीयता की परख करता है तब उनका उपयोग करता है। इस तकनीक के कुछ विशेष उद्देश्य होते हैं। जो निम्न है-
(i) वर्तमान परिस्थितियों एवं प्रचलनों का वर्णन करना तथा उनकी व्याख्या करना ।
(ii) लेखक के संप्रत्ययों, विश्वास, चिन्तन एवं उनकी लेखन शैली को जानना ।
(iii) किसी घटना या प्रतिफल से सम्बन्धित विभिन्न कारकों को पहचानना एवं उनकी व्याख्या करना ।
(iv) ऐसे विभिन्न संकेतों का विश्लेषण करना जिनसे विभिन्न संस्थाओं देशों या अन्य विचार धाराओं का प्रतिनिधित्व होता है ।
(v) पाठ्य पुस्तकों या अन्य एक जैसी पुस्तकों की प्रस्तुतीकरण की कठिनाई स्तर की पहचान करना ।
(vi) छात्रों के कार्यों में विभिन्न तरह की त्रुटियों को विश्लेषण करना । (vii) किसी पाठ्य वस्तु की प्रस्तुति में सम्बन्धित प्रचार एवं पूर्वाग्रह का मूल्यांकन करना ।
(viii) विभिन्न विषयों या सस्याओं के तुलनात्मक महत्व को जानना ।
विषयवस्तु विश्लेषण की प्रक्रिया
विषयवस्तु विश्लेषण की प्रक्रिया को मूलतः तीन भागों में बाँटा जा सकता है-
(1) समष्टि को परिभाषित तथा वर्गीकृत करना
विषयवस्तु विश्लेषण में सर्वप्रथम समष्टि को ठीक प्रकार से परिभाषित किया जाता है तथा उसका उपयुक्त ढंग से वर्गीकरण किया जाता है। शोधकर्त्ता द्वारा जिस विषयवस्तु का विश्लेषण करना है, उसे स्पष्ट शब्दों में परिभाषित करके उसे पुनः छोटे-छोटे भागों में विभक्त कर दिया जाता है। उदाहरण लिये कक्षा अनुशासन पर शिक्षक द्वारा दिखलाई गयी सख्ती के अनुशासन पर पड़ने वाले प्रभावों का अध्ययन करने के लिये शोधकर्ता वर्ग अनुशासन को चार महत्वपूर्ण श्रेणियों समय निष्ठा, ध्यान, पाठ बनाना तथा साथियों के साथ होने वाले दुर्व्यवहार में कमी में बॉट सकता है। इससे शोधकर्ता को परिकल्पना बनाना सरल हो जाता है।
(2) विश्लेषण की इकाई
विषयवस्तु विश्लेषण में एक महत्वपूर्ण कदम इकाई के रूप में विश्लेषण करना होता है। इन इकाइयों का सम्बन्ध सामग्री के संरचनात्मक पक्ष से होता है। इकाई से तात्पर्य सामग्री का एक विशिष्ट संरचनात्मक अंश या भाग से होता है जिसे एक पद या एकांश समझकर किसी वर्ग के अन्तर्गत स्थान दिया जाता है। बेरेलसन ने इन इकाईयों को पाँच भागो में बाँटा है-
(i) शब्द (Words) -
शब्द विश्लेषण की सबसे छोटी इकाई होती है, परन्तु कभी-कभी इससे भी छोटी इकाई अक्षर का भी प्रयोग किया जाता है। उदाहरण के लिये कोई शोधार्थी विद्यार्थियों की बोधशक्ति तथा शब्दों के स्वरूप के बीच के सम्बन्ध को जानना चाहता है तो वह शब्द को विश्लेषण की इकाई मानकर शब्दों को तीन भागों -आसान, साधारण तथा कठिन में बाँट सकता है। इस प्रकार से वह अपनी सूची के प्रत्येक शब्द को तीन भागों में बाँटकर तथा उन्हें छात्रों को देकर उनकी बोध शक्ति का अध्ययन कर सकता है।
(ii) विषय (Theme) -
विश्लेषण की दूसरी इकाई विषय है जो प्रायः एक वाक्य या एक प्रस्ताव के रूप में होता है ।
(iii) एकांश (Item) -
किसी दिये हुये उद्दीपन के प्रति प्रयोज्य द्वारा की गयी सम्पूर्ण अनुक्रिया को ही एकांश कहा जाता है। जैसे प्रयोज्य द्वारा किसी चित्र को देखकर एक कहानी लिखना या लघु आत्मकथा या लघु रेडियो कार्यक्रम या लघु दूरदर्शन कार्यक्रम को विश्लेषण के एकांश के रूप में लिया जाता है।
(iv) स्वलक्षण (Character) -
स्वलक्षण से तात्पर्य साहित्यिक रचना में किसी व्यक्ति या पात्र से होता है तथा इस इकाई का प्रयोग लघु कहानियों के विश्लेषण में किया जाता है। इसीलिये साहित्यिक शोध के क्षेत्र में स्वलक्षण इकाई का प्रयोग ज्यादा किया जाता है ।
(v) दिक्काल मापदण्ड (Space and time measures ) -
इस इकाई का प्रयोग सामान्यतः मनोविज्ञान या शिक्षा के अनुसन्धानों में नहीं होता। यह ऐसी इकाई होती है जिसमें वस्तु का भौतिक माप किया जाता है। जैसे- दो वस्तुओं के बीच की दूरी को इंच की संख्या से व्यक्त करना, पेज संख्या, विचार विमर्श का समय, पैराग्राफ की संख्या आदि। इसका प्रयोग प्राकृतिक विज्ञानों में ज्यादा किया जाता
(3) परिमाणन (Quantification)
विषयवस्तु विश्लेषण का तीसरा भाग परिमाणन है। परिमाणन से आशय विषयवस्तु विश्लेषण की वस्तुओं को अंक प्रदान करने की प्रक्रिया से होता है। उदाहरण के लिये किसी लेख के विश्लेषण में कहा जाये कि इसमें 4 पेज या 10 पैराग्राफ हे। परिमाणन की प्रक्रिया को सामान्यतः तीन प्रकार से किया जाता है। नामित मापन, क्रमिक मापन तथा रेंटिंग मापन ।
विषयवस्तु विश्लेषण के लाभ -
विषयवस्तु विश्लेषण के निम्न लाभ हैं।
(i) इस विधि का कार्यक्षेत्र व्यापक है जिससे इसे विभिन्न तरह की सामग्रियों के अध्ययन में सरलता से प्रयुक्त किया जा सकता है।
(ii) विषयवस्तु विश्लेषण का प्रयोग आश्रित चर पर किसी प्रयोगात्मक हस्तक्षेप के पड़ने वाले प्रभाव के अध्ययन जैसी परिस्थितियों में भी किया जा सकता है।
(iii) विषयवस्तु विश्लेषण का प्रयोग प्रेक्षण की अन्य विधियों से प्राप्त प्रदत्तों की वैधता ज्ञात करने में किया जा सकता है।
(iv) सामाजिक संस्कृति के क्रमिक विकास के अध्ययन में प्रयोग
(v) विभिन्न संस्कृतियों के तुलनात्मक अध्ययन में प्रयोग
विषय वस्तु विश्लेषण की सीमायें :-
उपरोक्त लाभों के बावजूद इसकी कुछ परिसीमायें भी है जो निम्नवत है-
(i) इस विधि से प्राप्त प्रदत्त अधिक विश्वसनीय नहीं होते तथा निष्कर्षो पर विभिन्न अनुसन्धानकर्ताओं में भी सहमति नहीं होती ।
(ii) विषयवस्तु विश्लेषण में निष्कर्षो के सामान्यीकरण की समस्या होती है।
(iii) इस विधि में शोधकर्ता का अपना पूर्वाग्रह, विश्वास एवं स्थिराकृति आदि का विश्लेषण करते समय प्रभाव पड़ता है जिससे आत्मनिष्ठता उत्पन्न हो जाती है ।
(iv) इस विधि का कार्य क्षेत्र सीमित होता है, क्योंकि जिन व्यक्तियों के लेख, दस्तावेज आदि किसी कारण उपलब्ध नहीं होते तो उनका विषयवस्तु विश्लेषण नहीं किया जा सकता ।
(v) इस विधि में सामान्यतः समय एवं श्रम अधिक लगता है।