गुणात्मक अनुसन्धान का महत्व और प्रकार
गुणात्मक अनुसन्धान का महत्व
गुणात्मक अनुसन्धान का शोध में महत्वपूर्ण स्थान है। भले ही शैक्षिक अनुसन्धान में गुणात्मक अनुसन्धान अब तक उपेक्षित रहा हो, लेकिन पिछले दशक से विद्वानों ने शोध की इस विधा पर जोर देना प्रारम्भ कर दिया है। सामाजिक विज्ञान के क्षेत्र में गुणात्मक अनुसन्धान का प्रयोग तो बहुत पहले से ही होता रहा है। गुणात्मक अनुसन्धान की विशेषतायें एवं उद्देश्य से इसके महत्व को आंका जा सकता है।
गुणात्मक अनुसन्धान के मूलतः तीन व्यावहारिक उपयोग हैं-
1. ग्राह या समझने योग्य सिद्धान्तों की स्थापना करने में ।
2. मूल्यांकित किये जा रहे किसी उत्पाद या किसी कार्यक्रम की उपयोगिता को सामान्य रूप से आंकलित करने के स्थान पर वर्तमान के अभ्यास या प्रयासों को सुधारने की ओर अग्रसर संरचनात्मक मूल्यांकन के संचालन में।
3. शोधार्थियों के साथ सहयोगात्मक शोधों (Collaborative Research) में संलग्नता ।
इन व्यवहारिक उपयोग से भी गुणात्मक अनुसन्धान की महत्ता और भी बढ़ जाती है। इस प्रकार से गुणात्मक अनुसन्धान के महत्व को निम्न बिन्दुओं द्वारा स्पष्ट किया जा सकता है-
1. सामाजिक एवं शैक्षिक क्षेत्र के लिए सिद्धान्तों के निरूपण की दृष्टि से ।
2. शोधार्थियों में शोध के प्रति गहनता बढ़ाने की दृष्टि से
3. सांख्यिकीय जटिलताओं के स्थान पर शोधार्थियों के अनुभव एवं अर्न्तदृष्टि के विकास की दृष्टि से
4.किसी घटना के वास्तविक चित्रण की दृष्टि से ।
5. अभिवृत्ति, पसंद तथा व्यवहारों को विस्तृत एवं स्पष्ट रूप प्रदान करने की दृष्टि से
6. भावी अनुसन्धानों को दृष्टि प्रदान करने की दृष्टि से ।
7. परिकल्पनाओं के निर्माण की दृष्टि से
8.शोधार्थियों में आत्मविश्वास एवं उसकी विश्वसनीयता बढ़ाने में।
9. शोध में यान्त्रिकता को न्यून करने की दृष्टि से ।
10. विभिन्न समस्याओं के समाधान एवं कार्यक्रमों को सफल बनाने की दृष्टि से ।
11. किसी कार्यक्रम के संरचनात्मक मूल्यांकन की दृष्टि से
12. परस्पर सम्बद्ध शोधों में संलग्नता की दृष्टि से ।
शैक्षिक क्षेत्र में गुणात्मक अनुसन्धान के शोध विषयक उदाहरण
शिक्षा क्षेत्र में गुणात्मक अनुसन्धान के शोध विषयों के कुछ उदाहरण निम्न प्रकार के हो सकते हैं :-
मध्यान्ह भोजन योजना अन्य राज्यों के सापेक्ष तमिलनाडु में सुचारू रूप से क्यों चल रही है ?
शैक्षिक नीतियों को प्रभावित करने के लिये शिक्षक संगठन क्या युक्तियाँ प्रयोग में लाते है ?
शैक्षिक गुणवत्ता उन्नयन की दृष्टि से शिक्षक - अभिभावक सहयोग को कैसे बढ़ाया जा सकता है ?
विद्यालयों के प्रधानाचार्य किन कार्यों में अपना समय अधिक व्यतीत करते हैं ?
परीक्षाओं के बारे में क्या सोचते हैं ?
प्रधानाचार्यो की भूमिका के विषय में शिक्षक वर्ग क्या धारणायें रखते हैं?
प्राथमिक विद्यालय के शिक्षक अध्ययन-अध्यापन को प्रभावी बनाने के लिये क्या प्रयास करते हैं ? आदि ।
गुणात्मक अनुसन्धान के प्रकार
गुणात्मक अनुसन्धान की विशेषताओं के आधार पर गुणात्मक अनुसन्धान के मुख्य प्रकार निम्न है-
(i) घटना- क्रिया विज्ञानपरक अध्ययन (Phenomenological Research)
घटना क्रिया विज्ञान एडमण्ड हयूसर्ल (Edmund Husser ) के द्वारा प्रतिपादित माना जाता है। बाद में इसके विकास में मार्टिन हेडेगर (Martin Heidegger) ने भी अपना योगदान दिया। यह एक दार्शनिक परम्परा है। घटना - क्रिया विज्ञान, मानवीय अनुभव के शोध को मुख्य आधार मानता है। इस विधि में शोधार्थी अपने जीवन संसार के अनुभवों को परिलक्षित करता है। इसमें प्रतिभागियों को किसी घटना के बारे में अपने अनुभव को व्यक्त करने का अवसर दिया जाता है तब शोध र्थी प्रतिभागियों के प्रत्यक्षीकरण का विश्लेषण उनके प्रत्यक्षीकरण की समानता तथा भिन्नता के आधार पर करता है।
(ii) हयूरिस्टिक अध्ययन (Heuristic Research)
हयूरिस्टिक शब्द ग्रीक भाषा के हयूरिस्को शब्द से बना है जिसका अर्थ 'to discover' 'मैं खोजता हूँ होता है। यह आन्तरिक या गहराई से खोज की प्रक्रिया को इंगित करता है, जो विभिन्न अनुभवों के अर्थ एवं प्रकृति को जानने तथा भावी अन्वेषण एवं विश्लेषण की विधियों तथा प्रक्रियाओं के विकास से सम्बन्धि होता है । हयूरिस्टिक अध्ययन एक प्रक्रिया है जो किसी एक समस्या या एक ऐसे प्रश्न से प्रारम्भ होता है जिसका समाधान या उत्तर शोधार्थी प्राप्त करना चाहता है। हयूरिस्टिक अध्ययन की छः कलायें (phases) होती है -
(a) प्रारम्भिक संलग्नता (The initial engagement)
(b) प्रकरण और प्रश्न में डूबना (Immersion)
(c) अनुभवों को एकत्रित करना (Incubation)
(d) उद्घाटित करना (Illumination)
(e) अर्थापन (Expliration)
(f) सृजनात्मक संश्लेषण के रूप में शोध के चरम पर पहुँचना (culmination)
(iii) नृ - शास्त्रीय अध्ययन ( Ethnographical Research)
नृ-शास्त्रीय शोध का जन्म मानव शास्त्र विषय से हुआ है। इसका प्रमुख उद्देश्य सामाजिक समूहों का अध्ययन और इसकी सांस्कृतिक विशेषताओं का विवरण देना है। इस विधि में शोधार्थी अध्ययन समूह के सदस्य के रूप सम्मिलित होकर समूह से आन्तरिकता स्थापित कर उनके साथ लम्बे समय तक रहकर समूह के साक्ष्यों की क्रियाओं, वार्तालापों, सांस्कृतिक विशेषताओं तथा घटनाओं पर सूक्ष्म दृष्टि रख कर एक विस्तृत विवरण तैयार करता है। इस शोध में शोधार्थी की भूमिका अत्यन्त महत्वपूर्ण होती है तथा वस्तुनिष्ठता को बनाये रखना सबसे बड़ी चुनौती होती है। एक नृ-शास्त्रीय अध्ययन के निम्न पद होते हैं -
(a) प्रारम्भिक अन्वेषण (Initial Exploration)
(b) भौगोलिक अवस्थाओं का अध्ययन (Study of the geographical conditions)
(c) प्रेक्षण की योजना बनाना (Planning for the observation)
(d) सामाजिक अवस्थाओं में स्वयं संलग्न होना (Getting into thesocial setting)
(e) अवस्थाओं या परिस्थितियों का प्रेक्षण करना (Making observation about the setting)
(f) इनके बारे में अन्तिम निष्कर्ष निकालना (Finally drawing conclusions about it)
(iv) व्यष्टि अध्ययन (Case Study)
इसमें किसी घटना से सम्बन्धित कुछ इकाइयों या व्यष्टियों को चुनकर उनका गहन अध्ययन किया जाता है। एक व्यष्टि या इकाई एक व्यक्ति, एक संस्था, एक सामाजिक समूह, एक समुदाय अथवा एक ग्राम हो सकता है। इसमें शोधार्थी को पक्षपात रहित होकर कार्य करना होता है।
(v) दार्शनिक अध्ययन (Philosophical Research)
शैक्षिक शोधों में दार्शनिक अध्ययनों की एक महत्वपूर्ण भूमिका है। इस प्रकार के अध्ययन मानव जीवन तथा उसके संसार की आधारभूत मान्यताओं के निर्धारण में महत्वपूर्ण होती है। वास्तव में दर्शन शैक्षिक नीतियों तथा प्रक्रियाओं के निर्धारण को प्रभावित करता है।
प्रत्येक व्यक्ति का अपना एक दर्शन होता है जो उसके दृष्टिकोण, शिक्षा एवं उसकी नीतियों तथा धारणाओं के निर्माण में सहायक होता है । इसलिये व्यक्ति या देश या समाज के दर्शन के अध्ययन के लिये दार्शनिक शोध किये जाते हैं । इस निधि में विश्लेषणात्मक चिन्तन, अर्न्तदृष्टि तथा विचारों के संश्लेषण की क्षमताओं के आधार पर निष्कर्ष प्राप्त किये जाते हैं।