साक्षात्कार मापनी विधियां उपयोग एवं सीमायें
साक्षात्कार मापनी विधियां : एक परिचय
किसी मापन उपकरण द्वारा मापने की प्रविधि को मापनी विधियां कहते हैं। मापनी विधियों में निर्धारण मापनी सामाजिक दूरी मापनी, अभिवृति मापनी, मूल्य - मापनी आदि मुख्य रूप से आती है।
निर्धारण मापनी का प्रयोग यह जानने के लिए किया जाता है कि कोई व्यक्ति अपने साथियों अथवा परिचितों के समक्ष अपने व्यक्तित्व के सम्बन्ध में क्या छवि छोड़ता है ? निर्धारण मापनी शब्दों, वाक्यों तथा परिच्छेदों की ऐसी चयनित सूची होती है जिसके आधार पर प्रेक्षक मूल्यों के वस्तुनिष्ठ मापन पर आधारित किसी मूल्य अथवा माप को अभिलेखित करता है। यह एक विशेष प्रकार की जांच सूची होती है जिसमें जांच की गयी विशेषताओं या गुणों की उपस्थिति अथवा उनके अभाव का गुणात्मक या संख्यात्मक निर्धारण किया जाता है। निर्धारण मापनी वास्तव में किसी व्यक्ति में उपस्थित गुणों की मात्रा, उसकी तीव्रता तथा बारम्बारता के सम्बन्ध में अन्य व्यक्तियों से सूचना प्राप्त करने का एक साधन 1
साक्षात्कार निर्धारण मापनी :
निर्धारण मापनी 6 प्रकार की होती है-
1. चेक लिस्ट
2. आंकिक निर्धारण मापनी
3. ग्राफिक निर्धारण मापनी
4. क्रमिक निर्धारण मापनी
5. स्थिति निर्धारण मापनी
6. वाहय चयन निर्धारण मापनी
1 साक्षात्कार मापनी चेक लिस्ट :-
चेक लिस्ट में प्रायः कुछ कथन दिये हुए होते हैं जो मापे जाने वाले गुणों की उपस्थिति अथवा अनुपस्थिति का संकेत करते हैं निर्धारक किसी व्यक्ति के सम्बन्ध में यह निर्णय करना होता हे कि चेक लिस्ट में दिये गये कथन उसके बारे में सही है या गलत है। चेकलिस्ट में हाँ या नहीं के रूप में गुणों की उपस्थिति तथा अनुपस्थिति का निर्धारण किया जाता है।
2 आंकिक निर्धारण मापनी :-
इस प्रकार की मापनी में कथनों के प्रति अपनी सहमति अथवा असहमति की मात्रा (Intensity) को कुछ अंको की सहायता से अभिव्यक्त करना होता है। निर्धारक किसी व्यक्ति के संदर्भ में कथनों से सहमत होने अथवा असहमत होने की सीमा को अंकों की सहायता से प्रकट करता है। इन अंकों को तीन, पांच, सात आदि बिन्दुओं पर आंकिक निर्धारण मापनी बनायी जाती है। यह अंक धनात्मक तथा ऋणात्मक दोनो प्रकार के हो सकते हैं। 5 बिन्दु मापनी में 1, 2, 3, 4, 5 क्रमशः निम्नवत औसत से कम, सामान्य, सामान्य से अधिक व अधिकतम आदि से प्रदर्शित किया जाता है।
3 ग्राफिक निर्धारण मापनी :-
ग्राफिक मापनी में सहमति / असहमति की सीमाओं को बिन्दुओं से प्रकट न करके एक क्षैतिज रेखा पर निशान लगाकर व्यक्ति के सम्बन्ध में अपने निर्णयों को बताता है। इन निशानों की स्थिति के आधार पर व्यक्ति के गुणों का पता लगाया जाता है। व्यक्ति के अन्दर किसी गुण की उपस्थिति को दर्शाने के लिए पंक्ति 3, 5 या 7 बिन्दुओं में विभाजित होती है।
4 क्रमिक निर्धारण मापनी :-
क्रमिक मापनी के अन्तर्गत निर्धारक को व्यक्ति में उपस्थित किसी गुण विशेष के सम्बन्ध में निर्णय नहीं देना होता है बल्कि अनेक गुणों तथा उपगुणों को किसी व्यक्ति के संदर्भ में एक क्रम में निर्धारित करता है। पहले यह देखा जाता है कि सूचीबद्ध गुण किसी मात्रा में उपस्थित है तथा इसके बाद गुणों की मात्रा के आधार पर गुणों को क्रमबद्ध किया जाता है। क्रमिक निर्धारण मापनी के आधार पर व्यक्ति के अन्दर उपस्थित गुणों की सापेक्ष स्थिति को जाना जाता है।
5 स्थिति निर्धारण मापनी :-
स्थिति मापनी में किसी व्यक्ति में उपस्थित गुणों की मात्रा का मापन उनको स्थान सूचक मान जैसे दशांक तथा शतांक प्रदान करके किया जाता है। निर्धारक को यह निर्णय लेना होता है कि व्यक्ति विशेष में दिये गये गुणों की स्थिति किसी समूह के संदर्भ में क्या है ? स्थिति मापनी की सहायता से निर्धारक किसी समूह के व्यक्तियों के सम्बन्ध में यह निर्धारित करता है कि उनका समूह में किसी गुण विशेष की दृष्टि से क्या स्थान है ? कितने लोग गुण विशेष के संदर्भ में उस व्यक्ति से आगे हैं तथा कितने पीछे हैं ?
6 वाह्य चयन निर्धारण मापनी
इस प्रकार के निर्धारण मापनी में प्रत्येक कथन के लिए दो या दो से अधि एक कथन होते हैं। मापनकर्ता से यह पूछा जाता है कि इन कथनों में से कौन सा कथन व्यक्ति विशेष के संदर्भ में अधिक उपयुक्त है। निर्धारक उन विकल्पों मे से किसी एक विकल्प को चुनने के लिए बाह्य होता है। इसीलिए इसे वाह्ययकारी चयन निर्धारण मापनी कहा जाता है।
निर्धारण मापनी का उपयोग एवं सीमायें
निर्धारण मापनी के निम्नलिखित उपयोग होते हैं।
1. मानकीकृत मनोवैज्ञानिक परीक्षणों के द्वारा संकलित सूचनाओं के पूरक के रूप में निर्धारण मापनी का उपयोग किया जाता है।
2. जब हमें अल्प अवधि में ही अत्यधिक छात्रों तथा अत्याधिक विषयों में सूचनायें एकत्र करनी हो तो निर्धारण मापनी का उपयोग होता है।
3. जब किसी व्यक्ति विशेष का गहन अध्ययन करना हो तथा मानवीकृत उपकरण उपलब्ध न हो तो समय, श्रम और धन की बचत करने हेतु इस प्रविधि का निर्माण करके इसका प्रयोग किया जाता है ।
4. व्यक्ति - अध्ययन की अन्य विधियों के पूरक के रूप में भी यह विधि सहायक रहती है।
निर्धारण मापनी की परिसीमाएं :-
निर्धारण मापनी की निम्न सीमाएं हैं। -
1. निर्धारण मापनी के द्वारा जो आंकड़े प्राप्त होते हैं वे तब तक विश्वसनीय नहीं होते है जब तक निर्धारक मापन के उद्देश्य को स्पष्ट रूप से न समझता हो ।
2. निर्धारक में विशेष दक्षता की आवश्यकता होती है।
3. निर्धारकों का विचार होता है कि किसी व्यक्ति में कोई भी गुण पूर्णतः उपस्थित तथा अनुपस्थित नहीं रहता । अतः वह उसको मध्य में स्थान दे देता है। उसका निर्णय निष्पक्ष नहीं हो पाता है।
4. निर्धारकों द्वारा किये गये मूल्यांकन में अन्तर पाया जाना स्वाभाविक है क्योंकि उनकी निर्णय योग्यता तथा बुद्धि आदि में अन्तर होता है। निर्णायकों की रूचियां अनुभव तथा व्यक्तित्व के गुण तथा योग्यता आदि में अन्तर होने से उनकी निर्णय शक्ति में भी अन्तर आ जाता है ।
निर्धारण मापनी के उन्नयन हेतु सुझाव :-
निम्न उपायों से निर्धारण मापनी का उन्नयन किया जा सकता है
1. पदों की संख्या निश्चित करना सबसे पहला कार्य है। यदि संख्या कम है तो निर्णायक को सूक्ष्म भेद करने का अवसर नहीं मिलता है। यदि इनकी संख्या अधिक कर दी जाये तो निर्णायक इन सबका उपयोग नहीं कर पाता ।
2. जिन कथनों को सम्मिलित किया जाए वे वस्तुनिष्ठ रूप से परिभाषित होने चाहिए।
3. निर्णायक को उस व्यक्ति के गुणों का विभिन्न परिस्थितियों में अवलोकन करने का भी अवसर मिलना चाहिए।
4. निर्णायक को इसका प्रयोग करने के निर्देश स्पष्ट होने चाहिए ।