हिन्दी काव्यशास्त्र में काव्यप्रेरणा और काव्यहेतु | kavya Prenana aur Kavya Hetu

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 हिन्दी काव्यशास्त्र में काव्यप्रेरणा और काव्यहेतु

हिन्दी काव्यशास्त्र में काव्यप्रेरणा और काव्यहेतु | kavya Prenana aur Kavya Hetu


 

 हिन्दी काव्यशास्त्र में काव्यप्रेरणा और काव्यहेतु

इस आर्टिकल में काव्य के हेतु विषयक भारतीय कव्यशास्त्र परम्परा के अन्तर्गत हम रीतिकालीन आचायों के काव्यहेतु के सन्दर्भ मे विचारों की चर्चा कर चुके हैंऔर हमने यह पाया है कि रीतिकालीन आचार्य संस्कृताचार्यों के ही विचारों से साम्य रखते हैं। हाँ यहाँ हम यह जरूर उल्लिखित करना चाहेंगे कि हमारे रचनाकार प्राय: अपनी रचनाओं में यह इंगित करते रहते हैं कि काव्य रचने की प्रेरणा उन्हें कहाँ से मिली है। इस सन्दर्भ में संस्कृत के सुप्रसिद्ध आचार्यकवि पण्डितराज जगन्नाथ के सन्दर्भ में प्रचलित एक कथा का जिक्र करके हम अपनी बात स्पष्ट करते हैं। पंडितराज जगन्नाथ ने शाहजहाँ के राजपरिवार की एक कन्या लवंगी से विवाह किया जिसके कारण काशी के पण्डितों ने काशी के घाटों पर उनका प्रवेश निषेध कर दिया। इस पर वे काशी के बाहर घाट के ऊपर बैठ गए और उन्होंने गंगा की स्तुति में श्लोक लिखने आरम्भ कर दिये। कहते हैं कि उनके एक-एक श्लोक लिखने के साथ-साथ गंगा एक एक सीढ़ी ऊपर चढ़ने लगीं और गंगा लहरी के पूरा होते ही गंगा उन्हें स्वयं अपने साथ ले गईं। पण्डितराज को इस गंगालहरी को लिखने की प्रेरणा अपने समाज के लोगों द्वारा किये गए तिरस्कार और आस्था के माध्यम से हुई। हमारे महाकवि तुलसीदास के विशय में भी कहा जाता है कि रामचरित लिखने की प्रेरणा उन्हें हनुमान ने दी । रीतिकालीन कवि घनानन्द का कहना है 'लोग हैं लागि कवित्त बनावतमोंहि तो मेरे कवित बनावत ।

 

आधुनिक काल में हिन्दी के आचार्यों ने काव्यप्रेरणा और काव्य हेतुओं के विषय में यत्र- तत्र अपने विचार व्यक्त किये हैं। अपनी सुप्रसिद्ध कृति 'साहित्यालोचनमें बाबू श्यामसुन्दरदास ने आत्माभिव्यक्ति की इच्छामानव व्यापारों में अनुरागनित्य और काल्पनिक संसार में अनुराग और सौन्दर्यप्रियता की चर्चा काव्यप्रेरणा के सन्दर्भ में की। जिस तरह वाल्मीकि के सन्दर्भ में कहा गया कि वहाँ शोक से श्लोक की प्राप्ति हुईइसी तरह सुमित्रानन्दन पन्त ने भी वेदना को काव्य की मूल प्रेरणा के रूप में स्वीकार किया । कीट्स द्वारा लिखित - Our sweetest songs are those,That tells our sadest thoughts की भाँति 'वियोगी होगा पहला कविआह से उपजा होगा गान। उमडकर आँखों से चुपचापबही होगी कविता अनजानके द्वारा पन्त ने इस बात की पुष्टि की है। जयशंकर प्रसाद की दृष्टि में कावयानुभूति अखण्डआत्मिक व्यापार है और दिनकर की दृष्टि में आत्मानुभूति। मुक्तिबोध के अनुसार अविरल साधना और श्रम के फलस्वरूप सुन्दर अभिव्यक्ति होती है। अज्ञेय भी काव्य प्रेरणा को काव्य का आभ्यन्तरिक उपादान मानते हैं।

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