विचलनशीलता की मापों के प्रकार
विचलनशीलता की मापों के प्रकार
विचलनशीलता को ज्ञात करने के लिए निम्नलिखित चार विधियाँ या माप (Measures) अधिक प्रचलित है प्रायः इन्हीं मापों का प्रयोग मनोविज्ञान और शिक्षा में अधिक होता है-
(1) प्रसार (Range)
(2) चर्तुथांश विचलन (Quartile Deviation or Q
(3) मध्यमान विचलन (Mean Deviation or M.D.)
(4) मानक विचलन (Standard Deviation or S.D.)
1 प्रसार (Range ) -
विचलन के मापकों में प्रसार अपेक्षाकृत सरल माप है इसका प्रयोग आवृत्ति वितरण तालिका (Frequency Distribution Table) बनाते समय किया जाता है। अधिकतम अंक या मान ( Highest Score) तथा न्यूनतम अंक (Lowest Score) के अन्तर को प्रसार कहते हैं। इसका संकेत चिन्ह ( Symbol) R है |
उदाहरण निम्नलिखित प्राप्तांको का प्रसार ज्ञात कीजिए-
21, 36, 38, 26, 27, 28, 30, 32, 24, 19, 22, 30
हल - प्रश्न में, अधिकतम प्राप्तांक (Highest Score) = 38
निम्नतम प्राप्तांक (Lowest Score) = 19
अतः प्रसार R = 38 – 19
उत्तर= 19 ।
प्रसार की विशेषताएं
1. प्रसार अधिकतम और न्यूनतम अंको के बीच की दूरी है।
2. दिये हुए प्राप्तांको में से मध्य के प्राप्तांको का प्रभाव प्रसार पर नहीं पड़ता है। उदाहरण के लिए 5, 8, 11, 14, 17, 19 और 5, 9, 9, 8, 18, 19 दोनों समूहों का प्रसार एक सा ही है।
3. प्रसार के द्वारा अधिकतम प्राप्तांक व न्यूनतम प्राप्तांक के बीच की दूरी (Distance) का ज्ञान होता है केन्द्रीय प्रवृत्ति के माप के समान स्थिति (Location) का ज्ञान नही होता है।
4. प्रसार मुख्य रूप से प्रतिदर्श के आकार पर निर्भर होता है। यदि प्रतिदर्श का आकार बड़ा है, तब प्रसार अधिक होता है तथा जब प्रतिदर्श का आकार छोटा होता है, प्रसार छोटा होता है।
5. प्रसार का प्रयोग वर्णनात्मक स्तर तक ही किया जाता है, निष्कर्षात्मक (inferential) कार्यों में इसका उपयोग नहीं होता है।
6. प्रसार की गणना बहुत सरल हैं। बहुधा इसका प्रयोग आवृत्ति वितरण बनाने में होता है।
प्रसार का प्रयोग कब करें :-
1. जब प्रदत्त इतने बिखरे हों कि अन्य विचलन मापकों का प्रयोग न किया जा सके।
2. जब किसी वितरण के विचलन का सरलता और अति शीघ्रता से पता लगाना हो ।
3. जब वितरण का कुल फैलाव ज्ञात करना हो ।
4. जब अधिक शुद्ध विचलन की आवश्यकता न हो ।
2 चतुर्थांश विचलन (Quartile Deviation) -
चतुर्थाश विचलन प्रथम और तृतीय चतुर्थांशों के मध्य अन्तर का आधा होता है। दूसरे शब्दों में, किसी आवृत्ति वितरण में 75वें प्रतिशतांक (Percentile) और 25 वें प्रतिशतांक के बीच की आधी दूरी को चतुर्थांश विचलन कहा जाता है। प्रथम चतुर्थांश का अर्थ है 25वा प्रतिशतांक या Q, और तृतीय चतुर्थाश का अर्थ है 75 वाँ प्रतिशतांक या Q । चतुर्थांश विचलन का संकेत चिन्ह (Symbol) Q या Q. D. है ।
चतुर्थांश विचलन (Qor Q.D.) =
या
चतुर्थांश विचलन (Qor Q.D.) =
गैरेट (1973) के अनुसार चतुर्थांश विचलन, "किसी आवृत्ति वितरण में शतांशीय मान 75 तथा शतांशीय मान 25 के मध्य अन्तर का आधा होता है।"
चतुर्थांश विचलन की विशेषतायें :-
1. चतुर्थांश विचलन Q, और Q के अन्तर की आधी दूरी है।
2. चतुर्थांश विचलन के अन्तर्गत प्रारम्भिक और अन्तिम छोर के प्राप्तांकों को महत्व नहीं दिया जाता है।
3. इसका प्रयोग वर्णनात्मक सांख्यिकी में निष्कर्षात्मक सांख्यिकी की तुलना में अधिक होता है।
4. चतुर्थांश विचलन की गणना तथा उसके गुण मध्यांक के समान होते हैं।
5. चतुर्थांश विचलन की गणना क्रमिक स्तर (Ordinal Level) के प्रदत्तों के लिऐ अधिक उपयुक्त होती है
चतुर्थांश विचलन का प्रयोग कब करें
1. जब प्राप्तांको का वितरण सामान्य हो ।
2. जब केन्द्रीय प्रवृत्ति के मापकों से मध्यांक की गणना की गई हो ।
3. जब प्रतिदर्श छोटो हो तथा जब अंक वितरण अपूर्ण हो ।
4. जब अंक वितरण के प्राप्तांको का फैलाव अधिक हो। जिससे मानक विचलन के अशुद्ध मान प्राप्त होने की सम्भावना हो ।
3 मध्यमान विचलन (Mean Deviation Or M.D.)
गिलफर्ड के अनुसार मध्यमान विचलन, मध्यमान से भिन्न-भिन्न प्राप्तांको के विचलनों का मध्यमान है जबकि धन तथा ऋण चिन्हों को ध्यान में न रखा गया हो । मध्यमान विचलन का संकेत चिन्ह (Symbol) A.D. या M.D. है । मध्यमान विचलन मध्यमान से विचलन का सापेक्ष मापक है।
मध्यमान विचलन, प्रसार और चतुर्थांश विचलन दोनों की अपेक्षा अधिक उपयुक्त विचलन का मापक है क्योंकि प्रसार के बीच के अंकों को कोई महत्व नहीं दिया जाता है तथा चतुर्थांश विचलन में भी मध्य के केवल कुछ ही प्राप्तांको को महत्व दिया जाता है।
मध्यमान विचलन की विशेषतायें :-
1. मध्यमान विचलन की गणना पर सभी प्राप्तांको का प्रभाव पड़ता है। अतः यह अंक वितरण का पूर्ण प्रतिनिधित्व करता है।
2. इसकी गणना करना सरल है।
3. मध्यमान विचलन पर प्रदत्त के प्रारम्भिक तथा अन्तिम छोर के प्राप्तांको का प्रभाव कम पड़ता है।
मध्यमान विचलन का प्रयोग कब करना चाहिए ?
1. जब प्रदत्त इतने बिखरे हो कि प्रामाणिक विचलन के अशुद्ध निकलने की सम्भावना हो ।
2. जब प्राप्तांको का वितरण लगभग सामान्य हो ।
3. जब वितरण के प्रत्येक अंक को उसके आकार के अनुसार महत्व देना हो ।
4. जब वितरण के मध्यमान के दोनो ओर विचलन ज्ञात करना हो ।
4 मानक विचलन (Standard Deviation ) -
मानक विचलन (SD) को विचलनशीलता के मापों में सबसे अधिक विश्वसनीय व स्थिर माप समझा जाता है। इसे संकेताक्षर SD या Â से प्रदर्शित किया जाता है।
गिल्फर्ड के अनुसार, " मानक विचलन मध्यमान से प्राप्तांको के विचलनों के वर्गों के मध्यमान का वर्गमूल होता है।"
प्रामाणिक या मानक विचलन की विशेषतायें :-
प्रामाणिक या मानक विचलन की प्रमुख विशेषतायें निम्नलिखित हैं
1. प्रमाणित या मानक विचलन द्वारा विचलन का सर्वाधिक श्रेष्ठ मापन किया जाता है।
2. मानक विचलन मध्यमान के समान सभी प्राप्तांको से समान रूप से प्रभावित होता है तथा सीमान्त प्राप्तांक से सर्वाधिक प्रभावित होता है।
3. यदि प्राप्तांको में कोई स्थिर संख्या जोड़ दी जाए अथवा घटा दी जाये तब मानक विचलन पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता ।
4. प्रामाणिक विचलन, वर्णनात्मक तथा अनुमानात्मक सांख्यिकी का आधार है।
5. यदि प्राप्तांकों में किसी निश्चित संख्या का गुणा किया जाये तो मूल मानक विचलन उतने गुना अधिक बढ़ जाता है जितने गुना संख्याओं को बढ़ाया जाता है।
6. प्रामाणिक विचलन एक संख्या है इसकी इकाई वही होती है जो इकाई मूल प्राप्तांको की होती है।
7. सामान्य प्रायिकता वक्र का यह मुख्य आधार है।
प्रामाणिक विचलन का प्रयोग कब करें ?
1. जब प्राप्तांको का वितरण सामान्य हो ।
2. जब अधिक शुद्ध और विश्वसनीय विचलन माप की गणना करनी हो ।
3.जब समूहों की सजातीयता व विषमजातीयता का अध्ययन करना हो ।