उपन्यास व कहानी में अन्तर |Difference between novel and short story

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उपन्यास व कहानी में अन्तर

उपन्यास व कहानी में अन्तर |Difference between novel and short story


 

उपन्यास व कहानी में अन्तर

कहानी शब्द के लिए 'स्टोरी' संज्ञा का प्रयोग किया जाता है, जिसमें मोटे रूप में प्रायः सभी प्राचीन रूप आ जाते हैं। इसके चिह्न प्राचीनतम् साहित्य में भी मिलते हैं। कथा-साहित्य संसार की सभी भाषाओं में प्राप्त होता है। आरम्भ में सभी कथाएँ एक रूप और एक ही पद्धति से विकसित होने के कारण कथा-साहित्य कहलाने लगी।

 

उपन्यास और कहानी दोनों ही गद्यमय एवं वर्णन पर आधारित ऐतिहासिक शैली की विधाएँ हैं, जिनमें लेखक संवाद या कथोपकथन का आश्रय लेता है। उपन्यास और कहानी कथा-साहित्य की महत्त्वपूर्ण विधा है और हिन्दी साहित्य में इनका पदार्पण बंगला के माध्यम से पाश्चात्य साहित्य के प्रभाव से हुआ। तत्वगत और स्वरूप की दृष्टि से उपन्यास और कहानी एक दूसरे के अत्यंत निकट हैं। उपन्यास और कहानी दोनों में ही एक समान छः तत्त्व माने गए हैं। इन दोनों में कुछ समानतायें होने के कारण कुछ आलोचकों का मानना है कि उपन्यास को काट-छाँट कर कहानी और कहानी को विचार पूर्वक कह कर उपन्यास बनाया जा सकता है। इस मत को कुछ आलोचक दूसरे शब्दों में कहते हैं कि- एक ही चीज की कहानी लघु-संस्करण है और उपन्यास वृहद् संस्करण। यह तुलनात्मक कथन केवल आकार को आधार मानकर कहा गया है। यदि इस तथ्य को माने तो कहानी और उपन्यास के बीच तात्विक भेद समाप्त हो जाता है और इन्हें दो स्वतंत्र विधा कहना गलत होगा। परन्तु वास्तविकता यह है कि आज कहानी और उपन्यास कलागत समानता रखते हुए भी एक-दूसरे से पूर्णतः भिन्न विधाएं मानी गई हैं। इस इकाई में हम कथा साहित्य की दोनों विधाओं कहानी और उपन्यास के बीच स्थित अन्तर को विभिन्न साहित्यिकारों की दृष्टि से जानेंगे और उनका तुलनात्मक अध्ययन करेंगे।

 

उपन्यास और कहानी का अन्तर 

आज कहानी और उपन्यास हिन्दी कथा - साहित्य के महत्वपूर्ण अंग हैं। संस्कृत के आचार्यो ने कथा के अनेक रूपों का वर्णन किया है, साथ ही उनका तात्विक विवेचन भी किया है। पश्चिम के साहित्यकारों ने भी रोमांस को आधार बनाकर इसे गद्य में लिखा गया महाकाव्य माना है। उपन्यास और कहानी दोनों में ही 'कथा' तत्व विद्यमान रहता है। अतः प्रारम्भ में लोगों की धारणा थी कि कहानी और उपन्यास में केवल आकारगत भेद है। यह धारणा अब निर्मूल हो चुकी है क्योंकि कभी-कभी एक लघु उपन्यास से कहानी का कथा-विस्तार अधिक होता है। ज्यों-ज्यों कहानी की शिल्पविधि का विकास होता गया, उपन्यास से उसका पार्थक्य भी स्पष्ट झलकने लगा। पश्चिम के प्रसिद्ध आलोचक हडसन ने कहानी को उपन्यास का आने वाला रूप कहकर उपन्यास और कहानी के बीच अभेदता को दर्शाया था। वस्तुतः कहानी और उपन्यास में आकार-प्रकार का भेद तो है ही, इसके साथ ही उनकी विषयवस्तु, शिल्प और शैली में भी इस भेद को स्पष्ट देखा जा सकता है। कहानी कहानी है और उपन्यास उपन्यास । यहाँ पर इस कथन के प्रमाण में कुछ कथाकार, मनीषियों, चिन्तक एवं आलोचकों के विचारों को प्रस्तुत कर रहे हैं, जिन्होंने कहानी और उपन्यास के पृथक-पृथक अस्तित्व को स्वीकार किया है।

 

उपन्यास सम्राट एवं सशक्त कहानीकार मुंशी प्रेमचंद ने कहानी और उपन्यास के अन्तर को इन शब्दों में स्वीकार किया है- "कहानी (गल्प) एक ऐसी रचना है, जिसमें जीवन के किसी अंश या किसी एक मनोभाव को प्रदर्शित करना ही लेखक का उद्देश्य रहता है। उसके चरित्र, उसकी शैली, उसका कथा -विन्यास सब उसी भाव की पुष्टि करते हैं। उपन्यास की भाँति उसमें मानव- जीवन का सम्पूर्ण तथा वृहत् रूप दिखाने का प्रयास नहीं किया जाता और न उसमें उपन्यास की भाँति सभी रसों का सम्मिश्रण होता है। वह ऐसा रमणीय उद्यान नहीं, जिसमें भाँति-भाँति के फूल, बेल-बूटे सजे हुए हैं, बल्कि एक गमला है, जिसमें एक ही पौधे का माधुर्य अपने समुन् रूप में दृष्टिगोचर होता है।

 

हजारी प्रसाद द्विवेद्वी के अनुसार,उपन्यास शाखा प्रशाखा वाला एक विशाल वृक्ष जबकि कहानी एक सुकुमार लता।

 

डॉ. श्याम सुन्दर दास इस संबंध में कहते हैं कि यह बालिका जो गल्प कहलाती है, उपन्यास की ही औसत जात है, किन्तु कुछ समय से वह अपने पितृ गृह में निवास नहीं करती, उसने नवीन कुल मर्यादा को ग्रहण कर लिया है। "

 

डॉ. गुलाबराय इन दोनों के अन्तर को स्पष्ट करते हुए कहते हैं- "कहानी अपने पुराने रूप में उपन्यास की अग्रजा है और नये रूप में उसकी अनुजा । कहानी की एकतथ्यता ही उसका जीवन-रस है और वही उसे उपन्यास से पृथक करता है। "

 

यद्यपि दोनों ही कलात्मक ढंग से मानव-जीवन पर प्रकाश डालते हैं और दोनों के तत्व समान हैं, फिर भी इनमें पर्याप्त अन्तर है। आगे उपन्यास और कहानी के अन्तर पर बिन्दुवार विचार किया जा रहा है -

 

  कहानी जीवन की एक झलक मात्र प्रस्तुत करती है जबकि उपन्यास सम्पूर्ण जीवन का विशाल और व्यापक चित्र प्रस्तुत करता है । उदाहरणार्थ: प्रेमचन्द की कहानी 'पूस रात' और उपन्यास 'गोदान' किसान की दयनीय स्थिति पर आधारित है, किन्तु कहानी में खेतिहर हल्कू के जीवन की केवल एक रात का चित्रण है जबकि उपन्यास में होरी के पूरे जीवन और उससे जुड़े जरूरी घटनाओं का चित्र प्रस्तुत किया है।

 

 कहानी के लिए संक्षिप्तता और संकेतात्मकता आवश्यक तत्व हैं। उपन्यासकार के लिए विवरणपूर्ण, विशद और व्याख्यापूर्ण शैली आवश्यक है।

 

❋ कहानीकार एक भाव या प्रभाव - विशेष का चित्रण करता है। उपन्यास पूरी परिस्थिति और गतिशील जीवन की निवृत्ति करता है।

 

❋  कहानी में प्रासंगिक कथाओं का अवसर नहीं होता। उपन्यास में प्रासंगिक कथाओं का संगठन आधिकारिक कथा की सपाटता को दूर करने तथा वर्णन में विविधता लाने के लिए आवश्यक होता है। उपन्यास में एक साथ एक से अधिक प्रासंगिक एवं अवान्तर कथाएं विषय और व्यक्ति से सम्बद्ध अन्य घटनाओं के रूप में प्रसंगवश जोड़ी जा सकती हैं। उदाहरणार्थ यदि भगवान श्री राम के जीवन पर उपन्यास लिखा गया तब रावण, हनुमान, अहिल्या, शबरी एवं बाली इत्यादि की कथाएं स्वतः ही जुड़ जाती हैं।

 

❋  कहानी में थोड़े समय में महत्त्वपूर्ण बात कहनी होती है। अतः कला की सूक्ष्मता इसमें आवश्यक होती है और वह एक भाव-विशेष का ही चित्रण करने का प्रयास करती है। उपन्यास में सूक्ष्म कला की आवश्यकता नहीं होती वरन इसके लिए लेखक में व्यापक, उदात्त दृष्टिकोण, भाव, रस और परिस्थिति के समग्र रूप में चित्रण की सामर्थ्य आवश्यक है। रस एंव भावों के विविध रूपों का समावेश उपन्यास में हो सकता है।

 

उदाहरणार्थ गोदान में प्रेम, घृणा, ईर्ष्या, दुख इत्यादि भावों के साथ ही नगरीय एंव ग्रामीण जीवन के समस्त चित्र एक साथ उकेरे गए हैं। होरी के माध्यम से जहाँ ग्रामीण जीवन को दिखाया गया है वहीं उसके पुत्र गोबर के माध्यम से शहरी जीवन का चित्रण भी कुशलता से किया गया है।

 

 कहानी द्वारा हल्का मनोरंजन ही प्रायः सम्पादित हो पाता है। उपन्यास परिस्थिति और पात्र के पूर्ण चित्रण द्वारा हृदय-मंथन और मनः संस्कार भी करता है। अर्थात उपन्यास में जीवन के विभिन्न पक्षों का चित्रण गभीरतापूर्वक किया जाता है जबकि कहानी विशेष उद्देश्य के लिए या हल्के मनोरंजन के लिए भी रची जा सकती है।

 

 कहानी में इतिवृत्तात्मकता और अतिशय कल्पना के लिए स्थान नहीं होता। उपन्यास में इतिवृत्तात्मक विवरण पर्याप्त मात्रा में होते हैं, कल्पना का व्यापक प्रसार भी हो सकता है।

 

 कहानी में चरित्र की झलक रहती है अर्थात चरित्र का उद्घाटन किया जाता है। उपन्यास में चरित्र की झाँकी होती है अर्थात चरित्र को विकसित किया जाता है।

 

 कहानी में चरित्र चित्रण की अभिनयात्मक शैली अपनाई जाती है। उपन्यास में चरित्र- चित्रण की विश्लेषात्मक शैली अपनाई जाती है।

 

 कहानी का आकार छोटा होता है। उपन्यास का आकार कथा - विस्तार के अनुरूप विस्तृत हो सकता है। इसी कारण कई बार उपन्यास नीरस हो जाता है जबकि छोटे आकार के कारण कहानी रोचकता लिए होती है। 'अज्ञेय' का उपन्यास 'शेखर एक जीवनी' में कथा - विस्तार इतना व्यापक है कि उसे दो भागों में लिखा गया है।

 

 कहानी में पात्रों की संख्या कम होती है, कई बार एक पात्र ही सम्पूर्ण कहानी का कर्ता होता है। उपन्यास में पात्रों की संख्या अधिक होती है एंव मुख्य पात्र के अतिरिक्त अन्य पात्र भी घटना को आगे बढ़ाते हैं।

 

 कहानी का चरम सीमा के साथ सीधा सम्बन्ध होता है। उपन्यास चरम सीमा की ओर धीरे-धीरे बढ़ता है।

 

उपन्यास और कहानी के विषय में उपर्युक्त विवेचन को और अधिक स्पष्ट रूप से समझ सकते हैं- उपन्यास का गौरव जीवन की समग्रता में है, कहानी का संक्षिप्तता में। कहानी में एकप है-एक घटना, जीवन का एक पक्ष, संवेदना का एक बिन्दु, एक भाव एक उद्देश्य । उपन्यास में है, अनेकता है।

 

उपन्यास में प्रासंगिक और अवांतर कथाएं मुख्य कथा को पुष्ट करती हैं। कहानी में प्रायः इनके लिए अवकाश नहीं रहता। इसी तरह कहानी में सीमित पात्र भी होते हैं, उपन्यास में अनेक। माना जाता है कि कहानी में मूलतः एक ही पात्र होता है, अन्य पात्र तो उसके सहायक होते हैं।

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