वर्ण, उच्चारण और वर्तनी
वर्ण, उच्चारण और वर्तनी
किसी भी भाषा में प्रयुक्त होने वाली मूल ध्वनि को वर्ण
कहते हैं. वर्णों के समूह या समुदाय को वर्णमाला कहते हैं. हिन्दी वर्णमाला दो
भागों में विभक्त है-स्वर और व्यंजन.
स्वर -
जिन ध्वनियों के उच्चारण में हवा मुख-विवर से अबाध गति से निकलती है, उन्हें स्वर कहते हैं. स्वर दो प्रकार के होते
1. मूल स्वर
2. संधि स्वर
(1) मूल स्वर -
जिन
स्वरों के उच्चारण में अन्य स्वरों की सहायता नहीं लेनी पड़ती है. उन्हें मूल स्वर
या हस्व स्वर कहते हैं; जैसे- अ, इ, उ.
(2) संधि स्वर -
जिन
स्वरों के उच्चारण में मूल स्वरों की सहायता लेनी पड़ती है, उन्हें संधि स्वर
कहते हैं. ये दो प्रकार के होते हैं- (क) दीर्घ स्वर (ख) संयुक्त स्वर.
(क) दीर्घ स्वर -
जो सजातीय स्वरों के संयोग से निर्मित हुए हैं, वे दीर्घ स्वर कहलाते हैं; जैसे-
अ + अ = आ
इ + इ =ई
उ +उ =
(ख) संयुक्त स्वर -
जो विजातीय स्वरों के संयोग से निर्मित हुए हैं. संयुक्त स्वर कहलाते हैं. जैसे-
अ +इ = ए
अ + ए = ऐ
अ +उ = ओ
अ + ओ = औ
व्यंजन-
जिन ध्वनियों के उच्चारण में हवा मुख-विवर से अबाध
गति से नहीं निकलती, वरन् उसमें पूर्ण
या अपूर्ण अवरोध है, व्यंजन कहलाती
है. व्यंजन सामान्यतः 6 प्रकार के होते
हैं-
(1) स्पर्श व्यंजन
क से म तक 25 - व्यंजन स्पर्श हैं. इनमें क वर्ग को कंठ्य या कोमल तालव्य, च वर्ग को तालव्य व्यंजन, ट वर्ग का मूर्धन्य व्यंजन त वर्ग को दन्त्य व्यंजन, प बर्ग को ओष्ठ्य व्यंजन कहते हैं. व दन्त्योष्ठ, न, र ल वत्स्य और 'ह' स्वरयन्त्र मुखी या काकल्य कहलाते हैं.
(2) अनुनासिक व्यंजन - ङ, ञ, ण, न, म अनुनासिक व्यंजन हैं.
(3) अंतस्थ व्यंजन - य, र, ल, व अंतस्थ व्यंजन हैं.
(4) ऊष्म व्यंजन - श, ष, स और ह ऊष्म व्यंजन हैं.
(5) उत्क्षिप्त व्यंजन - ड़ और ढ़ उत्क्षिप्त व्यंजन हैं.
(6) संयुक्त व्यंजन क्ष, त्र, ज्ञ, श्र संयुक्त व्यंजन हैं.
वर्तनी
किसी भाषा में शब्दों की ध्वनियों को जिस क्रम और जिस रूप
से उच्चारित किया जाता है,
उसी क्रम और उसी
रूप में लेखन की रीति को वर्तनी (Spelling) कहते हैं. जो जैसा उच्चारण करता है वैसा ही
लिखना चाहता है. अतः उच्चारण और वर्तनी में घनिष्ठ सम्बन्ध है. शुद्ध वर्तनी के
लिए शुद्ध उच्चारण अपेक्षित है.