विराम चिह्नों का प्रयोग
विराम चिह्नों का प्रयोग
लिखित भाषा में विराम चिह्नों का प्रयोग अनिवार्य है. यदि
भाषा में विराम चिह्नों का उचित स्थान पर प्रयोग नहीं किया गया है, तो अर्थ स्पष्ट
नहीं हो सकेगा. हिन्दी में विराम चिह्नों का प्रयोग महावीर प्रसाद द्विवेदी की
प्रेरणा से प्रारम्भ हुआ.
विराम चिह्नों के प्रयोग की कतिपय सावधानियाँ
1. पूर्ण विराम का प्रयोग तभी किया जाता है जब वाक्य अर्थ की दृष्टि से पूर्ण हो जाए.
2. किसी भी संयोजक से पूर्व पूर्ण विराम का प्रयोग नहीं किया जाता.
3. प्रश्नवाचक वाक्य वह होता है जिसमें किसी उत्तर की अपेक्षा की गई है, केवल प्रश्नवाचक शब्द देखकर वाक्य के अन्त में प्रश्नवाचक का प्रयोग करना ठीक नहीं है.
4. अल्प विराम में कम ठहरना होता है, जबकि अर्द्धविराम में अधिक.
5. सम्बोधन विस्मय, हर्ष, घृणा, भय, व्यंग्य आदि की सूचना देने वाले वाक्यों में विस्मयादिबोधक चिह्न का प्रयोग किया जाता है.
6. योजक चिह्न का प्रयोग दो शब्दों के सम्बन्ध को दिखाने हेतु किया जाता है द्वन्द्व समास में इसका प्रयोग होता है साथ ही विपरीतार्थक शब्द जब एक साथ प्रयुक्त हों, तब बीच में योजक चिह्न लगता है.
7. जब लिखते समय कोई
शब्द छूट जाता है, तो जिन दो शब्दों
के बीच शब्द छूटा हो वहाँ हंसपद चिह्न लगाकर उनके ऊपर बीच में वह शब्द लिख दिया
जाता है.
विराम चिह्न भावभिव्यक्ति को स्पष्ट कर अर्थ को मुखरता एवं स्पष्टता प्रदान करते हैं. इसलिए उनका प्रयोग आवश्यक है.