आलोक धन्वा कवि परिचय
आलोक धन्वा कवि परिचय
जन्म – 2 जुलाई, 1948
जीवन परिचय - आलोक धन्वा का जन्म 2 जुलाई, 1948 मुंगेर, बिहार में हुआ
था। आप हिन्दी के प्रसिद्ध जनकवि माने जाते हैं।
शिक्षा-स्वाध्याय व्यक्तित्व -
इनकी रचनाओं में इनके व्यक्तित्व की छाप दिखाई पड़ती है। सार्वजनिक संवेदना, सार्वजनिक मानव पीड़ा, पीड़ा का विरोध, मर्म सब कुछ गहराई से दिखाई देता है जो संवेदित ही नहीं आंदोलित भी करता रचनाएँ- पहला काव्य संग्रह दुनिया रोज बनती है। जनता का आदमी, गोली दागो, पोस्टर, कपड़े के जूते, जूनों की बेटियाँ आदि अन्य संग्रह है।
भाषा-शैली -
भाषा सामान्य, साहित्यिक हिन्दी एवं खड़ी बोली है। भाषा में तराशी हुई अभि हासिल की है। सशक्त विचारों के साथ भाषा भी सरल है। काव्य में विम्बों का प्रयोग किया है तथा कहीं-कहीं प्रकृति का मानवीकरण परिलक्षित है। साहित्य में स्थान- नई पीढ़ी के लिए एक हस्ताक्षर कहलाने वाले जनकवि आरतीक धन्या जनता की आवाज हैं, जनता के लिए सृजन कार्य किया। इन्हें पहल सम्मान, नागार्जुन सम्मान एवं फिराज गोरखपुरी सम्मान, गिरिजाकुमार माथुर सम्मान, प्रकाश जैन स्मृति सम्मान आदि अन्य सम्मान भी प्राप्त हैं।
पतंग' कविता का संक्षिप्त परिचय
आलोक धन्वा द्वारा रचित 'पतंग' कविता में प्रकृति में ऋतु परिवर्तन के साथ, बाल मनोचित में
होने वाले परिवर्तन का सुन्दर चित्रण है। इसमें वर्षा ऋतु की घनघोर वर्षा के
पश्चात् (हिन्दी पंचांग के अनुसार) आने वाले भादो मास में प्रकृति का प्रातःकालीन
सूर्योदय मनमोहक चित्रण किया गया है। ऐसे वातावरण में बाल सुलभ क्रियाकलापों में
उमंग, उत्साह और जोश
दिखाई पड़ता है। वर्षा ऋतु के पश्चात् शरद ऋतु का आगमन भी न केवल प्रकृति को
चमकीला करता है अपितु बच्चों को भी साइकिल चलाने, पतंग उड़ाने, इशारे से अपने मित्रों को आमंत्रित करने के लिए उत्प्रेरित
करता है। बच्चों की किलकारियाँ, सीटियाँ समूचे वातावरण में गुंजायमान होकर लोगों में आनंद
का संचार करती हैं। बच्चे दुनिया की सबसे हल्की वस्तु पतंग उड़ाने में इतने होकर
छतों पर दौड़ते हैं, तो उनके दौड़ने
से उत्पन्न होने वाली आवाज मृदंग की मनमोहक ध्वनि का अहसास कराते हैं। बच्चों को
स्फूर्ति से दौड़ते, भागते देखकर ऐसा
लगता है जैसे उनका शरीर कपास के बने हाँ इसलिए छत की कठोरता का उन पर कोई असर नहीं
होता। रोमांचित होकर बच्चे पतंग की डोर झूला झूलते हुए खींचते हैं। उनका मन पतंग
की ऊँचाई के साथ उड़ने लगता है बेसुध होकर पतंग उड़ते हुए बच्चे कभी-कभी छतों के
खतरनाक में गिर जाते हैं जहाँ उनका मनोबल और साहस उन्हें पुनः उठाकर सूरज के सामने
पतंग उड़ाने के लिए प्रेरित करता है।