फिराक गोरखपुरी रुबाइयाँ कवि परिचय
फिराक गोरखपुरी रुबाइयाँ कवि परिचय
जन्म - 1896
मृत्यु - 1992
फिराक गोरखपुरी जीवन परिचय -
फ़िराक गोरखपुरी का मूल नाम रघुपति सहाय है। इनका जन्म गोरखपुर, उत्तरप्रदेश में कायस्थ परिवार में हुआ।
शिक्षा-
फ़िराक गोरखपुरी ने कला स्नातक में पूरे प्रदेश में चौथा स्थान पाने के बाद आई.सी.एस. में चुने गए। इनकी शिक्षा इलाहाबाद विश्वविद्यालय से हुई।
व्यक्तित्व -
इनकी शायरी का बड़ा हिस्सा रूमानियत, रहस्य, और शास्त्रीयता से बँधा रहा, जिसमें लोकजीवन और प्रकृति के पक्ष बहुत कम उभर पाए हैं।
फिराक गोरखपुरी रचनाएँ -
इनकी
शायरी में गुल-ए-नगमा, रुहे कायनात, नग्म-ए-साज, गजालिस्तान, शेरिस्तान, रूप, धरती की करवट, गुलबाग, चिराग, तरान-ए-इश्क
खूबसूरत नज्में, सत्यम् शिवम्
सुंदरम् जैसी, स्वाइयाँ लघु
उपन्यास 'साधु और कुटिया' ।
फिराक गोरखपुरी भाषा-शैली-
इनकी
रचनाओं की मुख्य भाषा ऊर्दू, हिन्दी और अंग्रेजी है। इन्होंने परंपरागत भावबोध और शब्द
भंडार का उपयोग करते हुए उसे नयी भाषा और नए विषयों से जोड़ा है। सामाजिक दुख-दर्द, व्यक्तिगत
अनुभूति उनकी शायरी की पहचान है। दैनिक जीवन के कड़वे सच और आने वाले कल के प्रति
उम्मीद, दोनों को भारतीय
संस्कृति और लोकभाषा के प्रतीकों से जोड़कर फ़िराक ने अपनी शायरी का अनूठा महल
खड़ा किया। फारसी, हिन्दी ब्रजभाषा
और भारतीय संस्कृति की गहरी समझ के कारण, इनकी शायरी में भारत की मूल पहचान रच बस गई।
फिराक गोरखपुरी साहित्य में स्थान-
उन्हें गुले नग्मा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार, ज्ञानपीठ
पुरस्कार और सोवियत लैंड नेहरू अवार्ड से सम्मानित किया गया। 1968 में भारत सरकार
ने पद्मभूषण से सम्मानित किया।
रुबाइयाँ पाठ का संक्षिप्त परिचय
स्वाइयों में वात्सल्स रस की प्रधानता है। इसमें माँ अपने चाँद के समान खूबसूरत बच्चे को गोद में लेकर कभी झूला झुलाती है तो कभी हवा में उछाल कर उसे खुश करती है। नन्हा बालक खिलखिलाकर हँसने लगता है।
बालक को स्वच्छ
जल से स्नान कराकर उसे सजाती संवारती है तब बच्चा भी बड़े अपनत्व भरे प्यार से माँ
को निहारने लगता है। दीवाली के त्यौहार में रूपवती माँ अपने लिपे-पुते घर को
सजाने-संवारने के ही साथ नन्हें के कमरे को भी चीनी के खिलौनों से सजाती है और
उसके कमरे को रौशन करने के लिए दीपक जलाती है।
पूर्णिमा की रात्रि में अठखेलियाँ करता नन्हा बालक माँ से चाँद को पाने की जिद करने लगता है, ऐसे में माँ दर्पण में चाँद का प्रतिबिम्ब दिखाकर उसे खुश करती है। रक्षाबंधन की सुबह काले-काले बादलों के बीच चमकती बिजली की तरह चमकीली राखी नन्हीं बच्ची अपने भाई की कलाई में बाँधती है।
गजल पाठ का संक्षिप्त परिचय
फ़िराक ने अपनी गजलों में उर्दू शेरों शायरी में मुहब्बत (इश्क की दीवानगी को व्यक्त किया है। गजलें श्रृंगार रस से परिपूर्ण हैं।
1. बगीचे में कलियाँ खिलने लगी हैं, चहुँ ओर वातावरण सुगंधित हो गया है। 2. रात्रि के सन्नाटे में कवि को आँखों से नींद कोसों दूर है और सन्नाटे के कोई शब्द सुनाई पड़ रहे हैं।
3. कवि और उसको किस्मत दोनों ही प्रेमिका के वियोग में रो रहे हैं।
4. कवि को बदनाम करने वाले स्वयं ही आलोचक के गुण के कारण बदनाम हो रहे हैं।
5. कवि इश्क में विवेकहीन हो गए हैं और दीवाना कहलाने की कीमत अदा कर रहे हैं।
6. कवि को प्रेमिका की इज्जत का ख्याल है। अतः वह प्रेम को सार्वजनिक स्वीकार न करके अकेले में ये लेते हैं।
7. कवि मुहब्बत की दीवानगी में प्रेमिका के प्रेम का उतना ही एहसास करते हैं जितना उन्हें चाहते हैं।
8. दुनिया की चमक-दमक के बीच भी अपने इश्क की जुदाई शायरी में व्यक्त की गई है।
9. रात्रि के अंधेरे में जब देवदूत लोगों के गुनाहों का हिसाब करते हैं तब कवि मयखाने की महफिल में अपनी प्रेमिका को याद करते हैं।
10. फ़िराक की शायरी, गजलों में, मीर की गजलों के शब्द मोतियों का प्रभाव है।