गजानन माधव मुक्तिबोध कवि सहर्ष स्वीकारा पाठ परिचय
गजानन माधव
मुक्तिबोध' कवि परिचय
मुत्यु- 11 सितम्बर, 1964
जन्म - 13 नवम्बर, 1917
गजानन माधव मुक्तिबोध जीवन परिचय -
गजानन माधव मुक्तिबोध' का जन्म 13 नवम्बर, 1917 को श्योपुर
(शिवपुरी) जिला मुरैना, ग्वालियर
(मध्यप्रदेश) में हुआ था। इनके पिता का नाम माधवराव और माता का नाम पार्वती बाई
था। इनकी मृत्यु 11 सितम्बर, 1964 को मूर्छा में
ही रात के समय हुई।
गजानन माधव मुक्तिबोध शिक्षा-
इनकी प्रारंभिक शिक्षा उज्जैन में हुई। 1938 में बी. ए. पास करने के पश्चात् उज्जैन के मार्डन स्कूल में अध्यापक हो गए। 1954 में एम. ए. करने पर राजनांदगाँव के दिग्विजय कॉलेज में प्राध्यापक पद पर नियुक्त हुए।
व्यक्तित्व -
हिन्दी साहित्य में सर्वाधिक चर्चा के केन्द्र में रहने वाले मुक्तिबोध कहानीकार भी थे और समीक्षक भी उन्हें प्रगतिशील कविता और नयी कविता का सेतु भी माना जाता है।
रचनाएँ-
काव्य संग्रहका भूरी-भूरी खाक धूल
कहानी संग्रह-
काठ का सपना, विपात्र, सतह से उठता आदमी।
आलोचना-
कामायनी - पुनर्विचार, नयी कविता का आत्म-संघर्ष, नए साहित्य का सौंदर्य शास्त्र, समीक्षा की समस्याएँ ।
भाषा-शैली-
मुक्तिबोध
काव्य को भाषा और शिल्प की पहचान उनके अनूठे प्रतीक, बिम्ब, अलंकार, प्रचुर शब्द का विविधतापूर्ण प्रयोग, मुहावरे लोकोक्तियों
के प्रयोग तथा छंद विधान के सार्थक प्रयोग के साथ कैटेंसी के रूप में हिन्दी
साहित्य में अपनी विशिष्ट पहचान अंकित करती है। वे अपने विचारों की अभिव्यक्ति
भाषा के चाहे जिस रूप से करा लेते थे उनको 'वाणी का डिक्टेटर' कहा गया है।
साहित्य में स्थान -
मुक्तिबोध तार सप्तक के पहले कवि माने जाते हैं। मनुष्य की अस्मिता, आत्म- संघर्ष और प्रखर राजनैतिक चेतना से समृद्ध उनकी कविता पहली बार तार सप्तक के माध्यम से सामने आई।
सहर्ष स्वीकारा पाठ का संक्षिप्त परिचय
'सहर्ष स्वीकारा
है।' काव्य गजानन माधव
मुक्तिबोध' के जीवन के निजी
अनुभवों पर आधारित है। प्रस्तुत कविता में कवि ने अपनी सबसे प्रिय माँ अथवा पत्नी
अथवा प्रेयसी अथवा अन्य कोई गुप्त-संबंधी को सम्बोधित कर कहते हैं कि मेरी जिंदगी
में जो कुछ भी है उसे मैंने खुशी से स्वीकार कर लिया है क्योंकि वो सब कुछ तुम्हें
प्यारा है और तुम्हारा ही दिया हुआ है। चाहे वो जीवन की गर्वीली गरीबी का अनुभव हो, चाहे विचार- वैभव
हो, चाहे प्रेम हो या
संवेदना हो मेरा तुमसे न जाने क्या नाता है जो चाँद की तरह खूबसूरत मुख पर मेरा
प्रेम झरता रहता है।
कवि अपने प्रिय के प्रेम व ममता के आगोश में इतना जकड़ गया है कि वह स्वयं को कमजोर और भविष्य के लिए असहाय- सा अनुभव करने लगा है। अतः वह स्वयं को प्रिय के बिना सबल बनाने के लिए उससे दूर जाना चाहता है। इतना दूर कि अमावस की तरह काली अंधेरी गुफा में जाकर स्वयं को दंड देना चाहता है। वह उसे भूलने का प्रयास करना चाहता है, किन्तु वहाँ भी वह अपने प्रिय की आत्मीयता के सहारे ही उस अंधेरी गहरी गुफा में रह सकेगा क्योंकि कवि की जो भी कमजोरी और उपलब्धियाँ हैं उन सब के मूल में (कारण में) प्रमुख 'प्रिय' ही है।