भक्तिन महादेवी वर्मा लेखिका परिचय
भक्तिन महादेवी वर्मा लेखिका परिचय
जन्म मार्च, 1907
मृत्यु- 11 सितंबर, 1987
भक्तिन महादेवी वर्मा लेखिका परिचय जीवन परिचय-
हिन्दी की सर्वाधिक प्रतिभावान कवयित्रियों और छायावाद के प्रमुख स्तंभों में से महत्वपूर्ण स्तंभ के रूप माने जाने वाली महादेवी वर्मा जी का जन्म 26 मार्च 1907 को फर्रुखाबाद, उत्तरप्रदेश के एक सम्पन्न परिवार में हुआ था। इनके पिता का नाम बाबू गोविंद प्रसाद वर्मा एवं माता का नाम हेमरानी वर्मा था।
शिक्षा –
महादेवी जी की प्रारंभिक शिक्षा इंदौर के मिशन स्कूल में हुई। उन्होंने संस्कृत, अंग्रेजी, संगीत व चित्रकला की शिक्षा प्राप्त की। 1925 में मैट्रिक की परीक्षा पास की। विद्यार्थी जीवन से ही वे राष्ट्रीय और सामाजिक जागृति संबंधी कविताएँ लिखती थीं।
व्यक्तित्व -
शांत व गंभीर स्वभाव की महादेवी में शैशवावस्था से ही जीव मात्र के प्रति करुणा और दया थी। उनके व्यक्तित्व में पीड़ा, करुणा, वेदना, विद्रोहीपन, अहं दार्शनिकता और आध्यात्मिकता कूट-कूट कर भरी थी। उनकी रचनाओं में उनके व्यक्तित्व की सूक्ष्म एवं कोमल अनुभूतियों की अभिव्यक्ति स्पष्ट दृष्टिगोचर होती है।
रचनाएँ -
इन्होंने गद्य, पद्य, चित्रकला एवं बाल साहित्यों की रचना की। काव्य (पद्य) - नीहार, रश्मि, नीरजा, सांध्यगीत, दीपशिखा काव्य संकलन (यामा, दीपगीत, स्मारिका, परिक्रमा आदि)।
रेखाचित्र -
अतीत
के चलचित्र, स्मृति की रेखाएँ संस्मरण – पथ के साथी, मेरा परिवार
निबंध संग्रह -
श्रृंखला की कड़ियाँ, विवेचनात्मक संकल्पिता, साहित्यकार को आस्था साहित्यिक विशेषताएँ (भावपक्ष) -
1. इनकी काव्य रचनाओं में आत्मा परमात्मा के मिलन एवं विरह की छाया स्पष्ट रूप से दिखाई देती है।
2. रचनाओं में निराशावाद एवं पीड़ावाद को स्थान दिया।
3. लौकिक वेदना से भिन्न आध्यात्मिक वेदना सहज ही देखने को मिलता है।
4. हृदय की अनुभूतियों को अपनी रचनाओं में स्थान दिया है।
5. रचनाओं में
जिज्ञासा, आस्था, अद्वैतभाव, प्रणय एवं विरह
अनुभूतियाँ रहस्यवाद का निर्माण करती हैं। 6. नारी स्वतंत्रता, समाज सुधार, शोषण के विरुद्ध
अनूठे चित्र दिखाई पड़ते हैं।
भाषा-शैली (कलापक्ष ) -
1. प्रारंभिक कविताएँ ब्रजभाषा की थी। इसके पश्चात् संपूर्ण रचनाओं में संस्कृत मिश्रित खड़ी बोली का प्रयोग किया गया है।
2. भाषा मधुर, कोमल व प्रवाहपूर्ण है।
3. काव्य में रस - छंद, अलंकार, शिल्प और प्रतीक का प्रयोग किया गया है।
4. गद्य रचनाओं में वर्णात्मक, विचारात्मक, समीक्षात्मक, भावात्मक शैली अपनाया गया है।।
5. भक्तिन पाठ में विशेष रूप से तत्सम व ठेठ
ग्रामीण शब्दों और लोकभाषा का प्रयोग स्पष्ट दिखाई पड़ता है।
साहित्य में स्थान -
1943 में महादेवी जी को मंगलाप्रसाद पुरस्कार एवं भारत भारती पुरस्कार से सम्मानित किया गया। 1956 में पद्म भूषण एवं मरणोपरांत पद्य विभूषण उपाधि भारत सरकार द्वारा दी गई। 1984 में बनारस हिन्दू विश्वद्यिालय ने डी.लिट की उपाधि से सम्मानित किया। भारत का सर्वोच्च साहित्यिक सम्मान ज्ञानपीठ पुरस्कार भी प्रदान किया गया। 1991 में जयशंकर प्रसाद के साथ इनके सम्मान में 2 रुपए का एक युगल टिकट भी जारी किया गया।