सहर्ष स्वीकारा अभ्यास के प्रश्नोत्तर(MP Board Hindi Question Answer)
प्रश्न 1. टिप्पणी कीजिए, गरबीली गरीबी, भीतर की सरिता बहलाती सहलाती आत्मीयता ममता के बादल।
अथवा
'सहर्ष स्वीकारा है' कविता में गरबीली गरीबी के प्रयोग सौन्दर्य को स्पष्ट कर लिखिए।
उत्तर -
गरबीली गरीबी-
जीवन की अमीरी-गरीबी, सुख-दुःख, सिक्के के दो पहलू और प्रकृति के धूप-छाँव की तरह होते हैं एक के बिना दूसरे का अस्तित्व नहीं है। अतः कवि के जीवन में भी गरीबी ने ऐसे अनेक अनुभव, सीख और चुनौतियाँ दी हैं जिसका सामना करते वक्त एक ओर उनकी प्रिय की सहानुभूतियाँ थीं और दूसरी ओर उनको जीवन जीने के लिए अनेक निर्णायक अनुभव प्राप्त हुए। अतः उनको अपनी गरीबी के दिन भी गर्व का अहसास कराते हैं।
भीतर की सरिता-
सरिता अर्थात् नदी जिसका एक बार उद्गम हो जाए तो प्रवाह कभी नहीं रुकता है। कवि के भीतर की सरिता, विचारों और भावनाओं की है। यूँ तो कवि हृदय, विचारों, भावनाओं, कल्पनाओं की खान होता है, किन्तु इस कविता के कवि गजानन माधव मुक्तिबोध का अंतःकरण इस काव्य विशेष के लिए, विशिष्ट है जहाँ उनके प्रिय के प्रति अंतर्मन में नित्य नवीन और मौलिक विचार, भावनाएँ उठती रहती हैं।
बहलाती -
सहलाती आत्मीयता - बहलाती सहलाती आत्मीयता का शाब्दिक अर्थ हृदय से किसी को बहलाना सहलाना है। इस काव्य में कवि के जीवन की कठिन परिस्थितियों में उनको सांत्वना दिया गया, उनके कष्ट और पीड़ा से भरे जख्मों पर सहानुभूति व संवेदना की मरहम पट्टी की गई। ये दोनों ही कार्य प्रिय के द्वारा हृदय से समर्पित भाव से किया गया। जिस प्रकार एक चोटिल (जख्मी) रोते हुए शिशु को बातें करके बहलाया और उससे जख्मों को कोमल स्पर्श से सहलाया जाता है। कवि की प्रिय ने भी ऐसा ही करके कवि को उनके संकट के दिनों से बाहर निकाला है।
ममता के बादल -
एक शिशु या नन्हा बालक अपनी माता के स्नेह और आँचल की छाँव तले स्वयं को सुरक्षित, संरक्षित महसूस करता है उसी प्रकार कविता में कवि के साथ उनकी प्रिय परछाई की तरह रहकर उन्हें हर क्षण स्नेह और कोमल स्पर्श से सुरक्षा का आवरण प्रदान करती थी।
प्रश्न 2. इस कविता में और भी टिप्पणी योग्य पद प्रयोग है। ऐसे किसी एक प्रयोग का अपनी ओर से उल्लेख करके उस पर टिप्पणी करें।
उत्तर-
दक्षिणी ध्रुवी अंधकार अमावस्या -कवि दक्षिणी ध्रुवी अंधकार अमावस्या जैसे दंड की रखता है। दक्षिणी ध्रुवी अर्थात् पृथ्वी का दक्षिणी ध्रुव जहाँ सूरज की किरणों का पहुँचना असंभव है। अतः वहाँ अंटार्कटिका महाद्वीप का क्षेत्र आता है जो साल भर बर्फ की मोटी चादर से ढँका रहता है। ऐसे में जीवन असंभव है।
अंधकार अमावस्या -
अमावस्या की काली रात जिसमें चंद्रमा अदृश्य होता है तब चारों ओर अंधकार ही अंधकार होने से रात्रि भयावह लगती है। अतः कवि जहाँ न सूरज की किरणों की पहुँच हो सके और ना ही चाँद की रोशनी पहुँच सके ऐसे निर्जन स्थान में जीवन असंभव हो वहाँ दंड पाना चाहता है अर्थात् जीविका के समस्त संसाधनों के अभाव में रहकर दंड पाते हुए साबूत बाहर आना चाहता है।
प्रश्न 3. व्याख्या कीजिए-
जाने क्या रिश्ता है, जाने क्या नाता है
जितना भी उड़ेलता हूँ, भर-भर फिर आता है
दिल में क्या झरना है ?
मीठे पानी का सोता है
भीतर वह, ऊपर तुम
मुसकाता ज्यों धरती पर रात-भर
मुझ त्यों तुम्हारा खिलता वह चेहरा !
उपर्युक्त व्याख्या करते हुए बताइए कि यहाँ की तरह आत्मा पर झुका चेहरा अंधकार अमावस्या में नहाने की बात क्यों की गयी है ?
व्याख्या कवि का अपने प्रिय ( वो स्त्री विशेष जिसे संबोधित किया है ) से खून का रिश्ता है या व्यवहार का या आत्मीयता का यह वह स्वयं नहीं जान पा रहे हैं। उस प्रिय प्रति उनके में अपार भावनाएँ प्रेम है प्रति जितना भी व्यक्त या प्रदर्शित करते उतनी नवीन भावनाएँ मधुर प्रेम तैयार जाती हैं। मीठे पानी के झरने की तरह उनके हृदय के भीतर मधुर प्रेम झरता रहता है, किन्तु उनकी आँखों सामने जीवन में प्रिय का मुस्कुराता दमकता चेहरा, रूप सौंदर्य बिखरा है जिस प्रकार धरती पूर्णिमा के चाँद का प्रकाश बिखरा होता है।
कवि ने चाँद तरह आत्मा पर झुका चेहरा भूलकर अंधकार अमावस्या नहाने बात करता है क्योंकि चाँद की आत्मा एक ओर उन्हें जो स्नेह, ममता और प्रेम जो सांत्वनाओं, सहानुभूतियों संरक्षण कवच प्रदान किया है जिससे वे स्वयं को निर्बल और भविष्य की अनहोनी लिए अक्षम मान रहे हैं। अहसास कि श्रेष्ठ व्यक्तित्व को प्राप्त नहीं कर पाए कवि अपने व्यक्तित्व निर्माण के आत्मबल और सक्षमता लिए स्वयं को अंधकार अमावस्या के घोर कष्ट में डालकर योग्यता और श्रेष्ठ व्यक्तित्व के साथ आना चाहते हैं।
नोट-स्नेह- भाई-बहन प्राप्त, ममता-माता से प्राप्त, प्रेम-प्रेयसी से
प्रश्न
तुम्हें भूल जाने की
दक्षिण ध्रुवी अंधकार अमावस्या
शरीर पर, चेहरे अंतर में पा
झेलूं मैं उसी में लूँ मैं
इसलिए कि तुमसे ही परिवेष्टित आकछादित
रहने का रमणीय यह उजेला अब सहा जाता है।
(क) यहाँ अंधकार अमावस्या के लिए क्या विशेषण इस्तेमाल किया गया है और उससे विशेष्य में क्या अर्थ जुड़ता है ।
(ख) कवि संदर्भ स्थिति को अमावस्या कहा ?
(ग) इस स्थिति ठीक विपरीत ठहरने वाली कौन-सी स्थिति कविता वैपरीत्य को व्यक्त करने वाले शब्द व्याख्यापूर्वक
(घ) कवि अपने संबोध्य (जिसको संबोधित कविता तुम) को पूरी तरह भूल जाना चाहता है। बात को तरीके व्यक्त करने लिए कवि क्या युक्ति अंशों को ध्यान में रखकर दें।
उत्तर-
(क) अंधकार अमावस्या के लिए दक्षिणी ध्रुव का विशेषण इस्तेमाल किया गया और उससे विशेष्य गहरा अर्थ जुड़ता है अर्थात अंतर्कटिका महाद्वोप वह क्षेत्र है जहां सूर्य की किरणें पड़ती ही नहीं हैं । अंधकार अमावस्या जिसमें चन्द्रमा दिखाई नहीं देता है अर्थात् प्रकाश की सभी संभावनाओ से दूर अंधेरी जगह।
(ख) कवि व्यक्तिगत संदर्भ प्रेयसी स्मृति, दर्शन, परछाई या संयोग की संभावनाओं से दूर पूर्णतः वियोग की स्थिति जहाँ प्रेयसी से जुड़े किन्ही विचारों भावनाओं और कल्पनाओ का प्रेवेश कवि के अंदर न हो ।
(ग) इस स्थिति के ठीक विपरीत ठहरने वाली स्थिति रमणीय उजेला है । रमणीय उजेला अर्थात् प्रिय के चंद्रमा की तरह सुकून देने वाला है।
(घ) कवि अपने संबोध्य को पूरी तरह भूल जाना चाहता है। इस बात को प्रभावी तरीके से व्यक्त करने के लिए दक्षिणी ध्रुवी अंधकार-अमावस्या को अपनाया है। जिस प्रकार दक्षिणी ध्रुव-सूर्य और चंद्रमा के प्रकाश से रहित नितांत अंधकार क्षेत्र है जहाँ जीवन की समस्त संभावनाओं का अंत है अर्थात् जीवन शून्य क्षेत्र है। उसी प्रकार वह प्रेयसी से रहित उसकी स्मृतियों की समस्त संभावनाओं से दूर बियोगी होना चाहता है।
प्रश्न 5. "बहलाती सहलाती आत्मीयता बरदाश्त नहीं होती है" इस कविता के शीर्षक 'सहर्ष स्वीकारा है' में आप कैसे अंतर्विरोध पाते हैं ? चर्चा कीजिए।
उत्तर- "बहलाती - सहलाती आत्मीयता बरदाश्त नहीं होती है" इस कविता के शीर्षक 'सहर्ष स्वीकारा ' में अंतर्विरोध है। कवि ने जीवन की हर उन चीजों को सहर्ष स्वीकार किया है जो उन्हें उनके प्रिय के प्रेम के कारण प्राप्त हुआ था, किन्तु वही स्नेह अब उन्हें बरदाश्त नहीं होता क्योंकि प्रिय ने उन्हें इतना स्नेह और ममता दिया है कि वो पूरी तरह से ममता और स्नेह के कवच में ढँक गए हैं, अक्षम महसूस करते हैं। यहाँ अति सर्वत्र वर्जयेत् की सूक्ति को प्रमाणित किया गया है। किसी भी चीज की अति अशुभता की ओर संकेत करती है संतुलन आवश्यक होता है। अतः कवि भी इस अति आत्मीयता से बाहर निकलकर स्वयं को अक्षम से सक्षम, अयोग्य से सुयोग्य, निर्बल से सबल, अविवेकी से विवेकी होकर श्रेष्ठ व्यक्तित्व का निर्माण करना चाहते हैं।
सहर्ष स्वीकारा कविता महत्वपूर्ण प्रश्न उत्तर
प्रश्न 1. अतिशय मोह भी क्या त्रास का कारक है ? माँ का दूध छूटने का कष्ट जैसे एक जरूरी ।कष्ट है, वैसे ही कुछ और जरूरी कष्टों की सूची बनाइए ?
उत्तर-
1. लाड़-प्यार और साधन संपन्नता से बालक का घर से दूर पढ़ने जाना।
2. एक सैनिक का पत्नी या माता-पिता से दूर जाना।
3. पुत्री के विवाह पश्चात् बिदाई।
4. छोटे बच्चों का पहले दिन विद्यालय जाना।
5. बीमारी की अवस्था में पसंदीदा भोज्य पदार्थ पर परहेज।
6. संबंधियों या रिश्तेदारों की मृत्यु।
प्रश्न . 'भय' शब्द पर सोचिए। सोचिए कि मन में किन-किन चीजों का भय बैठा है ? उससे निपटने के लिए आप क्या करते हैं और कवि की मनःस्थिति से अपनी मनःस्थिति की तुलना कीजिए।
उत्तर-
मानव जीवन में भय की सीमा निश्चित व निर्धारित नहीं है। हर आयु वर्ग के लिए भिन्न-भिन्न भय स्तर हो सकते हैं। जैसे-बच्चों को परीक्षा का, शिक्षक या माता-पिता बड़ों से डाँट फटकार का, किसी को नौकरी न मिलने का, किसी को दुर्घटना का, मृत्यु का, व्यापार में हानि का, बीमारी महामारी आदि का।
सभी प्रकार के भयों से निपटने का एकमात्र मूल मंत्र है 'कर्म करो फल की इच्छा न करो' अर्थात् अपने कर्म के प्रति ईमानदार होना और लगनशील होकर सदाचरण से कर्मशील रहें। तत्पश्चात् प्राप्त फल को समभाव से स्वीकार करें, क्योंकि सुख-दु:ख, लाभ-हानि, जय-पराजय, पास फेल, संयोग-वियोग, जीवन के आवश्यक और क्रमिक पहलू हैं।
कवि की मनःस्थिति से अपनी मनःस्थिति की तुलना (विद्यार्थी स्वयं की मनःस्थिति से स्वयं करेंगे)
सहर्ष स्वीकारा अन्य महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1. कवि के जीवन में ऐसा क्या क्या है जिसे उसने सहर्ष स्वीकारा है ?
उत्तर- कवि ने जीवन के सुख-दुःख की अनुभूतियों को सहर्ष स्वीकारा है। उसके पास गरबीली गरीबी है। जीवन के गहरे अनुभव हैं, विचारों का वैभव, भावनाओं की बहती सरिता है, व्यक्तित्व की दृढ़ता है तथा प्रिय का प्रेम है। ये सब उसकी प्रियतमा को पसंद है, इसलिए उसने ये सब सहर्ष स्वीकारा है।
प्रश्न 2. 'सहर्ष स्वीकारा है' कविता किसको व क्यों स्वीकारने की प्रेरणा देती है ?
उत्तर- 'सहर्ष स्वीकारा है' कविता हमें क्षमता सबको स्वीकारने की प्रेरणा देती है। चाहे वह गरबीली गरीबी हो, मौलिक विचार हो, गहरे अनुभव हों। सब स्वीकार करने योग्य हैं। क्यों-यदि ये सब अपने प्रेरणा-स्रोत द्वारा स्वीकृत हैं, यदि हमारा प्रिय इन सबको स्वीकार करके प्रसन्न है तो ये हमारे लिए वरदान के समान हैं।
प्रश्न 3. मुक्तिबोध की कविता के आधार पर स्पष्ट कीजिए कि कवि ने किसे सहर्ष स्वीकारा था ? आगे चलकर वह उसी को क्यों भूलना चाहता था ?
उत्तर - कवि ने अपने जीवन में सुखद-दुःखद, कटु, मधुर, व्यक्तित्व की दृढ़ता व मीठे तीखे अनुभव आदि को सहर्ष स्वीकारा है क्योंकि वह इन सबको अपनी प्रियतमा के साथ जुड़ा पाता है। कवि का जीवन प्रियतमा के स्नेह से आच्छादित है। वह अतिशय भावुकता व संवेदनशीलता से तंग आ चुका है। इससे छुटकारा पाने के लिए वह विस्मृति के अंधकार में खो जाना चाहता है।
प्रश्न 4. ' सहर्ष स्वीकारा है' कविता में कवि का संबोध्य कौन है ? आप ऐसा क्यों मानते हैं ?
उत्तर- कवि का संबोध्य उसकी प्रिया है। यदि माँ-बहन या पिता होते तो कवि अवश्य उस संबंधी का नाम लेता। गर्व अनुभव करता। 'पत्नी' होती तो भी वह नाम ले सकता था। किंतु कवि की संबोध्य उसकी प्रिया है जिसका नाम लेने में उसे स्वाभाविक संकोच है।
प्रश्न 5. 'सहर्ष स्वीकारा है' के कवि ने जिस चाँदनी को सहर्ष स्वीकारा था, उससे मुक्ति पाने के लिए वह अंग-अंग में अमावस की चाह क्यों कर रहा है ?
उत्तर- कवि अपनी प्रियतमा के अतिशय स्नेह, भावुकता के कारण परेशान हो गया है। अब वह अकेले जोना चाहता है ताकि मुसीबत आने पर उसका सामना कर सके। वह आत्मनिर्भर बनना चाहता है। यह तभी हो सकता है, जब वह प्रियतमा के स्नेह से मुक्ति पा सके। अतः वह अपने अंग-अंग में अमावस की चाह कर रहा है ताकि प्रिया के स्नेह को भूल सके।
प्रश्न 6. ' सहर्ष स्वीकारा है' कविता में कवि प्रकाश के स्थान पर अंधकार की कामना क्यों करता है ?
उत्तर - कवि अपने प्रिय द्वारा फैलाए गए प्रकाश के कारण फल-फूल रहा है। उसे लगने लगा है कि वह अपने प्रिय आश्रय के बिना कमजोर हो गया है। अतः वह अपने प्रिय से दूर होकर अंधकार की गुफाओं में खो जाना चाहता है ताकि वहाँ रहकर आत्मबल और आत्मविश्वास अर्जित कर सके।
प्रश्न 7. कवि ने किसे सहर्ष स्वीकारा था ? आगे चलकर वह उसी को क्यों भुला देना चाहता है ?
उत्तर- कवि ने अपने प्रिय को सहर्ष स्वीकार किया था। आगे चलकर वह उसे भुला देना चाहता है। कारण यह है कि उसके प्रिय ने उसके जीवन को पूरी तरह बैंक (घेर) लिया है। वह अपने प्रिय के बिना कमजोर हो गया है। जबकि यह अपने पाँवों पर खड़ा होना चाहता है। वह अपने प्रिया की छाया के कारण कमजोर नहीं होना चाहता है।
प्रश्न 8. 'सहर्ष स्वीकारा है' नामक कविता का प्रतिपाद्य स्पष्ट कीजिए।
उत्तर- 'सहर्ष स्वीकारा है' मुक्तिबोध की एक सशक्त कविता है। इसमें कवि ने अपने जीवन के समस्त खट्टे-मीठे अनुभवों, कोमल-कठोर अनुभूतियों तथा सुख-दुःख की स्थितियों को सहर्ष स्वीकार किया है। वह अपने किसी भी क्षण को अपने प्रिय से न केवल अत्यंत जुड़ा हुआ पाता है, अपितु हर स्थिति परिस्थिति को उसी की देन मानता है। उसका समस्त जीवन अपने प्रिय की संवेदनाओं से जुड़ा हुआ है। उसके भीतर जो प्रेम का प्रवाह है, वह भी उसकी प्रिय की ही देन है। परंतु कवि का भविष्य अंधकारमय है। इसलिए वह प्रिय के प्रेम को निभा पाने में स्वयं को अक्षम मानता है। अतः वह उसका दंड भी भुगतना चाहता है। वह अँधेरी गुफाओं में निर्वासन का दंड भोगना चाहता है। उसे विश्वास है कि वहाँ भी उसे अपने प्रिय की यादों का सहारा मिलेगा। चाहे दुःख हो अथवा सुख हर स्थिति में वह स्वयं को अपने प्रिय से जुड़ा हुआ पाता है।